नबी ﷺ की असली मोहब्बत: आचरण से, न कि नारों से

उत्तर प्रदेश में हाल ही में “आई लव मुहम्मद” के बैनर लगाए गए, जिन्हें पुलिस ने हटा दिया और 20 से अधिक युवाओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। यह मामला देखते ही देखते पूरे देश में विरोध, गिरफ्तारियां और हिंसा तक पहुंच गया।

सवाल यह उठता है कि क्या सच में पैगंबर ﷺ के प्रति प्रेम को केवल एक बैनर के जरिए साबित किया जा सकता है? और क्या नबी करिम ﷺ से मोहब्बत का दावा ऐसे हिंसक और भावनात्मक कदमों से सिद्ध होता है?

असलियत यह है कि मुसलमानों ने हर दौर में पैगंबर ﷺ के प्रति प्रेम को अपने अच्छे चरित्र और कार्यों से साबित किया है, न कि नारे या बैनरों से। दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज के हालात में ये नारे और भावनात्मक प्रदर्शन हमारे लिए संकट बन गए हैं।

हिंसा, लाठी चार्ज, गिरफ्तारियां और दंगे के बाद क्या मुसलमानों की स्थिति बेहतर हुई या और खराब हुई? सच यह है कि नुकसान केवल मुसलमानों को हुआ है, जबकि फायदा राजनीति करने वालों ने उठाया।

राजनीतिज्ञों का खेल साफ नजर आ रहा है। सत्ताधारी दल इस मुद्दे का इस्तेमाल हिंदू वोट बैंक को मजबूत करने के लिए कर रहा है, जबकि विपक्षी दल मुसलमानों की भावनाओं को भड़का कर सहानुभूति के नाम पर वोट पाने की कोशिश कर रहे हैं। इस खेल में आम मुसलमान केवल मोहरा बनकर रह गया है।

जब तक मुसलमान राजनीतिक खेल को नहीं समझेंगे, तब तक उनके मुख्य मुद्दे वही रहेंगे: शिक्षा की कमी, रोजगार की कमी और पिछड़ापन। पैगंबर ﷺ की शिक्षाएं हमें सब्र, शांति और बुद्धिमानी से काम लेने का आदेश देती हैं। उन्होंने कभी भी भावनात्मक प्रतिक्रिया या हिंसा की प्रेरणा नहीं दी।

तो फिर हम बार-बार वही गलती क्यों दोहरा रहे हैं जो हमें और कमजोर बनाती है? अगर पुलिस ने बैनर हटा दिया, तो कानून और अदालत का रास्ता मौजूद है। सड़क पर उतरकर नारे लगाने और पत्थरबाजी करने से क्या बदल गया? केवल मुसलमानों की बदनामी और गिरफ्तारियां बढ़ीं।

अब समय आ गया है कि मुसलमान अपनी रणनीति बदलें। पैगंबर ﷺ से प्रेम का मतलब है कि मुसलमान अपनी ऊर्जा शिक्षा, आर्थिक विकास और एकता में लगाएं। बैनर, नारे और अस्थायी प्रदर्शन से कुछ हासिल नहीं होगा। असली प्रेम यह है कि हम नबी ﷺ की शिक्षाओं को अपनी जिंदगी में उतारें।

हमें यह स्वीकार करना होगा कि राजनीतिज्ञ धार्मिक भावनाओं का हमेशा अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करते हैं। अगर मुसलमान समझदारी से काम नहीं लेंगे, तो वे बार-बार इस्तेमाल होते रहेंगे और नुकसान उठाते रहेंगे। आज आवश्यकता है कि हम भावनाओं के बजाय बुद्धि से निर्णय लें। यही पैगंबर ﷺ से सच्चा प्रेम है।

मुदसिर अहमद, शिमोगा, रोज़नामा आज का इंक्रांति के संपादक
(लेखक की राय से संस्थान का सहमति जरूरी नहीं है)

लेखक: मुदसिर अहमद, शिमोगा, 9986437327

Source : Haqeeqat Time