भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस परियोजना के लिए महाराष्ट्र से गुजरने वाले हाईवे के एक हिस्से के लिए 2,242 हेक्टेयर भूमि की ज़रूरत है, जिसमें पालघर, ठाणे और रायगढ़ ज़िलों में 39,000 से अधिक पेड़ों को काटा जा सकता है.

 

नई दिल्ली: भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के नेतृत्व में मुंबई-वडोदरा राजमार्ग परियोजना के लिए रास्ता बनाने के लिए लगभग 32,000 पेड़ काटे गए हैं और अन्य 9,000 पेड़ खतरे में हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात के वडोदरा और महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह को जोड़ने वाला राजमार्ग महाराष्ट्र के पालघर, ठाणे और रायगढ़ जिलों में 39,000 से अधिक पेड़ों की कटाई के साथ बड़े पैमाने पर हरित क्षेत्र को नष्ट कर सकता है.

सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत एनएचएआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस परियोजना के लिए महाराष्ट्र से गुजरने वाले हाईवे के एक हिस्से के लिए 2,242 हेक्टेयर भूमि की जरूरत है, जिसमें 304 हेक्टेयर वन भूमि शामिल है. लगभग 2,100 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जा चुका है. क्षतिपूर्ति वनीकरण के आश्वासन के बावजूद वन क्षेत्रों सहित 39,132 पेड़ों की प्रस्तावित कटाई ने पर्यावरण के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं के बीच चिंता बढ़ा दी है.

वन क्षेत्रों में 13,763 और गैर-वन क्षेत्रों में 18,961 पेड़ों को काटने की अनुमति पहले ही दी जा चुकी है.

खबर के मुताबिक, हरित क्षेत्र के नुकसान के अलावा निर्माण योजना में 3,086 घरों और इमारतों, 48 धार्मिक संरचनाओं और 185 बड़े गोदामों को ध्वस्त करना भी शामिल है.

अपनी हरियाली और विविध जीव-जंतुओं के लिए प्रसिद्ध पालघर जिला इस विकास का खामियाजा भुगत रहा है. पहले से ही मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन और दहानू के पास वधावन बंदरगाह जैसी चल रही इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं से जूझ रहे जिले के हरित क्षेत्र को भारी नुकसान की आशंका है.

एनएचएआई के मुख्य महाप्रबंधक अंशुमाली श्रीवास्तव ने कहा कि खोए हुए वृक्ष क्षेत्र के लिए प्रतिपूरक वनीकरण किया जाएगा. उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, ‘हमने पहले ही महाराष्ट्र वन विभाग के पास पैसा जमा कर दिया है.’

हालांकि, एक्टिविस्ट इससे संतुष्ट नहीं हैं. एनजीओ वनशक्ति के डी. स्टालिन ने का कहना है, ‘राज्य के जंगलों और अछूते मैदानों (Landscapes) पर लगातार हो रहे हमले को रोकने की जरूरत है. पारिस्थितिक हानि और खोए हुए स्थानों की कभी भी उचित भरपाई नहीं की जा सकती है. ऐसा क्यों है कि हर जंगल में, उसके ऊपर या उसके नीचे ट्रैफिक होना चाहिए? भले ही यह एक भूमिगत परियोजना हो, लेकिन निर्माण कार्य सतह पर प्रभाव डालता ही है. वन्यजीवों को होने वाले आघात को लेकर किसी को कोई चिंता नहीं है.’

मेट्रो, सड़क परियोजनाओं के लिए मुंबई ने 6 वर्षों में 21,000 से अधिक पेड़ गंवाए

एक अन्य आरटीआई के तहत सामने आया है कि बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, शहर में पिछले छह वर्षों में कम से कम 21,028 पेड़ों की कटाई हुई है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, मेट्रो, बुलेट ट्रेन, तटीय सड़क, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और गोरेगांव-मुलुंड लिंक रोड जैसी अन्य विकास परियोजनाओं के लिए रास्ता बनाने के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों को काटा गया है.

बीएमसी के डेटा से यह भी पता चलता है कि हालांकि इसने छह साल की अवधि के दौरान – 2018 और 2023 के बीच – 21,916 पेड़ों को प्रत्यारोपित किया, लेकिन उनकी जीवित रहने की दर कम थी.

कुल 24 वॉर्डों में से केवल 9 का प्रत्यारोपित पेड़ों के जीवित रहने का डेटा उपलब्ध था. आंकड़ों के मुताबिक, इन वॉर्डों में प्रत्यारोपित किए गए 4,338 पेड़ों में से केवल 963 पेड़ (22%) ही जीवित बचे.

मुंबईवासियों के लिए चिंता का एक अन्य कारण शहर में पेड़ों की संख्या है. बीएमसी के मुताबिक, मुंबई में कुल 29,75,283 पेड़ हैं, हालांकि, बीएमसी अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यह संख्या 2011 में की गई आखिरी वृक्ष गणना की है.

निगम अधिकारियों ने कहा कि 90% पेड़ काटने की अनुमति मेट्रो, बुलेट ट्रेन, मुंबई तटीय सड़क, एसटीपी, गोरेगांव-मुलुंड लिंक रोड जैसी विकासात्मक परियोजनाओं और पुलों और सड़कों के चौड़ीकरण जैसी अन्य इंफ्रा परियोजनाओं के लिए रास्ता बनाने के लिए जारी की गई थी.

आंकड़ों के मुताबिक, 2018 से 2023 के बीच सबसे ज्यादा 5,584 पेड़ 2022 में काटे गए, इसके बाद 2021 में 4,536 पेड़ काटे गए.

मार्च 2022 में बीएमसी ने जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चिंताओं की पहचान करने और मुंबई में बढ़ती पर्यावरण चुनौतियों से संबंधित मुद्दों को कम करने के समाधान पर विचार करने के उद्देश्य से मुंबई जलवायु कार्य योजना (एमसीएपी) जारी की थी.

बीएमसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 2016 और 2021 के बीच मुंबई ने 2,028 हेक्टेयर का शहरी हरित क्षेत्र खो दिया, जो आरे जंगल (1,300 हेक्टेयर) से अधिक है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि हरित क्षेत्र के इस नुकसान ने प्रति वर्ष 19,640.9 टन कार्बन उत्सर्जन में योगदान दिया है.

Source: The Wire