भारत में प्रति व्यक्ति पेड़ों की संख्या केवल 28 रह गई है। इसकी तुलना में, संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रति व्यक्ति 699 पेड़ हैं। विश्व का औसत भी प्रति व्यक्ति 422 पेड़ है।

 

इस साल अत्यधिक गर्मी पड़ रही है। देश के कई हिस्सों में तापमान 50 डिग्री के पार हो चुका है। यहां तक कि राजधानी दिल्ली का तापमान भी काफी बढ़ गया है। गर्मी और लू के कारण देश में सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है। अंग्रेजों के समय, वे गर्मियों में भारत की राजधानी को शिमला ले जाते थे। तब न तो एसी थे और न ही देश में पर्याप्त बिजली थी कि एसी चल सकें। लेकिन अब, सभी सुविधाओं के होते हुए भी, कई सामर्थ्यवान लोगों ने गर्मियों में पहाड़ों पर अपने घर बना लिए हैं। फिर भी, पहाड़ों पर भी अब चैन नहीं मिल रहा है। वहां भी गर्मी बढ़ रही है। जिस देहरादून का मौसम गर्मियों में भी सुहाना हुआ करता था, वहां अब तापमान 40 डिग्री के पार चला जाता है। वहां भी दिन में एसी चलाना अनिवार्य हो गया है।

पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया, और इस अवसर पर पूरे देश में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। इन सभी कार्यक्रमों में एक बात प्रमुखता से कही गई कि पर्यावरण दूषित होने और पेड़ों की कटाई से गर्मी बढ़ रही है। इसलिए पेड़ों की रक्षा करना हम सबकी जिम्मेदारी है। यहां तक कहा गया कि हम पचास हजार का एसी तो खरीद लेते हैं, लेकिन पचास रुपये का पौधा खरीदकर नहीं लगाते। अगर हम पचास रुपये का पौधा लगाएं तो शायद एसी की जरूरत ही न पड़े।

गंगा की अविरलता और निर्मलता तथा पर्यावरण की रक्षा में जुटे हरिद्वार स्थित मातृ सदन के संत स्वामी शिवानंद भी दिल्ली की गर्मी देखकर विचलित हो उठे। उन्होंने कहा कि दिल्ली का तापमान मई में 52.9 डिग्री तक जा पहुंचा (हालांकि बाद में इस आंकड़े को सेंसर एरर बताया गया)। उनका मानना है कि यह सब पेड़ों की कटाई और गंगा को प्रदूषित करने के कारण हो रहा है। वे कहते हैं कि उनके आश्रम मातृ सदन का तापमान हरिद्वार से चार-पांच डिग्री कम रहता है क्योंकि उन्होंने अपने आश्रम के आस-पास पेड़ों को बचाकर रखा है।

स्वामी शिवानंद बताते हैं कि चार धाम यात्रा के लिए उत्तराखंड में लाखों पेड़ काटे गए। नदियों पर जगह-जगह बांध बनाकर उनके जल को रोका गया, जिससे गंगा की शीतलता प्रभावित हुई। हिमालय से निकलने वाली नदियां शीतल जल लेकर मैदानों में जाती थीं, जिससे वहां का तापमान भी ज्यादा ऊपर नहीं चढ़ पाता था। पहले गर्मी के दिनों में भी कोई व्यक्ति गंगा में देर तक नहीं ठहर पाता था क्योंकि गंगा जल में शीतलता थी। अब पेड़ों की कटाई, बांध बनाकर नदियों को जगह-जगह रोके जाने और खनन करके बालू निकाले जाने के कारण गंगा की शीतलता पर असर पड़ा है। उनका कहना है कि चार धाम यात्रा हर मौसम में कराने के लिए सड़कों का चौड़ीकरण किया गया, जिसके लिए लाखों पेड़ काटे गए। इस सबका असर पर्यावरण पर पड़ा है और गर्मी बढ़ रही है।

अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश से एक खबर आई है कि कांवड़ मार्ग के लिए 33 हजार पेड़ काटे जाएंगे। कांवड़ मार्ग करीब सवा सौ किलोमीटर का है, और ये पेड़ 111 किलोमीटर के रास्ते में गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर में काटे जाएंगे।

यह केवल धार्मिक मार्गों की बात नहीं है। जहां भी सड़कें बन रही हैं या चौड़ी की जा रही हैं, पहली बलि पेड़ों की ही ली जा रही है। आप देश के किसी भी हिस्से में जाएं, चाहे वे हाईवे हों या एक्सप्रेसवे, उनके आसपास आपको पेड़ नहीं मिलेंगे। गर्मी में इन सड़कों पर चलते हुए दूर-दूर तक धूप ही नजर आती है। अगर आपका एसी खराब हो जाए तो उन पर चलना मुश्किल हो जाता है। क्या जब ये मार्ग बनाए जा रहे हैं, तो उनके किनारे पेड़ नहीं लगाए जा सकते?

