
पहलगाम आतंकी हमले के बाद कश्मीरी लोगों की मानवता और उनके पश्चाताप के बावजूद, कई राज्य की सरकारों और दक्षिणपंथी ताकतों ने देश भर में कश्मीरियों और मुसलमानों को सामूहिक रूप से प्रताड़ित किया. इस हमले के बाद देश ने जो त्रासद मंजर देखा, उसे उकेरता हर्ष मंदर का यह मार्मिक लेख.
दिमाग़ को सुन्न कर देने वाली भयावह त्रासदी के समय ही लोगों की हिम्मत की सबसे अधिक परीक्षा होती है. यह परीक्षा उस समय और अधिक होती है जब हमारे लिए सबसे क़ीमती जीवन प्रकृति या बीमारी द्वारा नहीं बल्कि क्रूर नफ़रत द्वारा छीन लिया जाता है.
22 अप्रैल को कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा कम-से-कम 26 लोगों की क्रूर हत्या के बाद भारत के कई हिस्से नफ़रत की आग में जल उठे. लेकिन बेरहमी से मारे गए लोगों के प्रियजनों और कश्मीर के आम लोगों ने नैतिकता के उच्च मानकों का प्रदर्शन किया.
लेफ़्टिनेंट विनय नरवाल की उम्र 27 साल से कुछ कम ही थी. हरियाणा के करनाल के एक गांव के युवा नौसेना अधिकारी विनय केरल के कोच्चि बंदरगाह पर तैनात थे. एक हफ़्ते पहले ही हिमांशी से उनकी शादी हुई थी. स्विट्ज़रलैंड की यात्रा के लिए समय पर वीज़ा का इंतज़ाम नहीं हो पाने के बाद उन्होंने अपने हनीमून के लिए कश्मीर के सुंदर वातावरण को चुना. तस्वीरों में उनके चेहरे ख़ुशी से दमकते दिखते हैं.
यह जोड़ा पहलगाम की खूबसूरत बैसरन घाटी में एक स्टॉल पर भेल-पूरी का आनंद ले रहा था. इसके बाद जो हुआ उसकी कल्पना किसी ने सपने में भी नहीं की होगी. एक आदमी उनके पास आया, नरवाल से उसका धर्म पूछा और फिर उसे गोली मार दी. व्याकुल हिमांशी घास के मैदान में अपने पति के ख़ून से लथपथ शरीर के पास तब तक चुप बैठी रही, जब तक कि एक घंटे बाद पुलिस नहीं आ गई.
हिमांशी के पति का उनके गांव में अंतिम संस्कार किया गया. इस बीच पहलगाम आतंकी हमले के परिणामस्वरूप देश भर में मुसलमानों के खिलाफ़ उत्पीड़न तेज हो गया था. निर्दोष मुसलमानों को हिंदुत्ववादियों की भीड़ बेवजह प्रताड़ित करने लगी.
जब कुछ दिनों बाद नरवाल के 27वें जन्मदिन पर उनके परिवार की ओर से करनाल में आयोजित रक्तदान शिविर में पत्रकार इकट्ठा हुए तो हिमांशी ने कहा, ‘जो कुछ हो रहा है वह कश्मीरियों और मुसलमानों के ख़िलाफ़ है, हम ऐसा नहीं चाहते. हम शांति चाहते हैं और सिर्फ़ शांति.’
उन्होंने आगे कहा, ‘बेशक हम न्याय चाहते हैं. जिन लोगों ने उनके साथ ग़लत किया है, उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए.’
हिमांशी नरवाल के साथ अभद्रता
हिमांशी की दयालुता और मानवता के कारण दक्षिणपंथी विचारधारा से संबंधित लोगों ने सोशल मीडिया पर उनके साथ अभद्रता की. कई दिनों तक यह घृणा फैलाई जाती रही. एक पोस्ट में तो यहां तक कहा गया कि उन्हें गोली मार दी जानी चाहिए. दूसरों ने बेबुनियाद दावा किया कि उन्होंने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उन्हें पैसे दिए गए थे या वह फिर से शादी करना चाहती थीं, या कॉलेज में उनके मुस्लिम पुरुष मित्र थे. लेकिन हिमांशी दृढ़ थीं. उन्होंने एक पत्रकार से कहा, ‘मुझे पता है कि मैंने क्या कहा और क्यों कहा. मैं नहीं चाहती कि इससे निर्दोष लोगों की ज़िंदगी प्रभावित हो, चाहे वे हिंदू हों या मुस्लिम.’

इसके बाद ललिता रामदास ने उन्हें एक सार्वजनिक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अधिकांश भारतीय नागरिकों की भावना को व्यक्त किया. उन्होंने लिखा: ‘हिमांशी, आप एक आदर्श फ़ौजी पत्नी हैं, जो सेवा की भावना, संविधान और हमारे धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति समर्पित हैं.’
ललिता रामदास के पिता और पति दोनों ही भारतीय नौसेना के (प्रथम और तेरहवें) प्रमुख रहे थे. ललिता रामदास ख़ुद एक प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उन्होंने हिमांशी को लिखे अपने पत्र में कहा, ‘यह संभवतः वर्तमान में जीवित सबसे बुज़ुर्ग नौसैनिकों की बेटियों/पत्नियों में से एक की ओर से नौसैनिक पत्नियों के समुदाय में शामिल सबसे नई और सबसे कम उम्र की लड़की के प्रति व्यक्तिगत श्रद्धांजलि है. मुझे आप पर बहुत गर्व है. मैं प्रेस को दिए गए आपके बयान की क्लिप को बार-बार देखती हूं. 22 तारीख़ को पहलगाम में इतने सारे निर्दोष लोगों की भयानक हत्या के बाद जब आप मुसलमानों और कश्मीरियों को निशाना बनाए जाने और नफ़रत के ख़िलाफ़ बोलती हैं, तो आपका धैर्य और दृढ़ विश्वास उल्लेखनीय है. हमारे समय में इसकी बहुत ज़रूरत है.’
उन्होंने आगे लिखा, ‘आपने कहा, ‘हम केवल शांति चाहते हैं’, और एकदम सही कहा…विनय जैसे नौसेना के जवान का इससे अधिक साहसी साथी कोई नहीं हो सकता था. आपने इस देश के हर विचारशील नागरिक के विचारों और भावनाओं को प्रतिध्वनित किया है. हम सभी को आपके प्रेम और करुणा के संदेश को दूर-दूर तक ले जाना चाहिए.’
हिमांशी ने जैसी भावना दिखाई, आतंकी हमले के कई अन्य पीड़ितों ने भी वैसी ही भावनाएं साझा कीं. उस सुबह कोच्चि की रहने वाली आरती मेनन, जो दुबई में काम करती हैं, अपने माता-पिता और छह साल के जुड़वां बेटों के साथ कश्मीर में छुट्टियां मना रही थीं. उनकी मां कार में बैठी थीं, जबकि मेनन अपने 65 वर्षीय पिता एन रामचंद्रन और बेटों के साथ बैसरन वैली के घास के मैदानों में घूम रही थीं. जब उन्होंने पहली बार गोलियों की आवाज़ सुनी, तो उन्हें लगा कि यह आतिशबाज़ी है. लेकिन जब ये आवाज़ें लगातार आती रहीं, तो उन्हें एहसास हुआ कि यह एक आतंकी हमला है. दहशत से भरे लोग इधर-उधर भागने लगे.
आरती मेनन ने बाद में न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया ‘जब हम आगे बढ़ रहे थे, एक आदमी जंगल से निकला. उसने सीधे हमारी ओर देखा.’ अजनबी ने कुछ ऐसा कहा जो वे समझ नहीं पाए. उन्होंने जवाब दिया, हम नहीं जानते. ‘अगले ही पल, उसने गोली चला दी. मेरे पिता गिर पड़े…मेरे बेटे चिल्लाने लगे, और वह आदमी चला गया…मैंने अपने दोनों बेटों को जकड़ लिया और भागने लगी – जंगल की तरफ़ भागने लगी, बिना यह जाने कि मैं कहां जा रही हूं,’ और उन्होंने यह भी बताया कि कैसे वे जंगल में लगभग एक घंटे तक भागती रहीं.
