महाबली नेतृत्व पर मणिपुर के मुख्यमंत्री भारी पड़े
भाजपा का महाबली केंद्रीय नेतृत्व आखिर मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का कुछ नहीं बिगाड़ सका। उनसे इस्तीफा लेने या उन्हें हटाने की तमाम कोशिशें नाकाम हो गईं और अंत में उनकी माफी से काम चलाना पड़ा है। पिछले दस साल में यह पहला मौका है जब भाजपा के किसी नेता ने माफी मांगी है, अन्यथा बड़े-बड़े से मामले में न तो किसी भाजपा नेता ने माफी मांगी है और न इस्तीफा दिया है।
अब यह तय हो गया है कि मणिपुर में हिंसा थमे या जारी रहे लेकिन बीरेन सिंह मुख्यमंत्री बने रहेंगे। उन्होंने अपनी ताकत के आगे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को उसकी हैसियत दिखा दी है। वे परोक्ष रूप से भाजपा नेतृत्व को यह समझाने में सफल रहे कि अगर उन्हें हटाया जाता है तो फिर भाजपा सरकार भी नहीं रह पाएगी। बीरेन सिंह को हटाने के अभियान में शामिल लोगों ने जैसे-तैसे 19 विधायकों का समर्थन जुटाया था लेकिन उनमें से भी कई विधायक वापस बीरेन सिंह के खेमे में लौट गए। असल में बीरेन सिंह ने बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के अस्तित्व का मामला बना कर उसके साथ अपने को जोड़ दिया। उन्होंने ऐसी तस्वीर पेश की कि कुकी समुदाय और उससे जुड़े उग्रवादी समूहों को बाहरी मदद मिल रही है और ऐसे में बहुसंख्यक मैतेई समुदाय की रक्षा वे ही कर सकते हैं। इसीलिए तमाम मैतेई विधायक और कुछ नगा विधायक भी उनके समर्थन में आ गए। उनके खिलाफ चले अभियान की हवा निकल गई। उसके बाद यह रास्ता निकाला गया कि वे माफी मांग ले।
मक्कारी और बेशर्मी की नायाब मिसाल
कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के दौरान हुई अव्यवस्था का मामला उठाया और केंद्र सरकार पर हमला किया तो जवाब देने की जिम्मेदारी भाजपा की आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने उठाई। उनका मकसद सरकार और भाजपा के बड़े नेताओं को बचाना था लेकिन इस क्रम में उन्होंने केंद्र सरकार की तमाम एजेंसियों को कठघरे में खड़ा कर दिया। पवन खेड़ा के उठाए नौ सवालों के जवाब में उन्होंने एक बार नहीं कहा कि वैसा नहीं हुआ है, जैसा खेड़ा कह रहे हैं। उन्होंने हर सवाल के जवाब में किसी न किसी एजेंसी को जिम्मेदार बताया।
मिसाल के तौर पर पवन खेड़ा ने कहा कि अंतिम संस्कार के समय सारा फोकस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर था। इसका जवाब देते हुए मालवीय ने कहा कि कवरेज का काम दूरदर्शन के जिम्मे था। इसी तरह खेड़ा ने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह के काफिले की वजह से शवयात्रा प्रभावित हुई। इसके जवाब मे मालवीय ने कहा कि ट्रैफिक पुलिस ने इसकी व्यवस्था की थी। ऐसे ही खेड़ा ने कहा कि परिवार के लोगों के बैठने के लिए सिर्फ तीन कुर्सियां लगाई गई थीं, जबकि सबको पता है कि मनमोहन सिंह की पत्नी, उनकी तीन बेटियां और परिवार के अन्य सदस्य भी हैं। इसके जवाब में भी मालवीय ने सीपीडब्लुडी और पुलिस को जिम्मेदार ठहराया। सवाल है कि दूरदर्शन, सीपीडब्लुडी ट्रैफिक पुलिस और दिल्ली पुलिस क्या स्वायत्त अथवा निजी एजेंसियां हैं?
