द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की जांच में खुलासा हुआ है कि बिहार के पूर्वी चंपारण ज़िले के ढाका विधानसभा क्षेत्र में लगभग 80,000 मुस्लिम मतदाताओं को ग़लत तरीके से ग़ैर-भारतीय नागरिक बताकर बार-बार मतदाता सूची से हटाने की कोशिश की गई है.
ढाका, पूर्वी चंपारण, बिहार: बिहार के पूर्वी चंपारण ज़िले के ढाका विधानसभा क्षेत्र में लगभग 80,000 मुस्लिम मतदाताओं को मतदाता सूची से हटाने की कोशिश की गई है.
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की जांच से पता चला है कि इन मुस्लिम मतदाताओं को गलत तरीके से गैर-भारतीय नागरिक बताकर उनके नाम मतदाता सूची से हटाने की मांग की गई है. इसके लिए भारतीय निर्वाचन आयोग के जिला अधिकारी (इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर या ईआरओ) और बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) को औपचारिक लिखित आवेदन दिए गए हैं.
एक आवेदन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ढाका से विधायक पवन कुमार जायसवाल के निजी सहायक के नाम पर दिया गया. दूसरा आवेदन भाजपा के बिहार राज्य मुख्यालय के लेटरहेड पर दिया गया, जैसा कि हमारे द्वारा देखे गए दस्तावेजों से पता चलता है.
कलेक्टिव की जांच से यह स्पष्ट हुआ कि ढाका निर्वाचन क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं को लक्षित करके बड़े पैमाने पर उन्हें मतदाता सूची से हटाने की कोशिश की गई है.
मतदाता सूची के साथ छेड़छाड़ और गलत जानकारी देकर मतदाताओं को हटाने की कोशिश करना एक अपराध है. लेकिन निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने ढाका में नागरिकों के बड़े पैमाने पर मताधिकार छीनने की कोशिश करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है.

1 अक्टूबर को ढाका की अंतिम मतदाता सूची जारी होने पर यह स्पष्ट होगा कि इन मतदाताओं का क्या होगा.
कलेक्टिव की रिपोर्टिंग के दौरान पाया गया कि कुछ मुस्लिम नागरिक, जिन्हें पता चला कि भाजपा ने उनके नाम हटाने के लिए दिए हैं, वे चिंता में जी रहे हैं. कई लोग इस कोशिश से अनजान थे कि उन्हें गैर-भारतीय नागरिक घोषित करने की कोशिश की जा रही है.
वर्तमान भाजपा विधायक पवन जायसवाल ने इन खुलासों पर कोई जवाब नहीं दिया. इसके उलट उन्होंने विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) पर 40,000 हिंदू मतदाताओं को हटाने की कोशिश का आरोप लगाया. हालांकि, उन्होंने बार-बार अनुरोध के बावजूद इसके सबूत साझा करने से इनकार कर दिया.
उल्लेखनीय है कि ढाका, पूर्वी चंपारण ज़िले का एक सीमावर्ती निर्वाचन क्षेत्र है, जहां 2020 में भाजपा ने राजद से 10,114 वोटों के अंतर से कुल 2.08 लाख मतों में से जीत हासिल की थी. इस निर्वाचन क्षेत्र में कुछ हज़ार गलत हटाए गए मतदाता भी चुनाव पर बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं. इन कोशिशों का मकसद अंतिम मतदाता सूची से 40% योग्य मतदाताओं को हटाना था.
अराजकता का समय
25 जून से 24 जुलाई के बीच बिहार के बाकी हिस्सों की तरह ढाका में भी विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया शुरू हुई. ढाका के लोगों को 30 दिनों के भीतर खुद को नए सिरे से मतदाता के रूप में पंजीकृत करना था, जिसमें उन्हें नागरिकता, पहचान और सामान्य निवास स्थान के सबूत के रूप में अलग-अलग दस्तावेज देने थे.
