
जनगणना आमतौर पर दो चरणों में संपन्न होती है. पहला चरण मकान सूचीकरण और आवास गणना का होता है, जबकि दूसरा चरण जनसंख्या गणना का. इनके बीच कुछ महीनों का अंतराल रहता है. परंपरा के अनुसार, मकान सूचीकरण जनगणना वर्ष से एक साल पहले होता है. इस बार यह चरण संभवतः 2026 में होगा.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि देश की अगली जनगणना साल 2027 में दो चरणों में होगी. अधिकांश राज्यों के लिए जनगणना की संदर्भ तिथि 1 मार्च 2027 तय की गई है, जबकि लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे बर्फीले और दूरस्थ इलाकों के लिए यह तिथि 1 अक्टूबर 2026 होगी.
इस बार की जनगणना में साल 1931 के बाद पहली बार पूरे देश में जाति आधारित आंकड़े जुटाए जाएंगे, इस मायने में यह जनगणना ऐतिहासिक है.
जनगणना अधिनियम, 1948 की धारा 3 के तहत यह अधिसूचना सोमवार, 16 जून को राजपत्र में प्रकाशित की गई. साल 2027 में जनसंख्या गणना शुरू होने से पहले कई महीनों तक मकान सूचीकरण और आवास गणना का काम चलेगा.
क्यों महत्वपूर्ण है जनगणना
जनगणना केवल आंकड़ों का संग्रह नहीं होता है, बल्कि यह नीति निर्माण की नींव होती है. चुनावी क्षेत्रों के निर्धारण, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या, राज्यों को दिए जाने वाले केंद्रीय अनुदान, राशन और सब्सिडी इत्यादि का आधार जनगणना के आंकड़े ही होते हैं.
शिक्षा, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे से जुड़े मंत्रालय स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र या सड़कें कहां बनें इसका निर्णय भी जनगणना के आंकड़ों से लेते हैं.
साथ ही, यह अदालतों, योजनाकारों और शोधकर्ताओं को प्रवासन, शहरीकरण, रोजगार और प्रजनन दर जैसे सामाजिक मसले को समझने में मदद करता है.
संविधान के अनुच्छेद 82 के अनुसार, प्रत्येक जनगणना के बाद चुनावी क्षेत्रों का परिसीमन (Delimitation) करना अनिवार्य होता है. अनुच्छेद 330 और 332 में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए संसद और विधानसभा में आरक्षित सीटों की संख्या इनकी जनसंख्या के अनुपात में तय करने का प्रावधान दर्ज है.
इसके अलावा, जनगणना देश की सामाजिक तस्वीर भी पेश करती है. लोगों की पहचान, कामकाज, रहन-सहन और परिवार की बनावट में हो रहे बदलावों को दर्ज करती है. यह आर्थिक सुधारों का असर दिखाने से लेकर वंचित समुदायों की पहचान करने में मदद करती है. जिसके आधार पर सरकार अपनी नीतियां पुनर्निर्धारित कर सके.
जनगणना कैसे होती है
जनगणना मुख्य रूप से दो चरणों में होती है. पहला- मकान सूचीकरण और आवास गणना, और दूसरा- जनसंख्या की गणना. इन दोनों चरणों के बीच कुछ महीनों का अंतर होता है.
इस प्रक्रिया के लिए लगभग 30 लाख गणनाकर्मी लगाए जाएंगे, जिनमें अधिकतर स्कूल शिक्षक होंगे. इनके अलावा, जिला और उप-जिला स्तर पर करीब अतिरिक्त 1.2 लाख अधिकारी निगरानी में लगे होंगे. 46,000 से ज़्यादा ट्रेनर गणनाकर्मियों को प्रशिक्षण देने के लिए नियुक्त किए जाएंगे.
पहला चरण: मकान सूचीकरण और आवास गणना
इस चरण में देश के हर भवन का दौरा कर यह जानकारी एकत्र की जाती है कि भवन का उपयोग किस कार्य के लिए हो रहा है (जैसे आवासीय, वाणिज्यिक आदि), निर्माण में कौन सी सामग्री उपयोग हुई है, मकान में कमरों की संख्या कितनी है, स्वामित्व की स्थिति क्या है, पानी और बिजली के स्रोत क्या हैं, शौचालय की स्थिति कैसी है, खाना पकाने के लिए कौन सा ईंधन इस्तेमाल होता है, और टीवी, फोन, वाहन जैसे संसाधन उपलब्ध हैं या नहीं. इस प्रक्रिया से देशभर के आवासीय ढांचे, सुविधाओं तक पहुंच और जीवन-स्तर की तस्वीर सामने आती है.
