भाजपा को पूर्ण बहुमत न मिलना इस बात का संकेत है कि उसकी घृणा की राजनीति का वर्चस्व भारत में काफी कठिन है.

 

भारत की जनता ने 2024 के लोकसभा चुनाव में जनतंत्र को वापस उसका अर्थ प्रदान कर दिया है. जनतंत्र सिर्फ़ एक विचार और एक आवाज़ के पूर्ण वर्चस्व का नाम नहीं है, यही इन लोकसभा चुनाव नतीजों का संदेश है. भारत जैसे बहुधार्मिक और बहुसांस्कृतिक देश में किसी एक धर्म के मानने वालों को अलग-थलग करके उनके ख़िलाफ़ बहुसंख्यकवादी बहुमत इकट्ठा करने का ख़याल अभी भी, बहुसंख्यकवादी हिंदुत्व के 10 सालों के शासन के बाद भी भारत की जनता को स्वीकार नहीं, यह इस चुनाव परिणाम ने साफ़ कर दिया है.

पिछले 10 सालों से निरंकुश बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में संघीय सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी को इस बार जनता ने बहुमत देने से इनकार कर दिया है. 543 सीटों वाली संसद में बहुमत के लिए ज़रूरी 272 से भाजपा दूर खड़ी है. उसे सिर्फ़ 240 सीटें मिली हैं. वह अभी भी सबसे बड़ा संसदीय दल है और संभव है कि अपने सहयोगियों के साथ मिलकर वह किसी तरह सरकार बना ले लेकिन यह स्पष्ट है कि लोकप्रिय जनादेश नरेंद्र मोदी की चुनाव की अपील के ख़िलाफ़ है.

यह चुनाव परिणाम कई दृष्टियों से असाधारण है. चुनाव के पहले सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस के खाते से सरकारी एजेंसियों ने जबरन पैसे निकाल लिए और बाद में उसके बैंक खाते सील कर दिए गए. झारखंड और दिल्ली के मुख्यमंत्रियों को गिरफ़्तार कर लिया गया और विपक्षी दलों के कई नेताओं पर छापे मारे गए और उन पर मुक़दमे दायर किए गए.

चुनाव के ठीक पहले सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद सरकार मजबूर हुई कि चुनावी बॉन्ड का ब्योरा जारी करे. तब मालूम हुआ कि भाजपा को इनके ज़रिये 6,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा दिए गए हैं. साधन के मामले में सारा विपक्ष मिलकर भी उससे काफ़ी पीछे था. इस तरह एक साधनहीन विपक्ष को धनबल युक्त भाजपा के मुक़ाबले चुनाव लड़ना था.

पिछले 10 सालों से भारत का बड़ा मीडिया भाजपा के प्रचार तंत्र में बदल गया था. इस चुनाव के दौरान भी मीडिया ने लगातार सरकार और भाजपा के प्रचार विभाग की तरह विपक्ष के ख़िलाफ़ अभियान चलाया.

उन्होंने बार बार हर संसदीय क्षेत्र में जनता को कहा कि वह किसी और को नहीं उन्हें वोट दे रही है. यानी वे ही हर क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं और जनता जब वोट देगी तो किसी और को नहीं उन्हें ही चुनेगी. उनकी यह अपील ठुकरा दी गई है.

मोदी ने अपने मतदाताओं से मुसलमान विरोधी जनादेश मांगा था. उन्होंने अपने मतदाताओं को यह कहकर डराया था कि विपक्षी दल कांग्रेस उनकी संपत्ति और दूसरे संसाधन छीनकर मुसलमानों को दे देगा. अपने चुनाव अभियान को मोदी ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ घृणा प्रचार में बदल दिया और कहा कि विपक्ष हिंदू विरोधी है. भाजपा को पूर्ण बहुमत न मिलना इसका संकेत है कि इस घृणा की राजनीति का वर्चस्व भारत में काफी कठिन है.

भारत की जनता ने साफ़ कहा है कि उसे प्रधानमंत्री के रूप में कोई सम्राट नहीं चाहिए. मोदी ने पिछले 10 सालों में ख़ुद को एक हिंदू सम्राट के रूप में ही पेश किया है. जनता को तरह तरह से समझाने की कोशिश की गई कि मोदी वास्तव में मुग़लों के अत्याचार का बदला ले रहे हैं और पहली बार भारत में हिंदुओं का राज क़ायम हो रहा है. यह चुनाव अभियान पूरी तरह से इस हिंदुत्ववादी अपील के साथ चलाया गया था. मोदी की भाजपा को पूर्ण बहुमत न देकर भारत की जनता ने साफ़ कर दिया है कि उसे यह स्वीकार नहीं है.

 

Source: The Wire