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को पूरे देश में स्वर्णिम चतुर्भुज मार्ग बनाने का श्रेय दिया जाता है। मोदी सरकार के मंत्री नितिन गडकरी को भी सड़कों के निर्माण के लिए ही प्रशंसा मिल रही है। लेकिन इन दोनों कार्यकालों में पेड़ों की भी खूब कटाई हुई है। कितना अच्छा होता कि इन सड़कों के किनारे बड़े-बड़े छायादार पेड़ भी लगाए जाते। इससे यातायात की सुविधा के साथ ही पर्यावरण भी बेहतर होता। इतिहास में शेरशाह सूरी को भी जीटी (ग्रांट ट्रंक) रोड बनवाने के लिए जाना जाता है। लेकिन उसने सड़कों के किनारे बड़े-बड़े छायादार वृक्ष भी लगवाए, जिसके लिए उसकी प्रशंसा की जाती है।

हमने विकास पर जोर दिया, लेकिन उसके लिए पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा। बल्कि, अगर किसी ने आवाज उठाई तो यह कहकर चुप करा दिया गया कि विकास के लिए इतनी कुर्बानी तो देनी ही पड़ती है। भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, सिर्फ एक साल 2020-21 में करीब 31 लाख पेड़ काटे गए। 2019 में सरकार की ओर से एक और जानकारी दी गई थी, जिसके अनुसार 2019 से पिछले पांच वर्षों में एक करोड़ नौ लाख 75 हजार 844 पेड़ काटे गए। यानी हर साल 22 लाख पेड़ काटे गए।

इसका नतीजा क्या है? भारत में प्रति व्यक्ति पेड़ों की संख्या महज 28 बची है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देश में प्रति व्यक्ति 699 पेड़ हैं। विश्व का औसत भी प्रति व्यक्ति 422 पेड़ है। अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी ने दुनिया भर के पेड़ों की गिनती की है, जिसके अनुसार भारत में कुल 3518 करोड़ पेड़ हैं। क्षेत्रफल के लिहाज से भारत में प्रति वर्ग किलोमीटर कुल 11109 पेड़ हैं। पेड़ों की संख्या के लिहाज से हम विश्व में 17वें स्थान पर हैं, जबकि प्रति वर्ग गज पेड़ों की संख्या के लिहाज से 103वें नंबर पर हैं। प्रति व्यक्ति पेड़ के हिसाब से हम दुनिया के 125वें देश हैं। पेड़ों की संख्या के मामले में रूस सबसे ऊपर है। वहां 69 हजार 834 करोड़ पेड़ हैं। दूसरे नंबर पर कनाडा है, जहां 36 हजार 120 करोड़ पेड़ हैं। इसके बाद ब्राजील, अमेरिका और चीन हैं, जिनके पास क्रमशः 33 हजार 816 करोड़, 22 हजार 286 करोड़ और 17 हजार 753 करोड़ पेड़ हैं।

जब भी बरसात आती है, हम खबरें पढ़ने लगते हैं कि कहां-कहां कितने पेड़ लगाए जा रहे हैं। कई बार तो हम विश्व रिकॉर्ड बनाते हैं, लेकिन इस बात पर ध्यान नहीं देते कि लगाए गए पेड़ जिंदा भी रहें। यही वजह है कि प्रदूषण की स्थिति सुधरने की बजाय और बिगड़ती जा रही है। भारत में वायु प्रदूषण की वजह से हर मिनट दो लोगों की मौत होती है, यानी एक घंटे में 120 लोगों की और एक दिन में 2880 लोगों की। दिल्ली-एनसीआर में रह रहे लोगों की तो उम्र ही छह साल कम हो गई है।