अपने साप्ताहिक कॉलम में वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन संसद में हुए आंबेडकर विवाद, राहुल पर बीजेपी के नए हमले समेत देश के अलग-अलग राज्यों की राजनीति पर बात कर रहे हैं। 

अब पप्पू नहीं, गुंडा और लंपट!

भाजपा नेताओं ने राहुल गांधी को अब पप्पू कहना बंद कर दिया है। अब कभी कभार उनको बालक बुद्धि तो कहा जाता है लेकिन पप्पू वाले नैरेटिव की मियाद खत्म मान ली है। जब से वे लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हुए हैं तब से भाजपा को कुछ नया चाहिए था उन्हें निशाना बनाने के लिए। भाजपा को लगता है कि नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में अगर राहुल को स्थापित होने दिया जाता है तो वे मुश्किल चुनौती बन जाएंगे। इसीलिए अब उनको अराजक, गुंडा, लंपट आदि ठहराने का अभियान शुरू हो गया है।

कह सकते है कि नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद राहुल से निबटने का भाजपा का तरीका बदल गया है। भाजपा का इकोसिस्टम यह भी प्रचारित कर रहा है कि अब प्रियंका गांधी वाड्रा संसद में आ गई हैं, जो राहुल से बेहतर वक्ता और नेता हैं। इस बीच संसद सत्र में डॉक्टर आंबेडकर के मसले पर हुए विवाद के बाद कथित धक्का-मुक्की ने भाजपा को मौका दे दिया। यह संयोग था या प्रयोग, नहीं कहा जा सकता है लेकिन इस घटनाक्रम से राहुल की छवि बिगाड़ने का मौका भाजपा को जरूर मिल गया। अब भाजपा ने उन्हें गुंडा और लंपट कहना शुरू कर दिया है। यह अनायास नहीं है कि नगालैंड से भाजपा सांसद फांगनेन कोन्याक ने राहुल गांधी पर दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया है।

संसद के मकर द्वार पर प्रदर्शन के दौरान सांसदों का एक दूसरे के नजदीक आना या एक दूसरे से टकराना बहुत सामान्य बात है लेकिन कोन्याक ने कहा कि राहुल उनके बहुत नजदीक आ गए थे, जिससे वे असहज महसूस कर रही थी। संसद के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी महिला सांसद ने ऐसा आरोप लगाया और महिला आयोग ने तत्काल संज्ञान लेकर स्पीकर और सभापति से कार्रवाई करने की मांग कर दी।

भाजपा का आंबेडकर जाप

डॉक्टर भीमराव आंबेडकर पर गृह मंत्री अमित शाह के बयान से पैदा हुए विवाद के बाद भाजपा पूरी तरह बचाव की मुद्रा में है। वह फिलहाल अपने सारे मुद्दे ठंडे बस्ते में डाल कर डॉक्टर आंबेडकर को केंद्र में ले आई है। हर बात का श्रेय आंबेडकर को दिया जाएगा। मिसाल के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश में दो नदियों को जोड़ने वाली केन बेतवा लिंक परियोजना का शिलान्यास किया तो इसका भी श्रेय आंबेडकर को दिया। यह अलग बात है की नदी जोड़ परियोजना पर अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते काम शुरू हुआ था और केन बेतवा परियोजना भी उसी समय की है लेकिन प्रधानमंत्री इसमें भी आंबेडकर का जिक्र ले आए। प्रधानमंत्री ने कहा कि जल निकाय की संकल्पना डॉ. आंबेडकर की थी। इसी बहाने उन्होंने बिना नाम लिए पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर भी निशाना साधा और कहा कि एक ही व्यक्ति को हर चीज का श्रेय देने वाले परिवारवादियों ने आंबेडकर को श्रेय नहीं दिया। अब तक संविधान लिखने या दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और वंचितों, को अधिकार दिलाने का श्रेय आंबेडकर को दिया जाता था, अब जल प्रबंधन का श्रेय भी उनके खाते में डाला जा रहा है।

आने वाले दिनों में सड़कों का जाल बिछाने से लेकर बुनियादी ढांचे की तमाम परियोजनाओं के पीछे उनकी सोच का जिक्र किया जाएगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि अपने को आंबेडकर का अनुयायी साबित करने में कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी में से कौन ज्यादा आगे निकलता है।

चंद्रचूड़ का ‘पुनर्वास’ क्यों टला? 

