पटना: अखिल भारतीय शांति व एकजुटता संगठन ( ऐप्सो) की पटना इकाई की ओर से मैत्री शांति भवन में जवाहर लाल नेहरू की 135 वीं जयंती मनाई गई। इस मौके पर एक विमर्श का आयोजन किया गया। विषय था ” नेहरू की विरासत और आज का भारत “।
इस विमर्श में पटना शहर के बुद्धिजीवी, साहित्यकार , सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे।
‘ऐप्सो’ के राष्ट्रीय परिषद सदस्य जयप्रकाश ने विषय प्रवेश करते हुए कहा “आजादी के बाद ही भारत ने अपने देश में प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक वोट का अधिकार दे दिया। यह कोई सामान्य उपलब्धि नहीं है। इसमें सबसे बड़ा योगदान नेहरू का था। आज दक्षिणपंथी लोगों को सबसे अधिक दिक्कत पंडित नेहरू से हो रही है। सबसे अधिक बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। ऐसे लोगों को सबसे अधिक खतरा नेहरू से है। हिंदी सिनेमा का स्वर्ण युग नेहरू का काल ही माना जाता था। क्यूबा में जब क्रांति हुई तो संयुक्त राष्ट्र में फिदेल कास्त्रों को कमरा नहीं दिया जा रहा था। तब नेहरू के हस्तक्षेप से उन्हें जगह मिली। इसी कारण क्यूबा में नेहरू को बहुत सम्मान था। ”
आधुनिक इतिहास के अध्येता रौशन के अनुसार ” नेहरू जी जिस भारत का निर्माण कर रहे थे उनको किस तरह भारत मिला था बनाने के लिए ? यह हमें सोचना है। आज हर मंच से विलाप किया जाता है कि सभी समस्याओं का दोष नेहरू जी पर है। 1947 से 64 के दौरान उन्होंने क्या दिया। नेहरू इंग्लैंड से 1912 में भारत आते हैं। देश में राष्ट्रवादी खेमे के बीच नरम और गरम दल के बीच संघर्ष का समय था। नेहरू का राजनीतिक कैरियर पहले शुरू हो गया था। नेहरू भारत में विविधता की अवधारणा को सामने लाए। ब्रुसेल्स में वे विश्व राजनीति में रुचि लेने लगते हैं। पूर्ण स्वतंत्रता का लक्ष्य नेहरू के कारण दिया जाता है। 1929 के दौरान फैजपुर और लखनऊ में समाजवाद के माध्यम से कैसे देश को आगे लाने जाना है इस संबंध में अपनी परिकल्पना रखते हैं। वे समाजवादी नजरिए से आगे बढ़ने की कोशिश करते है। सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें प्लानिंग कमीशन का चेयरमैन बनाया। दंगों और हिंसा के दौरान उन्होंने काफी कुछ काम किया। पूरे भारत में आदिवासियों के अधिकारों को बचाने के लिए काम किया। भाखड़ा नांगल जैसे परियोजनाओं को नए भारत का मंदिर बताया था।
नेहरू ने भारतीय लोगों में साइंटिफिक टेंपर की बात के थी। नेहरू के समय में संविधान के पहले संशोधन में यह कहा गया। दरभंगा महाराजा की जमीन का अधिग्रहण किया गया था। नवें शिड्युअल को लेकर उसे कोर्ट के दायरे से बाहर कर दिया था। नेहरू जी ने मिश्रित व्यवस्था को अपनाया था कि राज्य के हस्तक्षेप के बिना पूंजीवाद को खुली छूट नहीं दी जा सकती है। रैशनल सोच को बढ़ावा देने की बात की थी। उपनिवेशवाद से मुक्त देशों को नेतृत्व प्रदान किया था। गुट निरपेक्ष नीति की वकालत की थी। आज इन सब पर चौतरफा हमला किया जा रहा है। आज सरकार की आलोचना करने पर देशद्रोही करारा दिया जाता है। ”
प्राथमिक शिक्षक संघ के नेता भोला पासवान ने अपनी राय प्रकट करते हुए कहा “आजादी के आंदोलन के दौरान कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस के साथ मिलकर काम कर रही थी। नेहरू जी की सोच सबों को साथ लेकर चलने वाली सोच थी। आज वर्तमान प्रधानमंत्री, नेहरू परिवार को गाली देते हैं। कांग्रेस के मुख्यमंत्री कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं से राय विचार किया करते थे।”