जब वे आख़िरकार ऐसी जगह पहुंचे जहां उनके फ़ोन में इंटरनेट कनेक्शन आया, तो उन्होंने अपने ड्राइवर मुसाफ़िर को फ़ोन किया. आरती याद करती हैं, ‘मेरा ड्राइवर मुसाफ़िर तथा एक और आदमी, समीर– वे मेरे भाई की तरह पूरा समय मेरे साथ खड़े रहे, मुझे शवगृह ले गए, औपचारिकताएं पूरी करने में मदद की… उन्होंने अपनी बहन की तरह मेरी देखभाल की.’ जब वह श्रीनगर से निकल रही थी, तो आरती ने उनसे कहा, ‘अब कश्मीर में मेरे दो भाई हैं. अल्लाह आप दोनों की रक्षा करे.’
कश्मीरियों ने पर्यटकों की जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी
छत्तीसगढ़ भाजपा युवा विंग के सदस्य अरविंद अग्रवाल ने भी ऐसी ही कहानी सुनाई. उन्होंने अपने फ़ेसबुक पेज पर लिखा, ‘आपने हमारी जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी. हम नज़ाकत भाई का कभी भी ठीक से धन्यवाद नहीं कर पाएंगे.’
अरविंद अग्रवाल अपने परिवार के 11 सदस्यों के साथ छुट्टियां मना रहे थे. जब गोलियां चलनी शुरू हुईं, तो उनकी चार साल की बेटी समृद्धि भागकर मैदान में चली गई. उनकी पत्नी पूजा उसे बचाने के लिए उसके पीछे दौड़ी. दूसरे बच्चे मैदान में खेल रहे थे, और उनके साथ नज़ाकत भी था, जो एक टट्टू का मालिक है. जैसे ही आतंकवादी पास आए, उसने अरविंद की बेटी को उठाया और आतंकवादियों से कहा कि वह उसकी अपनी बेटी है. अरविंद बताते हैं कि ‘वह उसके बाद चला गया. स्थानीय टट्टूवालों ने हमें टट्टू पर सवार होकर भागने में मदद की.’ बाद में उन्होंने उनकी पत्नी को अस्पताल पहुंचाने में मदद की, क्योंकि उनके कंधे में फ़्रैक्चर हो गया था.
तब तक नज़ाकत को ख़बर मिल गई थी कि उसके चचेरे भाई आदिल को आतंकवादियों ने मार दिया है, क्योंकि वह पर्यटकों की जान बचाने की कोशिश कर रहा था. लेकिन उसने आदिल के अंतिम संस्कार के लिए घर नहीं लौटने का फ़ैसला किया, क्योंकि अरविंद और उनका परिवार किसी स्थानीय व्यक्ति के बिना डर रहा था. अरविंद के परिवार को हवाई अड्डे पर छोड़कर नज़ाकत घर लौटे.
उन्होंने कहा, ‘हमले मानवता की मौत का प्रतीक हैं… मुझे बस इस बात की ख़ुशी है कि मैं उन 11 लोगों को बचा सका और यह सुनिश्चित कर सका कि वे सुरक्षित घर पहुंचें.’

29 वर्षीय सैयद आदिल शाह पर्यटकों को टट्टू पर घुमाते थे. पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा मारे जाने के बाद राष्ट्रीय नायक बन गए. उनके पास अपना टट्टू नहीं था. वह एक दिहाड़ी मज़दूर थे जो टट्टू किराए पर लेकर आते थे और शायद 300 रुपये प्रतिदिन कमाते थे. वह उस सुबह टिफ़िन में अपना दोपहर का खाना पैक करके निकले थे.
जब आतंकवादियों ने पर्यटकों पर गोली चलानी शुरू की, तो आदिल ने उनकी राइफ़ल छीनने की कोशिश की. बंदूक़धारी आतंकवादी ने उसे तीन गोलियां मारीं जिससे उनकी मौत हो गई.
आदिल के पिता सैयद हैदर शाह ने जंगल में बने अपने छोटे से घर में रोते हुए कहा, ‘वह तीन दिनों की बारिश के बाद अपने टट्टू पर पर्यटकों को घुमाने के लिए घर से निकला था . कौन जानता था कि वह कभी लौटकर नहीं आएगा?’
आदिल के शोकाकुल परिवार ने कहा कि उन्हें उसके बलिदान पर गर्व है. आदिल के पिता ने कहा, ‘उसने अपनी मानवता दिखाई, और इसी वजह से हम अपनी ज़िंदगी जी पा रहे हैं.’ शाह ने कहा, ‘हम इस दुख में अकेले नहीं हैं. 25 अन्य परिवार भी हैं (जो अपने प्रियजनों को खोने का ग़म मना रहे हैं), लेकिन मेरे बेटे ने जो किया उस पर मुझे गर्व है.’

कश्मीरियों की कश्मीरियत
महाराष्ट्र के एक परिवार ने फ़ेसबुक पोस्ट में लिखा था, ‘हम बच गए…क्योंकि एक कश्मीरी भाई ने हमें अपने घर में पनाह दी. आतंकी हमले के बाद उनके टैक्सी ड्राइवर आदिल उनके रक्षक बन गए. वह हमारे डरे हुए परिवार को अपने घर ले गए, उन्हें भरोसा दिलाया और पनाह दी. एक महिला वीडियो में कहती है, ‘आदिल भाई ने हमें अपने घर में रखा, हमें खाना दिया और हमें सुरक्षित जगह पर ले गए. वह हमारा हौसला बढ़ाते रहे.‘
ऐसी कहानियों की बाढ़ आ गई. एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें पहलगाम के शॉल बेचने वाले सज्जाद अहमद भट ने एक घायल पर्यटक को अपनी पीठ पर लादकर एक घंटे तक दौड़ लगाई, जब तक कि वह ऐसी जगह नहीं पहुंच गया जहां मोटरगाड़ी आ सकती हो. वह क़त्लेआम वाली जगह पर सबसे पहले पहुंचने वालों में से एक थे, ताकि लोगों की मदद कर सकें. उन्होंने कहा, ‘कश्मीरी होने के नाते उन्हें बचाना हमारा कर्तव्य था. यह मानवता की हत्या थी.’
भट अकेले नहीं थे. कई टट्टू-वाले, ऑल-टेरेन व्हीकल (एटीवी) ऑपरेटर और स्थानीय दुकानदार घायल पर्यटकों की जान बचाने के लिए मौके पर पहुंचे थे.
हाईवे उन पर्यटकों से भर गया जो अपनी जान बचाकर भाग रहे थे. गुलमर्ग, सोनमर्ग, श्रीनगर, दूधपथरी और अन्य रिसॉर्ट्स में फंसे हुए पर्यटक कश्मीर से निकलने के लिए बेताब थे. कश्मीरियों ने भयभीत आगंतुकों को आश्रय, भोजन और आराम देने के लिए अपने घरों के दरवाज़े खोल दिए.
उन्होंने राजमार्गों पर भी खाने पीने की व्यवस्था की. द क्विंट की रिपोर्ट है, ‘जबकि घाटी (आतंकी हमले के) विरोध में बंद थी, स्थानीय लोगों को कई स्थानों पर पर्यटकों को फल, पानी और अन्य आवश्यक चीज़ें वितरित करते देखा गया, खासकर दक्षिण कश्मीर में’.
लोगों ने सड़कों के किनारे भोजन के लंगर लगाए. इनमें से एक शोपियां ज़िले के बशारत मक़बूल थे जो कीगाम यूथ ट्रस्ट नामक एक सामाजिक कल्याण समूह चलाते हैं.