बीच में निर्वाचन आयोग ने फैसला किया कि लोगों को केवल गणना फॉर्म भरने होंगे और दस्तावेजी सबूत बाद में जमा किए जा सकते हैं. बूथ-स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) जल्दबाजी, भ्रम और अराजकता के बीच काम पर लग गए. लोगों के लिए बीएलओ ने फॉर्म भरें – यह प्रक्रिया पूरे राज्य में दोहराई जा रही थी. 31 जुलाई तक एसआईआर का यह चरण खत्म हुआ और निर्वाचन आयोग ने एक मसौदा सूची जारी की.
विपक्षी दलों और नागरिक समाज समूहों की मांग के बावजूद, जो चुनावी प्रक्रियाओं पर नज़र रखते हैं, निर्वाचन आयोग ने अपनी जिद नहीं छोड़ी और मसौदा मतदाता सूची को ऐसे प्रारूप में जारी किया जो डेटा को बड़े पैमाने पर पढ़ने और विश्लेषण करने में मुश्किल था.
जब एसआईआर का अगला चरण शुरू हुआ, जिन लोगों के नाम मसौदा सूची से छूट गए थे या जिनके विवरण गलत दर्ज किए गए थे, उन्हें 30 दिन का समय दिया गया. बूथ-स्तरीय अधिकारियों और कथित स्वयंसेवकों, जिन्हें निर्वाचन आयोग ने नियुक्त करने का दावा किया था, को अब ऐसे प्रभावित लोगों की मदद करनी थी.
कानून के तहत, किसी भी मतदाता को तीन आधारों पर किसी अन्य मतदाता को हटाने के लिए फॉर्म 7 के जरिए आवेदन करना होता है: मतदाता की मृत्यु हो गई है, वह निर्वाचन क्षेत्र में नहीं रहता, या वह भारतीय नागरिक नहीं है.
लेकिन एसआईआर को अराजकता में शुरू किया गया था. निर्वाचन आयोग द्वारा दावा किए गए नियम, प्रक्रियाएं और मानदंड अक्सर केवल कागजों पर थे. जमीन पर इसका संचालन लड़खड़ा रहा था. बीएलओ को नागरिकों की मदद करने के लिए फॉर्म भरने को कहा गया. फिर निर्वाचन आयोग ने अपनी जिम्मेदारी को टालने की कोशिश की और कहा कि मसौदा मतदाता सूची को ठीक करने में मदद करना राजनीतिक दलों की भी जिम्मेदारी है.
दलों के पास बूथ-स्तरीय एजेंट (बीएलए) होते हैं, जो निर्वाचन आयोग के साथ पंजीकृत होते हैं और अपनी पार्टियों के हितों के लिए चुनावी प्रक्रियाओं की देखरेख और समर्थन करते हैं. उनकी भूमिका बीएलओ से अलग होती है. वे सरकारी अधिकारी नहीं होते. वे अपनी-अपनी पार्टियों के हितों के लिए काम करते हैं. बीएलए पर इतना निर्भर करना, जो मूल रूप से निर्वाचन आयोग और उसके कर्मचारियों का काम था, हमेशा जोखिम भरा था.
सबको हटाओ!
शिकायतें और संशोधन दाखिल करने की अंतिम तारीख 31 अगस्त थी. इससे तेरह दिन पहले 19 अगस्त से, भाजपा के एक बीएलए ने मतदाताओं को हटाने के लिए शिकायतें दाखिल करना शुरू किया. एक दिन में दस शिकायतें. बीएलए शिव कुमार चौरसिया एक दिन में दस लोगों के नाम हटाने की शिकायतें दाखिल करते थे.
कलेक्टिव ने भाजपा द्वारा जिला इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर को दी गई सभी याचिकाओं तक पहुंच बनाई. भाजपा जिन्हें हटाना चाहती थी, वे सभी मुस्लिम थे.

प्रत्येक याचिका पर पार्टी की ओर से बीएलए ने हस्ताक्षर किए थे, जिसमें कहा गया था, ‘मैं यह घोषणा करता हूं कि मेरे द्वारा दी गई जानकारी मुझे दी गई मतदाता सूची के हिस्से की उचित जांच के आधार पर है और मैं जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 31 के दंडात्मक प्रावधानों से अवगत हूं, जो गलत घोषणा करने के लिए हैं.’