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रहे डीवाई चंद्रचूड़ को अपने पुनर्वास के लिए अभी इंतजार करना होगा। उनका राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग यानी एनएचआरसी का अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा था, क्योंकि जस्टिस अरुण मिश्रा का कार्यकाल खत्म होने के बाद से यह पद खाली रखा गया था। जस्टिस मिश्रा से पहले सुप्रीम कोर्ट के रिटायर चीफ जस्टिस ही इसके अध्यक्ष बनते थे। सरकार ने जस्टिस मिश्रा के ‘योगदान’ को देखते हुए उनके लिए अपवाद बनाया था। लेकिन अब सरकार ने फिर किसी रिटायर चीफ जस्टिस की बजाय सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए जज जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम को एनएचआरसी का अध्यक्ष बनाया है। पिछले दिनों जब सोशल मीडिया में कहा जा रहा था कि जस्टिस चंद्रचूड़ एनएचआरसी के अध्यक्ष बनेंगे तो चंद्रचूड़ ने खुद इन खबरों को खारिज किया था।

सवाल है कि वे क्यों नहीं अध्यक्ष बन सके? क्या सोशल मीडिया के प्रचार की वजह से उनका रास्ता बाधित हो गया? असल में उनके कुछ फैसलों और रिटायर होने से ठीक पहले के घटनाक्रम व उनके बयानो से सोशल मीडिया मे उनको लेकर धारणा बदलने लगी थी और कहा जाने लगा था कि रिटायर होने पर उन्हें कोई बड़ा पद मिलेगा। सोशल मीडिया में यह प्रचार भी चल रहा था कि अयोध्या विवाद का फैसला सुनाने वाले बाकी चार जजों को उपकृत किया जा चुका है और अब चंद्रचूड़ की बारी है। संभवत: सरकार भी इसी वजह से पीछे हटी क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि जनता के बीच यह धारणा बने कि अयोध्या फैसले के पीछे कोई खेल हुआ है और सरकार फैसला देने वाले जजों को उपकृत कर रही है।

रघुराम राजन के बदले हुए सुर

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे जाने माने अर्थशास्त्री रघुराम राजन के सुर इन दिनों बदले-बदले से सुनाई पड रहे हैं। कुछ समय पहले तक वे नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना करते हुए देश की अर्थव्यवस्था में सुधार के सुझाव दिया करते थे। परंतु अब वे मोदी सरकार की नीतियों और फैसलों की तारीफ करते हुए मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के कुछ फैसलों और कामकाज की आलोचना कर रहे हैं। सवाल है कि ऐसा क्या हो गया, जिससे उनके सुर एकदम बदल गए हैं? क्या देश में लगातार तीसरी बार नरेंद्र मोदी के सरकार बनाने और उधर अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत से कुछ बदला है?

हाल ही में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि भारत के सरकारी बैंकों के बैड लोन या एनपीए यूपीए सरकार की गलत नीतियों की देन थे। यह कह कर उन्होंने भाजपा की ओर से यूपीए सरकार और उस समय के वित्त मंत्री पी. चिदंबरम पर लगाने वाले आरोपों की पुष्टि कर दी है। इतना ही नहीं, रघुराम राजन ने यह भी कहा कि मोदी सरकार के पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली से जब उन्होंने कहा कि बैड लोन्स की सफाई की जरुरत है तो जेटली ने उन्हें फ्री हैंड दिया था और कहा था कि वे जो भी ठीक लगे वह करके बैंकों की सेहत ठीक करें। हो सकता है कि दोनों बातें सही हो लेकिन रघुराम राजन ने पहले कभी इस तरह के बयान नहीं दिए थे।

अजित पवार संघ मुख्यालय नहीं गए

अजित पवार महाराष्ट्र में भाजपा के साथ गठबंधन सरकार का हिस्सा जरूर है लेकिन वे राजनीति अपने हिसाब से ही कर रहे हैं। बड़ी बात यह भी है कि इसके बावजूद भाजपा उन्हें निभा रही है। अजित पवार ने महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के बीच ‘बंटोगे तो कटोगे’ के नारे का खुल कर विरोध किया था और यहां तक कह दिया था कि उत्तर प्रदेश और बिहार में ऐसा नारा चलता होगा, महाराष्ट्र में नहीं चलेगा। उन्होंने भाजपा के साथ होते हुए भी उसकी सांप्रदायिक राजनीति को खारिज कर दिया था। इतना ही नहीं अजित पवार ने मुस्लिम उम्मीदवार भी उतारे और अपने एक मुस्लिम विधायक को राज्य की देवेंद्र फड़नवीस सरकार में मंत्री भी बनवाया है।

नया घटनाक्रम यह है कि सरकार गठन के बाद महाराष्ट्र सरकार में शामिल तीनों पार्टियों के विधायकों को 19 दिसंबर को नागपुर स्थित आरएसएस के मुख्यालय में बुलाया गया था। विधानसभा का सत्र भी राज्य की शीतकालीन राजधानी नागपुर में ही चल रहा था भाजपा और एकनाथ शिंदे की शिव सेना के सारे विधायक तो आरएसएस मुख्यालय गए लेकिन अजित पवार ने इनकार कर दिया। बताया जा रहा है कि अजित पवार ने अपने सभी विधायकों को निर्देश दिया था कि संघ मुख्यालय जाने की जरूरत नहीं है। ऐसा लग रहा है कि वे भले ही अभी भाजपा के साथ है लेकिन वे अलग होकर राजनीति करने की संभावना को भी जिंदा रखे हुए हैं। इसीलिए वे अपने चाचा शरद पवार के अंदाज में राजनीति कर रहे हैं।

ऐसे सुलझेगा मणिपुर और मिजोरम का संकट!