उन्होंने कहा, ‘चूंकि कश्मीर घाटी बंद थी इसलिए हमने पैसे जमा किए. फल, पानी और अन्य सामान ख़रीदा तथा हवाई अड्डे की ओर जाने वाले पर्यटकों के बीच वितरित किया. श्रीनगर हवाई अड्डे और रेलवे स्टेशन की ओर जाने वाले पर्यटकों को ऑटोरिक्शा और टैक्सियों वाले मुफ़्त में ले जा रहे थे.’
हत्याओं के विरोध में पूरा कश्मीर स्वतःस्फूर्त तरीके से बंद हो गया. ‘लोगों ने न्याय और शांति के लिए नारे लगाते हुए तख्तियों, बैनरों, पोस्टरों और नारों के साथ अपना दुख और आक्रोश व्यक्त किया… ऐसा बंद पहले कभी नहीं देखा गया था.
कश्मीरी लोग सामूहिक रूप से बाहर निकले और निर्दोष पर्यटकों की मौत पर शोक व्यक्त किया, जिन्हें उन्होंने अपना ‘मेहमान’ कहा. उन्होंने रैलियां कीं और कैंडल मार्च निकाले, और सर्वसम्मति से नरसंहार की निंदा की. कश्मीर के 10 ज़िलों में सभी दुकानें, व्यापारिक प्रतिष्ठान और स्कूल बंद रहे. यहां तक कि सार्वजनिक परिवहन भी सड़कों से नदारद रहा.’
श्रीनगर के निवासी शोएब मेहराज ने कहा, ‘हम इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं, लेकिन चूंकि यह हमला कश्मीर में हुआ है, इसलिए हमें लगता है कि हमें अपने मेहमानों से माफ़ी मांगनी चाहिए.’

‘दक्षिणपंथी संरचनाओं ने देश भर में कश्मीरियों और मुसलमानों को सामूहिक रूप से प्रताड़ित किया’
लेकिन फैलाई गई नफरत ने भी जल्द ही अपना असर दिखाना शुरू कर दिया. कश्मीरी लोगों द्वारा दिखाई गई मानवता, एकजुटता, संवेदना और पश्चाताप के बावजूद, सरकारों और दक्षिणपंथी संरचनाओं ने देश भर में कश्मीरियों और मुसलमानों को सामूहिक रूप से प्रताड़ित किया. ख़ून बहा, जमकर नफ़रत भरे ज़हरीले भाषण दिए गए, छात्रों को परेशान किया गया और धमकाया गया, डॉक्टर ने मरीज़ों को देखने से मना कर दिया, घरों को ध्वस्त कर दिया गया और सामूहिक प्रतिशोध लेते हुए निर्दोष लोगों को जेलों में भर दिया गया, उन अपराधों के लिये जो न तो उन लोगों ने किए थे और न ही उनका समर्थन किया था.
पहलगाम आतंकी हमले के 24 घंटे से भी कम समय के बाद, आगरा में एक 25 वर्षीय रेस्तरां कर्मचारी, मोहम्मद गुलफ़ाम रात होने पर शाहिद अली चिकन बिरयानी रेस्तरां बंद करने जा रहा था, तभी दो आदमी आए. एक ने बंदूक निकाली और गुलफ़ाम को गोली मार दी. गुलफ़ाम ख़ून से लथपथ होकर गिर पड़ा. उसका चचेरा भाई ताजपुर नामक एक अन्य रेस्तरां में फ़र्श साफ़ कर रहा था, गोली की आवाज़ सुनकर देखने आया कि क्या हुआ. बंदूकधारी ने उस पर भी गोली चला दी, गोली उसके कंधे में लगी और वह ख़ुद को बचाने के लिए टेबल के नीचे छिप गया.
गुलफ़ाम अपने पीछे तीन बच्चे छोड़ गया है. उसकी मां ज़ुबैदा ताजमहल से सिर्फ़ दो किलोमीटर दूर अपने घर में छाती पीटते हुए विलाप कर रही थी. ‘मेरा बेटा एक सीधा-सादा लड़का था. उसे क्यों मारा गया?’
एक दिन बाद, नीली बनियान और जींस पहने एक आदमी सोशल मीडिया पर एक वीडियो में दिखाई दिया. उसकी जींस में दो पिस्तौलें टंगी हुई थीं. उसने आगरा में क्षत्रिय गौ रक्षा दल का सदस्य होने का दावा किया. हत्या की ज़िम्मेदारी लेते हुए उसने घोषणा की कि वह ’26 (कश्मीर में मारे गए पर्यटकों) के बदले में 2,600 [मुसलमानों] को मारकर’ पहलगाम आतंकी हमले का बदला लेगा.
उत्तर प्रदेश के शामली के झिंझाना गांव में एक अन्य हत्यारे गोविंद ने भी ’26 के बदले 26 मारूंगा’ जैसा ही नारा लगाया. बिना किसी चेतावनी के उसने सरफ़राज़ नाम के एक अन्य ग्रामीण पर कुल्हाड़ी से हमला किया, उसके चेहरे, गर्दन और कंधों पर बार-बार वार किए.
हिंदुत्व संगठनों का नफरती अभियान
नफ़रत भरे भाषणों की बाढ़ आ गई जिसे इंडिया हेट लैब ने रिपोर्ट किया. पहलगाम आतंकी हमले के तुरंत बाद के 10 दिनों में ही ऐसे 64 भाषण दिए गए. इनमें से अधिकांश भाषण विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), बजरंग दल, अंतरराष्ट्रीय हिंदू परिषद (एएचपी), राष्ट्रीय बजरंग दल (राष्ट्रीय बजरंग दल), हिंदू जनजागृति समिति, सकल हिंदू समाज, हिंदू राष्ट्र सेना और हिंदू रक्षा दल जैसे हिंदुत्व समूहों जैसे द्वारा आयोजित सार्वजनिक रैलियों में दिए गए.
इन रैलियों में मुसलमानों के लिए अमानवीय भाषा का उपयोग किया गया, जैसे ‘हरा सांप’, ‘सूअर का बच्चा’, ‘कीड़े’ और ‘पागल कुत्ते.’
रवांडा में तुत्सी समुदाय के लिए ‘कीड़े’ शब्द का प्रयोग किया जाता था. ऐसी ही भाषा के बाद 1994 में रवांडा में दस लाख तुत्सी लोगों का नरसंहार किया गया था.
इन रैलियों में नरसंहार का खुला आह्वान किया गया. छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने दर्शकों को उकसाया: ‘अपने शहर में पागल जिहादियों से बात मत करो; उनसे बात नहीं की जा सकती, उन्हें सिर में गोली मार देनी चाहिए.’
उत्तर प्रदेश के झांसी में धार्मिक नेता मधुरम शरण शिवा ने हिंदुओं से युद्ध के लिए तैयार रहने का आग्रह किया. उन्होंने घोषणा की कि ‘आपको इन अधर्मियों को ख़त्म करना होगा…आप सभी के पास हथियार होने चाहिए.’
महाराष्ट्र की एक रैली में एक वक्ता ने सरकार से अपील की कि ‘पुलिस को एक महीने की छुट्टी दे- फिर देखें कि हम इन पाकिस्तानी इलाक़ों को न केवल महाराष्ट्र से बल्कि भारत से कैसे ग़ायब कर देते हैं.’
नरसंहार के अलावा आर्थिक बहिष्कार और जातीय सफाए का भी ज़ोरदार आह्वान किया गया. हरियाणा के अंबाला में एक हिंदू साधु ने मुस्लिम दुकानदारों और उनके व्यवसायों का पूर्ण बहिष्कार करने का आह्वान किया, लोगों से आग्रह किया कि ख़रीदारी करने से पहले विक्रेताओं से उनका धर्म पूछें. उन्होंने यह भी धमकी दी कि अगर सरकार कार्रवाई करने में विफल रही, तो हिंदू हथियार उठा लेंगे और ‘उन्हें पाकिस्तान भेज देंगे.’
