हाल ही में पटना में गांधी जी द्वारा गाए एक लोकप्रिय भजन पर विवाद हो गया। अटल बिहारी वाजपेयी के सौंवें जन्मदिन पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। लोक गायिका देवी द्वारा गांधी जी का प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजा राम’ का गायन किया गया। वहां हिंदुत्ववादी श्रोताओं को इस भजन की एक लाइन पर आपत्ति थी। इसको लेकर उन्होंने हंगामा कर दिया। वह लाइन थी ‘ ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान।’ श्रोताओं का कहना था कि श्री लक्ष्मणाचार्य द्वारा लिखित मूल भजन में यह लाइन नहीं है।
गांधी जी ने मूल भजन में एक लाइन को हटा कर ये लाइन जोड़ी थी। मूल भजन में लाइन थी – ‘सुंदर विग्रह मेघश्याम, गंगा तुलसी शालिग्राम।’ इस भजन में अल्लाह शब्द नहीं आता। हो सकता है गांधी जी ने सांप्रदायिक सद्भाव के लिए यह लाईन जोड़ी हो। पर इस पर हंगामा करने जैसा कुछ नहीं लगता पर वास्तविकता यही है कि हंगामा हुआ। लोकगायिका को इस भजन के लिए माफी मांगनी पड़ी।
कहने को तो हिंदू धर्म सहिष्णु माना जाता है पर आज इस धर्म के ही कुछ लोग असहिष्णु हो रहे हैं। उन्हें इस भजन में ‘अल्लाह’ शब्द मंजूर नहीं है। इसे कुछ लोग उनकी जागरूकता कह रहे हैं। पर यह जागरूकता नहीं बल्कि असहनशीलता है। सांप्रदायिक सद्भाव के खिलाफ है। हिंदू मुस्लिम एकता के विरूद्ध है। और सबसे बड़ी बात कि यह हमारी ‘विविधता में एकता’ वाली संस्कृति के विरूद्ध है।
हमारा देश किसी एक धर्म-संप्रदाय का नहीं है। यहां हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई जैन बौद्ध आदि अनेक धर्मों के लोग रहते हैं। यहां भाषा की भिन्नता है, खान-पान की भिन्नता है, रहन-सहन की भिन्नता है। हमारा देश विभिन्न संस्कृतियों को समाहित करने वाला देश है। यही इसकी खूबसूरती भी है जैसे एक गुलशन में विभिन्न रंगों के रंग-बिरंगे फूल खिले हों।
हमारा संविधान यही कहता है कि हमें इस भिन्नता और विवधिता का आदर करना चाहिए। एक धर्म के लोगों को दूसरे धर्मों के प्रति सम्मान भाव रखना चाहिए।
हमारे देश की संस्कृति विविध रंगी है। यहां दिवाली, होली, ईद, क्रिसमस, बैसाखी आदि अनेक त्योहार मनाए जाते हैं जो हमारी विविधता को दर्शाते हैं। अपने-अपने धर्मों के अनुसार लोग पूजा-प्रार्थना करने मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे और बौद्ध विहार जाते हैं। पहनावे और शादी विवाह में विविधता है। रीति-रिवाजों में भिन्नता है। सब कुछ अलग-अलग है और सब साथ-साथ भी है। यही हमारी गंगा-जमुनी तहजीब है। यहां हिंदू अजमेर शरीफ व अन्य दरगाहों में मन्नत मांगने जाते हैं। चादर चढ़ाते हैं। वहीं मुस्लिम भी हिंदुओं के पूजा स्थलों पर दर्शनार्थ जाते हैं।
आजकल ‘एक’ शब्द पर विशेष जोर दिया जा रहा है। पर यह कहीं सकारात्मक है तो कहीं नकारात्मक। जैसे ‘एक देश एक राशन’ (One Nation One Ration) ठीक है। यहां देश के नागरिक किसी भी राज्य में जाकर राशन ले सकते हैं। इसी प्रकार ‘एक देश एक शिक्षा’ (One Nation One Education) हो जाए तो अच्छा है। लेकिन अभी यह हो नहीं रहा है। नेता हो या चौकीदार की संतान, सबको शिक्षा एक समान’ हो तो अच्छा है। पर ‘एक देश एक चुनाव’ (One Nation One Election) सही नहीं है। इससे जनता की शक्तियां कमजोर होंगीं।