नरेंद्र मोदी के मन में कांग्रेस को लेकर ऐसा भय समा गया है कि वे अपनी बात कहने की बजाय सिर्फ़ कांग्रेस और उनके नेताओं के ख़िलाफ़ भाषण देते हैं. वे कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को लेकर गहरे सदमे में हैं. राहुल गांधी उनका दु:स्वप्न बन गए हैं.

 

 

दस वर्ष प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह से एक पत्रकार ने सवाल पूछा था, ‘आप अपने कार्यकाल को किस तरह देखना चाहेंगे?’ जवाब में डॉ. मनमोहन सिंह ने अपनी स्वाभाविक और चिरपरिचित विनम्रता के साथ कहा था, ‘इतिहास मेरा मूल्यांकन करते समय मेरे प्रति दयालु रहेगा. वह इतना निर्मम नहीं रहेगा जितना कि आज मीडिया और विपक्ष है.’

जब वे अपना दूसरा कार्यकाल पूरा करने जा रहे थे तो उन पर और उनकी सरकार पर चौतरफ़ा हमले हो रहे थे. विपक्ष मनमोहन सिंह की खलनायक वाली छवि बनाने में लगा था. सीएजी ने विपक्ष को मनगढ़ंत आंकड़ों के साथ हथियार उपलब्ध करवाए थे. और मीडिया ने तो विपक्ष के साथ मिलकर मनमोहन सिंह के ख़िलाफ़ अभियान ही छेड़ दिया था.

इतिहास किसी को नहीं बख़्शता. वह समय की निर्मम समीक्षा करता है और लोगों के कार्यों का आकलन भी निष्ठुरता के साथ करता है. लेकिन मनमोहन सिंह को पिछले दस सालों ने ही सही साबित कर दिया है. आज तथ्यों के साथ कहा जा सकता है कि मनमोहन सिंह का दस साल का कार्यकाल हमारे देश के लिए कई मायनों में दिशा बदलने वाला समय था.

ऐसा नहीं है कि उनके कार्यकाल में चूक नहीं हुई. और ख़ुद उन्होंने कुछ चूकों को स्वीकार किया था. पर जिज्ञासा होती है कि उनके ख़िलाफ़ षड्यंत्रकारी अभियान चलाकर उन्हें बदनाम करने के बाद प्रधानमंत्री के पद पर विराजमान हुए नरेंद्र मोदी अपने दस साल के कार्यकाल के बारे में क्या सोचते हैं?

जनवरी, 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह आख़िरी प्रेस कॉन्फ़्रेंस को संबोधित कर रहे थे तो उनके पास अपने कार्यकाल में किए गए कार्यों का एक लंबा चौड़ा ब्यौरा था. किसानों से लेकर मज़दूरों तक, शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक और घरेलू सुरक्षा से लेकर अंतरराष्ट्रीय संबंधों तक हर विषय पर अपनी उपलब्धियों को लेकर वे बेबाक थे.

आज, जब नरेंद्र मोदी जी के दस साल पूरे हो चुके हैं तो उनके पास अपने दस साल के कार्यकाल के बारे में कहने के लिए क्या है? ऐसी कौन-सी उपलब्धियां हैं जिनके बारे में वे बेबाकी से कुछ कह सकते हैं? उनकी अपनी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के पास गिनाने के लिए अपनी सरकार के कौन से काम हैं?

मैं दावे से कह सकता हूं कि ऐसा कुछ है ही नहीं जिसे लेकर नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी जनता के बीच जा सकें. इसीलिए दो कार्यकालों के बाद लोकसभा चुनाव में उतरे नरेंद्र मोदी और भाजपा के पास ‘जो राम को लाए हैं’ और ‘कश्मीर में धारा 370 हटाई’ जैसे वाक्यों के अलावा कुछ नहीं है.

‘अच्छे दिन’ के जिस नारे के साथ नरेंद्र मोदी जी ने सत्ता संभाली थी, उसका मुगालता टूटे अब बरसों बीत गए. न वे महंगाई की मार कम कर पाए, न नारी पर वार, न वे हर बरस दो करोड़ लोगों को रोज़गार दे पाए और न काला धन ही वापस ला सके.