पटना जिला ग्रामीण कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष आशुतोष कुमार के अनुसार ” नेहरू पूरे देश के सबसे बड़े नेताओं में से थे। नेहरू ने कहा था कि उनके दाह संस्कार के बाद बची राख को इलाहाबाद के संगम में बहा दिया जाए। नेहरू पर लांछन वो लगा रहे हैं जिनकी अपनी डिग्री का खुद पता नहीं है। सबों को मिलजुल कर शिक्षा पर जोर देना चाहिए। शिक्षक को डंडा मारकर काम करा ले यह अच्छी बात नहीं है। शैक्षणिक संस्थाओं को समाप्त किया जा रहा है। सामान्य वर्ग के लोग शिक्षा न प्राप्त कर लें। नेहरू जी का पिता का पुत्री के नाम पत्र नाम हमारे कोर्स में शामिल था जिससे हमने काफी कुछ सीखा। उनकी परिकल्पना जन-जन तक जाए यही हमारी कामना है। जो लोग मगध और पटना विश्विद्यालय से पढ़े हैं उनको भी नेहरू के बारे ठीक से पता नहीं है। ऐसे लोग भी नेहरू जी की आलोचना कर बैठते हैं। पत्रकारों को देखता हूं कि नेहरू के बारे में जहर उगलते हैं। बौद्धिक समाज को जाग्रत करने की जरूरत है। ”
‘ऐप्सो’ के पटना जिला से जुड़े कांग्रेस नेता मंजीत कुमार साहू के अनुसार ” कांग्रेस पार्टी के अंदर जो सबसे बड़े आइकॉन हैं नेहरू, उनके खिलाफ सबसे ज्यादा दुष्प्रचार किया जा रहा है। आज आवश्यकता है कि हम नेहरू के बारे में ठीक से जानें भारत के बनाने में जितना बड़ा योगदान नेहरू का है वह किसी दूसरे नेता का नहीं है। ”
पटना साइंस कॉलेज में अंग्रेजी के सहायक प्राध्यापक शोभन चक्रवर्ती ने अपने संबोधन में कहा ” भारत के इतिहास का यह अहम हिस्सा रहा है। इतिहास एकरेखीय नहीं रहा है। संबंधों की जटिलता को समझे बिना हम चीजों को ठीक से नहीं समझ सकते। धर्म को उत्पात और उन्माद के स्तर तक पहुंचा देना आज यही भारत की राजनीति में चल रहा है। नेहरू का विचार था कि हिंदुत्ववादी सोच के ऊपर फासिस्ट शक्ति राज कर रही है। सभी संस्थाओं पर हुकूमत करना चाह रही है इससे लिबरल स्पेस खत्म होता जा रहा है। ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में नेहरू जी कहते हैं कि हमारा अतीत बहुविविधता से भरा था। ब्रिटिश इतिहासकार कहा करते थे कि भारतीय लोगों को इतिहास लिखना नहीं आता था। नेहरू कहा करते थे कि भारतीय संस्कृति हिंदू संस्कृति नहीं है। उदारता का वास यहां हमेशा से रहा है। नेहरू कहा करते थे कि जब मैं पूछता हूं कि भारत माता की जय का क्या मतलब है? तब लोग चकित हो जाते हैं। मैं उन्हें कहता हूं कि भारत लाखों लोगों से बना है। मैं कहता हूं कि आप उन सभी चीजों के हिस्सा हैं। प्रकृति और मानव की संस्कृति की बातें होती रहती हैं। आजकल जितनी नीतियां सरकार द्वारा बनाई जा रही है वे सब जनविरोधी हैं।”
