ऐप्सो ने ‘गांधी जी का सपना, धर्मनिरपेक्षता और फिलीस्तीन की स्वतंत्रता’ विषय पर विमर्श का आयोजन किया

अखिल भारतीय शांति व एकजुटता संगठन (ऐप्सो) , पटना की ओर से महात्मा गांधी की 155 वीं जयंती के मौके पर बीएम दास रोड स्थित ‘मैत्री शांति भवन’ में विमर्श का आयोजन किया गया। विषय था “गांधी जी का सपना, धर्मनिरपेक्षता और फिलीस्तीन की स्वतंत्रता।” कार्यक्रम में पटना शहर के बुद्धिजीवी, साहित्यकार, रंगकर्मी और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे।

संचालन और विषय प्रवेश ऐप्सो के पटना जिला सचिव जयप्रकाश ने किया।

साहित्य अकादमी से सम्मानित सुप्रसिद्ध कवि अरुण कमल ने अपने संबोधन में कहा, “गांधी जी धर्म निरपेक्षता के बदले सर्व धर्म समभाव की बात किया करते थे। हम अमेरिका को धर्मनिरपेक्ष देश कैसे कहेंगे? जहां की संसद ईसाई धर्म की प्रार्थना से शुरू होती है। असल में सही मायनों में सेक्युलर स्टेट मात्र सोशलिस्ट देश ही रहे हैं जैसे सोवियत संघ, चीन, क्यूबा, वियतनाम आदि है। पाकिस्तान खुलेआम इस्लामिक देश कहता है। जितने धार्मिक देश हैं सब के सब बेहद हिंसक हैं, जैसे इजरायल है, सउदी अरब है। गांधी जी मानते थे कि राज्य पंथ निरपेक्ष होगा। गांधी जी का सपना था कि हिंसा नहीं होनी चाहिए, शोषण नहीं होना चाहिए। युद्ध नहीं होना चाहिए। गांधी जी यह दुस्साहस करते थे कि लोगों का दिल बदल जाए। लेकिन भारत की आजादी के दौरान यदि नाविक विद्रोह नहीं होता, भगत सिंह का आंदोलन न होता तो अंग्रेज यहां से नहीं जाते। आज इस देश के एक प्रतिशत के हाथों में सत्तर प्रतिशत लोगों के बराबर संपत्ति है। इक्कीस लोगों के हाथों में देश के बजट से ज्यादा संपत्ति है। क्या यह हिंसा नहीं है? इसके बारे में कोई नहीं बोल रहा है। आज संघर्ष सिर्फ जाति और धर्म को लेकर हो रहा है। गांधी जी की हत्या बिड़ला के जिस घर में हुई उस घर को जब भारत सरकार ने स्मारक बनाने के लिए मांगा तो बिड़ला ने उस घर को पैसा लेकर बेचा। यह तो इन लोगों की देशभक्ति है।”

अरुण कमल ने आगे कहा ”फिलीस्तीन और इजरायल के बीच विवाद के दौरान सोवियत संघ ने प्रस्ताव रखा था कि आप दोनों मिलकर एक संघ बना लीजिए। लेकिन दोनों ने स्वीकार नहीं किया क्योंकि दोनों के पास अपार संपदा है। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश भी तो एक संघ बन सकते हैं। लेकिन नहीं! आज भारत क्यों इजरायल भेज रहा है नौकरी करने के लिए! बिजली का पंखा बनाने के लिए! ऐसे ही छोटे-छोटे कामों को करने के लिए। संयुक्त राष्ट्र संघ में जब वोट का वक्त आया तो भारत ने फिलीस्तीन का समर्थन नहीं किया। हम अपनी सरकार से भी कहें कि इजरायल का समर्थन न करें। यह भी सही है कि यहूदियों को हर जगह से प्रताड़ित किया गया। लेकिन पारसियों के साथ भी तो यही किया गया ईरान में। क्या अब वे वहां जा सकते हैं। हम यह न समझें कि हर इजरायली नेतान्याहू का समर्थक है। हर लोग वहां इजरायली सरकार का विरोध कर रहे हैं। वहां के कवि और लेखक विरोध कर रहे हैं। इजरायल तत्काल युद्ध को समाप्त करें। आज भारत एक थर्ड पार्टी के जरिए यूक्रेन को हथियार बेच रहा है।”

