‘अब देखो, सौ साल से भी ज्यादा हो गए, हम हिन्दुओं को रूह अफ़ज़ा पिला पिला कर जिहाद किये जा रहे हैं और हमें पता भी नहीं चला।’

“आपको पता है, ये मुस्लमान भी ना बहुत ख़राब हैं। हर चीज पर जिहाद करते हैं”, गुप्ता जी मॉर्निंग वाक पर बोले, “अब देखो ये शरबत जिहाद शुरू कर दिया है”।

मैंने कहा, “सचमुच में ये मुसलमान वास्तव में ही बहुत ख़राब हैं। अब देखो, सौ साल से भी ज्यादा हो गए, हम हिन्दुओं को रूह अफ़ज़ा पिला पिला कर जिहाद किये जा रहे हैं और हमें पता भी नहीं चला। अब जाकर एक सौ दस-पंद्रह साल बाद पता चला है और वह भी तब जब बाबा जी ने शरबत बनाया है। वह तो भला हो बाबा जी का। अगर वे शरबत नहीं बनाते तो पता ही नहीं चलता कि शरबत जिहाद भी कोई चीज होती है”।

“ये जिहाद भी ना बहुत ख़राब चीज होती है। इसे सिर्फ मुसलमान ही करते हैं। कोई भी और इसे नहीं करता है।आपने कभी किसी भी हिन्दू को जिहाद करते हुए सुना है भला”, गुप्ता जी ने कहा, “ये ही करते हैं जिहाद, कभी लव जिहाद, कभी जमीन जिहाद। कभी ये जिहाद, तो कभी वो जिहाद। और तो और ये मुसलमान ना, आईएएस जिहाद भी करने लगे हैं”।

“हाँ, हम हिन्दू तो तो धर्म युद्ध करते हैं। वे जिहाद जिहाद बेकार में ही करते हैं। हमारी तरह से धर्म युद्ध करते तो समझ में भी आता”, मैंने भी चौक्का जड़ा।

मुझे अनसुना करते हुए गुप्ता जी बोले, “आपको पता है अब ये मुसलमान आईएएस भी बनने लगे हैं। हम हमेशा से बनते आ रहे हैं पर उसे हमने जिहाद कभी नहीं समझा। हमनें जमीनें भी खरीदी पर उसे जमीन जिहाद नहीं कहा। और तो और जमीनों पर कब्जे को भी जमीन जिहाद नहीं कहा। और ये मुसलमान हर चीज को जिहाद बोलते हैं”।

“अरे भाई, वे जिहाद नहीं बोलते, हम ही उनकी हर चीज को जिहाद कहते हैं। जब तक वे बढ़ई का काम करते रहे, नाई बनते रहे, मिस्त्री बनते रहे तब तक तो तुम्हें जिहाद नज़र नहीं आया। पढ़ाई कर, मेहनत कर आईएएस बनने लगे तो जिहाद नज़र आ गया,” मैंने मुस्कराते हुए कहा।

गुप्ता जी अपनी ही धुन में बोलते जा रहे थे। “देखो हम तो अपने बच्चों को दूसरे धर्म को तो छोड़ो, दूसरी जाति में भी शादी नहीं करने देते। और वे खुले आम दूसरे धर्म में शादी करते हैं। ये लव जिहाद नहीं तो और क्या है”?

मुझे गुप्ता जी को जबरदस्ती रोकना पड़ा। समझो कि मुँह पर हाथ रख कर ही रोकना पड़ा। “गुप्ता जी, तुम यह इसलिए कह रहे हो क्योंकि कोई ‘बाबा कम, लाला ज्यादा’ कह देता है कि यह शरबत जिहाद है। क्योंकि उसे अपना बिजिनेस चलाना है। धर्म की आड़ में चलाना है। घटिया प्रोडक्ट को धर्म के नाम पर बेचना है। और हम इतने घोंचू हैं कि जो भी आए, धर्म का धंधा चलाये, उसके पीछे चल देते हैं”।

“गुप्ता, तेरी दिक्कत यह है कि तू खुद नहीं सोचता है। प्यार में धोखा कहाँ नहीं होता है पर कोई भोगी उसे लव जिहाद कह देता है तो तू मान जाता है। कोई गोदी पत्रकार जमीन में, आई ए एस बनने में, उनकी हर चीज में जिहाद ढूंढ लाता है और तू मान जाता है। अब एक लाला शरबत जिहाद बोल रहा है तो तू मान बैठा है”।

“दिक्कत इससे है कि रूह अफ़ज़ा बनाने वाली कम्पनी अपना मुनाफा जन कल्याण के लिए दे देती है, उससे मदरसे (स्कूल), मस्जिद (धर्म स्थल) और दवाखाने बनवाती है तो लाला क्यों अपने मुनाफे से जमीनें खरीद रहा है, फैक्ट्रियां लगवा रहा है। वह भी स्कूल खुलवा दे, मंदिर बनवा दे, अस्पताल बनवा दे। पर अगर वह बनवायेगा तो महंगी फीस वाला स्कूल बनवायेगा, प्राइवेट अस्पताल बनवायेगा, और मंदिर भी बनवायेगा तो उसके चढ़ावे पर निगाह रखेगा”।

“गुप्ता, तुलसीदास जी ने या फिर किसी और ने कहा है, जाकी रही भावना जैसी,…। तो जाकी रही भावना वैसी, उनको हर चीज में जिहाद दिखता है। तू तो चिल कर। घर जा, रूह अफ़ज़ा पी। पानी में मिला, शरबत बना कर पी, दूध में मिला कर पी, कुल्फी-फालूदा पर डाल कर पी या एक आध चम्मच वैसे ही पी जा। पर ना तो मेरा दिमाग़ खा और ना अपना दिमाग़ खराब कर”।

Source: News Click