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस देश की सभ्यता और संस्कृति के निर्माण में सभी धर्मों और जातियों के लोगों का योगदान है। गौतम बुद्ध के बुद्ध विहार हैं, सम्राट अशोक बौद्ध के अशोक स्तंभ हैं, शेरशाह सूरी का जीटी रोड है, शाहजहां का ताजमहल, लाल किला, जामा मस्जिद, हुमायूं का मकबरा, कुतुबुद्दीन एबक की कुतुब मीनार, अंग्रेजों द्वाारा बनवाई गईं रेलवे लाइनें, पुराना संसद भवन, विक्टोरिया मेमोरियल हैं।
त्याग और बलिदान का इतिहास उठाकर देखें तो पन्ना धाय का त्याग है, रानी कर्मवती की हुमायूं को राखी है, सन् अठारह सौ सत्तावन में प्रथम स्वतंता संग्राम में मंगल पांडे हैं तो मातादीन भंगी भी हैं, रानी लक्ष्मीबाई हैं तो झलकारी बाई भी हैं। सन् 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में हिंदुओं के साथ मुसलमानों की शहादतें भी हैं। उदाहरण के लिए अब्दुल हमीद का नाम लिया जा सकता है। अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई के लिए भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त हैं, खुदीराम बोस है, सुभाष चंद्र बोस हैं, तो ऊधम सिंह और अशफाकउल्ला खान भी है। ये तो बानगी के लिए कुछ नाम हैं वरना हकीकत में तो सभी धर्मों और जातियों के लोगों की संख्या हजारों-लाखों में है। इसलिए मरहूम मशहूर शायर राहत इंदौरी ठीक ही कहते हैं कि ‘सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में, किसी के बाप का हिंदोस्तान थोड़े है।’
मशहूर शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, मशहूर तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन ने हमारी भारतीय साझा संस्कृति को समृद्ध किया है। सिने जगत में मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार (मुहम्मद यूसूफ खान), गायकी में मुहम्मद रफी साहब का महत्वपूर्ण योगदान है। अभी भी संगीतकार ए.आर. रहमान जैसे अन्य अनेक मुसलमान हमारी संस्कृति को समृद्ध करने में अपना अहम योगदान दे रह हैं। सारांश यही कि हमारी गौरवशाली भारतीय सभ्यता संस्कृति में सभी जातियों और धर्मों का योगदान है। सभी धर्मों और जातियों के समावेश और सहयोग के बिना देश की इस समृद्ध साझा संस्कृति विरासत की कल्पना नहीं की जा सकती।
अफसाेस कि इस खूबसूरत विरासत को कुछ लोग खंडित करना चाहते हैं। सारा श्रेय किसी एक धर्म विशेष को देना चाहते हैं। निश्चित तौर पर यह हमारी सांस्कृतिक विरासत के लिए घातक है। हमारे लोकतंत्र और संविधान का अनादर है। जरूरी है कि हम अपनी संकीर्ण मानसिकता में बदलाव लाएं। सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा दें। जाति और धर्म से ऊपर उठ कर मानवता को अपनाएं। अपनी मानसिकता का दायरा बढ़ाएं। संविधान की मूल भावना को आत्मसात् करें। समता, समानता, सम्मान, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व को बढ़ावा दें। नकारात्मकता की जगह सकारात्मकता को अपनाएं। घृणा की जगह प्रेम को स्थान दें। अपनी विविधता में एकता वाली संस्कृति पर गर्व करें। हमारा आपका नैतिक दायित्व है कि हम बेहतरीन भारत के निर्माण में अपना यथायोग्य योगदान दें।
Source: News Click