कानून की धारा 31 कहती है कि मतदाता सूची में हेरफेर करने के लिए गलत और झूठे दावे करना एक दंडनीय अपराध है. बीएलए ने यह नहीं लिखा कि उनकी पार्टी इन नामों को क्यों हटाना चाहती थी. फॉर्म में बीएलए को कारण बताना जरूरी होता है.
इस स्तर और पैमाने पर, बीएलए और उनकी पार्टी, भाजपा को संदेह का लाभ दिया जा सकता था कि कुछ गलत नाम सूची में आ गए थे, जिन्हें वे हटाना चाहते थे, और यह एक निर्वाचन क्षेत्र से मतदाताओं को हटाने की व्यवस्थित और लक्षित कोशिश नहीं थी. कुल मिलाकर, तेरह दिन की अवधि में 130 नाम हटाने की सिफारिश की गई.
मसौदा मतदाता सूची पर आपत्तियां जमा करने के आखिरी दिन, एक और पत्र अनुलग्नकों के साथ ईआरओ को मिला. यह ढाका निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के बूथ-स्तरीय एजेंट धीरज कुमार के नाम पर हस्ताक्षरित था. धीरज कुमार ढाका के भाजपा विधायक के निजी सहायक हैं.
इस याचिका में कहा गया कि जनवरी 2025 तक मतदाता सूची में न होने वाले लोगों को बिना निर्वाचन आयोग द्वारा अनिवार्य विभिन्न दस्तावेजी सबूतों, जैसे डोमिसाइल सर्टिफिकेट, के एसआईआर मसौदा सूची में डाल दिया गया. लेकिन इस बार, यह कुछ सौ नामों के लिए नहीं था. यह ढाका निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची से 78,384 मतदाताओं को हटाने के लिए था. उनके नाम और ईपीआईसी नंबर याचिका में व्यवस्थित रूप से सूचीबद्ध किए गए थे.

इसके बाद, भाजपा के बिहार राज्य मुख्यालय के लेटरहेड पर एक पत्र पटना में मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) को भेजा गया. सीईओ एक राज्य में आयोग का सबसे वरिष्ठ अधिकारी होता है.
इस याचिका में भी ढाका के 78,384 मतदाताओं को हटाने की मांग की गई. लेकिन इस बार, कारण अलग था. भाजपा के लेटरहेड पर दी गई याचिका में कहा गया कि ये 78,384 मुस्लिम मतदाता भारतीय नागरिक नहीं हैं.

यह पत्र, पार्टी के बिहार कार्यालय के लेटरहेड पर, ‘लोकेश’ द्वारा हस्ताक्षरित था, जिनकी पहचान तिरहुत प्रमंडल प्रभारी, चुनाव प्रबंधन विभाग, बिहार के रूप में बताई गई थी. तिरहुत क्षेत्र में मुजफ्फरपुर और आसपास के ज़िले शामिल हैं.
हमने मुजफ्फरपुर के भाजपा चुनाव प्रबंधक, गोविंद श्रीवास्तव से लोकेश की पहचान के संबंध में बात की. उन्होंने कहा, ‘यहां भाजपा के लिए कोई लोकेश काम नहीं करता.’
इसके बाद कलेक्टिव ने ढाका के भाजपा संगठन अध्यक्ष सुनील साहनी से भी संपर्क किया. सीईओ बिहार को भेजे गए पत्र के बारे में पूछे जाने पर, जिसमें 78,384 मतदाताओं को गैर-भारतीय कहा गया था.
उन्होंने कहा, ‘मैं ढाका, चिरैया और मधुबन विधानसभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता हूं, लेकिन मेरी जानकारी में यहां ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है. जहां तक हटाने की बात है, केवल उन लोगों को हटाया गया है जो देश के नागरिक नहीं हैं और नेपाल और बांग्लादेश से अवैध रूप से यहां बसने की कोशिश कर रहे हैं. बाकी देश के नागरिकों को कोई समस्या नहीं है.’
उन्होंने पत्र के अस्तित्व या ढाका के ईआरओ को पवन जायसवाल के निजी सहायक द्वारा दी गई प्रारंभिक याचिका को नकारा नहीं. भाजपा के अधिकारियों ने अभी तक इन याचिकाओं के जालसाजी होने के बारे में कोई पुलिस शिकायत दर्ज नहीं की है.
