पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक़्फ़ संशोधन कानून के खिलाफ़ प्रदर्शन के दौरान भड़की हिंसा के बाद कई परिवारों को जान बचाने के लिए अपना घर छोड़कर भागना पड़ा है. बड़ी संख्या में ऐसे लोगों ने मालदा के हाईस्कूल में बने अस्थायी राहत शिविर में शरण ली है.

 

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले में वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ़ हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान फैली हिंसा के बाद से हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं. इस हिंसा में कम से कम तीन लोगों की जान गई है.

शुक्रवार (11 अप्रैल) की हिंसा के मामले में एफआईआर की संख्या लगातार बढ़ रही है और 200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है.

पुलिस का कहना है कि हालात सामान्य हो रहे हैं, लेकिन जिन लोगों ने हिंसा देखी और भागकर जान बचाई, उनका भरोसा अब भी डगमगाया हुआ है.

एडीजी जावेद शमीम ने भरोसा जताया है कि ‘बहुत जल्द पूरी तरह सामान्य स्थिति बहाल हो जाएगी.’ उन्होंने कहा, ‘पिछले 36 घंटों में कहीं से भी नई हिंसा की कोई खबर नहीं है. अब हम पूरी ऊर्जा और संसाधन शांति बहाल करने में लगा रहे हैं.’

अपने ही देश में शरणार्थी बने हिंसा प्रभावित

इस हिंसा ने 400 से ज्यादा महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को अपने ही देश में शरणार्थी बना दिया है. अधिकतर शरणार्थी परिवार हिंदू हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि हिंसा के बाद रात के अंधेरे में मुश्किल से जान बचाकर भागे लोगों को मालदा जिले के परलालपुर गांव के एक हाईस्कूल में रखा गया है. ज़्यादातर लोग सुत्ती, ढूलियन और समहेरगंज इलाकों के हैं.

हिंसा के डर से अपना घर छोड़ आए इन लोगों को पता नहीं कि वे कभी लौट पाएंगे या नहीं? लौट भी गए तो सुरक्षित रह पाएंगे या नहीं?

सब्जीपाट्टी (ढूलियन) की 40 वर्षीय नमिता मंडल, जिन्होंने अपने 18 साल के बेटे के साथ स्कूल में शरण लिया, कहती हैं, ‘हम कुछ भी साथ नहीं ला पाए. पुलिस और बीएसएफ एक दिन तो लौट जाएंगे, तब हमें कौन बचाएगा?’

समाचार एजेंसी पीटीआई ने स्थानीय अधिकारियों के हवाले से बताया है कि 600 से ज्यादा लोग मालदा में शरण ले चुके हैं. हाईस्कूल के कैंप के अलावा लोग आसपास के गांवों में भी अपने रिश्तेदारों के यहां ठहरे हुए हैं.

पिछले दिनों पश्चिम बंगाल भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने हाई स्कूल में बनाए गए अस्थायी राहत शिविर दौरा किया था. अपने दौरे की तस्वीरें एक्स पर साझा करते हुए मजूमदार ने लिखा है, ‘मुर्शिदाबाद में त्रिणमूल समर्थित जिहादी ताक़तों के बर्बर हमलों के कारण हिंदू बेघर हो गए हैं. अपने ही घरों से भागकर, कई लोग अब मालदा के परलालपुर हाई स्कूल मैदान में शरण लिए हुए हैं. आज मैं इन विस्थापित बंगाली हिंदू परिवारों से मिला. इस संकट की घड़ी में हम पूरी मजबूती से उनके साथ खड़े हैं. निर्दोष बंगाली हिंदुओं पर जिहादी बर्बरता को हम कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे.”

सोमवार (14 अप्रैल) को भवानी भवन में मीडिया को संबोधित करते हुए जावेद शमीम ने कहा, ‘जो लोग हिंसा के डर से अपने घर छोड़ चुके थे, उनमें से लगभग 19 परिवार लौट आए हैं. धीरे-धीरे हम सब मिलकर बाकी लोगों की वापसी सुनिश्चित कर रहे हैं.’

हिंसा कैसे भड़की?

जैसा की पहले बताया गया हिंसा 11 अप्रैल को वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ़ हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान भड़की.

द वायर में छपी जॉयदीप सरकार की रिपोर्ट बताती है विरोध प्रदर्शन उस वक़्त हिंसक हो गया जब मुर्शिदाबाद के जंगीपुर इलाके में कथित रूप से पथराव हुआ. पहले से हिंसा के संकेत मिलने के बावजूद पुलिस तैयार नहीं थी और मामला बिगड़ गया. हज़ारों छात्र और अल्पसंख्यक संगठनों से जुड़े युवा सड़कों पर उतर आए, राष्ट्रीय राजमार्ग-12 को जाम कर दिया और उत्तर व दक्षिण बंगाल के बीच की सड़कें प्रभावित हुईं.

आरोप है कि प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पत्थर फेंके, सरकारी बसों, पुलिस की गाड़ियों और एंबुलेंस को जला दिया, और मॉल्स में लूटपाट की. जंगीपुर से तृणमूल कांग्रेस के सांसद खलीलुर रहमान पर भी हमले की खबरें आईं. स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल करना पड़ा.

