फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉ ने फ़िलिस्तीन को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता देने की घोषणा की है. उन्होंने कहा कि उनका देश फ़िलिस्तीन को इस साल सितंबर में आधिकारिक तौर पर मान्यता देगा. मैक्रॉ के इस फैसले का फ़िलिस्तीनी अधिकारियों ने स्वागत किया है, लेकिन इज़रायल और अमेरिका ने इसका विरोध किया है.

 

नई दिल्ली: फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉ ने फिलिस्तीन को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता देने की घोषणा की है. उन्होंने कहा कि उनका देश फिलिस्तीन को इसी साल सितंबर में आधिकारिक तौर पर मान्यता देगा.

मैक्रॉ के इस फैसले का जहां फिलिस्तीनी अधिकारियों ने स्वागत किया है, इज़रायल और अमेरिका ने इसका विरोध किया है. इसके साथ ही अब पश्चिमी देशों पर फिलिस्तीन को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता देने का दबाव बढ़ गया है.

इस संबंध में गुरुवार (24 जुलाई) को सोशल मीडिया मंच एक्स पर अपने पोस्ट में मैक्रॉ ने लिखा, ‘मध्य पूर्व में न्यायपूर्ण और स्थायी शांति के प्रति अपनी ऐतिहासिक प्रतिबद्धता के तहत, मैंने फैसला लिया है कि फ्रांस फिलिस्तीन को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता देगा.’

उन्होंने कहा, ‘हमें हमास का विसैन्यीकरण (हथियारों से मुक्त करना) सुनिश्चित करना होगा, साथ ही गाजा को सुरक्षित बनाना और उसका पुनर्निर्माण भी करना होगा.’

राष्ट्रपति मैक्रॉ ने आगे लिखा, ‘आज की सबसे बड़ी ज़रूरत यह है कि गाजा में युद्ध ख़त्म हो और नागरिकों को बचाया जाए. शांति संभव है. तत्काल युद्धविराम, सभी बंधकों की रिहाई और गाजा के लोगों को बड़े पैमाने पर मानवीय सहायता की ज़रूरत है.’

 

फ्रांस ऐसा क़दम उठाने वाला यूरोपीय संघ का सबसे प्रभावशाली देश है. यूरोपीय संघ के स्वीडन, स्पेन, आयरलैंड और स्लोवेनिया जैसे सदस्य पहले ही फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं. पोलैंड और हंगरी ने तो 80 के दशक में ही कम्युनिस्ट शासन के दौरान फिलिस्तीन को मान्यता दे दी थी.

संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से 140 से ज़्यादा देशों द्वारा फिलिस्तीन को मान्यता

फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से 140 से ज़्यादा देशों की ओर से मान्यता प्राप्त है. स्पेन और आयरलैंड सहित यूरोपीय संघ के कुछ देश भी इनमें शामिल हैं.

हालांकि, मैक्रॉ के इस फैसले का इज़रायल और अमेरिका ने विरोध किया है.

इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस क़दम की आलोचना करते हुए कहा कि यह ‘आतंकवाद को इनाम देने जैसा है.’

 

अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने एक्स पर लिखा, ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन को राष्ट्र का मान्यता देने की इमैनुएल मैक्रॉ की योजना को अमेरिका सख़्ती से ख़ारिज करता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘यह गैर-ज़िम्मेदाराना फै़सला सिर्फ़ हमास के प्रोपगैंडा को बढ़ावा देता है और यह अशांति बढ़ाएगा. यह 7 अक्तूबर के हमले के पीड़ितों के लिए एक तमाचे जैसा है.’

 

वहीं फ्रांस में अमेरिकी राजदूत चार्ल्स कुशनर ने एक्स पर लिखा, ‘फ्रांस का फिलिस्तीन को मान्यता देने का फैसला हमास को तोहफ़ा और शांति प्रक्रिया को झटका है. मैं अभी यहां पहुंचा हूं और बेहद निराश हूं. राष्ट्रपति मैक्रॉ, मुझे उम्मीद है कि सितंबर से पहले मैं आपका मत बदल सकूंगा. बंधकों को रिहा करें. युद्धविराम पर ध्यान दें. यही टिकाऊ शांति का रास्ता है.’

 

उल्लेखनीय है कि आगामी सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक होगी जब फ्रांस इस बारे में औपचारिक रूप से ये क़दम उठाएगा. फ्रांस को उम्मीद है कि बाकी बड़ी शक्तियां भी उसका अनुसरण करेंगी.

भारत फिलिस्तीनी राष्ट्र को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था

ज्ञात हो कि साल 1988 में भारत फिलिस्तीनी राष्ट्र को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था. वर्ष 1996 में भारत ने गज़ा में अपना प्रतिनिधि कार्यालय खोला, जिसे बाद में 2003 में रामल्ला में स्थानांतरित कर दिया गया था.

भारत शुरू से ही फिलिस्तीन का पक्षधर रहा है. भारत का फिलिस्तीन के प्रति समर्थन स्वतंत्रता संग्राम के समय से ही रहा है. साल 1947 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में ऐतिहासिक फिलिस्तीन के विभाजन का विरोध किया था. 1974 में भारत ने फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) को फिलिस्तीनी लोगों का एकमात्र वैधानिक प्रतिनिधि माना था.

साल 1988 में जब यासर अराफात ने फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया तो भारत सबसे पहले आगे आया और तत्काल रूप से  फिलिस्तीन को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता दी. उस वक्त राजीव गांधी की सरकार थी और भारत गैर-अरब देशों में इकलौता पहला राष्ट्र था, जिसने फिलिस्तीन को मान्यता दी थी.