78,384 मतदाताओं की डिजिटल रूप से तैयार की गई सूची- जो या तो मुस्लिम हैं या जिनके नाम रूढ़िगत रूप से मुस्लिम समुदाय से जुड़े हैं, यह संकेत देता है कि मुस्लिम मतदाताओं के नामों को छांटने और एकत्र करने के लिए कंप्यूटर प्रोग्राम का उपयोग किया गया था. या फिर बूथ-दर-बूथ अभ्यास करके मुस्लिम मतदाताओं के नामों को अलग और एकत्र किया गया.
यह आम बात है कि अगर विधानसभा क्षेत्र का विधायक सत्तारूढ़ दल से है, तो बूथ-स्तरीय अधिकारियों पर सत्तारूढ़ दल के साथ साठगांठ करने के आरोप लगते हैं. इस मामले में अजीब तरह से, भाजपा ने दावा किया कि बूथ-स्तरीय कार्यकर्ताओं और अन्य निर्वाचन आयोग के कर्मचारियों ने इन मतदाताओं को अवैध रूप से दर्ज किया था.
कलेक्टिव ने उन मतदाताओं की सूची तक पहुंच बनाई, जिनके नाम और ईपीआईसी नंबर भाजपा ने अवैध प्रवासियों के रूप में दावा किए थे. कलेक्टिव पुष्टि करता है कि लगभग सभी मुस्लिम मतदाता थे.

कलेक्टिव ने ढाका के ईआरओ से पूछा कि उन्होंने भाजपा द्वारा कथित रूप से मुस्लिम मतदाताओं को हटाने की मांग को कैसे निपटाया. उन्होंने पुष्टि की कि उन्हें शिकायत मिली थी. कलेक्टिव ने विशेष रूप से सबसे गंभीर दावे के बारे में पूछा, जिसमें सीईओ बिहार को पत्र में 78,384 लोगों को गैर-भारतीय नागरिक बताया गया था, और ढाका में चुनाव अधिकारियों को इसके बारे में दिए गए आगे के आदेशों के बारे में.
इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘इन (78,000) मतदाताओं के दस्तावेजों की जांच एसआईआर की नियमित सत्यापन अवधि के दौरान की जाएगी.’
उन्होंने कहा कि उन्होंने याचिकाओं के खिलाफ रसीदें दी थीं और बड़े पैमाने पर नाम हटाने की मांग करने वालों को सूचित किया था कि ऐसे थोकमें नाम हटाने की मांगों पर विचार नहीं किया जाएगा. लेकिन, उन्होंने अपने कार्यालय से इन याचिकाओं के खिलाफ रसीदों या आधिकारिक संचार के सबूत साझा करने से इनकार कर दिया.
कलेक्टिव ने कई बार भाजपा विधायक पवन जायसवाल से बात करने की कोशिश की, जिसमें उनके कार्यालय जाना भी शामिल है. पवन जायसवाल के निजी सहायक धीरज कुमार से भी बात की, जिन्होंने ढाका के ईआरओ को 78,384 मतदाताओं को हटाने की याचिका दी थी. उन्होंने याचिका भेजने से इनकार नहीं किया और इसके बजाय कहा कि वह अपने बॉस, विधायक पवन कुमार जायसवाल के साथ इन सवालों पर एक साक्षात्कार की व्यवस्था करेंगे.
बार-बार याददिहानी के बावजूद न तो उन्होंने बात की और न ही कलेक्टिव को उनके बॉस से बात करने का मौका दिया एक बार जब कलेक्टिव स्वतंत्र रूप से पवन जायसवाल से फोन पर संपर्क करने में सक्षम हुआ और उनसे सूची के बारे में पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया, ‘दिल्ली को हमारे स्थानीय मामलों में क्यों रुचि है?’
कलेक्टिव ने जांच के अंत में विधायक को एक ईमेल प्रश्नावली भी भेजी. रिपोर्ट के प्रकाशन तक जिसका कोई जवाब नहीं मिला था.
