
ऑपरेशन सिंदूर के बाद हुए प्रमुख अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम देश की रणनीतिक असफलताओं को उजागर करते हैं. इस सामरिक जीत के लिये वैश्विक समर्थन हासिल कर पाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विफलता को लेकर सवाल उठ रहे हैं.
नई दिल्ली: ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान को करारा सैन्य जवाब देने के बावजूद मोदी सरकार को महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद हुए प्रमुख अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम देश की रणनीतिक असफलताओं को उजागर करते हैं. इस सामरिक जीत के लिये वैश्विक समर्थन हासिल कर पाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विफलता को लेकर सवाल उठ रहे हैं.
भारत को विश्वगुरु बताने के प्रधानमंत्री मोदी के दावे इस संकट के समय निराधार साबित हुए हैं.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तालिबान प्रतिबंध समिति की अध्यक्षता पाकिस्तान करेगा
पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तालिबान प्रतिबंध समिति का अध्यक्ष और आतंकवाद-रोधी समिति का उपाध्यक्ष बनाया जाना भारत के लिए कूटनीतिक झटका है. यह पड़ पाकिस्तान को आतंकवाद और अफ़गानिस्तान पर बयानबाज़ी करने में सक्षम बनाता है, जिससे भारत के हितों को नुकसान पहुंचने की संभावना है.
मोदी सरकार की कूटनीतिक पहुंच के बावजूद पाकिस्तान ने चीन और अन्य सदस्यों के समर्थन से ये पड़ हासिल किये हैं. गौर करें, भारत ने पाकिस्तान के साथ हुए संघर्ष को लेकर यूएनएससी सदस्यों के सामने देश का पक्ष रखने के लिए बहुपक्षीय प्रतिनिधिमंडल भी भेजा था.
यह घटनाक्रम न केवल पाकिस्तान को आतंकवाद के केंद्र के रूप में चिन्हित करने के भारत के प्रयासों को कमजोर करता है, बल्कि यह भी चिंता पैदा करता है कि पाकिस्तान अपनी स्थिति का इस्तेमाल भारत विरोधी बयानबाजी को आगे बढ़ाने के लिए कर सकता है.
यह कदम प्रमुख बहुपक्षीय मंचों पर भारत के घटते प्रभाव का संकेत है और अंतरराष्ट्रीय निर्णय लेने में चीन-पाकिस्तान धुरी के बढ़ते प्रभाव को उजागर करता है.
पुतिन ने पुष्टि की कि ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान युद्ध विराम में मध्यस्थता की
इसी तरह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा भारत-पाकिस्तान संघर्षविराम में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता का समर्थन करना, तीसरे पक्ष की भागीदारी के खिलाफ भारत के लंबे समय से चले आ रहे रुख को चुनौती देता है.
पुतिन की यह टिप्पणी कि ट्रंप की ‘व्यक्तिगत भागीदारी’ के चलत ये संघर्ष रुका, इस कथन को और पुख्ता करता है कि पीएम मोदी को अंतरराष्ट्रीय दबाव में पाकिस्तान से बातचीत के लिए मजबूर होना पड़ा और उन्होंने अमेरिकी आदेश के आगे घुटने टेक दिए.
यह पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों की भारत की लंबे समय से चली आ रही स्थिति को भी कमजोर करता है और महत्वपूर्ण सुरक्षा संकटों के दौरान भारत की रणनीतिक स्वायत्तता पर संदेह पैदा करता है.
पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक से ऋण मिल रहा है
भारत की कड़ी आपत्तियों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक से प्रमुख ऋण प्राप्त करने में पाकिस्तान की सफलता वैश्विक वित्तीय संस्थानों में मोदी सरकार के सीमित प्रभाव को दर्शाती है.
इनमें 1 बिलियन डॉलर का आईएमएफ ऋण, 40 बिलियन डॉलर का विश्व बैंक भागीदारी ढांचा और 800 मिलियन डॉलर का एबीडी पैकेज शामिल है.
भारत ने इन निधियों के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंता जताई थी. खासकर पाकिस्तान के बढ़े हुए रक्षा खर्च और प्रमुख सुधारों पर प्रगति की कमी को देखते हुए.
