सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के भीतर वृद्धि का के-शेप पैटर्न जिसकी तरफ आलोचकों ने इशारा किया है उससे सरकारी अधिकारी और उनके समर्थक नाराज़ हो गए हैं। क्योंकि यह पैटर्न न केवल बढ़ती असमानता की तरफ इशारा करता है बल्कि जीडीपी और इसकी वृद्धि का बेहतर अनुमान भी लगाता है।

भारी सबूतों के बावजूदसरकार के समर्थक भारत की जीडीपी वृद्धि में केशेप पैटर्नको नकारते रहे हैं। अरुण कुमार सवाल उठाते हैं कि असमानता के अन्य रूपों – जैसे कि लिंगक्षेत्रीयकृषि और गैरकृषिपूंजी और श्रम और जाति असमानता – से क्या इनकार किया जा सकता है।

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपीके भीतर वृद्धि का केशेप पैटर्न जिसकी तरफ आलोचकों ने इशारा कियाने सरकारी अधिकारियों और उसके समर्थकों को नाराज कर दिया है। क्योंकि इसका मतलब न केवल बढ़ती असमानता है बल्कि जीडीपी और इसकी वृद्धि का बेहतर अनुमान लगाना भी है।

समर्थकआयकर रिटर्नश्रम बल की भागीदारीखपत आदि के आंकड़ों के आधार पर द्विभाजित केशेप के विकास पैटर्न की किसी भी संभावना से इनकार करते हैं। ऐसा करने मेंवे एक पद्धतिगत त्रुटि करते हैं।

असमानता के प्रकार

किसी भी अर्थव्यवस्था में तीन अलगअलग प्रकार की असमानताएं होती हैं– जिसका अंदाज़ा धनआय और उपभोग से लगाया जाता है। सरकार समर्थक इनका आपसी घालमेल कर देते हैं। उनके बीच एक पदानुक्रम है जिसमें धन असमानता का आय असमानता से अधिक और फिर उपभोग असमानता का अधिक होना है।

इस रैंकिंग का कारण यह है कि हर किसी को ज़िंदा रहने के लिए बुनियादी न्यूनतम उपभोग करना पड़ता है। गरीब अपनी लगभग पूरी आय का उपभोग कर लेते हैं और मुश्किल से बचत कर पाते हैं। वे अक्सर उपभोग के लिए उधार लेते हैं ताकि उनकी खपत उनकी आय से अधिक हो। उच्च आय स्तर वाले लोग बचत करते हैं। आय सीमा जितनी अधिक होगीबचत उतनी ही अधिक होगी।ज़िंदा रहने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को न्यूनतम बुनियादी उपभोग करना पड़ता है,

गरीब अपनी लगभग पूरी आय का उपभोग कर लेते हैं और मुश्किल से बचत कर पाते हैं।

इसलिए जैसेजैसे कोई भी ऊंचे से ऊंचे आय वर्ग में जाता है, उपभोग आय का छोटा और छोटा हिस्सा बन जाता है। अतःउपभोग और आय का अनुपात आय के साथ घटता जाता है। इसीलिए आय असमानता उपभोग असमानता से अधिक होती है।

इसके अलावाबचत का निवेश किया जाता है और यह किसी के धन का हिस्सा बन जाता है। जितनी अधिक आयउतनी अधिक बचत और उतना ही धन संचय। गरीबों के पास लगभग कोई बचत नहीं होती है और वे कर्ज में डूबे हो सकते हैं यानी उनके पास नकारात्मक संपत्ति है।

इस प्रकारधन वक्र आय वक्र से भी अधिक तेजी से बढ़ता है। अमीरों की संपत्ति में अतिरिक्त आय बढ़ती है और इससे असमानता बढ़ती है।

असमानता पर बहस में इन सैद्धांतिक पहलुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। आधिकारिक लाइन के समर्थकों के तर्कों का अवलोकन इन तीन प्रकार की असमानताओं का मिश्रण दिखाता है। वास्तविक उपलब्ध डेटा से क्या पता चलता है?