पत्रकारिता पर गहराते ख़तरे के बादल
छत्तीसगढ़ के बस्तर में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या कर दी गई। वे बस्तर में एक सड़क निर्माण में हो रहे भ्रष्टाचार पर रिपोर्ट कर रहे थे। आरोप है कि सड़क ठेकेदार ने उनकी हत्या करवाई और उनका शव अपने यहां सेप्टिक टैंक में फिंकवा दिया। इस लोमहर्षक हत्याकांड ने बस्तर में पत्रकारिता करने के खतरे को एक बार फिर रेखांकित किया है।
साल 2016 में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की फैक्ट फाइंडिंग टीम ने अपनी रिपोर्ट में इन खतरों का विस्तार से जिक्र किया था। वैसे यह खतरा सिर्फ बस्तर तक ही सीमित न होकर देशव्यापी हो चुका है। हरियाणा में पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की 22 साल पहले हत्या हुई थी, जिनकी हत्या का दोषी गुरमीत राम रहीम जेल में पिछले पांच साल से उम्रकैद की सज़ा के नाम पर मौज कर रहा है। मध्य प्रदेश में सात साल पहले पत्रकार संदीप शर्मा, उत्तर प्रदेश में पत्रकार शुभम मणि त्रिपाठी की हत्या भी रेत माफ़िया ने की थी। इनके अलावा बिहार के सुभाष कुमार महतो, महाराष्ट्र के शशिकांत वारिसे आदि कई नाम हैं, जिनकी हत्या उनके ड्यूटी निभाते हुए कर दी गई या जिनकी जान पर खतरा मंडरा रहा है या जिन पर अवैध कामों में लिप्त ताकतवर तत्वों ने मानहानि के मुकदमे लगा रखे हैं। लेकिन ये लोग बड़े टीवी चैनल या अखबार में रह कर सरकारों के लिए काम नहीं करते, इसलिए इन पत्रकारों को सरकार सिक्योरिटी क्यों देने लगी! यह स्थिति बताती है कि किसी भी सरकार को पत्रकार नहीं चाहिए। अगर सरकारों को भ्रष्टाचार से परहेज होता तो माफ़िया को पनपने का मौका ही नहीं मिलता। अब तो लगता है कि जनता को भी पत्रकार नहीं चाहिए, क्योंकि किसी भी पत्रकार की हत्या पर जनता में कोई सुगबुगाहट देखने को नहीं मिलती है।
नहीं सुधर रही आर्थिक तस्वीर
केंद्र सरकार ने नए साल के पहले दिन वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी कलेक्शन का जो आंकड़ा पेश किया, उसके मुताबिक दिसंबर में सरकार को 1.77 लाख करोड़ रुपए का राजस्व मिला। यह एक महीने पहले यानी नवंबर के मुकाबले पांच हजार करोड़ रुपए कम है। नवंबर में सरकार को 1.82 लाख करोड़ रुपए का राजस्व मिला था। नवंबर का आंकड़ा भी उससे पहले के तीन सबसे ज्यादा राजस्व संग्रह के आंकड़े से कम था, जबकि वह अक्टूबर के त्योहार वाले महीने का संग्रह था। उससे पहले जुलाई से सितंबर के दौरान जीएसटी का औसत कलेक्शन 1.77 लाख करोड रुपये रहा था।
सरकार ने बताया था कि वित्त वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही यानी जुलाई से सितंबर में विकास दर सिर्फ 5.4 फीसदी रही। इतना ही नहीं साल के पहले दिन यह आंकड़ा भी आया है कि कारों की बिक्री चार साल में सबसे कम रही है। कारों की बिक्री में भी एक आंकड़ा यह है कि एसयूवी का हिस्सा बढ़ कर 53 फीसदी से ज्यादा हो गया है। यानी बड़ी गाड़ियां ज्यादा बिकी हैं। कुछ समय पहले ही खबर आई थी कि छोटी गाड़ियों की बिक्री लगातार कम हो रही है। मारुति सुजुकी के चेयरमैन आरसी भार्गव ने कहा था कि एक समय था, जब कारों की बिक्री में 80 फीसदी हिस्सा 10 लाख रुपए से कम कीमत की गाड़ियों का होता था। अब ऐसी कारों की बिक्री कम होती जा रही है। अर्थव्यवस्था की यह रफ्तार नए साल में चिंता का विषय रहेगी।
स्टालिन सरकार की अदाणी से दूरी
तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार ने स्मार्ट मीटर का टेंडर रद्द कर दिया है। कहा गया है कि मीटर के दाम बहुत ज्यादा कोट किए गए थे इसलिए सरकार ने टेंडर रद्द कर दिया। सबसे दिलचस्प बात यह है कि अभी सिर्फ एक टेंडर की बोली सामने आई थी, जिसमें गौतम अदाणी की कंपनी अदाणी एनर्जी लिमिटेड एल वन थी। यानी अदाणी की कंपनी ने सबसे कम बोली लगाई थी। फिर भी स्टालिन सरकार को वह बोली बहुत ज्यादा लगी और इस आधार पर उसने टेंडर रद्द कर दिए। सवाल है कि सचमुच टेंडर में बोली ज्यादा की थी या अदाणी की वजह से इसे रद्द किया गया?