ढाका में सभी दलों के पार्टी कार्यकर्ताओं से बात करने पर पता चला कि राजद को भाजपा की मुस्लिम मतदाताओं को हटाने की चाल के बारे में पता चल गया था. यह भी पता चला कि बिहार में विपक्षी दलों की टीमें एसआईआर प्रक्रिया के दौरान सावधानी से काम कर रही थीं, क्योंकि उन्हें अराजकता के बीच मतदाता सूची में लक्षित हेरफेर की चिंता थी.
कलेक्टिव को कुछ राजनीतिक दल के निर्वाचन क्षेत्र-स्तरीय कार्यकर्ताओं ने बताया कि 40,000 मतदाताओं को हटाने की एक और सूची किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा निर्वाचन आयोग के अधिकारियों को भेजी गई थी, जो किसी राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं है. कलेक्टिव ने इस प्रस्तावित सूची तक पहुंचने की बार-बार कोशिश की, लेकिन असफल रहे.
ढाका के भाजपा विधायक ने मीडिया के सामने अपमे फोन पर एक सूची दिखाते हुए आरोप लगाया था कि राजद ने भी ईआरओ को नाम हटाने की सूची दी थी.
भाजपा विधायक के अनुसार, ‘राजद ने सभी 40,000 हिंदू मतदाताओं को अपनी शिकायत में फर्जी मतदाता बताया था. वे सभी हिंदू थे,’
कलेक्टिव ने पवन जायसवाल से संपर्क किया, साक्षात्कार और शिकायत की प्रति मांगी, लेकिन उन्होंने दोनों देने से इनकार कर दिया.
एक निर्वाचन क्षेत्र-स्तरीय कार्यकर्ता ने कहा कि निर्वाचन आयोग की पारदर्शिता में विश्वास की कमी के कारण, भाजपा की कथित मुस्लिम मतदाताओं को बड़े पैमाने पर हटाने की कोशिश ने एक ‘टिट-फॉर-टैट’ युद्ध को जन्म दिया. कलेक्टिव ने ढाका में राजद के प्रमुख अधिकारियों से बात की. उन्होंने इस बात को न तो नकारा और न ही पुष्टि की.
कलेक्टिव ने ढाका के ईआरओ, बिहार के सीईओ और निर्वाचन आयोग को ढाका में जांच पूरी होने के बाद विस्तृत सवाल भेजे. प्रकाशन के समय तक इनका कोई जवाब नहीं मिला था. अगर उनमें से कोई जवाब देता है, तो रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
निर्वाचन आयोग और इसके अधिकारियों पर भरोसा क्यों नहीं
कागजों पर निर्वाचन आयोग की निर्धारित प्रक्रियाओं के तहत, केवल राजनीतिक हस्तियों के कहने पर हटाने की कार्रवाई नहीं की जाती. जब दावे प्राप्त होते हैं, तो ईआरओ को अपने अधीन बीएलओ के माध्यम से जमीन पर सत्यापन करना होता है और फिर यह तय करने के लिए एक अर्ध-न्यायिक समीक्षा करनी होती है कि मतदाता वैध है या उसे हटाया जाना चाहिए.
एक पार्टी का बीएलए एक दिन में 10 मतदाताओं के डेटा में बदलाव की सिफारिश कर सकता है. यह जोड़ना, हटाना या विवरण बदलना हो सकता है. लेकिन ईआरओ को स्वत: संज्ञान लेने का भी विवेकाधीन अधिकार होता है. एक ईआरओ समाचार रिपोर्ट या किसी राजनीतिक नेता के पत्र को संज्ञान में लेकर, जैसा वह उचित समझे, मतदाता रिकॉर्ड की जांच कर सकता है.
जमीन पर सभी दलों के कई अधिकारियों ने बताया कि मतदाता सूची संशोधन को छोटे स्तर पर निशाना बनाकर हटाने और जोड़ने के लिए हेरफेर किया जा सकता है. उन निर्वाचन क्षेत्रों में जहां जीत का अंतर कम होता है, यह बड़ा अंतर पैदा कर सकता है.
