कोर्ट में इस याचिका पर पिछले आठ महीने से सुनवाई जारी थी, और अब हिंदू पक्ष अदालत के इस निर्णय से असंतुष्ट है। हिंदू पक्ष के वकील विजय शंकर रस्तोगी और अधिवक्ता सुभाष नंदन चतुर्वेदी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वे हाई कोर्ट में इस आदेश के खिलाफ अपील करेंगे। रस्तोगी ने कहा कि उनका मानना है कि इस अदालत ने माननीय हाई कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया है, जिसमें 4 अप्रैल 2021 के आदेश का उल्लेख था, और कहा गया था कि यदि एएसआई द्वारा पहले किया गया सर्वे संतोषजनक नहीं है तो अतिरिक्त सर्वे कराया जा सकता है। हिंदू पक्ष का दावा है कि इस आदेश का उल्लंघन हुआ है और अब वे हाई कोर्ट जाकर न्याय की गुहार करेंगे।
हिंदू और मुस्लिम पक्ष का दावा
हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी परिसर में मुख्य गुंबद के नीचे 100 फुट लंबा शिवलिंग मौजूद है और इसे उजागर करने के लिए पूरे परिसर का एएसआई द्वारा फिर से सर्वे किया जाना चाहिए। हिंदू पक्ष ने तर्क दिया कि इस संरचना को स्पष्ट करने के लिए विस्तृत सर्वेक्षण किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि 1991 में सोमनाथ व्यास द्वारा दाखिल की गई याचिका के तहत यह मामला सिविल कोर्ट में लंबित है। इसी याचिका के तहत संपूर्ण ज्ञानवापी परिसर में एएसआई सर्वेक्षण की मांग की गई थी। अदालत द्वारा 8 अप्रैल 2021 को आदेश के बावजूद अतिरिक्त सर्वे का कोई आदेश नहीं हुआ था, इसलिए हिंदू पक्ष ने संपूर्ण ज्ञानवापी परिसर का सर्वेक्षण कराए जाने की प्रार्थना की थी।
हिंदू पक्ष के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने कोर्ट में दाखिल याचिका में ASI की तरफ से मस्जिद परिसर में पहले किए सर्वे को अधूरा बताया था। उन्होंने तर्क दिया था कि हिंदू पक्ष ने जिस एरिया में शिवलिंग होने का दावा किया था, वहां सर्वे नहीं किया गया। भगवान आदि विशेश्वर का 100 फीट का विशाल शिवलिंग और अरघा मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे जमीन के अंदर मौजूद है। इसका पेनिट्रेटिंग रडार से सर्वे होना चाहिए। साथ ही वजूखाने और बाकी बचे तहखानों का भी सर्वे होना चाहिए। इसके लिए आर्कियोलॉजिक्ल सर्वे ऑफ इंडिया (Archeological Survey of India) को आदेश देने की जरूरत है।
हिंदू पक्ष के वकील ने कोर्ट को बताया कि एएसआई और जीपीआर प्रणाली स्पष्ट रूप से पूरी संरचना की सटीक जानकारी देने में सक्षम नहीं है। इसलिए अदालत से आग्रह किया गया था कि परिसर में संरचना को बिना क्षति पहुंचाए, आसपास के क्षेत्र में खुदाई कर गहराई तक जांच की जाए ताकि यह स्पष्ट हो सके कि ज्ञानवापी परिसर में स्वयंभू विश्वेश्वर का ज्योतिर्लिंग है या नहीं। उनका दावा है कि यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है और इसे उजागर करना आवश्यक है।
मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्ष के इस अतिरिक्त सर्वे की मांग का विरोध करते हुए इसे अनावश्यक और अनुचित बताया। मुस्लिम पक्ष का कहना था कि अतिरिक्त सर्वे की कोई जरूरत नहीं है और इससे परिसर की वर्तमान संरचना को नुकसान पहुंच सकता है। उन्होंने हिंदू पक्ष के दावे को निराधार बताते हुए कहा कि एएसआई द्वारा पूर्व में कराए गए सर्वे के बाद किसी और कार्यवाही की आवश्यकता नहीं है।
हिंदू पक्ष की याचिका का अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने विरोध किया था। कमेटी की दलील है कि ज्ञानवापी की खुदाई का आदेश देने से सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने भी इनकार कर दिया था। साथ ही ASI को ज्ञानवापी के ढांचे में किसी भी तरह का बदलाव नहीं करने का निर्देश दिया था।
19 अक्टूबर से सुरक्षित था फैसला
