नाटो अपनी स्थापना की 75वीं वर्षगांठ के मौक़े पर विश्व भर में बढ़ते युद्धों और तनावों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराता नज़र आता है।

वाशिंगटननाटो शिखर सम्मेलन 11 जुलाई को वाशिंगटन डीसी में अपनी कार्रवाई के आखिरी दिन में प्रवेश कर गया है। इस सम्मेलन में नाटो नेताओं के सामने मुख्य विषयों में से एक है निवारण और रक्षा।” हालांकि, जब नाटो नेता यूक्रेन में युद्ध के लिए और अधिक हथियार भेज रहे हैंचीन के साथ व्यापार पर प्रतिबंध लगा रहे हैंऔर सदस्य देशों को रक्षा पर अधिक धन खर्च करने को कह रहे हैंतो चल रहे शिखर सम्मेलन में यह सवाल उठता है कि क्या नाटो दुनिया को एक सुरक्षित जगह बना सकता है?

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को दो साल पूरे हो चुके हैं। शिखर सम्मेलन के पहले कुछ दिनों में हीनाटो (NATO) के नेता युद्ध को और भी लंबा खींचने की हर संभव कोशिश करते दिख रहे हैं। गठबंधन ने लंबे समय से चल रहे युद्ध में इस्तेमाल के लिए यूक्रेन को एफ-16 लड़ाकू विमान भेजना शुरू कर दिया हैइस फैसले की रूस ने कड़ी निंदा की है। रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने रूसी समाचार एजेंसी तास (TASS) समाचार एजेंसी से कहा कि, “यह इस बात का सबूत है कि वाशिंगटन एक युद्ध गिरोह का नेतृत्व कर रहा है।” फरवरी 2022 में युद्ध शुरू होने के बाद से ही रूसयूक्रेन युद्ध में यूक्रेन की ओर से अधिक से अधिक हथियारों की आपूर्ति करना नाटो की नीति रही है। वास्तव मेंयह नाटो का पूर्व की ओर विस्तार ही था जिसने तनाव को भड़काया जिसके कारण सबसे पहले युद्ध हुआ।

चीन पर लगाए गए आरोप

नाटो के नेता चीन के खिलाफ भी तीखे हमले कर रहे हैं, 32 सदस्य देशों ने उस एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए हैंजिसमें चीन पर रूस के साथ “बिना सीमा वाली साझेदारी” के ज़रिए यूक्रेन में युद्ध को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया है। घोषणापत्र में उत्तर कोरिया और ईरान के खिलाफ़ भी यही आरोप लगाए गए हैं। नाटो के सदस्यों ने कहा कि चीन “यूक्रेन के खिलाफ़ रूस के युद्ध का निर्णायक समर्थक बन गया है।”

चीन ने यूरोपियन यूनियन में चीनी मिशन के प्रवक्ता के बयान पर जवाब दियाजिन्होंने स्पष्ट किया कि यूक्रेन मुद्दे पर चीन की मुख्य स्थिति शांति वार्ता और राजनीतिक समाधान को बढ़ावा देना रही हैजिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा व्यापक रूप से मान्यता और सराहना मिली है।” चीन ने लंबे समय से यूक्रेन में युद्ध को बातचीत के जरिए समाप्त करने पर जोर दिया है, जबकि रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत को खुले तौर पर रोकने के लिए पश्चिम की कई लोगों द्वारा आलोचना की गई है।

नाटो ने चीन पर यूरोअटलांटिक सुरक्षा के लिए प्रणालीगत चुनौतियां” पेश करने और सदस्य देशों के बीच विभाजन पैदा करने के लिए जबरदस्ती की रणनीति और प्रयास” करने का भी आरोप लगाया है। ये आरोप पश्चिमी शक्तियों द्वारा एशिया प्रशांत क्षेत्र के देशों को अपने प्रभाव क्षेत्र में खींचने के प्रयास के संदर्भ में सामने आए हैं। उत्तर कोरिया विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों की आलोचना करता रहा हैक्योंकि अमेरिका एक ऐसे एशियाई गठबंधन पर जोर दे रहा है जो नाटो के एशियाई संस्करण की तरह दिख सकता हैजो डीपीआरके और चीन जैसे देशों की संप्रभुता और विकास के खिलाफ खड़ा हो सकता है।

