बिहार में चुनाव नज़दीक हैं और एसआईआर का मुद्दा काफी हावी होता जा रहा है. लेकिन बिहार के चुनाव में जातियों की, ख़ासकर पिछड़ी मुसलमान जातियों की भूमिका महत्वपूर्ण होने वाली है.

अभी हाल ही में जामिया मिलिया इस्लामिया में पसमांदा समाज पर एक कार्यक्रम किया गया, जिसमें उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता दानिश आज़ाद अंसारी ने मुख्य अतिथि की भूमिका निभाई. इसे ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ ने आयोजित किया था.

इस आयोजन का विषय था: जाति जनगणना और उसका पसमांदा समाज के सार्वभौमिक विकास पर प्रभाव. इसमें भाजपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य महेश चंद्र शर्मा समेत अनेक भाजपा राजनेताओं ने शिरकत की तथा आयोजन को जामिया मिलिया इस्लामिया के वाइस चांसलर मजहर आसिफ ने संरक्षण प्रदान किया. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने भी इसमें बढ़ चढ़कर भाग लिया था.

ऐसे बहुतेरे कार्यक्रम पसमांदा समाज के अनेक संगठनों, जो भाजपा द्वारा समर्थित हैं, देश के अलग अलग हिस्सों  में चलाए जा रहे हैं, जिसमें जाति जनगणना से पसमांदा समाज को होने वाले विभिन्न फायदों को बताया जा रहा है.

बिहार में चुनाव नजदीक हैं तथा एसआईआर का मुद्दा काफी हावी होता जा रहा है. इस बार का बिहार का चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे नीतीश कुमार का आखिरी चुनाव माना जा रहा है, तो वहीं विपक्ष को चुनाव जीतना बहुत जरूरी है, क्योंकि पिछले साल के लोकसभा के चुनाव में भी विपक्ष से जितनी उम्मीद थी उतनी सीट नहीं जीत सकी.

इस चुनाव में भी जाति जनगणना का मुद्दा और आरक्षण की सीमा को बढ़ाने का मुद्दा गति पकड़ रहा है, जहां एक तरफ महागठबंधन बिहार में जातिगत सर्वे के आधार पर बढ़ाई गई आरक्षण की सीमा को लागू करवाना चाहता है तथा उसको संविधान की नौवीं अनुसूची में डालने का दबाव दे रहा है, तो वहीं सत्ता पक्ष यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन इस मुद्दे पर जाति जनगणना की घोषणा करके शांत बैठा हुआ है.

इस जाति जनगणना को विपक्ष जिस तरह केवल पिछड़ा वर्ग, दलित और अनुसूचित जनजाति से जोड़कर देख रहा है, और मात्र अगड़ी जातियों बनाम पिछड़ी जातियों के संदर्भ में देख रहा है, मामला सिर्फ यहीं तक नहीं रहने वाला है. यह बढ़कर मुस्लिम बनाम मुस्लिम भी होने की संभावनाओं को जगह देता प्रतीत हो रहा है.

मुस्लिम धर्म और जातियां

इस जनगणना में हर धर्म की जातियों को गिना जाएगा. इसका सबसे बड़ा असर मुस्लिम धर्म की जाति जनगणना से होगा, जिसे अब तक एक मुस्लिम इकाई और एकमुश्त वोट के रूप में देखा जाता था. जाति जनगणना के बाद यह एकमात्र इकाई के रूप में नहीं रह पाएगा और भाजपा इस विभाजन में सेंध लगाने के लिए पूरी तरह से तैयार बैठी मालूम पड़ती है.

वैसे तो मुस्लिम समाज में सैद्धांतिक रूप से समानता की बात कही गई है लेकिन भारत  में यह उन तमाम जातियां में बटी हुई है जो कि हिंदू धर्म में आते हैं, जैसे धोबी, बढ़ई, दर्जी, नाई, राजपूत, गुर्जर, जाट आदि.

इनमें भी काफी हद तक हिंदू धर्म में फैली जाति असमानताएं हैं तथा भेदभाव भी कमोबेश एक समान ही है. इस समाज में पिछड़े हुए लोगों को पसमांदा मुसलमान कहते हैं तथा इन पिछड़ों को आरक्षण का लाभ, नौकरी और शैक्षणिक संस्थाओं भी उसी रूप में मिलता है जैसे अन्य धर्म के पिछड़ों को.

जाति जनगणना से मुस्लिम समाज में फैली जाति व्यवस्था को एक ठोस आंकड़ों का आधार मिल जाएगा तथा उनमें एक बंटवारे की गुंजाइश बढ़ जाएगी. जब समाज की असमानताओं की जानकारी को एक ठोस प्रमाण मिल जाएगा तो उसको पाटने के लिए अनेक योजनाएं भी बनाई जा सकती हैं और सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़े मुसलमानों का भला भी हो सकता है.

विपक्षी पार्टियों तथा खुद को धर्मनिरपेक्ष कहने वाली पार्टियों ने मुस्लिम समाज में जातीय व्यवस्था को तरजीह नहीं दी और उनकी पहचान को सिर्फ इस्लाम तक ही सीमित रखा, जिससे कि पसमांदा समाज को लाभ नहीं मिल सका. इस घाव को भाजपा समय-समय पर तंज कसकर कुरेदती रहती है तथा इस पर हमला करने की तैयारी कर रही है.