भारत ने संयुक्त राष्ट्र में भी फिलिस्तीन की पूर्ण सदस्यता के लिए हमेशा समर्थन किया है. इसमें 2012 में गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य का दर्जा और 2015 में अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) में फिलिस्तीन की मान्यता शामिल है.

हालांकि, बीते कुछ सालों से देखा गया है कि इजरायल-फिलिस्तीन के संघर्ष में भारत ने बीच का रास्ता अपनाया है. मोदी सरकार मुखर तौर पर फिलिस्तीन के साथ इजरायल के खिलाफ कभी नज़र नहीं आई. कई अंतरराष्ट्रीय अवसरों पर भी सरकार ने इस मुद्दे से दूरी बनाई है. इसके साथ ही इजरायल के साथ मजबूत संबंध विकसित किए हैं.

गौरतलब है कि इज़रायल, अमेरिका और ब्रिटेन समेत पश्चिम के कई देशों ने अभी तक फिलिस्तीन को मान्यता नहीं दी है. ऐसे में फ्रांस का ये कदम इसलिए भी अहम है क्योंकि वो पहला जी-7 देश होगा, जो फिलिस्तीन को मान्यता देगा. जी-7 प्रमुख औद्योगिक देशों का एक समूह है, जिसमें फ्रांस के साथ-साथ अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, जर्मनी, कनाडा और जापान शामिल हैं.

स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, क़तर, जार्डन और सऊदी अरब ने मैक्रॉ के एलान का समर्थन किया 

स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़ ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा है, ‘मैं इसका स्वागत करता हूं कि फ्रांस ने भी स्पेन और अन्य यूरोपीय देशों के साथ मिलकर फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने का फैसला किया है. हमें मिलकर उस समाधान की रक्षा करनी होगी जिसे नेतन्याहू नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं. दो-राष्ट्र समाधान ही एकमात्र रास्ता है.’

 

पिछले साल मई में स्पेन, आयरलैंड और नॉर्वे ने फिलिस्तीनी राष्ट्र को मान्यता दी थी.

इस संबंध में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ ने कहा है कि फिलिस्तीनी राष्ट्र को मान्यता देना ही स्थायी शांति की गारंटी है.

एक्स पर एक बयान में प्रधानमंत्री अल्बानीज़ ने लिखा, ‘फिलिस्तीन के लोगों की अपनी स्वतंत्र राष्ट्र की वैध आकांक्षाओं को मान्यता देना ऑस्ट्रेलिया में लंबे समय से एक सर्वदलीय रुख़ रहा है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय दो-राष्ट्र समाधान को इसलिए मानता है क्योंकि न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति इसी पर निर्भर करती है. ऑस्ट्रेलिया उस भविष्य के लिए प्रतिबद्ध है जहां इज़रायल और फिलिस्तीन दोनों के लोग सुरक्षित और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर शांति से रह सकें.’

 

क़तर ने फ्रांस की घोषणा का स्वागत किया है और बाकी देशों से भी ऐसा ऐसा ही करने की अपील की है.

क़तर के विदेश मंत्रालय ने एक्स पर एक बयान जारी कर कहा है, ‘जिन देशों ने अभी तक फिलिस्तीनी राष्ट्र की मान्यता नहीं दी है, वे फ्रांस का अनुसरण करें और अंतरराष्ट्रीय क़ानून के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और फिलिस्तीनी लोगों के उनकी ज़मीन पर ऐतिहासिक और अपरिहार्य अधिकारों के समर्थन में सीधे आएं.’

 

सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा है कि सऊदी अरब फ्रांस के इस ऐतिहासिक निर्णय की सराहना करता है, जो फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार और 1967 की सीमाओं के आधार पर पूर्वी यरुशलम को राजधानी बनाकर एक स्वतंत्र राष्ट्र स्थापित करने के उनके अधिकार पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आम सहमति की पुष्टि करता है.

गाजा में भुखमरी के गंभीर हालात के बीच ये बड़ा सवाल है कि क्या राष्ट्रपति मैक्रॉ का सितंबर में संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन को मान्यता देने का फैसला कोई बड़ा बदलाव लाएगा?

फिलिस्तीन को मान्यता देने से क्या बदलेगा

फ्रांस के इस फैसले से भले ही गाजा की वास्तविक स्थिति में बहुत परिवर्तन न आए, लेकिन इससे मैक्रॉ के लिए राजनीतिक, सामरिक और घरेलू स्तर पर कई फायदे हो सकते हैं.

फ्रांस में बड़ी संख्या में अरब मूल के नागरिक और मुसलमान रहते हैं, जो लंबे समय से फिलिस्तीन के समर्थन में आवाज़ उठा रहे हैं. यह कदम न केवल घरेलू सियासी संतुलन साधता है, बल्कि अरब और मुस्लिम दुनिया में फ्रांस की छवि को भी सुधार सकता है.

इसके अलावा यह फैसलवा अमेरिका और इजरायल को यह स्पष्ट संकेत देता है कि अब दुनिया एकतरफा नीतियों को स्वीकार नहीं करेगी. अगर अमेरिका शांति प्रक्रिया को निष्क्रिय बनाए रखता है, तो यूरोप अपने रास्ते पर चलने को तैयार है.

यह मान्यता फिलिस्तीन के लिए केवल सम्मान की बात नहीं, बल्कि एक राजनीतिक हथियार भी है, जो उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नए अधिकार, नए संबंध और शायद भविष्य में संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता दिला सकता है. यह उन प्रयासों को भी बल देगा जो दो-राष्ट्र समाधान के पक्ष में हैं, जहां इजरायल और फिलिस्तीन दोनों शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रह सकें.

 

Source: News Click