एकता आखिरकार होती तो एकता ही है। फिर आहार की एकता में ही क्या बुराई है, जो इससे देश के बंट जाने का डर दिखाया जा रहा है।

बेचारे मोदी जी ने बारबार बताया है कि वह जो भी करते हैंदेश के लिए करते हैं। और देश में भी खासतौर पर उसकी एकता के लिए करते हैं। फिर भी विरोधी हैं कि विरोध करने से बाज नहीं आते हैं। ऊधमपुर में मोदी जी ने अपनी चुनाव सभा में क्या इतना ही नहीं कहा था कि सावन के मास में मांस खानापकाना बुरी बात है। नवरात्रि में मछली पकानाखाना और भी खराब बात है बल्कि पाप है। यह पाप छुपकर कोई करता है तो करेपर मोदी जी के विरोधियों का वीडियो बनाकर सारी दुनिया को दिखादिखाकरऐसा पाप करना तो पाप का भी बाप यानी महापाप है। यह तो बाकी सभी पुण्यात्माओं को चिढ़ाना हैउनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाना है। ये तो मुगलों वाले काम हैं। वे भी तो ऐसे ही पुण्यात्माओं को चिढ़ाने के लिए दिखादिखाकर मांसमछलीअंडा खाया करते थे और राष्ट्रीय भावनाओं को आघात पहुंचाया करते थे। फिर भी मुगलों में चाहे हजार बुराइयां रही होंपर एक काम उन्होंने कभी नहीं किया। उन्होंने मांसमछली खाने का वीडियो कभी नहीं बनायाकि सोशल मीडिया पर कोई वाइरल कर दे। वैसे मुगलों ने कभी तुष्टिकरण की राजनीति भी नहीं कीकि हिंदुओं को चिढ़ाया जाए और अपना वोट बैंक बढ़ाया जाएवगैरह। तब ये इंडीवाले वोट के चक्कर में मुगलों से भी नीचे क्यों जा रहे हैं?

जाहिर है कि ऊधमपुर में जाकर मोदी जी ने यह सब इसीलिए कहा कि उन्हें देश की एकता की फिक्र है। उन्हें इसकी फिक्र है कि सावन में जब कुछ लोग मांस नहीं खाते हैंतो कोई दूसरा भी मांस क्यों खाएउन्हें इसकी चिंता है कि अगर नवरात्रि में कुछ लोग मछलीअंडा नहीं खातेतो दूसरा भी कोई मछली वगैरह खाता नजर क्यों आएजब खाएं तो सब खाएंजब कोई नहीं खाए तो कोई भी नहीं खाए। वर्ना राष्ट्र में विभाजन दिखाई देगा। उत्तर और दक्षिणपूर्व और पश्चिमहिंदी और गैरहिंदी वगैरह के विभाजन तो पहले से ही हैंअब मांसाहारी और शाकाहारी का विभाजन भी। यह एक और विभाजन मोदी जी के रहते हुएहोयह मोदी जी को मंजूर नहीं है। कामनसेंस की बात है – एक और विभाजन आएगातो देश के दुश्मनों के ही काम आएगा। पर क्योंकि मोदी जी कह रहे हैंविरोधियों को इसमें भी खोट निकालना ही निकालना है। शोर मचा रहे हैं कि यह तो सब पर जबर्दस्ती शाकाहार थोपने की कोशिश हैवह भी ऐसे देश में जहां सत्तर फीसद से ज्यादा लोग किसी न किसी हद तक गैरशाकाहारी हैं। यह तो एक देशएक भाषा वगैरह के बादएक देशएक आहार थोपने की कोशिश है। मोदी जी लोगों की रसोई में क्यों ताकझांक कर रहे हैं कि कौनकब क्या खा रहा हैवगैरहवगैरह!

