ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच चले सैन्य संघर्ष में कई कश्मीरी परिवारों के घर तबाह हो गए हैं. इन्हें मजबूरन सरकार द्वारा बनाए विस्थापन केंद्रों में रहना पड़ रहा है, जहां इन्हें रोज़ाना की मूलभूत सुविधाओं के साथ ही अपने रोज़गार के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है.

 

सलामाबाद, बारामुला (जम्मू-कश्मीर): भारत-पाकिस्तान सैन्य संघर्ष के दौरान अपने बेटे के एक मंजिला घर में जाने वाली कंक्रीट की सीढ़ियों के नीचे बैठे 82 वर्षीय मोहम्मद सुल्तान नाइक ने कुरान की आयतें बोलते हुए मौत को गले लगाने की तैयारी कर ली थी.

6 और 7 मई की  दरमियानी रात जब भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया, तो नाइक ने उस भयावह दृश्य को देखा जब एक सरहद पार से आ रही ऑर्टलरी ने उनके तीन बेटों में से एक के घर को तहस-नहस कर दिया.

विस्फोट से आग भड़क उठी, जिसने बगल में रहने वाले उनके दूसरे सबसे बड़े बेटे के घर को भी अपनी चपेट में ले लिया. कुछ ही मिनटों में, दोनों इमारतें – जो मजदूरों के बेटों की जीवन भर की मेहनत का नतीजा थीं- राख के ढेर में तब्दील हो गईं.

नाइक ने उत्तर कश्मीर के बारामुला जिले में राजधानी श्रीनगर से करीब 102 किलोमीटर दूर कार्गो हब और लॉज के विशाल परिसर सलामाबाद व्यापार सुविधा केंद्र (टीएफसी) में द वायर से कहा, ‘हम अपनी ही जमीन पर शरणार्थी बन गए हैं.’

मोहम्मद सुल्तान नाइक अपने बेटों के दो घरों में से एक के पास चलते हुए, जो सीमा पार से हुई गोलीबारी में नष्ट हो गए हैं.

कभी अच्छे समय में कश्मीर के दो विभाजित हिस्सों के बीच व्यापार का केंद्र सलामाबाद टीएफसी भारत और पाकिस्तान के बीच बेहतर संबंधों की संभावना का प्रतीक था. हालांकि, अब यह उनकी दुश्मनी का प्रतीक बन गया है, जिसमें नाइक जैसे विस्थापित परिवार रह रहे हैं.

आर्टिलरी के हमलों के एक महीने से ज़्यादा समय बाद भी सरकार नाइक और अन्य प्रभावित पीड़ितों के पुनर्वास के लिए संघर्ष करती दिख रही है.

अधिकारियों के अनुसार, सीमा पार सेहुई  गोलीबारी में जिन परिवारों के घर पूरी तरह से नष्ट हो गए, उन्हें अब तक 1.3 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जा चुका है. लेकिन सीमावर्ती क्षेत्रों में मज़दूरी और कच्चे माल की उच्च लागत के कारण यह राशि पर्याप्त नहीं है.

नाइक के बेटे तालिब हुसैन ने कहा, ‘मुआवज़े की राशि मलबा हटाने के लिए भी काफ़ी नहीं है, नया घर बनाने की तो बात ही छोड़िए. हमारी मदद करने के बजाय सरकार ने हमारे ज़ख्मों पर नमक छिड़का है.’

एक स्कूल जाने वाली लड़की एक परिवार के सामान के अवशेषों को देख रही है, जिनका घर उरी में सीमा पार से हुई गोलीबारी में नष्ट हो गया था.

केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, 7-10 मई के बीच भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिवसीय सैन्य संघर्ष के दौरान भारी गोलीबारी के कारण जम्मू-कश्मीर में 2,060 इमारतें क्षतिग्रस्त हो गईं.

रिपोर्ट्स के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में गोलीबारी में कम से कम 23 नागरिक मारे गए हैं. हालांकि सरकार ने अब तक इस तरह की मौतों को लेकर कोई आधिकारिक आंकड़े जारी नहीं किए हैं.

जम्मू-कश्मीर प्रशासन के एक अधिकारी ने बताया कि उत्तरी कश्मीर के बारामुला जिले में 534 इमारतें क्षतिग्रस्त हो गईं, क्योंकि सीमावर्ती शहर उरी और उसके आसपास के गांवों जैसे कि नौपोरा, गिंगल, सलामाबाद और अन्य में कई रिहायशी इलाके आर्टिलरी की गोलीबारी की चपेट में आ गए.

गृह मंत्रालय ने प्रधानमंत्री द्वारा घोषित विशेष मुआवज़ा पैकेज की भी घोषणा की है, जिसके तहत पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हुए प्रत्येक घर के लिए दो लाख रुपये और आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए घरों के लिए एक लाख रुपये का पैकेज दिया जाएगा.