बिहार के मधेपुरा में भी ऐसा ही आह्वान किया गया. उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद के लोनी में, भाजपा विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने अपने समर्थकों की भीड़ से शपथ लेने को कहा कि वे उन सभी लोगों की पहचान करेंगे और उन्हें यहां से भगा देंगे जो ‘पाकिस्तान का समर्थन करते हैं’, उन्हें मुसलमानों को ‘टोपीवाला’, ‘जिहादी’ और ‘रोहिंग्या बांग्लादेशी’ कहकर संबोधित किया.
हिमाचल प्रदेश के शिमला के सराहन में एक वक्ता ने मकान मालिकों से मुस्लिम किरायेदारों को भगा देने का आह्वान किया, धमकी दी कि अगर वे ऐसा करने में विफल रहे, तो उन्हें सबसे पहले भगाया जाएगा. महाराष्ट्र के पुणे के कामशेत में, हिंदू राष्ट्र सेना और सकल हिंदू समाज की एक रैली में वक्ताओं ने यह कहते हुए स्थानीय मुसलमानों पर निशाना साधा कि ‘बांग्लादेशी और पाकिस्तानी इस शहर से कमाई कर रहे हैं,’ और उनके आर्थिक बहिष्कार का आह्वान किया.
महाराष्ट्र में भाजपा के एक मंत्री नितेश राणे, जो नफ़रत फैलाने वाले भाषणों के लिए विशेष रूप से कुख्यात हैं, ने मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार का आह्वान करते हुए एक सभा में कहा, ‘अगर (मुसलमान) धर्म के बारे में इस तरह का व्यवहार कर रहे हैं, तो हम उनसे चीज़ें क्यों ख़रीदें और उन्हें अमीर क्यों बनाएं? आप लोगों को यह संकल्प लेना होगा कि जब भी आप कोई चीज़ ख़रीदें, तो केवल हिंदू से ही ख़रीदें.’
पहलगाम के बाद कश्मीरियों और मुसलमानों को निशाना बनाने वाले पोस्ट की बाढ़
पहलगाम हत्याकांड के कुछ सप्ताह बाद कश्मीरियों और भारतीय मुसलमानों को निशाना बनाकर किए जाने वाले नफ़रत भरे पोस्ट की बाढ़ आ गई. कई एक्स (X) अकाउंट ने कश्मीर में ‘इज़राइल जैसे समाधान’ की मांग की तथा हिंसा और यहां तक कि नरसंहार की वकालत की. कई सोशल मीडिया पोस्ट ने इस्लाम को कलंकित करने के लिए सोशल मीडिया का दुरुपयोग किया और झूठा दावा किया कि यह धर्म आतंकी हिंसा का समर्थन करता है.
कई घृणित और कट्टर संदेशों के बीच, सोनम महाजन ने ट्वीट किया, ‘मुर्शिदाबाद से पहलगाम तक, आतंकवाद का एक धर्म है. जो कोई भी आपको इसके अलग कोई बात बताता है वह ढोंगी और झूठा है.’ एक अन्य ने इस पर सहमति जताते हुए कहा कि ‘बचपन में, हम सभी मुस्लिम कॉलोनी या इलाक़े में प्रवेश करने से पहले डरते थे.’ एक अन्य ने पोस्ट किया – ‘तुम्हारी मस्जिदों और भाईचारा की ऐसी की तैसी.’
आनंद रंगनाथन ने लिखा, ‘आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता. इसलिए पहलगाम के आतंकवादियों ने पर्यटकों के आईडी कार्ड चेक किए, उनकी पैंट उतारी, उनसे कलमा पढ़ने को कहा और जो मुसलमान नहीं थे उन्हें मार डाला.’
एक अन्य पोस्ट ने दावा किया, ‘हर कश्मीरी इस नरसंहार में शामिल था. हर कश्मीरी ने ऐसा किया.’
हिंदुत्व वेबसाइट ऑपइंडिया की संपादक नुपुर शर्मा ने कश्मीरी लोगों पर सीधा हमला किया: ‘किसी को परवाह नहीं है. अपनी मोमबत्तियां अपने पास रखें (वह कैंडल मार्च का ज़िक्र कर रही हैं). अपने सेब अपने पास रखें. अपनी शॉल अपने पास रखें. अपनी कश्मीरियत अपने पास रखें. ख़ूनी नाटक बंद करें.’
लोकप्रिय घृणा संस्कृति पर ऐतिहासिक पुस्तक एच-पॉप के लेखक कुणाल पुरोहित ने अल जज़ीरा के लिए लिखते हुए पाया कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारतीय मुसलमानों और कश्मीरियों को निशाना बनाकर कम से कम 20 भड़काऊ नफ़रत भरे गाने तैयार किए गए थे. हमले के 24 घंटे से भी कम समय में इनमें से पहला नफ़रत भरा गाना भारत में यूट्यूब पर सामने आया.
हमने आपको रहने की इजाज़त देकर ग़लती की,
आपको अपना देश मिला, आप तब यहां से क्यों नहीं गए?
वे हम हिंदुओं को ‘काफ़िर’ कहते हैं,
उनके दिल हमारे ख़िलाफ़ साज़िशों से भरे हैं.
यह संदेश स्पष्ट था कि 1947 में देश के विभाजन के समय हिंदुओं ने मुसलमानों को भारतीय नागरिक के रूप में स्वीकार करके ग़लती की थी; इसके बजाय उन्हें पाकिस्तान जाने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए था.
अन्य गीतों ने हिंदुओं से एकजुट होने और उठ खड़े होने का आग्रह किया गया, अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो उन्हें ‘क़त्ल’ कर दिया जाएगा; भारतीय मुसलमानों को ‘देश के भीतर ग़द्दार’ और ‘सांप’ कहकर संबोधित किया गया; और मोदी से धार्मिक युद्ध छेड़ने तथा हिंदुओं को हथियार रखने की अनुमति देने का आह्वान किया गया. कुछ गीतों में ‘पाकिस्तान पर परमाणु बम गिराने’ या भारत सरकार से पाकिस्तान को ‘मानचित्र से मिटा देने’ का आह्वान किया गया, और कई लोगों ने मौते के बदले में ‘पाकिस्तानी ख़ून’ की वकालत की.
कश्मीरी मुस्लिम महिलाओं के ख़िलाफ़ बलात्कार और यौन हिंसा के लिए भी घिनौने यौन आह्वान किए गए. एक ट्वीट लिखने वाले उत्साह में लिखा, ‘दिल्ली में ख़तरा महसूस करने वाली कोई भी कश्मीरी लड़की रात में मेरे घर आ सकती है. आप सुरक्षित रहेंगी और अच्छी तरह से आपकी मेहमाननवाज़ी की जाएगी. भारत को विभाजित करने वाले हार जाएंगे, एकजुट भारत जीतेगा और फलेगा-फूलेगा!’
हालांकि, उस ट्वीट में आगे अभद्र ढंग से लिखा गया, ‘लेकिन मैं गारंटी नहीं दे सकता कि मेरे साथ एक रात बिताने के बाद वह जीवित रहेगी या नहीं,’ और आगे लिखा कि ‘हिजाब पहनने वाली लड़कियां मेरी प्राथमिकता हैं.’
इसी तरह अन्य लोगों ने अभद्र भाषा और इशारों के साथ कश्मीरी महिलाओं के साथ सेक्स करने का आह्वान किया.
सोशल मीडिया पर हिंदुत्व समर्थकों के कई पेजों ने खुलेआम ‘मुस्लिम नरसंहार’ का आह्वान किया. कुछ पेज पर लिखा गया, ‘उनके हाथ काट दो और उनके शवों को लाल चौक में लटका दो.’