गठबंधन ने अधिक सैन्य खर्च की मांग की

नाटो के सदस्यखास तौर पर अमेरिका और ब्रिटेनसदस्य देशों पर दबाव डाल रहे हैं कि वे अपने सकल घरेलू उत्पाद का और भी ज़्यादा हिस्सा रक्षा सौदों पर खर्च करें। दोनों दलों के 23 अमेरिकी सीनेटरों ने कनाडा को एक फटकार भरा पत्र भेजाजो अपनी सेना पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का 1.34 फीसदी खर्च करता है। यूनाइटेड किंगडम अपनी सेना पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का सिर्फ़ फीसदी खर्च करता हैजबकि अमेरिका लगभग 3.5 फीसदी खर्च करता है। नाटो गठबंधन के अनुसार सदस्य देशों को अपने सैन्य बजट पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम फीसदी खर्च करना चाहिए।

अमेरिकी सीनेटरों ने लिखा कि, “हम चिंतित हैं और बेहद निराश हैं कि कनाडा के सबसे हालिया अनुमान से संकेत मिलता है कि वह इस दशक में अपनी दो प्रतिशत प्रतिबद्धता तक नहीं पहुंच पाएगा।” अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष माइक जॉनसन ने कनाडा के खर्च के आंकड़े को शर्मनाक” बताया है।

उन्होंने, “अमेरिका के पीछे चलने की बात कही।” ब्रिटेन की रक्षा सचिव जॉन हीली नाटो सदस्यों पर रक्षा व्यय के फीसदी से भी आगे जाने का दबाव बना रही हैं। शिखर सम्मेलन में भाग लेने के दौरान हीली ने संवाददाताओं से कहा कि, “हमारे सामने बढ़ते खतरों और वैश्विक अस्थिरता का कोई भी आकलन बताता है कि सभी नाटो देशों को केवल दो प्रतिशत से अधिक करने की आवश्यकता होगी।

इटली जैसे देशों द्वारा फीसदी खर्च का लक्ष्य लगातार पूरा नहीं किया गया हैजिस पर अपने रक्षा बजट को बढ़ाने का भी दबाव है। नाटो में इटली की सदस्यता लंबे समय से इतालवी वामपंथियों के साथ विवाद का विषय रही है। पोटेरे अल पोपोलो के इतालवी राष्ट्रीय प्रवक्ता गिउलिआनो ग्रानाटो ने पीपल्स डिस्पैच को बताया कि, “जीडीपी के फीसदी के लक्ष्य तक पहुंचने तक सैन्य खर्च के लिए अधिक धन देने का वादा करने के लिए मेलोनी वाशिंगटन गए थे।

हालांकिइतालवी वामपंथियों की प्राथमिकताएं रक्षा पर अधिक खर्च के अलावा अन्य हैं। ग्रैनाटो ने स्पष्ट किया कि, “हमारे लोगों को सुरक्षा देने के लिएहमें सैन्यऔद्योगिक प्राधिकरण का इस्तेमाल बंद करना होगा और स्वास्थ्य सुरक्षा की ज़रूरतों को पूरा करना होगाजिसमें अधिक डॉक्टर और अस्पताल शामिल हैंआर्थिक सुरक्षाजिसमें न्यूनतम वेतन और कोई अनिश्चितता नहीं शामिल हैपर्यावरण सुरक्षाजिसमें वास्तविक पारिस्थितिक परिवर्तन शामिल है।पीपल्स डिस्पैच को दिए गए पिछले साक्षात्कार मेंइतालवी राजनीतिक वैज्ञानिक गिउलिआनो ब्रुनेटी ने इटली में नाटो की भारी उपस्थिति की तुलना सैन्य कब्जे से की थी।

ग्रानाटो ने नाटो की मांगों को मानने के लिए मेलोनी की निंदा की है। उन्होंने कहा कि, “जब नाटो आक्रामक संगठन है तो हम सावधान होकर उसकी बात मानते हैं।

इतालवी वामपंथी संगठन पोटेरे अल पोपोलो के मौरिजियो कोपोला ने यूरोपियन यूनियन की स्थिरता और विकास समझौते के संशोधित नियमों के नए सेट के बारे में चेतावनी दीजिसे 2025 में लागू किया जाएगा। कोपोलो के अनुसारयह यूरोपियन यूनियन के देशों को सामाजिक खर्च कम करने के लिए मजबूर करेगा, “क्योंकि नाटो अभी भी यूरोप और यूरोपीय संस्थानों को सैन्य औद्योगिक प्राधिकरण में अधिक निवेश करने पर मजबूर कर रहा है।” कोपोला का तर्क है कि इतालवी वामपंथी संगठनों को कम सामाजिक खर्च और उच्च सैन्य खर्च के बीच विरोधाभास से उत्पन्न होने वाले संकट के लिए तैयार रहना चाहिए।

जैसेजैसे नाटो शिखर सम्मेलन समाप्त हो रहा हैयूरोपअमेरिका और पूरे विश्व में गठबंधन को भंग करने की मांग जारी है।

 

Source: News Click