‘सार्थक संवाद’ से जुड़े ‘ऐप्सो’ के पटना जिला कमिटी सदस्य रौशन कुमार ने अपने विचार रखते हुए कहा, “गांधी जी ने पश्चिम की उस धर्मनिरपेक्षता का विरोध किया था जिसमें धर्म के लिए जगह नहीं है। भारत में खिलाफत आंदोलन के दौरान गांधी जी ने दोनों धर्मों के लोगों को एक साथ इकट्ठा किया था। यहूदियों पर जब अत्याचार किया जा रहा है ऐसी अवस्था में जर्मनी से युद्ध भी करना पड़े तो किया जा सकता है। गांधी जी ने कहा था इंग्लैंड अंग्रेजों का है, फ्रांस फ्रांसीसियों का है वैसे ही फिलीस्तीन भी वहां रहने वालों का होना चाहिए। यहूदियों को जब फिलीस्तीन में बसाया जा रहा था उसका उन्होंने विरोध किया था। आज तो पूरे अरब प्रायद्वीप में यह झगड़ा फैल चुका है। लेबनान और ईरान की हालत हमलोग देख ही रहे हैं। आज साम्राज्यवादी मुल्कों का हस्तक्षेप किया जा रहा है। दोनों पक्ष से निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं।”

शिक्षाविद और ‘ऐप्सो’ जिला कमिटी के सदस्य कुमार सर्वेश ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “एक समय में मजबूरी का नाम महात्मा गांधी’ कहा जाता था। इसके खिलाफ पुरुषोत्तम अग्रवाल ने लिखा ‘मजबूती का नाम महात्मा गांधी’। गांधी जी स्वाधीनता के मात्र छह महीनों के अंदर गुजर गए। भारतीय धर्मनिरपेक्षता के मॉडल को निर्धारित करने में गांधी का बहुत बड़ा योगदान है। यदि गांधी की नजरों से धर्म निरपेक्षता को देखें तो उसमें उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता को शामिल किया था। गांधी धर्म और राजनीति को एक दूसरे से अलग करने के पक्ष में नहीं थे। गांधी का मानना था कि यदि राजनीति को धर्मपरक बनाया जाए। वे उसकी हिमायत किया करते थे। गांधी जी व्यावहारिक धरातल ने खिलाफत वाली गलती को नहीं दोहराया। आज की अरब दुनिया आपस में विभाजित है। इजरायल को लेकर अरब वर्ल्ड का एक समान नजरिया नहीं दिखाई देगा। गांधी जी यहूदियों की समस्या के समाधान में लिए जन्मभूमि और कर्मभूमि की बात को सामने लेकर आए। गांधी का यह मानना था यहूदी समस्या का समाधान उनके लिए होमलैंड देने से नहीं सुलझ जाएगा। दलितों के रुपक का उपयोग किया था। फिलीस्तीन में यहूदियों को जबरदस्ती नहीं बसाया जा सकता है। जब अरब इजरायल युद्ध होता है तभी हम चर्चा करते हैं। अरब दुनिया में जो भी अस्थिरता फैल रही है उसका सबसे बड़ा फायदा पश्चिम के हथियार बनाने वाली कंपनियों को मिलेगा। गांधी जी की अहिंसक सत्याग्रह आज भी अप्रासांगिक नहीं है। दो राष्ट्र के सिद्धांत को मान्यता देकर ही किया जा सकता है।”

पटना साइंस कॉलेज के प्रोफेसर अखिलेश कुमार के अनुसार “जब गांधी जी के बारे में पढ़ते समझते हैं तो लगता है उन्हीं के ऊपर सबसे अधिक बातचीत होती है। गांधीवादी विचारधारा के बगैर भारतीय दर्शन की बात पूरी नहीं होती। गांधी जी ने सत्याग्रह की बात की थी। जब तक खुद के स्तर पर मजबूत न होगा तो वह सत्याग्रह की लड़ाई नहीं लड़ सकता। आखिर फिलीस्तीन का जो नरसंहार हो रहा है वह कब तक चलेगा? यह सवाल पूछना चाहिए। हर वक्त दुनिया के किसी न किसी हिस्से में युद्ध चलता रहता है। हमें अमेरिका के ऊपर हमला बोलना होगा। दुनिया में जो लोकतांत्रिक देश होगा उन सबको एक साथ इकट्ठा होना चाहिए।”

बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ की पत्रिका ‘प्राच्य प्रभा’ के संपादक विजय कुमार सिंह ने कहा “आर्थिक असमानता भी एक हिंसा है। गांधी जी ने सविनय अवज्ञा की बात की। नए किस्म के हथियार की बात की थी। नए किस्म की बात की थी गांधी जी ने। गांधी जी न सत्याग्रह, असहयोग की बात की थी। प्रतिरोध की ताकतों को मजबूत कर सकता है। भारत के संविधान में धर्मनिरपेक्षता को लेकर दक्षिणपंथी अलग व्याख्या करते हैं। जब भी युद्ध और हिंसा की बता की थी तो गांधी जी को याद किया जाएगा। अब तो मात्र बीस प्रतिशत फिलीस्तीन के लोग बच गए हैं।”

‘ऐप्सो’ के राज्य महासचिव अनीश अंकुर ने बताया “गांधी जी ने फिलीस्तीन की आजादी का समर्थन किया था। महात्मा गांधी जब आए तो अहिंसा की नई शब्दावली लेकर आए। जैसे असहयोग, सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा। इस शब्दावली ने हिंसा की भाषा में बात करने वालों को भी डिफेंसिव बना डाला। लेकिन अहिंसा के पुजारी को हिंसा का शिकार होना पड़ा। गांधी जी हत्या में मात्र एक आदमी को फांसी देकर छोड़ दिया गया जबकि सावरकर सहित बाकी लोग छूट गए थे। गांधी जी का सबसे बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने सबसे गरीब और शोषित आदमी के मन से अंग्रेजों के प्रति डर खत्म कर दिया। ‘बुद्ध मियां भी हजरते गांधी के साथ हैं / मुश्ते खाक हैं पर आंधी के साथ हैं’। गांधी जी पर ई.एम.एस नंबूदीरीपाद की किताब ‘महात्मा एंड हिज इजम’ हम सब लोगों को पढ़ना चाहिए। फिलीस्तीन की समस्या को ब्रिटिश साम्राज्य ने बढ़ावा दिया था। ब्रिटेन की देखरेख में 1948 में इजरायल ने फिलीस्तीन के लोगों को बेदखल किया। द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त यहूदियों के साथ जो अत्याचार हुआ था उसका फायदा उठाकर इजरायल को मान्यता प्रदान कर दी गई लेकिन जल्द ही उसने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया। 1948 में बड़े पैमाने पर फिलीस्तीन के लोगों को बेदखल कर दिया गया। यह आपदा ही था और फिलीस्तीन की जनता के सामूहिक स्मृति का हिस्सा बन चुका है जिसे ‘नकबा’ कहा जाता है। प्रथम विश्व युद्ध के वक्त ही इजरायल की अतिराष्ट्रवादी आंदोलन को बिना किसी साम्राज्यवादी आंदोलन के सहयोग के खड़ा नहीं किया जा सकता है। हमलोगों की मांग है कि पूर्वी जेरूसलम को फिलीस्तीन की राजधानी घोषित करना चाहिए। 1967 के युद्ध में जीते हुए इलाकों को इजरायल वापस करे।”

सभा को सामाजिक कार्यकर्ता उदयन ने भी संबोधित किया। अंत में ऐप्सो के राष्ट्रीय अध्यक्ष मंडली के सदस्य लक्ष्मीकांत तिवारी ने अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कहा, “गांधी जी और प्यारेलाल के बीच के संवाद से दोनों के बीच का पता चलता है। गांधी एक विचार है कोई नीति नहीं है। गांधी जी पूंजीपतियों को आम जनता का ट्रस्टी बताया करते थे। फिलीस्तीन के मसले पर हमें ज्यादा से ज्यादा लोगों के मध्य जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है।”

सभा में प्रमुख लोगों में शगुफ्ता रशीद, सुनील कुमार, पप्पू ठाकुर, आनंद कुमार, उत्कर्ष आनंद, राजू कुमार, मनोज कुमार, रंजीत कुमार, कपिलदेव वर्मा, रोहित कुमार, हरेंद्र कुमार, मीर सैफ अली, कुंदन कुमार, मनीष, निखिल कुमार झा, अनिल अंशुमन आदि शामिल थे।

 

Source: News Click