ज्ञानवापी मस्जिद केस में हिंदू पक्ष की याचिका पर 19 अक्टूबर को बहस पूरी हो गई थी। इसके बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा था, जिसे शुक्रवार (25 अक्टूबर) को सुनाया गया है। हिंदू पक्ष के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने फैसला आने के बाद कहा कि हमें आदेश की पूरी कॉपी का इंतजार है। उसकी स्टडी करने के बाद हम इसे इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती देंगे।
8 अप्रैल 2021 के फैसले के मुताबिक, ASI को सर्वे के लिए 5 मेंबर की कमेटी गठित करनी थी, जिसमें एक व्यक्ति अल्पसंख्यक समुदाय से शामिल किया जाना था और एक मेंबर किसी सेंट्रल यूनिवर्सिटी से एक्सपर्ट के तौर पर बुलाना था। इस कमेटी को ही ज्ञानवापी का सर्वे करना था, लेकिन इससे पहले हुए सर्वे में केवल ASI के कर्मचारी शामिल थे। हाईकोर्ट ने भी इस बात की पुष्टि की थी कि यह सर्वे उसके 08 अप्रैल के आदेश के मुताबिक नहीं है। हम हाई कोर्ट में इसी आधार पर वाराणसी कोर्ट के फैसले को चुनौती देंगे।
काफी पुराना है मामला
यह मामला करीब तीन दशक पुराना है। फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 1991 में दायर एक याचिका पर अब फैसला दिया है। 33 साल पहले, पं। सोमनाथ व्यास, डॉ। रामरंग शर्मा और पं। हरिहर नाथ पांडेय ने ‘स्वयंभू विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग’ की ओर से पूरे ज्ञानवापी परिसर का एएसआई सर्वे कराने की मांग की थी। अब इनकी जगह वादी के रूप में विजय शंकर रस्तोगी मामले को आगे बढ़ा रहे हैं, क्योंकि इन तीनों का निधन हो चुका है।
ज्ञानवापी का वजूखाना कोर्ट के आदेश पर सील कर दिया गया है। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि परिसर की खुदाई करने से मस्जिद को नुकसान पहुंच सकता है। कोर्ट में हुई 8 महीने की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने दलील दी कि एक बार पहले ही एएसआई सर्वे हो चुका है, तो फिर से सर्वेक्षण कराने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि खुदाई व्यावहारिक नहीं है और इससे मस्जिद को नुकसान का खतरा है।
इस पर हिंदू पक्ष के वादी विजय शंकर रस्तोगी ने मुस्लिम पक्ष की दलीलों का विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि पहले के सर्वे में परिसर में तालाब और कमीशन की कार्यवाही के दौरान मिले शिवलिंग का सही से निरीक्षण नहीं किया गया था और रिपोर्ट में इनका उल्लेख भी नहीं है। उनकी दलील थी कि पिछले सर्वे में मशीनों का सही इस्तेमाल नहीं हुआ, और कई हिस्सों का सर्वे नहीं किया गया, जिससे अहम सबूत मिलने की संभावना रह जाती है।
इस तरह, 1991 से अब तक यह विवाद बार-बार चर्चा में रहा है। हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर का हिस्सा है और इसके चलते कई बार मुकदमे भी दायर किए गए, लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकला।
2021 में इस विवाद ने फिर जोर पकड़ा जब दिल्ली की राखी सिंह और बनारस की लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक ने वाराणसी की सिविल जज कोर्ट में एक याचिका दाखिल की। उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी में हिंदू देवी-देवताओं का स्थान है और माँ शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन की अनुमति दी जाए। इस याचिका पर कोर्ट ने 26 अप्रैल को ज्ञानवापी परिसर का सर्वे कराने का आदेश दिया, जिसके लिए एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किए गए।
हालांकि, इस दौरान काफी हंगामा और विरोध हुआ। मुस्लिम पक्ष ने एडवोकेट कमिश्नर को बदलने की मांग की, जबकि हिंदू पक्ष ने तहखानों समेत पूरे परिसर की वीडियोग्राफी की मांग की। अंततः कोर्ट ने 12 मई को एएसआई सर्वे का फाइनल आदेश दे दिया था। हिन्दू पक्ष उस इलाके का साइंटिफिक सर्वे कराना चाहता था, जिसे सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सील किया जा चुका है। डिस्ट्रिक कोर्ट से मामला खारिज होने से इस मुकदमें में उम्मीद लगाए हिन्दू पक्ष के वादकारियों को तगड़ा झटका लगा है।