ऐप्सो के राज्य महासचिव अनीश अंकुर ने कहा “जवाहर नाल नेहरू भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं में पहले व्यक्ति थे जिन्होंने औपनिवेशिक शासन द्वारा प्रोत्साहित सम्प्रदायिकता शक्तियों के खतरे को पहचान लिया था इन्हीं वजहों से वे हमेशा से फिरकापरस्त शक्तियों के निशाने पर रहे। जब गांधी जी की हत्या हुई तब देश में उन्माद का माहौल था। नेहरू जी ने उस सांप्रदायिक उन्माद का मुकाबला करने के लिए पूरे देश में चालीस हजार किमी की यात्रा की। साढ़े तीन करोड़ लोगों को खुद सीधे सीधे संबोधित किया। तब जाकर इन्हें पीछे धकेला जा सका। 1952 के पहले चुनाव को उन्होंने रिफ्रेंडम में बदल डाला कि भारत धर्मनिरपेक्ष रहेगा या फिर हिंदू राष्ट्र बनेगा लेकिन भारत की जनता ने बड़े पैमाने पर नेहरू को समर्थन दिया। हालांकि नेहरू को लगता था कि इन सांप्रदायिक शक्तियों को औपनिवेशिक शासन ने खड़ा किया है। जब एक बार अंग्रेज चले जायेंगे तो फिरका परस्त शक्तियां खुद ब खुद समाप्त हो जाएंगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। प्रधानमंत्री रहते हुए वे मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखा करते थे और सांप्रदायिक शक्तियों के प्रति सावधान रहने की बता किया करते थे। आज नेहरू की इसी विरासत को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया जा रहा है। नेहरू तीसरी दुनिया के अंदर स्वाधीनता आंदोलन पहले नेताओं में से थे जिन्होंने मार्क्सवाद और लेनिनवाद की बात करना शुरू किया। उन्होंने कहा कि मार्क्सवाद के अध्ययन ने मेरे मन के अंधेरे कोनों को रौशनी डाली है। 1936 में लखनऊ अधिवेशन के दौरान भारत का भविष्य समाजवाद बताया था। 1933 में नेहरू ने कहा था दुनिया में एक और साम्यवाद है तो दूसरी ओर फासीवाद है। इन दोनों की लड़ाई में मैं साम्यवाद के पक्ष में रहूंगा। क्योंकि इससे इतिहास को देखने, समझने की दृष्टि मिलती है। नेहरू सोवियत संघ से प्रभावित थे। 1927, 1955 और 1961 में उन्होंने वहां के यात्रा की थी। नेहरू के बारे में बहुत झूठ और भ्रम फैलाया जा रहा है। ”
फारवर्ड ब्लॉक ( क्रांतिकारी) के प्रतिनिधि बालगोविंद सिंह ने कहा ” आजादी के आंदोलन के दौरान कई धाराएं काम कर रही थी। उसमें नेहरू, सुभाष, भगत सिंह, क्रांतिकारी आंदोलन की ओर थे। उनमें मार्क्सवादी सोच के भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसे लोग थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जो असली धारा थी उसे अंग्रेजों ने विकसित नहीं होने दिया। नेहरू, जिन्ना, पटेल को लेकर रस्साकशी चलती रही। नेहरू विद्वान थे। विश्व की स्थिति का ठोस अध्ययन किया था। वे वैज्ञानिक सोच पर काम कर रहे थे। विश्व इतिहास के झलक में इसे उन्होंने अभिव्यक्त किया था। रूसी क्रांति से वे प्रभावित थे। ”
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कुमार सर्वेश ने कहा ” नेहरू की विरासत नेहरू के समय से ही भारत में खतरे में है। नेहरू की विरासत कांग्रेसी, समाजवादी और कम्युनिस्ट लोगों पर निर्भर नहीं है। नेहरू की विचारधारा दरअसल राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत है। नेहरू की विरासत को समझने के लिए भारतीयता को समझना होगा। आज आइडिया ऑफ इंडिया खतरे में है जिसे बनाने की जिम्मेवारी नेहरू पर आ गई थी। नेहरू को संविधान सभा के अंदर अलग थलग करने का काम किया गया। कांग्रेस के अंदर का दक्षिणपंथी खेमा उन्हें अलग करने की कोशिश कर रहा था। ”
कार्यक्रम का संचालन जयप्रकाश ने किया।
‘ऐप्सो’ द्वारा आयोजित इस सभा में प्रमुख लोगों में थे युवा कवि चंद्रबिंद सिंह, आनंद कुमार, राज आनंद, जितेंद्र कुमार, प्रशांत विप्लवी , अभिषेक विद्रोही, कुलभूषण गोपाल, कपिलदेव वर्मा, गोपाल शर्मा, देवरत्न प्रसाद, उदयन राय और अनिल रजक आदि।
Source: News Click