
दिल्ली के चुनाव में आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच कांग्रेस की एंट्री हो चुकी है यानी चुनावी दौड़ में कांग्रेस ने भी खुद को शामिल कर लिया है, इससे इनकार कर पाना राजनीतिक पंडितों के लिए भी मुश्किल हो रहा है। लेकिन, कांग्रेस के दमखम से चुनाव लड़ने के नतीजों को लेकर हिसाब-किताब बिठाने में पंडित जुटे हुए हैं। किसका वोट काटेगी कांग्रेस, कितना वोट काटेगी कांग्रेस और क्या प्रचंड बहुमत लेकर सत्ता दोहराती रही आम आदमी पार्टी की सेहत पर इसका कोई असर पड़ेगा?
प्रश्न को थोड़ा साफ करें तो लड़ाई नंबर 1 की नहीं, नंबर दो की है क्या? क्या ऐसा भी हो सकता है कि नंबर दो-तीन की लड़ाई में नंबर एक को किंगमेकर की तलाश करनी पड़ जाए? इन सारे सवालों को खंगालना बहुत जरूरी है।
सत्ता के तीन दावेदार हैं तो नज़रिए भी तीन हैं। और, हर नज़रिए को चुनौती देता भी नज़रिया है। इन्हीं के बीच से हम दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम की संभावनाओं को समझने की कोशिश कर सकते हैं। लेकिन, इससे पहले कुछ तथ्यों पर गौर करते हैं-
बीजेपी लोकसभा चुनाव में 2014 के बाद से दिल्ली की सभी 7 सीटें जीतती आयी है लेकिन हर विधानसभा चुनाव भी बीजेपी हारती चली आयी है।
कांग्रेस भी 2009 में सभी 7 सीटें और 2004 में 6 सीटें जीत चुकी हैं। उससे पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव में 1998, 2003 और 2008 में लगातार तीन बार कांग्रेस दिल्ली में सरकार बनाने में कामयाब रही।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी के उदय के साथ 2013 में राजनीति बदली। बीजेपी को 33 फीसद और आम आदमी पार्टी को 29.5 फीसद वोट मिले और 24.6 फीसद वोट पाकर कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी हो गयी।
2015 से दिल्ली विधानसभा का चुनाव एकतरफा रहा। बीजेपी विपक्ष रही मगर लगातार दो विधानसभा चुनावों में आप के मुकाबले क्रमश: 22 और 19 फीसदी के अंतर के साथ। कांग्रेस इस दौरान क्रमश: 9.7 और 4.26 फीसदी पर आकर ठहर गयी।
2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी लेकिन कांग्रेस 2019 में दूसरे नंबर पर हो गयी। 2024 में आप और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा और तकरीबन बराबर वोट हासिल किए।
दिल्ली की जनता छप्पड़ फाड़ के देती है बहुमत
लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली के मतदाता जिसे बहुमत देते हैं उसे स्पष्ट बहुमत देते हैं और जिसे खारिज करते हैं उसे भी बहुत स्पष्ट तरीके से खारिज करते हैं। 2013 का विधानसभा चुनाव अपवाद जरूर है मगर तब जनता ने अन्ना हजारे के नेतृत्व में चले आंदोलन के कारण कांग्रेस के विकल्प के तौर पर बीजेपी और आम आदमी पार्टी दोनों को अहमियत दी थी। यहां तक कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस तीसरे नंबर पर थी। मगर, उसके बाद से देखा यह गया कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को स्पष्ट बहुमत और कांग्रेस को विपक्ष के तौर पर दिल्ली की जनता ने देखा। जबकि, विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को स्पष्ट बहुमत और बीजेपी को विपक्ष के तौर पर सम्मान (वोट प्रतिशत के आधार पर न कि सीटों के आधार पर) देने का काम किया। कांग्रेस ने 2013 में आम आदमी पार्टी की सरकार बनाकर विपक्ष का स्थान बीजेपी के लिए छोड़ दिया। इसका नुकसान कांग्रेस को आज तक उठाना पड़ रहा है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजे और प्रमुख राजनीतिक दल (आंकड़े प्रतिशत में)
दिल्ली में लोकसभा चुनाव नतीजे और प्रमुख राजनीतिक दल (आंकड़े प्रतिशत में)
अंगड़ाई ले रही है कांग्रेस, पर आप को टक्कर देना आसान नहीं