बिहार में एक दशक से अधिक समय तक राजनीतिक उम्मीदवारों के साथ काम करने वाले एक राजनीतिक सलाहकार ने समझाया, ‘चुनाव नजदीक आने पर, राजनीतिक दलों का यह आम है कि वे ईआरओ के साथ उन मतदाताओं की सूची साझा करें जिनकी और जांच की जरूरत है. प्रत्येक पक्ष आमतौर पर एक हजार से दो हजार ऐसे मतदाताओं की सूची देता है. ढाका में जो हो रहा है, वह अभूतपूर्व है, जहां एक पार्टी ने मुस्लिम मतदाताओं की लगभग पूरी सूची तैयार की है.’
बिहार के एक सेवानिवृत्त उप-सीईओ और एक सेवानिवृत्त चुनाव आयुक्त ने सहमति जताई कि कुछ हद तक हेरफेर की कोशिश अक्सर की जाती रही है. सत्तारूढ़ दल को ऊपरी हाथ मिलता है क्योंकि वह ईआरओ और बूथ-स्तरीय अधिकारियों पर प्रभाव डाल सकता है. कुछ बेईमान राजनेता दूसरों की तुलना में ऐसी कोशिशों के लिए अधिक प्रवृत्त होते हैं.
सेवानिवृत्त चुनाव आयुक्त ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘यहां तक कि अगर एक ईआरओ समझौता नहीं करता, तो वह संदिग्ध हटाने की मांगों को खारिज कर देगा, लेकिन आमतौर पर एफआईआर दर्ज करने तक नहीं जाएगा. व्यवहार में, इसके लिए दिल्ली से मंजूरी चाहिए.’ ‘दिल्ली’ से उनका मतलब निर्वाचन आयोग मुख्यालय से था.
कलेक्टिव इन सामान्य दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं कर सका.
ढाका में हेरफेर का पैमाना
बिहार में एसआईआर के लिए निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची संशोधन के लिए मैनुअल में निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया. इसने अपने विवेकाधीन अधिकारों का उपयोग करके नए नियम बनाए और अभ्यास के दौरान संशोधन किए. एसआईआर प्रक्रिया में किए गए कुछ बदलाव सुप्रीम कोर्ट में चल रहे एक मामले की सुनवाई के दौरान मिली आलोचना के जवाब में थे.
इससे एक नियामक शून्य पैदा हुआ और जमीन पर विपक्षी पार्टी कार्यकर्ताओं में विश्वास की कमी पैदा हुई. इसने बेईमान तत्वों को भी अधिक छूट दी.
उल्लेखनीय है कि मुस्लिम-यादव आबादी के साथ ढाका ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस और बाद में राजद का गढ़ रहा है. 2010 में, भाजपा के पवन जायसवाल ने पहली बार इस सीट पर जीत हासिल की, जिसमें निर्वाचन क्षेत्र के मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन भी शामिल था, लेकिन 2015 में वह सीट हार गए.
2020 में सीट वापस जीतने वाले जायसवाल नवंबर में फिर से चुनाव के लिए खड़े हैं. उनके खिलाफ राजद के फैसल रहमान हैं, जिन्होंने 2015 में जायसवाल को विधानसभा सीट से हटाया था. उनके पिता मोतिउर रहमान भी कांग्रेस के साथ ढाका से दो बार विधायक रहे.
इन दो मजबूत उम्मीदवारों की इस दौड़ में एक और अप्रत्याशित कारक है. जन सुराज के एलबी प्रसाद एक डॉक्टर हैं, जिनका ढाका के नगर परिषद में एक लोकप्रिय क्लीनिक है. स्थानीय राजनीतिक कार्यकर्ताओं और पर्यवेक्षकों ने बताया कि वह स्थानीय लोगों द्वारा सम्मानित और पसंद किए जाते हैं और संभवतः जायसवाल के हिंदू वोटों में सेंध लगाएंगे.
कई लोगों ने आशंका जताई है कि भाजपा और जनता दल यूनाइटेड का प्रमुख गठबंधन एसआईआर की अराजकता का उपयोग अल्पसंख्यक मतदाताओं, विशेष रूप से मुस्लिम और दलित समुदाय के लोगों को मताधिकार से वंचित करने या हटाने के लिए करेगा.