पिछले डेढ़ साल से ज्यादा समय से मणिपुर में चल रही जातीय हिंसा और मिजोरम के रास्ते मणिपुर में हो रही घुसपैठ या उग्रवादी गतिविधियों को काबू करने का केंद्र सरकार ने यह उपाय निकाला है कि मणिपुर में केंद्रीय गृह सचिव रहे अजय कुमार भल्ला को और मिजोरम में सेना प्रमुख रहे जनरल वीके सिंह को राज्यपाल बना दिया गया है। सेना प्रमुख से रिटायर होने के बाद जनरल वीके सिंह सांसद बने और केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे। कुछ समय पहले केंद्रीय गृह सचिव से रिटायर हुए अजय कुमार भल्ला किसी नई नियुक्ति का इंतजार कर रहे थे। सवाल है कि एक रिटायर अधिकारी को मणिपुर का राज्यपाल और एक रिटायर सेना प्रमुख को मिजोरम का राज्यपाल बनाने से क्या समस्या सुलझ जाएगी?

इससे लग रहा है कि केंद्र सरकार मणिपुर और मिजोरम को कानून व्यवस्था की समस्या के तौर पर देख रही है, जबकि यह जातीय, नस्ली और सांस्कृतिक मामला है, जिसे सामाजिक, राजनीतिक समस्या मान कर ही सुलझाया जा सकता है। मणिपुर के शासन में मैतेई वर्चस्व और कुकी समुदाय को अलग-थलग किए जाने से अंदर ही अंदर मामला उबल रहा था, जो मई 2023 में आरक्षण के मसले पर फूट पड़ा। वहां मैतेई और कुकी के परस्पर अविश्वास को दूर करना बड़ी चुनौती है। इसी तरह मिजोरम की बड़ी आबादी का मणिपुर के कुकी समुदाय के प्रति लगाव भी सामाजिक या राजनीतिक मसला है। वहां समझदार राजनीतिक नेतृत्व के जरिए ही सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर मामले को सुलझाया जा सकता है।

रेवंत रेड्डी की आत्मघाती राजनीति 

कांग्रेस अपने बूते सिर्फ तीन राज्यों में सत्ता में है लेकिन वहां भी उसके नेताओं को सत्ता हजम नहीं हो रही है और अहंकार सिर चढ़ कर बोल रहा है। तेलंगाना में मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी को राजकाज संभाले अभी एक साल ही हुआ है और एक साल में ही उन्होंने अपनी निरंकुश कार्यशैली से ऐसी मुख्य विपक्षी पार्टी भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में जान फूंक दी है। के. चंद्रशेखर राव की पार्टी पिछले साल विधानसभा चुनाव हारने के बाद हाशिए पर गई थी। लोकसभा चुनाव में तो वह एक भी सीट नहीं जीत पाई। लेकिन रेवंत रेड्डी की राजनीति से उसमें जान लौट आई है। लोग सरकार की शिकायत लेकर चंद्रशेखर राव के पास जा रहे हैं। सबसे पहले हैदराबाद डिजास्टर रिस्पॉन्स एंड असेट प्रोटेक्शन एजेंसी (हाइडा) की ओर से लोगों के घरों को अवैध बता कर तोड़ा गया। आरोप है कि अपने रिश्तेदारों और करीबियों के घरों को रेवंत रेड्डी ने छोड़ दिया, जिससे लोगों में नाराजगी है। इस तरह के कुछ और फैसलों की चर्चा है लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा तेलुगू फिल्म स्टार अल्लू अर्जुन के खिलाफ कार्रवाई को लेकर है। उनके खिलाफ रेवंत ने सक्रिय होकर कार्रवाई इसलिए की क्योंकि इससे वे गरीबों के मसीहा बनने की सोच पाले हुए थे लेकिन उलटा हुआ। सिनेमा हॉल के हादसे में मारी गई महिला के परिजनों को अल्लू अर्जुन की ओर से दो करोड़ रुपए दिए गए हैं, जिससे परिवार संतुष्ट है और अल्लू अर्जुन के समर्थकों का रुझान बीआरएस की ओर हो गया है।

 

Source: News Click