
भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड विजय मिलने के बाद सत्ताधारी पार्टी आम आदमी को करारी हार का स्वाद चखना पड़ा है. जबकि कांग्रेस के हाथ तीसरी बार भी खाली रहे और उसके खाते में एक भी सीट नहीं आई.
नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को प्रचंड बढ़त मिली है और सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (आप) को करारी हार का स्वाद चखना पड़ा है. जबकि कांग्रेस के हाथ तीसरी बार भी खाली ही रहे और उसके खाते में एक भी सीट नहीं आई.
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से भाजपा 41 सीट जीत चुकी है और 7 सीटों पर उसे बढ़त है, यानी कुल 48 सीटें. वहीं, आम आदमी पार्टी महज़ 22 सीटों पर सिमटती नज़र आ रही है.
आम आदमी पार्टी के लिए सबसे बड़ा झटका नई दिल्ली सीट पर देखने को मिला है, जहां से पार्टी के संयोजक और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल चुनाव हार गए. केजरीवाल के अलावा पार्टी के दिग्गज नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी जंगपुरा से चुनाव जीतने में असफल रहे.
हालांकि, आप सरकार के चार में से तीन मंत्री जीत दर्ज करने में कामयाब रहे हैं.
पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने बाबरपुर विधानसभा सीट से जीत दर्ज की है. गोपाल राय ने भाजपा उम्मीदवार अनिल कुमार को 18 हजार वोट से मात दी.
दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे सौरभ भारद्वाज को ग्रेटर कैलाश विधानसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा है. ग्रेटर कैलाश सीट पर भाजपा की शिखा रॉय ने सौरभ भारद्वाज को 3,188 वोट से हराया.
दिल्ली सरकार में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री इमरान हुसैन को बल्लीमारान विधानसभा सीट से जीत मिली है. इमरान हुसैन ने भाजपा उम्मीदवार कमल बागरी को 29, 823 वोट से हराया.
दिल्ली सरकार में मंत्री रहे मुकेश अहलावत को भी आरक्षित सीट सुल्तानपुर माजरा विधानसभा सीट से जीत मिली है. मुकेश अहलावत ने भाजपा के करम सिंह को 17,126 वोट से हराया है.
मुख्यमंत्री आतिशी, जिनके पास सबसे ज्यादा 13 विभाग थे, वे कालकाजी विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार रमेश बिधूड़ी को 3,521 वोटों से मात देने में सफल रहीं.
हालांकि, पूर्व मंत्री और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेल गए सत्येंद्र जैन चुनाव हार गए हैं. उन्हें शकूर बस्ती विधानसभा सीट से 20,998 वोटों से भाजपा के करनैल सिंह ने शिकस्त दी है.
दिल्ली में मतदान प्रतिशत में इस बार कमी देखी गई है. साल 2013 में मतदान 66 प्रतिशत था, 2015 में 67% और 2020 में 63% जबकि इस बार 60.4% रहा.
दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 12 आरक्षित हैं और बाकी 58 जनरल सीटें हैं.
साल 2013 के विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी थी और उसने 70 में 28 सीटें जीती थीं. चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस ने आप का समर्थन किया और इस तरह अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बन गए थे.
2013 में दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 30 से अधिक जीती थी. इसके बाद हुए दो चुनावों में वह दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई.
2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को अपने दम पर बहुमत मिला था. 2020 के चुनाव में आप ने 60 से अधिक सीटें 50 फीसदी से ज्यादा वोट के साथ जीती थीं. भाजपा के खाते में गई तो आठ सीटें ही, लेकिन उसका वोट 30 प्रतिशत से अधिक बना रहा.
2013 के विधानसभा चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए आप का साथ देने वाली कांग्रेस फिर उसके साथ 2024 के लोकसभा चुनाव में तो आई, लेकिन कुछ ही महीने बाद केजरीवाल ने साफ कर दिया कि वे दिल्ली विधानसभा चुनाव में अकेले चुनावी मैदान में उतरेंगे.
इस तरह कांग्रेस और आप ने एकदूसरे के ख़िलाफ़ उम्मीदवार उतार दिए. लेकिन 2015 और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों की तरह कांग्रेस का इस बार भी खाता तक नहीं खुला.
दिल्ली की कमान अब तक तीन पार्टियों – कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी के हाथ में रही है. कांग्रेस 19 साल और भाजपा पांच साल सत्ता में रही. वहीं पिछले दस साल से आम आदमी पार्टी सत्ता पर काबिज़ है. अब करीब 26 साल बाद एक बार फिर भाजपा दिल्ली की सत्ता की बागडोर संभालने को तैयार है.
Source: The Wire