इस बार की गर्मी पिछले सालों जैसी नहीं होगी, यह बात फरवरी महीने में ही अनुभव में आ गई है। असहनीय गर्मी और तेज धूप इसी तरह जारी रहकर मई महीने के अंत तक और भी भयावह रूप ले सकती है, यह मौसम विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है। इस अवधि में कुछ स्थानों पर लू चलने की संभावना भी है, जैसा कि विशेषज्ञों ने बताया है।

1901 के फरवरी के बाद इस साल का फरवरी महीना सबसे ज्यादा गर्म रहा, जैसा कि मौसम विभाग ने भी कहा है। पहले से ही कलबुर्गी सहित उत्तर कर्नाटक के अधिकांश हिस्सों में तापमान पिछले सालों की तुलना में अधिक है। यह मार्च के अंत के बाद और भी प्रचंड होने वाला है, जैसा कि विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है। कुल मिलाकर अगले तीन महीनों के दौरान न्यूनतम और अधिकतम तापमान पहले जैसा नहीं रहेगा। इससे देश की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आम लोगों का दैनिक जीवन, विशेष रूप से स्वास्थ्य स्थिति, अस्त-व्यस्त हो सकती है।

इस बार की गर्मी और लू का प्रभाव लोगों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा पड़ सकता है, जैसा कि स्वास्थ्य विभाग ने पहले ही चेतावनी दी है। दक्षिण कन्नड़ सहित कुछ क्षेत्रों में फरवरी महीने में ही तापमान 41 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया था।

जंगलों के अंदर की नदियाँ और नाले सूख रहे हैं। पानी की कमी के कारण जंगल में रहने वाले जानवरों को कष्ट हो रहा है। वातावरण में तापमान अचानक 2 से 3 डिग्री बढ़ने पर जंगली जानवर, पशु-पक्षी निर्जलीकरण से तड़पने लगते हैं। गर्मी से प्रभावित जानवरों का इलाज किया जा रहा है, जैसा कि वन्यजीव चिकित्सा स्रोतों ने बताया है।

इतने सालों में गर्मी की शुरुआत से पहले ही इतनी बड़ी संख्या में जानवरों और पक्षियों को इस तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा था, जैसा कि वन्यजीव चिकित्सक चिंता जाहिर कर रहे हैं। वन विभाग ने जानवरों को परेशानी न हो, इसके लिए पर्याप्त पूर्व तैयारी की है। संरक्षित क्षेत्रों में तालाब और पानी के कुंड बनाए गए हैं। नालों का पानी इकट्ठा करके गर्मी में भी कमी न हो, इसका प्रबंध किया गया है। फिर भी गर्मी सहन न कर पाने के कारण बाघ, चीते सहित सभी जानवर आबादी वाले इलाकों में आ रहे हैं।

इस बार पश्चिमी घाट और उसके आसपास के क्षेत्रों में नदियों और नालों में पानी की कमी हो सकती है, यह आशंका भी बनी हुई है। दिसंबर के अंत तक अच्छी बारिश होने के कारण घाट क्षेत्र की नदियों और नालों में मार्च के अंत तक पानी की कमी नहीं होगी, ऐसा वन विभाग के संरक्षण अधिकारियों ने सोचा था। लेकिन अधिकांश नाले फरवरी के अंत तक ही सूख गए हैं। इससे स्थिति चिंताजनक हो गई है।

इस बार की गर्मी और लू का लोगों और जानवरों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है, जैसा कि भारतीय मौसम विभाग ने पहले ही विस्तार से बताया है। इसलिए मौसम की चरम स्थिति और लू के दुष्प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को अभी से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। राजनेताओं को आपसी विवादों को छोड़कर सार्वजनिक अस्पतालों को और अधिक सुसज्जित करने पर ध्यान देना चाहिए। गर्मी के दौरान पानी और बिजली की आपूर्ति में व्यवधान होने की संभावना भी है। इसे नियंत्रित करने के लिए सरकार को अभी से तैयारी करनी चाहिए।

हाल ही में मौसम की सटीक रिपोर्ट और विश्लेषण नहीं आ रहे हैं। मौसम में अप्रत्याशित बदलाव हो रहा है, जिसके कारण संबंधित विभाग के लिए अनुमान लगाना भी मुश्किल हो रहा है। एक ही भू-क्षेत्र के पास-पास एक तरफ भारी बारिश और दूसरी तरफ असहनीय गर्मी देखने को मिल रही है। इस बारे में जनता को सटीक वैज्ञानिक जानकारी देने के लिए सरकार को अभी से कदम उठाने चाहिए।

मार्च महीने से गर्मी तेज होने के साथ ही हर जगह, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी की भारी कमी होने के संकेत मिल रहे हैं। इसलिए लोगों और पशुओं को पीने के पानी की समस्या न हो, इसके लिए सरकार को तुरंत पूर्व तैयारी करनी चाहिए। स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ने से रोकने के लिए सरकारी अस्पतालों को तैयार करना चाहिए। जनप्रतिनिधियों को लोगों के पास जाकर उनकी समस्याएँ सुननी चाहिए और सरकार पर दबाव बनाना चाहिए।

सत्ता में बैठे लोगों और विपक्ष के जनप्रतिनिधियों को ऐसे समय में एकजुट होकर काम करना आवश्यक है।