आमतौर पर यह चरण उस वर्ष 1 मार्च से 30 सितंबर के बीच किया जाता है, जो जनसंख्या गणना के वर्ष से एक साल पहले होता है. इस बार यह चरण 2026 में होने की संभावना है.
दूसरा चरण: जनसंख्या गणना
इस चरण में हर व्यक्ति का विवरण लिया जाता है. जैसे- नाम, उम्र, लिंग, जन्मतिथि, वैवाहिक स्थिति, शिक्षा, पेशा, धर्म, जाति/जनजाति, दिव्यांगता की स्थिति, प्रवास इतिहास आदि. इसमें बेघर लोगों के आंकड़ों को भी शामिल किया जाता है. यह चरण भारत की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का पूरा चित्र प्रस्तुत करता है.
सूत्रों के अनुसार, फरवरी 2027 में लगभग 20–21 दिनों में यह प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी. इसके 10 दिनों के भीतर प्राथमिक आंकड़े और करीब छह महीने में अंतिम आंकड़े जारी होने की उम्मीद है.
2027 की जनगणना कैसे अलग होगी
2027 की जनगणना भारत की पहली डिजिटल जनगणना होगी. इसमें मोबाइल ऐप, ऑनलाइन स्वयं-गणना और लगभग रीयल-टाइम निगरानी जैसी तकनीकी माध्यमों का इस्तेमाल होगा. यह 1931 के बाद पहली बार होगा जब सभी समुदायों की जातिगत जानकारी इकट्ठा की जाएगी.
2011 की तुलना में 2027 की जनगणना में एक बड़ा बदलाव यह होगा कि पहली बार स्वयं-गणना (self-enumeration) की सुविधा दी जाएगी. इसके तहत लोग सरकारी पोर्टल या मोबाइल ऐप पर लॉगइन कर अपने परिवार की जानकारी खुद दर्ज कर सकेंगे. स्वयं-गणना पूरी होने के बाद सिस्टम एक यूनिक आइडी जारी करेगा, और जब गणनाकर्मी घर आएंगे, तो जिन्होंने स्वयं-गणना की होगी, उन्हें केवल यह आइडी दिखानी होगी.
गणनाकर्मी स्मार्टफोन या टैबलेट पर पहले से इंस्टॉल ऐप से डेटा दर्ज करेंगे. हालांकि कागज़ आधारित प्रणाली का विकल्प भी रहेगा, लेकिन डिजिटल फॉर्म का इस्तेमाल करने के लिए मेहनताना ज़्यादा होगा.
भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त कार्यालय ने इसके लिए डिजिटल ढांचा तैयार कर लिया है. मोबाइल ऐप, जियोटैगिंग, क्लाउड पर डेटा अपलोड और रीयल-टाइम मॉनिटरिंग की व्यवस्था की गई है. ‘सेंसेस मैनेजमेंट एंड मॉनिटरिंग सिस्टम’ (सीएमएमएस) के ज़रिए फील्ड से जुड़ी समस्याओं को तुरंत सुलझाया जा सकेगा.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त (आरजीआई) ने इस बदलाव के लिए आवश्यक डिजिटल ढांचा पहले ही तैयार कर लिया है. गणनाकर्मियों को मोबाइल ऐप, जियोटैगिंग टूल्स और क्लाउड-आधारित डेटा अपलोड सिस्टम का प्रशिक्षण दिया जा चुका है. प्रक्रिया की निगरानी, किसी भी गड़बड़ी की पहचान और समय पर अपडेट भेजने के लिए रीयल टाइम डैशबोर्ड्स की योजना बनाई गई है. ‘सेंसेस मैनेजमेंट एंड मॉनिटरिंग सिस्टम’ (सीएमएमएस) के ज़रिए फील्ड से जुड़ी समस्याओं की निगरानी और समाधान बिना देरी के संभव होगा.
कहा जा रहा है कि साल 2027 की जनगणना के प्रश्नावली में ज़्यादा बदलाव नहीं होगा. बस इसमें जाति से जुड़ा एक नया कॉलम जोड़ा जाएगा. मकान सूचीकरण के दौरान 34 कॉलमों में जानकारी एकत्र की जाएगी, जबकि जनसंख्या गणना के तहत 28 कॉलमों में विस्तृत जनसांख्यिकीय, सामाजिक और आर्थिक आंकड़े दर्ज किए जाएंगे.