हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर याचिका में सर्वे की मांग करते हुए दावा किया गया है कि अजमेर शरीफ़ दरगाह के नीचे एक शिव मंदिर था. स्थानीय अदालत ने इसे लेकर अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, एएसआई और अजमेर दरगाह समिति को नोटिस भेजा है.

 

जयपुर: अजमेर की एक स्थानीय अदालत ने बुधवार (27 नवंबर) को प्रसिद्ध अजमेर शरीफ दरगाह के सर्वेक्षण की मांग वाली याचिका पर केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और अजमेर दरगाह समिति को नोटिस जारी किया है.

ये याचिका हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर की गई थी, जिसमें दावा किया गया है कि अजमेर शरीफ दरगाह के नीचे एक शिव मंदिर था. ज्ञात हो कि यह दरगाह भारत का सबसे प्रसिद्ध सूफी स्थान और विभिन्न देशों के अनुयायियों के लिए एक तीर्थ स्थल है.

मालूम हो कि हाल ही में उत्तर प्रदेश के संभल में मुगलकालीन शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान भीड़ की पुलिस के साथ झड़प में चार मुस्लिम लोगों की मौत हो गई. ऐसे में इस घटना के कुछ दिनों बाद ही अदालत ने अजमेर दरगाह के सर्वेक्षण के लिए याचिका स्वीकार कर ली.

अजमेर दरगाह से जुड़े लोगों ने इस कदम की निंदा करते हुए इसे देश हित और सांप्रदायिक सौहार्द के खिलाफ बताया है.

‘शिव मंदिर को तोड़कर बनाई गई दरगाह’

इस मामले में याचिकाकर्ता विष्णु गुप्ता ने द वायर को बताया, ’11वीं शताब्दी से पहले भगवान शिव का एक मंदिर उस स्थान पर मौजूद था, जहां आज अजमेर दरगाह है. इसके पास ही एक जैन मंदिर भी था. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती मुहम्मद गोरी के सलाहकार के रूप में उसके साथ भारत आए थे. उस समय अजमेर का नाम अजय मेरू था. अजमेर पृथ्वीराज चौहान का जन्मस्थान भी है. ऐसे में यह स्पष्ट है कि दरगाह का निर्माण शिव मंदिर को तोड़कर किया गया था.’

गुप्ता द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि दरगाह परिसर के भीतर तहखाने के भूमिगत रास्ते के नीचे एक शिवलिंग है और हिंदू भक्तों को तहखाने के भूमिगत रास्ते के नीचे भगवान के दर्शन करने की अनुमति नहीं दी जा रही है.

याचिका में आग कहा गया है, ‘अजमेर दरगाह स्थल पर मूल महादेव मंदिर को आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया गया था और शेष संरचना और निर्माण के लिए इस्तेमाल की गई सामग्री और लूट का उपयोग करके एक दरगाह बनाई गई थी, जबकि परिसर के भीतर दृश्य और अदृश्य रूप में देवता मौजूद रहे.’

याचिका में उल्लेख किया गया है कि याचिकाकर्ता को 1911 में हर बिलास सारदा द्वारा लिखित अजमेर हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव नामक पुस्तक से पता चला कि बुलंद दरवाजा और अंदर के आंगन के बीच की जगह के नीचे एक पुरानी हिंदू इमारत के तहखाने हैं, जिनमें से कई कमरे आज भी बरकरार हैं.

याचिका में कहा गया है, ‘मुसलमानों को कभी भी संबंधित संपत्ति पर मालिकाना अधिकार नहीं मिला. किसी भी मुसलमान ने अब तक जमीन भगवान को समर्पित नहीं की है, इसका सीधा-सा कारण यह है कि ये संपत्ति देवता (deity) की है. देवता अपने अधिकार केवल इस कारण से नहीं खोएंगे कि विदेशी शासन के दौरान मंदिर क्षतिग्रस्त/ध्वस्त हो गया था क्योंकि संपत्ति पर देवता का अधिकार कभी नहीं खोता है और उपासकों का देवता और अस्थान की पूजा करने का अधिकार हिंदू कानून के तहत संरक्षित है.’

उनकी याचिका में जीपीआर सर्वेक्षण, उत्खनन, डेटिंग पद्धति और वर्तमान संरचना की अन्य आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके एक विस्तृत वैज्ञानिक जांच करने की मांग की गई है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या इसका निर्माण हिंदू मंदिर की पहले से मौजूद संरचना के ऊपर किया गया है.

गुप्ता के वकील रामस्वरूप बिश्नोई ने बताया, ‘अपनी याचिका में हमने दरगाह के अंदर पूजा करने की अनुमति मांगी है, जहां एक शिव मंदिर मौजूद था. सिविल जज अजमेर पश्चिम मनमोहन चंदेल की अदालत ने याचिका स्वीकार कर ली और दरगाह समिति, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया.’

बिश्नोई ने कहा कि उन्हें अभी तक कॉपी का ऑर्डर नहीं मिला है. कोर्ट का आदेश अभी तक ऑनलाइन अपलोड नहीं किया गया है.

‘सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक दरगाह बनी रहेगी’

अजमेर दरगाह प्रबंधन से जुड़े लोगों ने इस कदम की आलोचना की है और कहा है कि वे आगे की कार्रवाई पर फैसला कर रहे हैं.

दरगाह के खादिमों की प्रतिनिधि संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने कहा, ‘दरगाह सांप्रदायिक सद्भाव, विविधता और बहुलवाद का प्रतीक है. यह एकता और विविधता को बढ़ावा देती है. इसके साथ ही अफगानिस्तान से लेकर इंडोनेशिया तक के लोगों के लिए यह एक बहुत बड़ा इस्लामिक तीर्थ स्थल भी है. इसके करोड़ों मानने वाले हैं. ये कोई मजाक नहीं है कि हम इसे बर्दाश्त करते रहेंगे.’

बता दें कि इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख 20 दिसंबर है.

सैयद सरवर चिश्ती ने कहा, ‘उन्हें हर जगह शिवलिंग और मंदिर दिखाई देते हैं. वे सदियों पुरानी मस्जिदों के साथ ऐसा कर रहे हैं. ये चीजें देश के हित में नहीं हैं. हम देख रहे हैं कि क्या करना है. यह गरीब नवाज की दरगाह थी और रहेगी.’

चिश्ती ने आगे कहा, ‘बाबरी मस्जिद के बाद हमने एक कड़वा घूंट पीकर सोचा कि ऐसा दोबारा नहीं होगा. लेकिन यह सिलसिला रुक नहीं रहा है. कभी काशी, कभी मथुरा… जून 2022 में मोहन भागवत जी ने कहा था कि हर मस्जिद में शिवलिंग नहीं ढूंढना चाहिए. यह गलती भारत के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ जी की है. जब उपासना स्थल अधिनियम 1991 कहता है कि बाबरी मस्जिद के अलावा सभी धार्मिक स्थलों के लिए यथास्थिति 1947 जैसी ही रहेगी, तो इसकी क्या जरूरत है?’

गौरतलब है कि इस महीने की शुरुआत में राजस्थान में भाजपा सरकार ने विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी, जो अजमेर से ही विधायक हैं, के निर्देशों के बाद अजमेर में राज्य पर्यटन विभाग द्वारा संचालित होटल खादिम का नाम बदलकर होटल ‘अजयमेरु’ कर दिया था.

 

Source: The Wire