छत्तीसगढ़ के पाटन में चुनाव प्रचार करते भूपेश बघेल. (फोटो साभार: ट्विटर/bhupeshbaghel)

एक जादूगर अपनी टोपी से कभी रंग-बिरंगे फूल निकालकर तो कभी ख़रगोश निकालकर अपने दर्शकों को लुभाता रहता है. वैसी ही उम्मीद इस देश की भोलीभाली जनता को हो चली थी. मोदी जी का जादू एक एक करके टूटता गया. नोटबंदी लागू हुई तो देश में हाहाकार मच गया. पर लोगों को लगा कि अगर मोदी जी ने किया है तो कोई जादू बाद में ज़रूर जागेगा. लेकिन सैकड़ों मौतों और करोड़ों लोगों के पीड़ादायी अनुभव के बाद पता चला कि इससे कोई काला धन वापस नहीं लौटा.

कोरोना महामारी से जितनी लापरवाही से नरेंद्र मोदी ने निपटने की कोशिश की, उसने इस महामारी को और त्रासद बनाया. बिना सोचे विचारे लॉकडाउन करने से लेकर गंगा के तट पर दफ़नाई गई लाशों तक और ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ते लोगों से लेकर अस्पतालों में जगह तलाश करते परिजनों की तस्वीरें त्रासदी की गाथा बनकर रह गईं.

दरअसल नरेंद्र मोदी के मन में कांग्रेस को लेकर ऐसा भय समा गया है कि वे अपनी बात कहने की बजाय सिर्फ़ कांग्रेस और उनके नेताओं के ख़िलाफ़ ही भाषण देते हैं. वे कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को लेकर गहरे सदमे में हैं. राहुल गांधी उनका दु:स्वप्न बन गए हैं. इसीलिए चुनाव के बीच खड़े होकर देश के प्रधानमंत्री शर्मनाक ढंग से देश के 20 करोड़ से अधिक मुसलमानों को सरेआम ‘घुसपैठिया’ कह रहे हैं. वे कांग्रेस के घोषणा पत्र को बिना किसी आधार के ‘मुस्लिम लीग का दस्तावेज़’ कह रहे हैं. यह सिर्फ़ डर है जिसकी वजह से उन्हें कहना पड़ रहा है कि कांग्रेस की जीत से पाकिस्तान प्रसन्न होगा.

देश में जाति, धर्म और संप्रदाय के नाम पर जो अभियान नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी ने चलाया है उसने देश की रगों में नफ़रत भर दी है. एक दूसरे के प्रति अविश्वास का भाव भर दिया है.

लोकसभा का यह चुनाव हर तरह से अभूतपूर्व चुनाव है. हर वो एजेंसी जिसे निष्पक्षता के साथ काम करना चाहिए, वह मोदी सरकार के इशारे पर नाच रही है. ईडी, आयकर विभाग, सीबीआई से लेकर डीआरआई तक सारी एजेंसियां लोगों को डरा-धमकाकर भाजपा के बाड़े में हांकने में लगी हुई है या फिर चंदा उगाहने में.

केंद्रीय चुनाव आयोग भी निष्पक्ष नहीं है. वह नहीं देख रहा कि विपक्ष के उम्मीदवारों को ख़रीदकर या डरा-धमकाकर चुनावी मैदान से हटाया जा रहा है. सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के बैंक एकाउंट बंद कर दिए गए हैं. देश के एक सूबे के मुख्यमंत्री जेल में हैं और एक को इस्तीफ़ा देने को मजबूर कर जेल भेज दिया गया है.

आज़ादी के बाद का यह पहला चुनाव है जब देश का मीडिया भी चुनाव को उसी तरह से दिखा रहा है जैसा कि सत्तारूढ़ पार्टी चाहती है. मीडिया के सारे सवाल विपक्ष से हैं, उसे खामियां सिर्फ़ विपक्ष में दिखती हैं और भारतीय जनता पार्टी ही सत्ता की एकमात्र हक़दार दिखती है.