बढ़ती असमानता के अंतर्निहित कारक

सबसे पहलेजीडीपी डेटा में भारी त्रुटियां हैं क्योंकि यह स्वतंत्र रूप से गैरकृषि असंगठित क्षेत्र के योगदान का हिसाब नहीं देता है। जीडीपी के इस घटक में नोटबंदी के बाद से गिरावट आ रही है जब इस पर भारी मार पड़ी थी और मुश्किल से ही इस झटके से यह उबर पाया था।

हालांकिइस गिरावट को आधिकारिक तौर पर मापा नहीं गया है क्योंकि यह बढ़ते संगठित क्षेत्र द्वारा अनुमानित है। इससे सकल घरेलू उत्पाद और वंचित तबकों की आय में ऊपर की ओर झुकाव होता है जिसके परिणामस्वरूप यह गलत दावा सामने आता है कि असमानता कम हो रही है।

दूसरासंगठित क्षेत्र में वृद्धि असंगठित क्षेत्र की कीमत पर होती है और आलोचक इसी ओर इशारा करते हैं। यह सब विभिन्न उद्योगों में दिखाई देता है।

उदाहरण के लिएकॉमर्स (संगठित क्षेत्र मेंअसंगठित क्षेत्र के व्यापार की कीमत पर बढ़ रहा है। इसी तरह की रिपोर्ट अन्य उद्योगों जैसे फास्टमूविंग उपभोक्ता सामान (एफएमसीजी), चमड़े के सामानलगेज़ और प्रेशर कुकर से भी उपलब्ध होती हैं।

कॉमर्स (संगठित क्षेत्र मेंअसंगठित क्षेत्र के व्यापार की कीमत पर बढ़ रहा है। इसी

तरह की रिपोर्ट अन्य उद्योगों जैसे फास्टमूविंग उपभोक्ता सामान (एफएमसीजी),

चमड़े के सामानलगेज़ और प्रेशर कुकर से भी उपलब्ध होती हैं।

यह उन अधिकांश उद्योगों पर लागू होता है जहां किसी वस्तु का उत्पादन असंगठित और संगठित दोनों क्षेत्रों में किया जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआईके आंकड़ों से पता चलता है कि जब अर्थव्यवस्था ज्यादातर स्थिर रहती है तो कॉर्पोरेट क्षेत्र की बिक्री में तेजी से वृद्धि होती है।

इसका मतलब यह है कि असंगठित क्षेत्र की कीमत पर इस क्षेत्र की वृद्धि हो रही है।

तीसराकरों का भुगतान अधिकतर संगठित क्षेत्र और संपन्न लोगों द्वारा किया जाता है। असंगठित क्षेत्र को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटीसे छूट हासिल है। 50 लाख रुपए से कम के टर्नओवर के लिए कोई जीएसटी नहीं है और 1.5 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर के लिए कंपोजीशन स्कीम के तहत कर की दर प्रतिशत है। पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री दिवंगत अरुण जेटली कहा करते थे, 5 प्रतिशत इकाइयां 95 प्रतिशत जीएसटी का भुगतान करती हैं।

निगम कर का भुगतान अधिकतर बड़ी कंपनियाँ करती हैं। आयकर का भुगतान अधिकतर अमीर लोग करते हैं। व्यक्तियों द्वारा दाखिल किए गए लगभग आठ करोड़ कर रिटर्न में से, 141 करोड़ की आबादी में से केवल 1.5 करोड़ द्वारा प्रभावी कर का भुगतान किया जाता है। यानी 1.1 फीसदी आबादी ही टैक्स का भुगतान करती है।

इसलिएभले ही आयकर डेटा असमानता में कमी दिखाता हैवह केवल रिटर्न दाखिल करने वालों से लिया जाता हैजो आबादी का 5.5 प्रतिशत हैं। यह हमें पूरी आबादी में असमानता के बारे में नहीं बता सकता है। उदाहरण के लिएश्रम पोर्टल पर 30 करोड़ असंगठित क्षेत्र के श्रमिक पंजीकृत हैं। उनमें से लगभग 94 प्रतिशत की आय प्रति माह 10,000 रुपए से कम हैजो कर योग्य सीमा से काफी कम है।

जीएसटीनिगम कर और आयकर की उच्च कर में उछाल केवल संगठित क्षेत्र की तीव्र वृद्धि को दर्शाती है। एक स्थिर अर्थव्यवस्था मेंयह वृद्धि असंगठित क्षेत्र की कीमत पर होती है और इससे असमानता बढ़ती है।इसके अलावाअमीर लोग ही अपनी आय छिपाकर काला धन पैदा करते हैं। दूसरे शब्दों मेंउनकी आय वास्तव में अधिक है इसलिए असमानता अधिक है।

अमीर लोग ही अपनी आय छिपाकर काला धन पैदा करते हैं। दूसरे शब्दों मेंउनकी

आय वास्तव में अधिक है इसलिए असमानता अधिक है।

चौथामुद्रास्फीति के कारण आय तो बढ़ती है लेकिन मुद्रास्फीति की दर अधिक होने पर उनका वास्तविक मूल्य गिर सकता है। इसके अलावाजैसेजैसे लोग अधिक कमाते हैंवे उच्च कर स्लैब में चले जाते हैं और अधिक कर का भुगतान करते हैं। इसे ब्रैकेट क्रीप‘ कहा जाता है।