हाल के वर्षों में दो जगह जातिगत सर्वे हुआ, बिहार और तेलंगाना. बिहार के जातिगत सर्वे के आंकड़े के अनुसार बिहार में कुल मुस्लिम आबादी 17 प्रतिशत है तथा उनमें भी पसमांदा मुसलमान की संख्या 70  फ़ीसदी है. जिससे कि दोनों वर्ग  के जनसंख्या में लगभग वही अंतर मालूम पड़ता है, जो अंतर हिंदू समाज में उच्च वर्ग तथा अन्य जातियों में है.

वहीं, अगर तेलंगाना में मुस्लिम की कुल आबादी 12.56 प्रतिशत है. 10.08 प्रतिशत पसमांदा मुस्लिम हैं, अर्थात स्वर्ण मुसलमानों की आबादी, जिसमें शेख, सैयद, पठान आदि जातियां आती हैं. मात्र 2.48 ही है. अर्थात यहां पर भी 70 प्रतिशत से अधिक आबादी पसमांदा मुस्लिम समाज की ही है, जो हिंदू धर्म की वर्ण व्यवस्था में शूद्र और कारीगर जातियां हैं.

भाजपा और पसमांदा

यदि हम भाजपा की कल्याणकारी योजनाओं की बात करें तो यह दावा करती हैं की सरकार की समस्त कल्याणकारी योजनाएं जैसे की उज्ज्वला योजना, आवास योजना, मुफ्त राशन योजना, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना,आदि का सबसे बड़ा लाभार्थी समूह मुसलमान समाज से है तथा वह मूलतः पसमांदा समाज से है. वह इन आंकड़ों को समस्त  लाभार्थी समूह का लगभग 35 प्रतिशत मानते हैं.

भाजपा इसे एक लाभार्थी की श्रेणी के साथ अब पसमांदा समाज के वोट के रूप में भी देखना चाह रही है. सीएसडीएस लोकनीति पोस्ट पोल सर्वे के अनुसार, हालिया लोकसभा चुनाव में भाजपा को कुल मुस्लिम वोट का  8 प्रतिशत वोट मिला था तथा राजनीतिक विश्लेषक हिलाल अहमद के अनुसार लाभार्थी कार्ड का भी इसमें  बड़ा योगदान था.

जम्मू कश्मीर से पसमांदा गुलाम अली को राज्यसभा सांसद बनाना, उत्तर प्रदेश में पसमांदा समाज से आने वाले दानिश आज़ाद अंसारी को अल्पसंख्यक मंत्री बनाना भाजपा को पसमांदा को अपनी तरफ आकर्षित करने के कदम के रूप में देखा जाता है.

हैदराबाद में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि वे पसमांदा समाज को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने में मदद करें तथा पसमांदा समाज को पार्टी से जोड़ने के लिए अलग से कार्यक्रम चलाएं.

पिछले दिल्ली नगर निगम चुनाव में भाजपा ने कुछ सीटों पर, जहां मुस्लिम समाज बहुसंख्यक है, पसमांदा मुसलमानों को टिकट दिया तथा इस साल हुए उत्तर प्रदेश के नगर निगम चुनाव में भी अनेक पसमांदा समाज से आने वाले मुसलमान को टिकट दिया तथा उन्होंने जीत भी दर्ज की.

हाल के दिनों में  वक्फ बोर्ड बिल जो पास किया गया उसके पीछे भी भाजपा का यही तर्क था कि वक्फ बोर्ड में ज्यादातर सवर्ण मुस्लिमों की संख्या है तथा इसका मुख्य लाभ पसमांदा समाज के मुस्लिमों या महिलाओं को नहीं मिल पाता है तथा इसका विरोध भी सवर्ण मुस्लिम ही कर रहे हैं.

वक्फ सुधार बिल में यह सुनिश्चित गया किया गया कि वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम महिलाओं के साथ-साथ पिछड़े मुसलमान को भी सदस्य बनाया जाएगा, तथा इसका स्वागत अनेक पसमांदा समाज के संगठनों ने किया.

जाति जनगणना होने से अनेक प्रकार सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विषमताओं के आंकड़े बाहर आ जाएंगे तथा पसमांदा समाज अपनी राजनीतिक भागीदारी की मांग के लिए एक ठोस  आधार भी दे सकता है, जिससे समस्त पार्टियां जिन्हें मुस्लिम समाज वोट करता आया है, भी उन्हें हिस्सेदारी देने पर मजबूर हो सकती हैं.

हालांकि, भाजपा के लिए पसमांदा राजनीति को धार देना इतना आसान नहीं होगा. राम मंदिर आंदोलन से निकली भाजपा पर बाबरी विध्वंस से लेकर अनेक जगह मुसलमान के खिलाफ हिंसा भड़काने का आरोप है और इन हिंसा में सबसे अधिक प्रताड़ित भी पसमांदा मुसलमान हुए हैं. उनकी राजनीति का मुख्य आधार एंटी-मुस्लिम होना है.

लेकिन भाजपा ने पसमांदा मुसलमानों को लुभाने के लिए अभी से प्रयास करना भी शुरू कर दिया है. हाल ही में मुस्लिम बहुसंख्यक मुरादाबाद की कुंदरकी सीट पर उपचुनाव ने भाजपा के रामवीर सिंह का जीतना और समाजवादी पार्टी के मोहम्मद रिजवान की जमानत जब्त होना भी इन्हीं प्रयोगों का सबूत है.

 

Source: The Wire