आज दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में है और सबसे बड़ा खतरा हमारे संविधान पर है जिसे बदल डालने का ऐलान भाजपा के नेता खुलेआम कर रहे हैं लेकिन मीडिया जनता से जुड़े देश के इन अहम सवालों पर न केवल चुप है बल्कि वह आरएसएस–भाजपा की धुन पर ही थिरकता नजर आ रहा है.

भ्रष्टाचार के सवाल पर मोदी सरकार बुरी तरह बेनकाब हुई है. यह दीवार पर लिखी इबारत है कि मोदी सरकार को इस देश की आम जनता के सरोकारों से कोई लेना–देना नहीं है, उसकी चिंता सिर्फ उसके चंद उद्योगपति मित्र हैं. चुनावी बॉन्ड ने साबित कर दिया है कि नरेंद्र मोदी इस देश में भ्रष्टाचार के सबसे बड़े पोषक हैं. पीएम केयर्स फंड को जिस तरह से उन्होंने छिपाया है वह एक बड़ा प्रश्नचिह्न है. पर मीडिया इन सवालों पर चुप है.

होना चाहिए था कि चुनाव भारतीय जनता पार्टी के दस साल के कामकाज पर लड़े जाते. नरेंद्र मोदी अपनी उपलब्धियां बताते और जनता उनको फिर से चुनने या न चुनने का फ़ैसला करती. लेकिन ‘अबकी बार 400 पार’ के नारे के साथ मैदान में उतरे नरेंद्र मोदी और अमित शाह के पास कांग्रेस के घोषणा पत्र के अलावा कुछ नहीं है. दो चरणों के चुनावों के बाद भाजपा ने 400 पार का नारा लगाना बंद कर दिया है और सारा ध्यान कांग्रेस के विरोध में लगा दिया है. यह सत्तासीन भाजपा की विडंबना है कि वह विपक्षी दल कांग्रेस के घोषणा पत्र के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रही है. और चूँकि भाजपा के पास हमारे घोषणा पत्र की नीयत और निष्ठा का कोई उत्तर नहीं है, वह इसके ख़िलाफ़ तरह-तरह के झूठ फैला रही है.

संसाधनों की अभूतपूर्व कमी के बीच चुनाव लड़ रही कांग्रेस पार्टी के पास यह संकट था कि जब मीडिया भी साथ नहीं है तो चुनावी घोषणाएं जनता तक कैसे पहुंचेंगीं, लेकिन इसे नरेंद्र मोदी ने आसान कर दिया है. अभी दो चरणों के चुनाव हुए हैं. पांच और चरण बाक़ी हैं. पर नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के घोषणा पत्र को ठीक तरह से जनता के बीच पहुंचा दिया है. अब जनता समझ रही है कि कौन उनके हक़ की बात कर रहा है, कौन उनके जीवन से जुड़े मुद्दों की बात कर रहा है और कौन उसे सिर्फ़ झांसा दे रहा है.

महंगाई की मार से त्रस्त जनता को समझ में आ गया है कि पिछले बरसों में देशभक्ति के नाम पर उनके साथ छल हुआ है और सरकार ने धीरे-धीरे उनसे वे सब अधिकार छीन लिए हैं जो पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने उन्हें दिए थे. वह समझ रही है कि ग़रीब महिलाओं को एक लाख रुपये  मिलने से क्या होगा, बेरोज़गारों को एक साल के लिए प्रशिक्षण और लाख रुपये मिलने से क्या होगा, मनरेगा की मजदूरी 400 रुपये मिलने से क्या लाभ होगा और किसानों को एमएसपी की गारंटी मिली तो कैसे दिन बहुरेंगे.

तानाशाही की आहट के बीच इस सर्वशक्ति संपन्न पार्टी के ख़िलाफ़ एक ऐसा ‘इंडिया’ गठबंधन लड़ रहा है जिसका नाम लेने में नरेंद्र मोदी और अमित शाह को दिक्कत हो रही है. इस बार जनता जीत कर रहेगी. फिर देखना होगा कि इतिहास में नरेंद्र मोदी कैसे दर्ज किए जाते हैं.

 

Source: The Wire