हालांकि, बढ़े हुए तनाव के बीच भी पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सहायता लगातार मिलना, बहुपक्षीय संस्थानों में भारत के प्रभाव की सीमाओं का संकेत देता है और मोदी सरकार की पाकिस्तान को आर्थिक रूप से अलग-थलग करने में विफलता को उजागर करता है.
संयुक्त राष्ट्र में कूटनीतिक असफलताएं
भारत को संयुक्त राष्ट्र में उल्लेखनीय कूटनीतिक असफलताओं का सामना करना पड़ा है, विशेष रूप से पहलगाम हमले के लिए पाकिस्तान स्थित समूहों की स्पष्ट निंदा सुनिश्चित करने के प्रयासों में.
चीन के समर्थन से पाकिस्तान ने यूएनएससी के बयानों में विशिष्ट अपराधियों के संदर्भों को रोकने में कामयाबी हासिल की, जिससे भारत के दावे कमज़ोर पड़ गए.
हालांकि, मोदी सरकार ने समर्थन जुटाने के लिए प्रतिनिधिमंडल भेजे, लेकिन किसी भी देश ने पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित नहीं किया या भारत के पक्ष में स्पष्ट बयान जारी नहीं किया. ये असफलताएं मोदी सरकार द्वारा अपनी चिंताओं पर वैश्विक सहमति बनाने में आने वाली कठिनाइयों को रेखांकित करती हैं.
चीन-पाकिस्तान धुरी को मजबूत करना
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान और उसके बाद पाकिस्तान को चीन के समर्थन ने दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को और गहरा किया है. चीन ने पाकिस्तान को सैन्य और कूटनीतिक समर्थन दिया, जिसमें महत्वपूर्ण रक्षा प्रणालियां और पाकिस्तान की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सार्वजनिक समर्थन शामिल है.
चीन ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने के लिए हस्तक्षेप किया, जिससे इस्लामाबाद को दबाव में रखने के लिए तालिबान की ओर भारत की पहुंच को नकार दिया गया. साझा क्षेत्रीय हितों और भारत के साथ प्रतिद्वंद्विता से प्रेरित यह बढ़ती साझेदारी, दक्षिण एशिया और उससे आगे भारत की सुरक्षा और कूटनीतिक लाभ के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश करती है.
पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय निंदा करवाने में विफलता
उच्च-स्तरीय प्रयासों के बाद भी मोदी सरकार पहलगाम हमले और उसके बाद की घटनाओं में पाकिस्तान की कथित भूमिका के लिए उसकी स्पष्ट अंतरराष्ट्रीय निंदा करवाने में विफल रही है. जबकि कई देशों ने सामान्य शब्दों में आतंकी हमले की निंदा की, लेकिन किसी ने भी सीधे तौर पर पाकिस्तान की निंदा नहीं की या वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force) जैसे मंचों पर पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट करने के भारत के आह्वान का समर्थन नहीं किया.
एक बड़ी आतंकी घटना और सैन्य टकराव के बाद भी मजबूत अंतरराष्ट्रीय समर्थन का अभाव मोदी सरकार की वर्तमान विदेश नीति दृष्टिकोण की सीमाओं को उजागर करता है.
ये संकेतक सामूहिक रूप से बताते हैं कि, ज़मीन पर सैन्य सफलताओं के बावजूद मोदी सरकार की विदेश नीति ने भारत को युद्धक्षेत्र में मिली सफलता को पाकिस्तान पर कूटनीतिक लाभ लेने से सीमित कर दिया.
संकट के क्षणों में भारत ने खुद को अलग-थलग पाया, वैश्विक शिखर सम्मेलनों में देश को दरकिनार किया गया और समर्थन जुटाने में मोदी सरकार असमर्थ रही.
बहुपक्षीय मंचों पर विरोधियों का बढ़ता प्रभाव, प्रमुख वैश्विक मंचों से बहिष्कार और पाकिस्तान के खिलाफ़ अंतरराष्ट्रीय राय को एकजुट करने में असमर्थता वर्तमान भू-राजनीतिक वातावरण में भारत के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियों की ओर इशारा करती है. पीएम मोदी की घरेलू बयानबाजी भारत के कम होते कूटनीतिक प्रभाव और रणनीतिक असफलताओं की वास्तविकता को छुपाती है.
Source: The Wire