पर हम पूछते हैं कि एक देशएक आहार में बुराई ही क्या हैएकता धर्म की होएकता संस्कृति की होएकता भाषा की होएकता इतिहास की होएकता परंपरा की होएकता सुप्रीम नेता की होएकता राजगद्दी की हो या चाहे एकता परिधान की ही होएकता आखिरकार होती तो एकता ही है। फिर आहार की एकता में ही क्या बुराई हैजो इससे देश के बंट जाने का डर दिखाया जा रहा है। सावन के एक महीनेदो नवरात्रों के बीस दिन और गांधी जयंती वगैरह को जोडक़र दस एक दिन और लगा लोसाल में दोमुश्किल से दो महीने सिर्फ शाकाहारी रहने से कोई मर नहीं जाएगा। और हर चीज में नागरिक अधिकारों की दुहाई देने वाले तो इस मामले में अपना मुंह बंद ही रखें तो बेहतर है। अधिकार क्या सिर्फ उन्हीं के हैं जो दूसरे जानवरों को खाना चाहते हैं। क्या इस तरह खाए जाने वाले जानवरों के कोई अधिकार ही नहीं हैंकम से कम पवित्र दिनोंमहीनों में जानबख्शे जाने का अधिकार तो उनका भी बनता ही है। और मांसाहार नहीं करने वालों के अधिकारों का क्याउनके किसी को मांसाहार करते हुए न देखने के अधिकार का क्याअब प्लीज कोई यह न कहे कि न देखने के अधिकार के लिए आंखें बंद करने का अधिकार भी तो हैवीडियो के इस जमाने मेंन देखने के लिए आंखें बंद करने लग जाएंगेतो वो बेचारे तो कभी आंखें खोल ही नहीं पाएंगे। इससे आसान तो दूसरों को नहीं खाने देना ही पड़ेगा। पुण्य का पुण्य और एकता की एकता।

पर हम से लिखा के ले लीजिएविरोधी जरूर इसका प्रचार करेंगे कि मोदी तो यह खाने के खिलाफ हैवह खाने नहीं देगा। विदेशी एजेंसियां भी आ जाएंगीमांसाहारियों के अधिकारों के लिए मोदी के भारत में खतरा बताने के लिए। पर यह प्रचार ही झूठा है। कोई मांस खाएमछली खाए या कुछ और खाएमोदी जी को कोई दिक्कत नहीं है। उन्हें तोकोई बीफ का कारोबार करे तब भी कोई दिक्कत नहीं है। बीफ के व्यापारियों से चुनावी बांड में नवरात्र के टैम पर सैकड़ों करोड़ रुपए का चढ़ावा लेने में भीमोदी जी को कोई दिक्कत नहीं है। यहां तक कि खाने वाला गलत टैम पर भी खाए तब भी चलेगाबस छुप कर खाए। और वीडियो तो हर्गिज न बनाए। और वह भी इसलिए है किगलत टैम पर खाया और उस पर वीडियो बनायातो जानबूझकर राष्ट्र की भावनाओं को ठेस पहुंचाने काराष्ट्र को चिढ़ाने का इल्जाम तो आएगा ही आएगा। और अगर कोई विरोधी नेता ऐसा करता हुआ पकड़ा जाएगातो उसका गुनाह तुष्टीकरण का माना ही जाएगा। और मोदी जी और कुछ माफ कर भी देंपर तुष्टीकरण कभी भी माफ नहीं किया जाएगा और उसे हर उस जगह चुनाव सभा में पीटा जाएगाजहां शाकाहारी धार्मिक भावनाओं को सहलाने में फायदा नजर आएगा।

और विरोधियों का यह इल्जाम तो हास्यास्पद ही है कि मोदी जी मांसमछली का मुद्दा तो इसीलिए उछाल रहे है जिससे उन्हें पब्लिक को महंगाईबेरोजगारी जैसे सवालों पर जवाब नहीं देना पड़े। ये पब्लिक के मुद्दे नहींपब्लिक के मुद्दों से ध्यान बंटाने के बहाने हैं। ऐसा कुछ नहीं है। मोदी से जवाब लेने वाला आज तक कोई पैदा नहीं हुआ। जब दस साल में मीडिया वाले एक सवाल का जवाब नहीं ले पाएतो पांच साल के चुनाव में पब्लिक ही क्या खाकर जवाब ले लेगी। फिर ध्यान बंटाने को 2047 में विकसित भारत का सपना क्या कम हैजो मोदीजी मांसमछली खाने वालों के पीछे पड़ेंगे। मोदी जी का मकसद तो एक देशएक आहार ही लाना है। यहां से आगे एक कदम और – एक विचार। फिर तो एक गद्दी के पीछे एकता इतनी पक्की हो जाएगीकि हिटलर के टैम की एकता उसके आगे छोटी पड़ जाएगी। क्या समझे!

Source: News Click