एक अन्य पेज से घोषणा की गई, ‘हम भी पैंट उतारकर देखेंगे और मारेंगे.’
सोशल मीडिया पर एक अन्य व्यक्ति ने लिखा, ‘यह भारत का 7 अक्टूबर है.’ इज़रायल को अक्सर भारतीय सरकार के सामने मॉडल के रूप में पेश किया जाता रहा है. कई पोस्ट में मोदी सरकार से ‘इज़रायल के तरीक़े से बदला लेने’ का आग्रह किया गया.
कई हिंदुत्व नेताओं ने इस मांग को दोहराया कि भारत सरकार पहलगाम हिंसा के प्रतिशोध में ग़ाज़ा में इज़रायल की कार्रवाई के मॉडल को कश्मीर में दोहराए.
कई लोकप्रिय टीवी चैनलों पर टॉक शो होस्ट ने इस मामले को और गरमा दिया. एक टीवी एंकर ने तो यहां तक कह दिया, ‘इसका कोई अंतिम समाधान होना चाहिए,’ जिसका मतलब है होलोकॉस्ट जैसा नरसंहार.

आतंकी हमले के बाद कश्मीरियों, ख़ासकर छात्रों के ख़िलाफ़ भयानक हिंसा
आतंकी हमलों के बाद भारत के अन्य हिस्सों में भी कश्मीरियों, ख़ासकर छात्रों के ख़िलाफ़ भयानक हिंसा देखी गई. आर्टिकल 14 ने चार उत्तरी राज्यों और जम्मू में कश्मीरियों और कश्मीरी छात्रों पर नफ़रत भरी धमकियों और हमलों की घटनाओं को दर्ज किया गया. इनमें से प्रत्येक को हिंदुत्व समूहों द्वारा बढ़ावा दिया गया था. ‘हमने उन कश्मीरी छात्रों से बात की, जिन्हें परीक्षा देनी थी, लेकिन बिना किसी संस्थागत समर्थन के वे परीक्षा नहीं दे पाए. बिना हिंसा के सबसे बुरे हालात से गुज़रने की उम्मीद करते हुए, अपने कमरों में छिपे हुए, उन्होंने मानसिक और भावनात्मक आघात के बारे में बताया’.
चंडीगढ़ में रहने वाली कश्मीर की 22 वर्षीय छात्रा अरीबा बताती हैं कि कैसे अजनबियों ने उन्हें रोका और हिंसक तरीक़े से उन्हें टैक्सी से बाहर निकाला, चिल्लाते हुए कहा, ‘पहलगाम जैसे हमलों के लिए आप कश्मीरी ही जिम्मेदार हैं; आप उनका समर्थन करते हैं.’
इस तरह के हमलों से घबराकर रयात बाहरा यूनिवर्सिटी की रेडियोलॉजी की छात्रा अरीबा ने ख़ुद को कमरे में बंद कर लिया. अरीबा ने भर्राई हुई आवाज़ में आर्टिकल 14 से कहा, ‘हम फंस गए हैं. हम बाहर नहीं जा सकते, और हम घर भी नहीं जा सकते. यहां तक कि एयरपोर्ट के लिए कैब बुक करना भी अपनी जान जोखिम में डालने जैसा लगता है. मैं यहां क़ैदी की तरह महसूस करती हूं, सिर्फ़ इसलिए कि मैं कश्मीरी हूं, सिर्फ़ इसलिए कि मैं मुस्लिम हूं. यह फ़्लैट जो कभी मेरा घर था, अब पिंजरे जैसा लगता है.’
अल जज़ीरा ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि क़रीब एक दर्जन कश्मीरियों ने उसके रिपोर्टरों से बात करते हुए बताया कि उन्होंने भारत के कम से कम सात शहरों में ख़ुद को अपने कमरों में बंद कर लिया था और बाहर की दुनिया से किसी भी तरह के संपर्क से परहेज़ कर रहे थे, जिसमें ऑनलाइन ऑर्डर देना या कैब बुक करना भी शामिल था.
श्रीनगर स्थित छात्र संघ, जम्मू और कश्मीर स्टूडेंट्स एसोसिएशन (जेकेएसए) के राष्ट्रीय संयोजक नासिर ख़ुएहमी ने कहा कि उन्हें पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू से सहायता मांगने के लिए रोज़ाना 600 से 700 कॉल आते हैं.
चंडीगढ़ के राहत भारत विश्वविद्यालय की नर्सिंग की छात्रा रुख़सार वानी भी अपने कमरे में छिपी हुई थी. आतंकी हमले के दो दिन बाद जब वह ख़रीदारी करने के लिए बाहर निकली तो उसके साथ क्या हुआ, यह बताते हुए वह रो पड़ी. ‘जैसे ही मैं बाहर निकली, लोगों ने मुझे ऐसे घूरना शुरू कर दिया जैसे मैं वहां की नहीं हूं. पुरुषों के एक समूह ने मुझे गाली देना शुरू कर दिया, मुझे नाम से पुकारा, चिल्लाकर भद्दी बातें कहीं. मैं उनकी आवाज़ में नफ़रत को महसूस कर सकती थी. यह सिर्फ़ शब्द नहीं थे. यह एक धमकी थी. मैं कांपने लगी. मैं ठीक से चल भी नहीं पा रही थी. मैं जम गई. मैं सोचती रही, ‘मैंने क्या किया? मेरी क्या ग़लती थी?’ तब से, वह अपने कमरे से बाहर नहीं निकली. ‘मेरे पास बाहर निकलने की हिम्मत नहीं थी. मैं बस वहीं लौटना चाहती हूं जहां की मैं हूं और जहां मैं सुरक्षित महसूस करती हूं. लेकिन मैं यहां फंस गई हूं और मुझे नहीं पता कि मैं यह सब कब तक झेल पाऊंगी. मैं हर तरीक़े से फंसी हुई महसूस कर रही हूं.’
कश्मीरी छात्रों ने भी ऐसा ही महसूस किया. देहरादून में पढ़ने वाले हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के 21 वर्षीय छात्र फ़ैज़ान शफ़ी ने कहा कि हमले के बाद से वह अपने छात्रावास के कमरे से बाहर नहीं निकला है, यहां तक कि खाने के लिए भी नहीं. ‘मुझे ऐसा लगता है कि इस परिसर में हर आंख मेरी तरफ़ ही देख रही है, जैसे वे सभी जानते हैं कि मैं कहां से हूं और बस इंतज़ार कर रहे हैं. मैं बाहर क़दमों की आवाज़ सुनता हूं और ठिठक जाता हूं.’
एक अन्य कश्मीरी छात्र ने अल जज़ीरा को बताया, ‘मुझे लगा कि भीड़ में हर एक व्यक्ति की आंखों में बदला था.’ एक अन्य छात्र ने कहा, ‘जहां भी मैं देखता हूं, वहां अविश्वास है.’ ‘हम अभिशप्त भी हैं क्योंकि हमारे चेहरे और नैन नक़्श हमारी जातीयता की पहचान को ज़ाहिर करते हैं.’
पंजाब के थापर इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के छात्र जुनैद भट ने आर्टिकल 14 से कहा, ‘मुझे याद है कि 2019 में पुलवामा के बाद एक हफ़्ते तक मैं अपने कमरे में छिपा रहा. अब फिर ऐसा ही हो रहा है. हम या तो गुमनाम हैं या आरोपी हैं. इससे इतर हमारी कोई पहचान नहीं है.’
दिल्ली में कार्यरत 28 वर्षीय रुमैसा लोन ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘हमारे घर (कश्मीर) पर जो कुछ हुआ हम उसके लिए शोक भी नहीं मना सकते. क्योंकि जब हम दुख व्यक्त करते हैं, तो उन्हें लगता है कि हम दिखावा कर रहे हैं. उन्हें लगता है कि हम इसका हिस्सा हैं. आप ऐसी जगह कैसे रह सकते हैं, जहां आपके दुख को भी अपराध की तरह देखा जाता है?’
