योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार की तर्ज पर, अब हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने राज्य भर में होटलों और खाने-पीने की दुकानों पर संचालकों, मालिकों और प्रबंधकों के नाम और पते लिखना अनिवार्य कर दिया है। यह आदेश 25 सितंबर को जारी किया गया, जिसका उद्देश्य राज्य के खाद्य उद्योग में पारदर्शिता बढ़ाना और सार्वजनिक सुरक्षा को सुनिश्चित करना है।
हिमाचल प्रदेश के मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने फेसबुक पर इस घटनाक्रम की जानकारी साझा की, कि “हिमाचल में लोगों को किसी भी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े, यह सुनिश्चित करने के लिए हर रेस्तरां और फास्ट फूड आउटलेट को मालिक की आईडी दिखाना अनिवार्य होगा।” यह निर्देश शहरी विकास और नगर निगम की बैठक में जारी किया गया था।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कुछ वीडियो में लोगों को खाने-पीने की चीजों पर कथित तौर पर थूकते या पेय पदार्थों में मूत्र मिलाते हुए दिखाया गया था, जिसके बाद यूपी सरकार ने खाने की दुकानों पर दुकानदार का नाम लिखना अनिवार्य किया। इससे पहले भी, योगी सरकार ने सावन में कांवड़ रूट पर खाने-पीने की दुकानों पर मालिक का नाम लिखने का आदेश जारी किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे रोक दिया था।
अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, यूपी सीएमओ ने दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा कि खान-पान की सामग्री में मानव अपशिष्ट जैसी गंदी वस्तुएं मिलाने की घटनाएं सामने आ रही हैं, जो लोगों की सेहत और मानसिकता पर बुरा प्रभाव डालती हैं। उन्होंने कहा कि यूपी में ऐसी घटनाएं अब बर्दाश्त नहीं की जाएंगी।
सीएम योगी ने स्पष्ट किया कि ढाबा, रेस्टोरेंट और अन्य प्रतिष्ठानों में समय-समय पर खानपान की सामग्री की जांच की जाएगी। दुकान संचालकों और वहां काम करने वाले लोगों का पुलिस सत्यापन कराया जाएगा, और यह कार्य खाद्य सुरक्षा एवं औषधि विभाग, पुलिस और प्रशासन की टीमें करेंगी।
योगी ने कहा कि खान-पान की दुकानों में प्रोपराइटर, संचालक और मैनेजर का नाम-पता स्पष्ट रूप से लिखा जाना अनिवार्य है, और आवश्यकता पड़ने पर खाद्य सुरक्षा एवं मानक कानून में संशोधन किया जाएगा।
बता दें कि योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को होटल और सड़क किनारे की खाने-पीने की दुकानों सहित खाद्य प्रतिष्ठानों की गहन जांच करने का निर्देश दिया है। उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा को मजबूत करने के लिए खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम में संशोधन की भी वकालत की।
विपक्षी दलों ने योगी सरकार के इस कदम की आलोचना की है। एबीपी की रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ मध्य विधानसभा क्षेत्र से सपा विधायक रविदास मेहरोत्रा ने कहा कि इस कदम का उद्देश्य दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की बिक्री को कम करना और उनकी दुकानें बंद करवाना है।
उन्होंने कहा, ‘2022 के उप्र विधानसभा चुनाव में सपा ने वादा किया था कि वह समाजवादी कैंटीन लाएगी, जहां 10 रुपये में साफ और पर्याप्त भोजन मिल सकेगा। अगर मुख्यमंत्री की मंशा सही है तो सरकार को दुकानें और ढाबे खोलने चाहिए, जहां एक व्यक्ति को 10 रुपये में भरपेट भोजन मिल सके।’
कांग्रेस की राज्य इकाई के अध्यक्ष अजय राय ने कहा, “होटल और रेस्टोरेंट के मालिक की नेम प्लेट में जीएसटीआईएन नंबर पर पहले से ही सारी जानकारी दर्ज है। खाद्य पदार्थों की जांच होनी चाहिए, और हर दुकान से हर महीने पैसे लेने की गलत प्रथा को सबसे पहले ठीक किया जाना चाहिए।”
Source: News Click