2025 के विधानसभा चुनाव की खासियत है कांग्रेस का नया तेवर। यह तेवर विकल्प बनने की कोशिश के रूप में है। आम आदमी पार्टी से अलग दिखने की कोशिश कर रही है कांग्रेस। यहां तक कि इंडिया गठबंधन में एक साथ रहकर भी यह कोशिश दिख रही है। फिर भी आम आदमी पार्टी को कांग्रेस टक्कर दे पाएगी, इस पर यकीन कर पाना लोकसभा और विधानसभा चुनावों के पुराने आंकड़ों को देखकर बेहद मुश्किल है। विधानसभा में 4.26 फीसद और लोकसभा में 18.91 फीसद वोट लाने वाली कांग्रेस अपने बूते आम आदमी पार्टी को सत्ता से बेदखल कर पाएगी, यह दूर की कौड़ी लगती है। लेकिन, क्या ऐसी स्थिति हो सकती है कि सदन ही त्रिशंकु हो जाए? इसके आसार भी नहीं दिखते क्योंकि दिल्ली विधानसभा चुनाव में पहले और दूसरे नंबर की पार्टी के बीच आज भी 19 फीसदी का अंतर है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच 49.31 फीसद वोटों का अंतर है।
कांग्रेस बेहतरीन प्रदर्शन भी करे तो वह लोकसभा में मिले 18.91 प्रतिशत वोट ला सकती है। लेकिन, तब भी वह आम आदमी पार्टी के बजाए बीजेपी से मुकाबला करती नज़र आएगी। कांग्रेस के वोटों की बढ़ोतरी केवल आम आदमी पार्टी को नुकसान करके नहीं होगी, नुकसान बीजेपी का भी होगा। बीजेपी जब विकल्प बनती नहीं दिखेगी तभी मतदाता कांग्रेस की ओर आकर्षित होंगे। अगर बीजेपी बीते पांच विधानसभा चुनाव में सबसे कमजोर स्थान पर रहती है तब भी उसे 32.3 फीसद वोट मिलते दिखते हैं। कांग्रेस अगर पिछले विधानसभा चुनाव में मिले 4.26 फीसद वोट में 14.65 वोटों का इजाफा भी कर ले और यह सारा वोट उसे आम आदमी पार्टी से मिले तब भी आम आदमी पार्टी को (53.57-14.65)= 38.92 फीसद वोट जरूर मिल जाते हैं। हालांकि यह मान लेना बेहद मुश्किल है कि पूरी तरह से आम आदमी पार्टी की कीमत पर कांग्रेस आगे बढ़ेगी।
कितना चुनौती दे पाएगी बीजेपी?
आम आदमी पार्टी को सत्ता से उखाड़ फेंकेगी कांग्रेस, ऐसा किसी को आज की तारीख में विश्वास नहीं। क्या बीजेपी में ये दम है? बीजेपी के पास ऐसा कोई आधार नहीं है। वह लगातार आम आदमी पार्टी से मात खाती आयी है विधानसभा चुनाव में। आम आदमी पार्टी की एंटी इनकंबेंसी कभी बीजेपी के लिए फायदेमंद नहीं रही तो इस बार कोई चमत्कार तो हो नहीं जाने वाला है। ऊपर समझाया जा चुका है कि कांग्रेस के वोट काटने के भरोसे में भी बीजेपी अपने लिए सत्ता की राह नहीं देख पा रही है।
राहुल गांधी ने कांग्रेस में उम्मीद जगाई है लेकिन अरविन्द केजरीवाल ने कांग्रेस को इंडिया गठबंधन के घटक दलों से दूर करके कांग्रेस की उस सियासत को चोट पहुंचाई है जिसके तहत उसे भरोसा है कि दलित, मुस्लिम और दूसरे वोट कांग्रेस से आ जुड़ेंगे। कांग्रेस के वोट बढ़ेंगे लेकिन सीटों में कितने तब्दील हो पाएंगे कहना मुश्किल है। बीजेपी अपनी सीट बढ़ा सकती है लेकिन उसकी भी अपनी सीमा है। जब वोट बढ़ते नज़र नहीं आ रहे तो सीटें भी कितनी बढ़ेगी, ये बड़ा सवाल है।
बीजेपी के लिए मुश्किल यह है कि जनता बीजेपी के पास दिल्ली की सत्ता की चाबी है, ऐसा मानती है। इसलिए एंटी इनकंबेंसी का सामना बीजेपी को भी करना पड़ता है। इसका अब तक फायदा आम आदमी पार्टी लेती आयी है। कांग्रेस को इसका फायदा मिलेगा, इस बारे में खुद कांग्रेसी भी विश्वास से नहीं कह सकते। ऐसे में संभव यह है कि आम आदमी पार्टी अपनी उस घाटे की भरपाई किसी हद तक बीजेपी के लिए एंटी इनकंबेंसी से कर ले।
वोट शेयर के हिसाब से देखें तो कुल मिलाकर कांग्रेस की सेहत में सुधार, बीजेपी के लिए पहले से कमतर प्रदर्शन के आसार और आम आदमी पार्टी के लिए अपनी सत्ता बचा ले जाने के मजबूत आधार नज़र आ रहे हैं।
चुनाव प्रचार अभियान में अब तक झूठे दावे हैं, निराधार भरोसा दिलाने की कोशिशें हैं और दूसरे दलों को कमतर दिखाने की स्पर्धा है। ऐसे में नेतृत्व के प्रति विश्वास और पुराने किए गये कामकाज ही वोटों के समीकरण को इधर या उधर करेंगे। अरविन्द केजरीवाल के समांतर नेता न बीजेपी में दिखता है और न ही कांग्रेस में नज़र आता है। चाहे नरेंद्र मोदी हों या फिर राहुल गांधी – चुनाव को दिशा दे सकते हैं लेकिन दिल्ली में बीजेपी या कांग्रेस का चेहरा नहीं बन सकते। यह सबसे बड़ा एडवांटेज अरविन्द केजरीवाल को है।