कश्मीरी छात्रों ने आर्टिकल 14 को बताया कि देर रात लोगों ने उनके दरवाज़े को ज़ोर से पीटना शुरू कर दिया, गैलरी से उन्हें गालियां दी गईं और दरवाज़ों के नीचे धमकी भरे पर्चे डाले गए. एक छात्र ने कहा, ‘उन्होंने ऐसी बातें कहीं जिन्हें मैं दोहरा भी नहीं सकता, गंदे, नफ़रत भरे शब्द सिर्फ़ इसलिए क्योंकि हम कश्मीरी हैं. हम बिलकुल भी नहीं सोए. हम बस इस डर से एक-दूसरे के पास बैठे रहे कि कहीं कोई अंदर न आ जाए.’
एक छात्र ने दुख जताते हुए कहा, ‘मैं जहां भी देखता हूं, अविश्वास ही अविश्वास है. हम इसलिए भी अभिशप्त हैं क्योंकि हमारे चेहरे और नैन नक़्श से हमारी पहचान का पता चल जाता है.’
एक अन्य ने कहा, ‘हमने ऐसा कुछ पहले कभी नहीं देखा.’

‘कश्मीरियों पर दोहरा बोझ है: कश्मीरी होने का और मुस्लिम होने का’
सिर्फ़ छात्र ही नहीं. दूसरे कश्मीरी और मुस्लिम भी नफ़रत, भेदभाव, दुर्व्यवहार और हिंसा का सामना कर रहे हैं. कश्मीरी राजनीतिक विश्लेषक और शिक्षाविद शेख़ शौकत ने कहा, ‘कश्मीरियों पर दोहरा बोझ है: कश्मीरी होने का और मुस्लिम होने का. वे हमेशा आसान लक्ष्य होते हैं.’
हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने धमकी दी: ‘कश्मीर में हमला हिंदुओं पर हमला था, और अगर सरकार कार्रवाई नहीं करती है हम उसी तरह से जवाब देंगे – न केवल कश्मीरियों के ख़िलाफ़ बल्कि भारत के हर मुस्लिम के ख़िलाफ़. उन्हें सबक़ सिखाने के लिए पर्यटकों द्वारा कश्मीर का पूर्ण बहिष्कार किया जाना चाहिए. यह केवल एक आतंकवादी कृत्य नहीं बल्कि एक इस्लामी आतंकवादी कृत्य है. अगर सरकार आतंकवादियों और उनके समर्थकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं करती है, तो एक दिन ऐसा आएगा जब हिंदू पूरे भारत में मुसलमानों के ख़िलाफ़ उसी तरह क्रूरता से प्रतिक्रिया करेंगे.’
हिंदू रक्षा दल के नेता ललित शर्मा ने एक वीडियो बयान में धमकी देते हुए कहा, ‘हम सरकार द्वारा कार्रवाई किए जाने का इंतज़ार नहीं करेंगे… कश्मीरी मुसलमान, सुबह 10 बजे तक चले जाएं, वरना आपको ऐसी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते. कल हमारे सभी कार्यकर्ता कश्मीरी मुसलमानों के साथ ऐसा व्यवहार करने के लिए अपने घर से निकलेंगे.’
एक वीडियो देखकर लोग हैरान रह गए, जिसमें मसूरी में कुछ लोग दो कश्मीरी शॉल विक्रेताओं की पिटाई करते हुए उन्हें शहर छोड़ने के लिए कह रहे हैं. द क्विंट की रिपोर्ट के अनुसार कम-से-कम 15 या 16 शॉल विक्रेताओं पर हमला किया गया. उनमें से एक शब्बीर अहमद डार थे, जो 20 सालों से उत्तराखंड में शॉल बेच रहे हैं. उन्होंने बताया कि एक रात 30 से 40 लोगों की भीड़ ने उन्हें धमकाया और शहर छोड़ने के लिए कहा.
उन्होंने बहुत तकलीफ़ के साथ कहा, ‘हम भी इस मिट्टी के ही हैं, हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? जिसने भी आतंकी हमला किया, उसने हम सभी को दुख पहुंचाया है. हम इसका खुलकर विरोध कर रहे हैं. वे लोग राक्षस हैं, वे हिंदू या मुसलमान नहीं हैं. लेकिन अगर हम वहां काम नहीं कर सकते, तो फिर हम कहां काम करेंगे? अगर हम भारत में सुरक्षित नहीं हैं, तो हम कहां सुरक्षित हैं?’
ऐसे हमलों की ख़बरें अन्य जगहों से भी आई हैं. उदाहरण के लिए, हरियाणा के अंबाला में हिंदुत्व संगठनों के सदस्यों ने मुसलमानों की दुकानों और ठेलों पर हमला किया और तोड़फोड़ की. उन्होंने मुस्लिम मज़दूरों को भी पीटा और उनके साथ दुर्व्यवहार किया.
हरियाणा से ही एक और वीडियो सामने आया, जिसमें पहलगाम हिंसा का बदला लेने के लिए दो मुस्लिम दुकानदारों पर हमला किया गया और उन्हें परेशान किया गया.
मुंबई में भाजपा नेताओं के एक समूह को पुलिस ने मध्य मुंबई में मुस्लिम फेरीवालों के साथ दुर्व्यवहार करने और उन पर हमला करने के आरोप में गिरफ़्तार किया.
पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का विरोध करने वाली जयपुर की एक रैली हिंसक हो गई और भीड़ में शामिल असमाजिक तत्व जामा मस्जिद में घुसने की कोशिश करने लगी.
भाजपा के एक विधायक ने भीड़ का नेतृत्व किया, जो भीड़ मस्जिद में घुस गई और उसकी दीवारों पर घृणित पोस्टर चिपका दिए.
पहलगाम आतंकी हमले के बाद यूपी के हाथरस में एक मंदिर में काम कर रहे दो मुस्लिम मज़दूरों को काम से हटा दिया गया. हिंदुत्व नेता प्रवीण वार्ष्णेय ने घोषणा की कि अब निर्माण कार्य के लिए मुसलमानों को काम पर नहीं रखा जाएगा.
उन्होंने पीटीआई से कहा, ‘आतंकवादी हमले को लेकर पूरे भारत में गुस्सा फैल रहा है. देश आतंकवाद के ख़िलाफ़ निर्णायक सरकारी कार्रवाई की मांग कर रहा है. मंदिर का बचा हुआ काम हिंदू मज़दूर पूरा करेंगे’.
अलीगढ़ में एक दिहाड़ी मज़दूर के 15 वर्षीय बेटे को स्कूल से लौटते समय भीड़ ने पाकिस्तान के झंडे पर पेशाब करने और पाकिस्तान की तारीफ़ में नारे लगाने के लिए मजबूर किया. वीडियो में वह घबराया हुआ दिखाई दे रहा है और भीड़ से हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रहा है कि उसे जाने दिया जाए.
पश्चिम बंगाल के विधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय में एक पोस्टर लगा हुआ था, जिसमें लिखा था, ‘कुत्तों और मुसलमानों का प्रवेश वर्जित, #AllEyesOnPahalgam.’
‘सरकार ने अपने बयानों और कार्यों से घृणित ग़ैरक़ानूनी सामूहिक प्रतिशोध की आग को और भड़काया’
भारत सरकार ने इस तरह के घृणित ग़ैरक़ानूनी सामूहिक प्रतिशोध को रोकने और दंडित करने के बजाय, अपने बयानों और कार्यों से आग को और भड़काया.