एक सूत्र ने बताया कि ‘अभी तक यह राशि जारी नहीं की गई है.’

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव एमए बेबी (चश्मे में) नौपोरा गांव में पीड़ितों से बात करते हुए.

द वायर ने मंगलवार (10 जून) को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (सीपीआई-एम) के महासचिव एमए बेबी के नेतृत्व में पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ उरी का दौरा किया, जिन्होंने सीमा पार से गोलीबारी के पीड़ितों के साथ एकजुटता व्यक्त की और स्थिति पर चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की.

बेबी ने नौपोरा में पीड़ित ग्रामीणों के एक समूह से कहा, ‘प्रत्येक परिवार के लिए 1.30 लाख रुपये का मुआवज़ा बहुत कम है, क्योंकि उन्होंने अपने घरों के साथ-साथ अपने सामान भी खो दिए हैं. हम आपकी चिंताओं को संसद में ले जाएंगे और सरकार पर मुआवज़ा राशि बढ़ाने के लिए दबाव डालेंगे.’

हालांकि, पीड़ितों ने कहना है कि अतीत में हुए वीआईपी के दौरे का कोई फ़ायदा नहीं हुआ है.

महमूद अली, जिनका उरी के गिंगल गांव में घर गोलीबारी में क्षतिग्रस्त हो गया था, ने पूछा, ‘कई वीआईपी यहां आए और हमारे साथ तस्वीरें खिंचवाईं, लेकिन कुछ भी नहीं बदला. सरकार को हमें बचाने के लिए आने में कितना समय लगेगा?’

महमूद अली उरी के गिंगल गांव में अपने घर को हुए नुकसान को दिखाते हुए.

6 और 7 मई की रात को उरी के कलगी गांव में कम से कम 11 अर्टिलरी गिरी थीं, जिससे मवेशी मारे गए और कई घर क्षतिग्रस्त हो गए.

अधिकारियों के अनुसार, कुछ छर्रे अब्दुल हामिद खान को लगे, जो बाल-बाल बच गए, पर उनके चार बेटों के घर क्षतिग्रस्त हो गए.

ये चार परिवार सलामाबाद टीएफसी में अन्य सीमावर्ती निवासियों के साथ रह रहे हैं, जिनका जीवन गोलीबारी के बाद उजड़ गया है. प्रत्येक परिवार को एक कमरा आवंटित किया गया है, जिसमें एक अटैच बाथरूम है, हालांकि जब द वायर ने खान के परिवार से मुलाकात की, तो वहां पानी की सप्लाई नहीं थी.

खान के बेटे तनवीर अहमद ने बताया कि वह अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ एक कमरे में रह रहे थे, जिनमें से एक उन सभी के विस्थापित होने से पहले स्कूल जाता था.

अहमद ने कहा, ‘स्कूल यहां से लगभग छह किलोमीटर दूर है और मैं बस का किराया नहीं दे सकता.’

तनवीर अहमद खान सलामाबाद व्यापार सुविधा केंद्र में अपने कमरे के बाहर खड़े हैं, जिसे विस्थापित परिवारों को आवंटित किया गया है.

अहमद ने बताया कि उनके दो भाइयों ने पिछले साल 15 लाख रुपये का बैंक लोन लिया था, जिससे उन्होंने लगभग 30 बकरियां खरीदी थीं. उन्होंने बताया कि सभी बकरियां तब मर गईं जब शेलिंग के दौरान एक तोप का गोला उनके शेड पर गिरा.

शांतिपूर्ण समय में अहमद दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते थे, जिससे घर का खर्च चलता था. उन्होंने कहा कि टीएफसी भवन में रह रहे विस्थापित परिवारों, जिनमें करीब तीन दर्जन सदस्य शामिल हैं, के लिए यह रोजाना की जद्दोजहद है, .

अहमद ने कहा कि इमारत के ऊपर बना 500 लीटर पानी का टैंक सुबह-सुबह खाली हो जाता है और परिवारों को हर दिन खुद ही तालाब से पीने का पानी लाना पड़ता है.

अहमद जैसे पीड़ितों के लिए जिनके घरों को ‘आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है, सरकार ने 6,500 रुपये का मुआवजा दिया है.

आंखों में आंसू भरे अहमद ने इस मुआवज़े को ‘भद्दा मज़ाक’ करार देते हुए कहा, ‘तोप के गोले ने मेरे घर की छत और सामने के हिस्से को उड़ा दिया, जिसकी वजह से हमें यहां आना पड़ा. मैं 6,500 रुपये का क्या कर सकता हूं? मैं मज़दूरी से पैसा नहीं कमा सकता क्योंकि इस समय यहां कोई काम नहीं है. मेरे लिए अपने सबसे छोटे बच्चे के लिए दूध ढूंढना भी मुश्किल है. मैं भीख मांगने की कगार पर हूं,’

 

Source: The Wire