हिंसा अगले दिन भी जारी रही, भीड़ ने शनिवार (12 अप्रैल) को सामसरगंज के जाफराबाद में सीपीआई(एम) कार्यकर्ता हरगोबिंद दास और उनके बेटे चंदन दास को उनके घर से खींचकर चाकू से गोदकर हत्या कर दी. बताया जा रहा है कि दोनों हिंसा के खिलाफ खुलकर बोल रहे थे.

इसके अलावा, सुईटी इलाके में 11 अप्रैल को घायल हुए 21 वर्षीय इजाज मोमिन की शनिवार को मौत हो गई.

पुलिस क्यों नहीं रोक पाई हिंसा?

मुर्शिदाबाद पहले से ही एक सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील ज़िला माना जाता है. छह साल पहले यहां नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हिंसा भड़क गई थी. इसी ज़िले में पिछले साल अप्रैल में रामनवमी के दौरान और फिर नवंबर में भी सांप्रदायिक हिंसा हुई थी.

अब हाल की हिंसा ने फिर एक बार साबित किया है कि राज्य में ध्रुवीकरण कितना गहरा हो चुका हैं. 11 अप्रैल को शुरू हुई हिंसा को जब पश्चिम बंगाल की पुलिस 12 अप्रैल को भी पूरी तरह नहीं रोक पाई तो अंततः कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्देश पर 12 अप्रैल की रात से ज़िले के कई इलाकों में केंद्रीय बलों की तैनाती कर दी गई.

13 अप्रैल की सुबह से केंद्रीय और राज्य पुलिस ने ज़िले के संवेदनशील इलाकों में फ्लैग मार्च शुरू किया. प्रशासन अब सभी पक्षों को साथ लेकर शांति वार्ता कराने की भी योजना बना रहा है.

लेकिन सवाल उठता है कि एक दिन से भी अधिक समय तक कानून-व्यवस्था लचर क्यों रही, प्रशासन इस तरह की अशांति को पहले से क्यों नहीं भांप सकी? क्या खुफिया जानकारी का अभाव था?

पत्रकारों ने जब इस बारे में शमीम से पूछा तो उनका जवाब था, ‘पिछले दिनों हमने रामनवमी, ईद जैसे बड़े त्योहार देखे, जो शांतिपूर्ण ढंग से मनीं. हमारे पास इन सभी आयोजनों की खुफिया जानकारी होती है और वरिष्ठ अधिकारी मौके पर मौजूद भी थे. लेकिन इस बार भीड़ की संख्या बहुत ज़्यादा थी.’

ममता बनर्जी के नेतृत्व पर उठ रहे हैं सवाल?

इस हिंसा ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं क्योंकि देश के कई हिस्सों में वक़्फ़ संशोधन के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन हुए हैं, लेकिन कहीं भी स्थिति मुर्शिदाबाद जितनी हिंसक नहीं हुई. हिंसा के बाद सीएम ने सोशल मीडिया पर एक बयान जारी कर लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की और भरोसा दिलाया कि वक्फ एक्ट को राज्य में लागू नहीं किया जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘धर्म के नाम पर अनुचित व्यवहार न करें. हम इस कानून का समर्थन नहीं करते. यह कानून हमारे राज्य में लागू नहीं होगा. फिर दंगा किसलिए? और याद रखिए, दंगा भड़काने वालों पर कानूनी कार्रवाई होगी.’

ममता सरकार में मंत्री और जमीयत उलेमा-ए-हिंद की बंगाल इकाई के प्रमुख सिद्दीकुल्लाह चौधरी भी इस आंदोलन के एक नेता हैं. चौधरी पर पहले भी भड़काऊ बयान देने के आरोप लगते रहे हैं. लेकिन हिंसा के बाद उन्होंने कहा है, ‘जो कुछ हुआ, उससे बंगाल को नुकसान हुआ है. हमें देश की धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करनी है. कुछ समूह माहौल बिगाड़ रहे हैं. हमने मुस्लिम समुदाय से शांति बनाए रखने की अपील की है. रविवार से मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर ऐलान शुरू हुआ.’

स्थानीय विपक्षी नेताओं का कहना है कि ऐसे दंगे अचानक नहीं होते, बल्कि पहले से योजना बनती है. कांग्रेस के पूर्व सांसद और मुर्शिदाबाद निवासी अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ‘मैंने सुना है कि रैली की तैयारी कई दिन से चल रही थी, फिर भी पुलिस कहती है उन्हें जानकारी नहीं थी. तीन लोग मारे गए! मुझे रिपोर्ट मिली है कि स्थानीय तृणमूल कार्यकर्ता भी भीड़ में शामिल थे, जो लूटपाट कर रहे थे.’

जॉयदीप सरकार लिखते हैं, ‘यह हिंसा बंगाल में पिछले एक दशक में गहराते धार्मिक तनावों की ओर इशारा करती है. रामनवमी की रैलियां, हनुमान मंदिर और ‘जय श्री राम’ के नारों वाली झांकियों का टकराव अब कट्टर इस्लामी जलसों और शरीयत के पैरोकारों से हो रहा है, जिससे सूफी परंपरा कमजोर पड़ रही है.’

 

Source: The Wire