प्रधानमंत्री ने ख़ुद इस सार्वजनिक मनोदशा का स्वर निर्धारित किया जब बिहार, जहां इसी साल चुनाव होने हैं, के मधुबनी में हमलों के ठीक एक दिन बाद एक भाषण में उन्होंने अचानक अंग्रेज़ी में यह सार्वजनिक चेतावनी जारी की. ‘आज, बिहार की धरती से मैं पूरी दुनिया को कहना चाहता हूं कि भारत हर आतंकवादी, समर्थक और साज़िशकर्ता की पहचान करेगा, उसका पता लगाएगा और उसे दंडित करेगा. हम उन्हें धरती के किसी कोने से खोज निकालेंगे. उन्हें ऐसी सज़ा दी जाएगी उन्होंने जिसकी कल्पना भी नहीं की होगी.’ उन्होंने कहा कि अपराधियों को ‘भारत की ज़ोरदार प्रतिक्रिया’ का सामना करना पड़ेगा.
अधिकारियों ने घातक पहलगाम हमले के बाद कश्मीर में आतंकवादियों और उनके समर्थकों पर बड़ी कार्रवाई की सूचना दी. अधिकारियों ने कहा कि ‘आतंकवादियों के घर ध्वस्त कर दिए गए, उनके ठिकानों पर छापे मारे गए और सैकड़ों लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया.’
जम्मू-कश्मीर में राज्य प्रशासन ने कश्मीर घाटी के 10 ज़िलों में से 6 में कम-से-कम 10 रिहायशी घरों को ध्वस्त कर दिया. उनका दावा है कि ये स्थानीय आतंकवादियों के घर थे. घरों को ध्वस्त किए जाने के अलावा घाटी भर में छापेमारी में सैकड़ों लोगों को हिरासत में लिया गया. श्रीनगर से 31 किलोमीटर दूर पुलवामा ज़िले के मुर्रान गांव के निवासी इम्तियाज़ ने घर को ढाए जाने की एक घटना के बारे में बताया. ‘हमें पवित्र पुस्तकों और ज़ेवर को बाहर निकालने और स्थानीय मस्जिद में इकट्ठा होने के लिए कहा गया. कुछ ही मिनटों में, दो ज़ोरदार धमाके सुनाई दिए, और हमें एहसास हुआ कि घरों को विस्फोट से उड़ा दिया गया है.’ पड़ोस के कई घरों में दरारें आ गईं.
असमत जान ने पूछा कि लोग सिर्फ़ इसलिए क्यों परेशान हों कि वे संदिग्ध आतंकवादी के घर के नज़दीक रहते हैं. उन्होंने द क्विंट से कहा, ‘हम मुश्किल से अपना गुज़ारा करते हैं और एक छोटा सा घर बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, जो घर पास के घर को विस्फोट से उड़ाए जाने की वजह से क्षतिग्रस्त हो गया है. खिड़कियां टूट गई हैं, और हमें उन्हें प्लास्टिक से ढंकना पड़ा है.’
पांच संदिग्ध आतंकवादियों में से एक, आसिफ़ शेख़, की बहन यास्मीना ने पत्रकारों से कहा, ‘अगर मेरा भाई पहलगाम हमले में शामिल भी था, तो हमारे परिवार का इससे क्या लेना-देना है? हमारे माता-पिता को उस ग़लती की सज़ा क्यों दी जा रही है जो उन्होंने की ही नहीं है?’
मार्क्सवादी नेता मोहम्मद यूसुफ़ तारिगामी ने सही कहा, ‘क़ानूनी प्रक्रियाओं का पालन किए बिना किसी के घर को ध्वस्त नहीं किया जा सकता. आश्रय का अधिकार मौलिक अधिकार है, और ग़ैरक़ानूनी कृत्यों का जवाब ग़ैरक़ानूनी प्रतिक्रियाओं से नहीं दिया जा सकता. आतंकवाद का मुक़ाबला उचित प्रक्रिया और क़ानून के शासन के ज़रिए किया जाना चाहिए, न कि बल का अनुचित प्रयोग करके.’
वकील वृंदा ग्रोवर ने सहमति जताते हुए कहा, ‘यदि किसी घर में आतंकवादियों, हथियारों या आतंकवाद से जुड़ी किसी भी तरह की सक्रिय उपस्थिति नहीं है, तो बिना उचित प्रक्रिया के किया गया विध्वंस अवैध है’ और यह सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों का उल्लंघन है.
भोजपुरी लोक गायिका और व्यंग्यकार नेहा सिंह राठौर पर पहलगाम हमले के बारे में केंद्र सरकार की आलोचना करने वाले उनके पोस्ट के लिए देशद्रोह और सांप्रदायिक सद्भाव को नुक़सान पहुंचाने का मामला दर्ज किया गया. उन्होंने ‘सुरक्षा चूक और आतंकी हमलों का राजनीतिकरण’ करने का आरोप लगाया. राठौर ने लिखा, ‘आतंकवादी हमले सरकार की विफलताएं हैं और सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. सरकार पर सवाल उठाने को देशद्रोह नहीं समझा जाना चाहिए.’
पहलगाम हत्याओं के बारे में उनके सोशल मीडिया पोस्ट के लिए उनके ख़िलाफ़ देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था.

सामूहिक दंड के इन रूपों का विरोध करने वाली अंतरात्मा की आवाज़ों को भी दंडित किया गया. इनमें से एक डॉ. मदरा काकोटी (उर्फ़ मेडुसा) हैं जो लखनऊ विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाती हैं और एक लोकप्रिय ऑनलाइन व्यंग्यकार हैं. उन्होंने एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति को मारने से पहले उसका धर्म पूछना वास्तव में आतंकवाद का एक रूप है.
उन्होंने उसी वीडियों में आगे कहा, ऐसे अन्य कार्य भी हैं जो किसी व्यक्ति की धार्मिक पहचान जानने के बाद उसे निशाना बनाकर किया जाता है, जैसे कि भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या करना, नौकरी से निकालना, कुछ समुदायों को आवास देने से मना करना और घरों को निशाना बनाकर ध्वस्त करना. भाजपा की छात्र शाखा से जुड़े छात्रों ने उनके पोस्ट के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया और पुलिस ने उन पर देशद्रोह, दुश्मनी को बढ़ावा देने, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने, सार्वजनिक शांति भंग करने और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम का उल्लंघन करने का आरोप लगाया.
श्रीनगर के सांसद आग़ा सैयद रूहुल्लाह मेहदी ने दुखी होकर डॉ. काकोटी द्वारा की गई आलोचना को दोहराया. उन्होंने द क्विंट से कहा, ‘अगर आतंकवाद का कोई धर्म है, तो क्या राजस्थान में ट्रेन में तीन मुसलमानों की हत्या करने वाला रेलवे कांस्टेबल आतंकवादी नहीं है? या फिर वे लोग जो भीड़ द्वारा की जाने वाली हत्या में शामिल हैं. हम उस पागल आदमी की हरकत के लिए पूरी हिंदू आबादी को एक ही नज़रिए से नहीं देखते हैं, उन पागल लोगों की हरकत के लिए लिए भी पूरे हिंदू समुदाय को ज़िम्मेदार नहीं ठहराते जिन्होंने मुसलमानों की हत्या की. और हमारे पास इसके कई उदाहरण हैं. और हम इन जानवरों (आतंकवादियों) के कृत्यों के लिए मुसलमानों को एक ही नज़रिए से नहीं देखते हैं.’
पहलगाम हमले के बाद भारतीय राज्य की तलवार कश्मीर में विवाहित पाकिस्तानी महिलाओं और उनके बच्चों पर भी क्रूरता से गिरी. इन 60 महिलाओं में से अधिकांश की शादी पूर्व कश्मीरी आतंकवादियों से हुई थी, और वे पूर्व आतंकवादियों के लिए 2010 की पुनर्वास नीति के तहत वैध रूप से कश्मीर में दाख़िल हुई थीं. उन्हें उनके बच्चों के साथ बसों से श्रीनगर, बारामुल्ला, कुपवाड़ा, बडगाम और शोपियां ज़िलों से वाघा सीमा पर लाया गया और पाकिस्तानी अधिकारियों को सौंप दिया गया. अचानाक ये परिवार टूट गए.