यह सवाल इसलिए है क्योंकि तमिलनाडु सरकार ने ग्लोबल टेंडर निकाला था। ऐसा टेंडर, जिसमें दुनिया भर की कंपनियां हिस्सा ले सकती थीं। कुल चार टेंडर निकाले गए थे। उसमें से एक टेंडर, जिसमें 80 लाख से कुछ ज्यादा मीटर सप्लाई करने थे, उसे खोला गया और अदाणी समूह की बोली सबसे कम होने के बाद उसे और साथ-साथ बाकी तीन टेंडर भी रद्द कर दिए गए। अगर ग्लोबल टेंडर में अदाणी की बोली सबसे कम है तो राज्य सरकार को पता होगा कि इससे कम बोली नहीं लगने वाली है। फिर भी सरकार ने टेंडर रद्द किया है तो कारण यही लग रहा है कि वह अभी अडानी को कोई ठेका देना नहीं चाहती है। इससे केंद्र सरकार पर क्रोनी कैपिटलिज्म का आरोप लगाना मुश्किल हो जाएगा। राज्य में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं।
केजरीवाल का हिंदुत्व कार्ड
आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल पहले भी हिंदुत्व की राजनीति करते थे। वे भाजपा की तर्ज पर भारत माता की जय के नारे लगाते थे और अपने को हनुमान भक्त बताते थे। विधानसभा चुनाव में गिनती के मुस्लिम उम्मीदवार उतारते थे क्योंकि उन्हें भरोसा था कि मुस्लिम वोट कहीं नहीं जाएगा। लेकिन अब वे भाजपा से भी ज्यादा हिंदुत्व की राजनीति कर रहे हैं। असल में इस बार का विधानसभा चुनाव उनके लिए बेहद मुश्किल चुनाव माना जा रहा है। 10 साल की एंटी इन्कम्बैंसी और कांग्रेस के प्रति मुस्लिम और पूर्वांचल के मतदाताओं के सद्भाव से उनकी मुश्किल बढ़ी हैं। इसीलिए इस बार वे खुल कर हिंदुत्व की राजनीति कर रहे हैं।
भाजपा ने दिल्ली में बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या शरणार्थियों का मुद्दा बनाया और उप राज्यपाल ने दिल्ली पुलिस को आदेश दिया कि वह बांग्लादेशियों की पहचान के लिए अभियान चलाए तो केजरीवाल भी इस राजनीति में कूद गए। उनकी पार्टी के नियंत्रण वाले दिल्ली नगर निगम ने निगम के स्कूलों में बांग्लादेशी बच्चों की पहचान का अभियान छेड़ दिया। इसी कड़ी में केजरीवाल ने दिल्ली के मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारों के ग्रथियों को 18 हजार रुपया महीना देने की घोषणा कर दी है। इससे पहले मस्जिदों इमामों को 17 हजार रुपया महीना मिलता है। हालांकि इमामों का कहना है कि उन्हें 17 महीने से वेतन नहीं मिला है। इस सिलसिले में इमामों का एक प्रतिनिधिमंडल पिछले दिनों केजरीवाल से मिलने पहुंचा था लेकिन उन्होंने मिलने से इनकार कर दिया। दरअसल वे नहीं चाहते हैं कि इस समय इमामों के साथ तस्वीर सामने आए।
पटनायक की रणनीति है या मजबूरी?
ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार विपक्ष की राजनीति में उतरे हैं। वे अब तक भाजपा के प्रति सद्भाव दिखाते रहे हैं और चूंकि 24 साल से लगातार लोकसभा और विधानसभा का चुनाव जीत रहे थे तो कभी चुनाव आयोग या ईवीएम पर भी सवाल उठाने की जरुरत नहीं पड़ी थी। लेकिन पहली हार के बाद ही उन्हें लगा है कि विपक्ष की राजनीति करनी होगी। उन्होंने ईवीएम पर सवाल उठाया है और बैलेट से चुनाव कराने की मांग की है। गौरतलब है कि उनकी पार्टी चुनावी गड़बड़ियों की कई शिकायतें चुनाव आयोग से कर चुकी है। चुनाव आयोग ने अभी तक तक उनकी शिकायतों का जवाब नहीं दिया है। उनकी पार्टी बीजू जनता दल की शिकायतें बहुत गंभीर और वस्तुनिष्ठ हैं। उन्होंने डाले गए और गिने गए वोट के फर्क के आंकड़े दिए है। लोकसभा और विधानसभा के मतदान के अंतर का मुद्दा उठाया है और शाम पांच बजे के बाद वोटों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी का भी मुद्दा बनाया है। उन्होंने कहा है कि कई सीटों पर शाम पांच बजे जो आंकड़ा दिया गया था उससे 30 फीसदी ज्यादा मतदान का अंतिम आंकड़ा आया। इसीलिए उनकी पार्टी ने कहा है कि या तो ईवीएम में गड़बड़ी है या मैनुअल गड़बड़ी है या पूरी चुनाव प्रक्रिया में गड़बड़ी है या तीनों में कुछ-कुछ गड़बड़ी है। जाहिर है चुनाव आयोग उनकी शिकायतें खारिज करेगा लेकिन ऐसा लग रहा है कि एक रणनीति के तहत वे चुनाव आयोग के खिलाफ अभियान में विपक्ष के साथ जुड़ने को तैयार है।
आतिशी के नाम पर सहानुभूति का प्रयास
आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने अब मनीष सिसोदिया का नाम लेना बंद कर दिया है। वे अब नहीं कहते हैं कि दिल्ली के बच्चों के मनीष चाचा ने दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था को विश्व स्तर का बना दिया और उसे खराब करने के लिए केंद्र सरकार ने सिसोदिया को गिरफ्तार किया था। वे सत्येंद्र जैन के नाम पर भी सहानुभूति का कार्ड नहीं खेल रहे हैं। अब केजरीवाल ने मुख्यमंत्री आतिशी के नाम पर सहानुभूति हासिल करने का प्रयास शुरू किया है। उन्होंने अचानक एक दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में कह दिया कि केंद्र सरकार की एजेंसियां आतिशी को झूठे मामले में फंसा कर गिरफ्तार करना चाहती हैं। इसके लिए केजरीवाल ने महिलाओं को मुफ्त बस पास की योजना को मुद्दा बनाया। उन्हें पता है कि मुफ्त बस पास से महिलाओं को बहुत फायदा हो रहा है। इसीलिए उन्होंने कह दिया कि इस योजना में गड़बड़ी के आरोप लगा कर आतिशी को गिरफ्तार किया जा सकता है।
केजरीवाल ने यहां तक कहा कि ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग की मीटिंग इसके लिए हो चुकी है। लेकिन दिल्ली के परिवहन विभाग के अपर मुख्य सचिव प्रशांत गोयल ने साफ कर दिया कि आतिशी के खिलाफ न तो कोई शिकायत है और न ही किसी तरह की जांच चल रही है। ऐसा लग रहा है कि महिला सम्मान योजना और महिला बस पास के साथ महिला मुख्यमंत्री को जोड़ कर केजरीवाल इसका कुछ फायदा लेना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने उनकी गिरफ्तारी का एक नैरेटिव बनाने का प्रयास किया।
Source: News Click