इसलिएकर भुगतान में वृद्धि का मतलब लोगों की वास्तविक आय में वृद्धि नहीं है। इसीलिए जिस स्तर पर व्यक्ति कर देना शुरू करते हैं उसे ₹2.5 लाख से बढ़ाकर ₹लाख और अब ₹7.5 लाख कर दिया गया है।

पांचवांसंगठित क्षेत्र में एफएमसीजी का उत्पादन तो बढ़ा हैलेकिन उपभोग नहीं बढ़ा है। छोटी इकाइयों की कीमत पर बड़ी एफएमसीजी कंपनियों की बाजार हिस्सेदारी बढ़ी है।

इसलिएसंगठित क्षेत्र की इकाइयाँ अधिक उत्पादन कर रही हैं और क्योंकि यह असंगठित क्षेत्र की इकाइयों की कीमत पर हो रहा हैइसलिए कुल उत्पादन नहीं बढ़ रहा है। चूंकि संपन्न लोग अधिक उपभोग कर रहे हैंविशेष रूप से प्रीमियम उत्पादों कायह निम्न आय वर्ग के लोग हैं जिन्होंने उपभोग में कटौती की है। इस प्रकारएफएमसीजी खपत असमानताओं में गिरावट का संकेत नहीं है।

छठाआवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएसडेटा ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार में वृद्धि दर्शाता है। यह अधिकतर संकटग्रस्त रोजगार है। गरीब इतने गरीब हैं कि वे काम न करने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं।

इसलिए वे बाकी बचे काम जैसे रिक्शा चलानासिर पर बोझ उठाने का काम करना और सड़क के किनारे मूंगफली बेचना जैसे काम करते हैं। यह स्वरोज़गार है न कि व्यवस्था जनित कार्य। इससे आय कम होती है और असमानताएं बढ़ती हैं।

इसके अलावानोटबंदी और लॉकडाउन के दौरान कई श्रमिकों का काम छूट गया और उन्हें पहले की कमाई से कम मजदूरी पर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 (मनरेगापर निर्भर रहना पड़ा। इससे फिर से असमानताएं बढ़ती हैं।

सातवांसरकार द्वारा गरीबों को मुफ्त राशन या गैस देने से खपत तो बढ़ती है लेकिन आय नहीं। इसलिए उपभोग बढ़ने पर भी आय आधारित गरीबी बनी रहती है। 81 करोड़ भारतीयों को किलो अनाज मुफ्त देना अपने आप में इस बात की स्वीकारोक्ति है कि आय आधारित गरीबी बनी हुई है।

अंत मेंजबकि मुद्रा वेतन मुद्रास्फीति यानि महंगाई के कारण बढ़ी हैवे ज्यादातर मुद्रास्फीति से पीछे हैं जिससे वास्तविक आय में गिरावट आई है। तोराष्ट्रीय आय में वृद्धि का लाभ किसे मिल रहा है– व्यवसायों को?

आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि कॉर्पोरेट मुनाफा बढ़ गया है। इसीलिए शेयर बाजार नई ऊंचाइयों पर पहुंच गए हैं। इसलिए आय सीढ़ी के ऊपरी पायदान पर आय बढ़ी है और असमानता भी बढ़ी है। इसे शेयरों के मूल्यांकन में वृद्धि के कारण अमीरों की संपत्ति में वृद्धि के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए।

सरकार द्वारा गरीबों को मुफ्त राशन या गैस देने से खपत तो बढ़ती है लेकिन आय

नहीं। 81 करोड़ भारतीयों को किलो अनाज मुफ्त देना अपने आप में इस बात की

स्वीकारोक्ति है कि लोगों की आय कम है इसलिए गरीबी बनी हुई है।

निष्कर्ष

सरकार के समर्थकों द्वारा असमानता में गिरावट और इसलिएके शेप केविकास पैटर्न की अनुपस्थिति को दिखाने के लिए इस्तेमाल किए गए सभी तर्कों का जब सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया जाता है तो यह साबित होता है कि वास्तव में विकास का के-शेप का पैटर्न मौजूद है।

उनका तर्क असंगठित क्षेत्र की गिरावट और उसकी कीमत पर संगठित क्षेत्र की वृद्धि को नकारने पर आधारित है। चूँकि डेटा लगभग पूरी तरह से संगठित क्षेत्र पर आधारित हैयह विकास के केशेप के पैटर्न को छुपाता है।

असमानता के अन्य रूप भी हैं– जैसे कि लिंगक्षेत्रीयकृषि और गैरकृषि के बीचपूंजी और श्रम और जाति असमानता।

केशेप के अलावा अधिकारी वर्ग और क्याक्या नकारेगा?

Source: News Click