छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में काम कर रहे 12 बंगाली श्रमिकों को पुलिस ने ‘बांग्लादेशी’ होने के संदेह में हिरासत में लिया था. उनके गृह ज़िलों से भारतीय नागरिकता की पुष्टि होने पर दो दिन बाद उन्हें रिहा कर दिया गया. अब इस मामले में संज्ञान लेते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है.

 

नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में स्कूल निर्माण कार्य के लिए आए पश्चिम बंगाल के 12 मजदूरों को बांग्लादेशी नागरिक बताकर गिरफ्तार करने और प्रताड़ित करने के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब तलब किया है.

इन मजदूरों की ओर से दायर याचिका में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएस) की धारा 128 के तहत की गई कार्रवाई को रद्द करने, प्रत्येक मजदूर को 1 लाख रुपए का मुआवजा देने और राज्य में स्वतंत्र रूप से काम करने की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की गई है.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की खंडपीठ ने सोमवार (4 अगस्त) को सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ सरकार को दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया. इसके बाद एक सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता की ओर से प्रति-उत्तर दाखिल किया जाएगा, जिसके बाद मामले में अगली सुनवाई की जाएगी.

क्या है मामला?

पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर और मुर्शिदाबाद क्षेत्र के निवासी 12 मजदूर 29 जून को ठेकेदार के माध्यम से बस्तर क्षेत्र के कोंडागांव पहुंचे थे, जहां वे एक स्कूल निर्माण परियोजना में श्रमिक के रूप में काम कर रहे थे.

याचिका के अनुसार, 12 जुलाई को कोंडागांव साइबर सेल थाना की पुलिस इन मजदूरों को उनके सुपरवाइजर श्री पांडेय के साथ निर्माण स्थल से गाड़ी में उठाकर ले गई. पुलिस ने सभी द्वारा आधार कार्ड दिखाने के बावजूद उन्हें ‘बांग्लादेशी’ कहा और उनके साथ थाने में गाली-गलौज, मारपीट और दुर्व्यवहार किया.

उसी शाम करीब 6 बजे इन्हें कोंडागांव कोतवाली ले जाया गया और फिर 12 और 13 जुलाई की दरम्यानी रात को जगदलपुर सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया.

सांसद महुआ मोइत्रा और बंगाल पुलिस की दखल

13 जुलाई को घटना की जानकारी मिलने के बाद परिजनों ने टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा से संपर्क किया. इसके बाद पश्चिम बंगाल पुलिस ने इन मजदूरों के भारतीय नागरिक होने की पुष्टि करते हुए रिपोर्ट पेश की. इसके आधार पर महबूब शेख और 11 अन्य मजदूरों की ओर से अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव और रजनी सोरेन ने 15 जुलाई को हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की.

महुआ ने आरोप लगाते हुए कहा था, ‘मेरे निर्वाचन क्षेत्र के नौ लोग कोंडागांव जिले के अलबेडापारा में एक निजी स्कूल के निर्माण स्थल पर मिस्त्री के रूप में काम कर रहे थे. 12 जुलाई को पुलिस वहां पहुंची और उन्हें उठाकर ले गई. उनके पास सभी वैध दस्तावेज थे. उनके फोन बंद हैं, उनके परिवार के सदस्यों से मिली जानकारी के अनुसार, उन्हें बस्तर जिले की जगदलपुर जेल में रखा गया है.’

‘ये नौ प्रमाणिक श्रमिक हैं जो एक ठेकेदार के साथ वैध दस्तावेजों के साथ गए थे. न तो पश्चिम बंगाल सरकार और न ही परिवारों को इस बारे में कोई सूचना दी गई. हमें न तो हिरासत आदेश की कोई प्रति मिली है और न ही कोई सुनवाई हुई है,’ उनका कहना था.

हालांकि याचिका पर सुनवाई शुरू होने से पहले ही 14 जुलाई को एसडीएम कोंडागांव के आदेश पर मजदूरों को रिहा कर दिया गया.

लेकिन याचिका में यह भी आरोप है कि रिहाई के बाद भी पुलिस ने उन्हें धमकाया और राज्य छोड़ने के लिए मजबूर किया, जिससे बाद मजदूर अपना रोजगार छोड़कर बंगाल लौटने को मजबूर हुए.

संविधान के अधिकारों का उल्लंघन: याचिकाकर्ता

याचिका में कहा गया है कि वे सभी मजदूर भारतीय नागरिक हैं और उन्हें देश के किसी भी हिस्से में रोजगार करने का संवैधानिक अधिकार है. वे करीब 12 दिन से स्कूल निर्माण स्थल पर काम कर रहे थे, उन्होंने न अपनी पहचान छुपाई और न ही कोई गैरकानूनी गतिविधि की, फिर भी पुलिस ने उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया.

हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है.

 

Source: The Wire