हालांकि, जिस जल्दबाजी में यह अभ्यास किया गया है, और शामिल और हटाए गए मतदाताओं की सूची को डिजिटल दीवारों के पीछे छिपाने की कोशिशों ने ऐसे आरोपों को काफी हद तक अनुमान आधारित छोड़ दिया है.
हालांकि, ढाका में भाजपा द्वारा आयोग को लिखे गए पत्र, जिसमें निर्वाचन क्षेत्र के लगभग सभी मुस्लिम मतदाताओं को फिर से जांचने की मांग की गई, इस इरादे का पहला स्पष्ट सबूत देता है.
ढाका विधानसभा क्षेत्र भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है. इसमें वास्तव में नेपाल से कई प्रवासी आते हैं, जो इस सीमा की प्रकृति के कारण नियमित रूप से आते-जाते हैं. इनमें से कई प्रवासियों के पास भारत में वोट देने के लिए पर्याप्त दस्तावेज या नागरिकता भी नहीं हो सकती. यह भी सच है कि इनमें से कई मुस्लिम हैं. लेकिन पवन जायसवाल की ढाका के भाजपा कार्यकर्ताओं के माध्यम से की गई शिकायत एक अवास्तविक संख्या का हवाला देती है.
ढाका के मुस्लिम मतदाताओं में चिंता
कलेक्टिव ने फुलवरिया ग्राम पंचायत का दौरा किया, जो पवन जायसवाल का गांव है, इसलिए भाजपा का एक बड़ा गढ़ है. भाजपा ने इस गांव से 900 मुस्लिम मतदाताओं को गैर-भारतीय के रूप में नामित किया था.
जायसवाल के घर से सिर्फ एक किलोमीटर दूर रहने वाले फुलवरिया के सरपंच फिरोज आलम हैं. उन्हें और उनके पूरे परिवार को भाजपा की शिकायत में नामित किया गया था.

उन्होंने बताया, ‘मेरा परिवार इस गांव में कई पीढ़ियों से रहता है. मैंने स्थानीय पंचायत चुनाव में हिस्सा लिया है. अगर मैं भारत का निवासी नहीं हूं, तो मैं यह कैसे कर सकता था? अब, भाजपा ने मेरा नाम, मेरी पत्नी का नाम और मेरे बच्चों के नाम को संदिग्ध मतदाताओं के रूप में साझा किया है.’
कलेक्टिव के रिपोर्टर फिरोज से बात कर रहे थे, तभी और लोग अपनी कहानियां साझा करने के लिए इकट्ठा हो गए. स्कूल मास्टर नसरीन अख्तर ने बीच में कहा, ‘मेरी पोती को इस साल ही उसका मतदाता पहचान पत्र मिला,’ उन्होंने उसका नया प्राप्त मतदाता पहचान पत्र दिखाते हुए, जो अभी भी आधिकारिक डाक से चिपका हुआ था, कहा, ‘उसका नाम भी सूची में है.’
कलेक्टिव ने कई और गांवों का दौरा किया. चंदनबारा, ढाका का एक गांव, जहां निवासियों के अनुसार अधिकांश आबादी मुस्लिम है. यहां 5,000 से अधिक निवासियों को शिकायत में नामित किया गया था. नामित लोगों में बूथ-स्तरीय अधिकारी, स्कूल शिक्षक और बूथ-स्तरीय एजेंट शामिल थे.

कलेक्टिव ने चंदनबारा में बूथ नंबर 273 के बीएलओ रणधीर कुमार से बात की.
उन्होंने कहा, ‘मुझे उन लोगों के कई संदेश मिले हैं जिनके नाम शिकायत में हैं, वे चिंतित हैं कि उनका नाम सूची से हटा दिया जाएगा. अभी तक, ईआरओ ने नामित लोगों पर बूथ-स्तरीय अधिकारियों को कोई विशेष निर्देश जारी नहीं किया है. इसलिए बीएलओ कोई और कार्रवाई नहीं कर रहे हैं.’
30 सितंबर* को निर्वाचन आयोग ढाका की अंतिम मतदाता सूची को सार्वजनिक करेगा, तब ढाका के लगभग 80,000 मुस्लिम मतदाताओं का भाग्य सामने आएगा.