इनमें से एक 33 वर्षीय ज़ाहिदा बेगम थीं जो बांदीपुरा ज़िले के सीमावर्ती शहर गुंडपोरा में रहती थीं. उन्होंने 15 साल पहले पूर्व आतंकवादी बशीर अहमद नज़र से शादी की थी. ज़ाहिदा ने घर के लिए एक छोटा सा शेड बनाया, तीन बच्चे हुए और दिहाड़ी मज़दूरी करके अपना गुज़ारा चलाया. लेकिन ज़ाहिदा संतुष्ट थीं और कहती थीं कि भारत में उनकी ज़िंदगी ‘सुकूनभरी’ था. उन्होंने कहा, ‘सेना ने कभी हमारी तलाशी नहीं ली, किसी ने हमसे कभी पूछताछ नहीं की. मैं शांति से रह रही थी.’ उनकी दो बेटियां मरियम और आमिना बड़ी होकर आईएएस अधिकारी बनना चाहती थीं. लेकिन अब निर्वासन का सामना करने पर उनका कहना है कि उनके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है.
वह विनती करती हैं, ‘मुझे मार दो . मेरे बच्चों को मार दो. हमें सीमा पार फेंक दो. लेकिन मुझे मेरे पति से अलग मत करो.’
बढ़ते अंधेरे के बीच करुणा, एकजुटता और प्रतिरोध के दीप हमारे उदास आसमान को रौशन करते रहते हैं
सरकार और हिंदुत्व संगठनों तथा ट्रोल्स द्वारा निर्दोषों के ख़िलाफ़ घृणित प्रतिशोध के इस बढ़ते अंधेरे के बीच, करुणा, एकजुटता और प्रतिरोध के दीप हमारे उदास आसमान को रौशन करते रहते हैं.
उदाहरण के लिए, पंजाब कश्मीरी छात्रों के लिए उत्तर भारत की तपती रेत के बीच एक नखलिस्तान बन गया. उल्लेखनीय बात यह है कि सरकार ने नहीं बल्कि धार्मिक संगठनों ने इसमें अग्रणी भूमिका निभाई. जब कश्मीरी छात्रों पर हमलों की ख़बर सामने आई, तो चंडीगढ़ में केंद्रीय श्री गुरु संघ सेवा ने सबसे पहले 24 अप्रैल की रात को उन कश्मीरी छात्रों को अपनी ओर से संदेश दिया जो असुरक्षित महसूस कर रहे थे या जिन्हें मदद की ज़रूरत थी या जो अपनी यूनिवर्सिटी कैंपस में सुरक्षा चाह रहे थे. राज्य भर के अन्य सिख समूहों और संस्थानों ने इस उदाहरण का अनुकरण किया, और ऐसे कई संदेश सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए. पंजाब पुलिस और राज्य प्रशासन ने भी ऐसा ही किया.
राजनीतिक टिप्पणीकार राकेश शांतिदूत ने इसे एक ‘स्वत:स्फ़ूर्त प्रतिक्रिया’ बताया, जिसने कश्मीरियों और मुसलमानों को आतंकवादी द्वारा किए गए अपराध के लिए दोषी मानने से इनकार कर दिया और इसके बजाय सिख गुरुओं की मानवीय शिक्षाओं से प्रभावित होकर उत्पीड़न झेल रहे लोगों के साथ ‘पूर्ण एकजुटता’ व्यक्त की गई.
मिंट की रिपोर्ट के अनुसार, एक कोचिंग संस्थान की गणित की शिक्षिका को यह देखकर बहुत दुख हुआ कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद कुछ बच्चे दूसरे बच्चों को परेशान कर रहे थे और उन्हें आतंकवादी कह रहे थे. उन्होंने अपने छात्रों से एकता की आवश्यकता पर बात की और यह भी कहा कि किसी की पहचान के आधार पर उसे दोषी ठहराना अन्याय है.
शिक्षिका ने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, ‘किसी भी आतंकी हमले के बाद – पहलगाम सबसे हालिया हमला है – हमारे जैसे शिक्षकों के लिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण हो जाता है कि बाहरी नफ़रत हमारी कक्षाओं में प्रवेश न करे. एक हिंदू बच्चा और एक मुस्लिम बच्चा एक ही कक्षा में एक दूसरे से नफ़रत किए बिना एक साथ पढ़ने चाहिए, चाहे वे समाचारों में या घर पर जो भी सुनते हों. यह सुनिश्चित करना हमारी ज़िम्मेदारी है कि बच्चे समझें कि सिर्फ़ इसलिए कि आतंकवादी एक ख़ास धर्म के थे और दूसरे धर्म के पर्यटकों को निशाना बनाया – उनके दोस्तों और उनके धर्मों को इसके लिए बिलकुल भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता.

कुछ लोग दूसरों को क्यों निशाना बनाते हैं या मारते हैं इसे समझना आसान नहीं है – यह ऐसा विषय है जिसे पूरी तरह से समझने की परिपक्वता 15 साल के बच्चे में नहीं होती है. एक कक्षा एक पवित्र स्थान है, और यहां किसी भी तरह की नफ़रत के लिए बिलकुल भी जगह नहीं है.’
और आक्रामक, जोशीले, विद्रोही फ़राहदीन ख़ान ने एक कविता साझा की जो सोशल मीडिया पर छा गई. कविता का शीर्षक था ‘I Am Not Your Apology’ . मैं कुछ पंक्तियां उद्धृत करता हूं –
हम.
सांवले रंग वाले, जो मस्जिद में पैदा हुए,
जिनके नाम में हिलाल का चांद है,
जिनकी मांएं ऐसी भाषा में प्रार्थना करती थीं जो प्राइम-टाइम आराम के लिए विदेशी थीं
अचानक, हम सभी को बुलाया गया
राष्ट्रीय विवेक के कठघरे में बुलाया गया
उन गुनाहों का हिसाब देने के लिए जिनकते बारे में हमने सोचा नहीं
और न ही कभी समर्थन किया…
मैं भारतीय हूं. इससे अलग कुछ नहीं.
किसी और के हाशिये पर लिखे शब्द नहीं.
लेकिन पूरी तरह से उग्र रूप और निर्विवाद.
मेरी नसों में भगत सिंह का ख़ून है,
अंबेडकर का पसीना,
हर उस गुमनाम क़ब्र की ख़ामोशी
जिसे राष्ट्रवाद ने दफ़ना दिया और भुला दिया…
क्या आप नहीं देखते?
सवाल यह नहीं है कि हम पर्याप्त भारतीय हैं या नहीं,
बल्कि सवाल यह है कि क्या भारत को उसका मतलब याद है.
तो, अब मेरी बात सुनो-
मैं अपनी हर सांस में भारतीय हूं,
हर क़ब्र पर वापस जाऊंगा,
हर अन्याय के ख़िलाफ़ लडूंगा जब तक कि मेरी हड्डियां राख न हो जाएं.
मैं अपनी आवाज़ और तेज़ करूंगा
ताकि दूसरे अपना डर ख़त्म कर सकें.
मैं अपने नाम के लिए माफ़ी नहीं मांगूंगा,
न ही बंद गले से निकलने वाले शोर के लिए.
यह भूमि मेरी है –
इसलिए नहीं कि मैं ऐसा कहता हूं,
बल्कि इसलिए कि यह मिट्टी में,
पसीने में, संघर्ष में,
उन लोगों की शांत, अविचल निश्चितता में लिखी है,
जो तब भी रुके रहे,
जब राष्ट्र ने उनसे मुंह मोड़ लिया था.
Source: The Wire