
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार को राज्यसभा में वक़्फ़ बिल पेश करते हुए कहा कि यह विधेयक वक्फ बोर्डों को मज़बूत करने और महिलाओं, बच्चों व वंचित वर्गों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के इरादे से बनाया गया है. बुधवार देर रात लोकसभा में पारित बिल के पक्ष में 288 और ख़िलाफ़ 232 वोट पड़े थे.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने विपक्ष की तमाम आपत्तियों और विरोध के बावजूद वक़्फ़ संशोधन विधेयक 2024 को लोकसभा में पारित करा लिया है. विधेयक को पारित करने में 12 घंटे से अधिक का समय लग गया.
बिजनेस एडवाइजरी कमेटी ने इस विधेयक पर बहस के लिए आठ घंटे निर्धारित किए थे, लेकिन सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों की तीखी बहस के कारण चर्चा लंबी खिंच गई. बुधवार (2 अप्रैल) दोपहर 12 बजे चर्चा शुरू हुई और गुरुवार (3 अप्रैल) रात 12:06 बजे मतदान के लिए पेश किया गया.
मतदान के माध्यम से विधेयक को पारित होने में रात के 2 बजे गए. 288 मत विधेयक के पक्ष में और 232 मत विरोध में पड़े. विधेयक को भाजपा के सहयोगी दलों, तेदेपा, जद (यू) और लोजपा ने समर्थन दिया. जहां सरकार ने इन संशोधनों को पारदर्शिता बढ़ाने, कुप्रबंधन रोकने और वक्फ संपत्तियों के बेहतर नियमन के लिए आवश्यक बताया है. वहीं विपक्षी दलों का मानना है कि यह मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वायत्तता में हस्तक्षेप है.
सरकार का क्या कहना है?
2 अप्रैल को केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में विवादित वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किया और सरकार की ओर से चर्चा की शुरुआत की. अपने संबोधन के दौरान, रिजिजू ने इस विधेयक का विरोध कर रहे विपक्ष पर तीखा हमला किया और बताया कि सुझाए गए संशोधनों को लागू करना क्यों जरूरी है.
रिजिजू ने शुरुआत करते हुए कहा, ‘हमने विधेयक में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) द्वारा दिए गए कई सुझावों को स्वीकार किया है और एक महत्वपूर्ण संशोधन पेश किया है. यह ‘उम्मीद’ देगा कि एक नया सवेरा आने वाला है. इसी कारण नए अधिनियम का नाम भी UMEED (Unified Waqf Management, Empowerment, Efficiency, and Development Act) रखा गया है.’
उन्होंने दावा किया कि मुस्लिम समुदाय संशोधनों का स्वागत कर रहे हैं, ‘मुस्लिम समुदाय इस विधेयक का खुले दिल से स्वागत कर रहा है. यहां कुछ लोग निश्चित रूप से इसका विरोध कर रहे हैं, लेकिन मैं उन्हें अपने घर आमंत्रित करना चाहता हूं ताकि वे खुद देख सकें कि मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल मुझसे मिलकर इस विधेयक का समर्थन कर रहे हैं. इससे उनकी सोच बदल जाएगी. उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं है कि मुस्लिम समुदाय के भीतर इस विधेयक को कितनी स्वीकृति मिल रही है.’
रिजिजू ने आगे कहा, ‘हमने शिया, सुन्नी, पिछड़े मुसलमानों, महिलाओं और विशेषज्ञ गैर-मुसलमानों को वक़्फ़ बोर्ड में शामिल करने की अनुमति दी है… इसमें दो गैर-मुस्लिम हो सकते हैं, और इसमें दो महिलाएं भी होनी चाहिए. अब तक वक़्फ़ बोर्ड में महिलाएँ कहाँ थीं?’
उन्होंने दावा किया कि सरकार कांग्रेस की गलती को सुधार रही है. रिजिजू ने कहा, ‘2013 में यह प्रावधान लाया गया कि कोई भी व्यक्ति, किसी भी धर्म का, वक़्फ़ बना सकता है. इससे मूल अधिनियम कमजोर हो गया. फिर यह प्रावधान लाया गया कि शिया वक़्फ़ बोर्ड में केवल शिया होंगे और सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड में केवल सुन्नी. एक और प्रावधान लाया गया कि वक़्फ़ बोर्ड किसी भी कानून से ऊपर होगा. यह कैसे स्वीकार्य है?’
उन्होंने कहा कि सरकार किसी धार्मिक गतिविधि में हस्तक्षेप नहीं कर रही है. यह केवल संपत्तियों के प्रबंधन का मामला है, ‘यूपीए सरकार द्वारा किए गए वक्फ कानून में संशोधनों ने इसे अन्य क़ानूनों पर प्राथमिकता दे दी थी, इसलिए नए संशोधन आवश्यक थे.’
इस दौरान रिजिजू ने मार्च 2014 में तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा दिल्ली की 123 प्रमुख संपत्तियों को वक्फ बोर्ड को सौंपने के फैसले का जिक्र किया. रिजिजू ने यहां तक कह दिया कि अगर उनकी सरकार यह संशोधन बिल पेश नहीं करती, तो जिस इमारत में हम बैठे हैं, उस पर भी वक़्फ़ द्वारा दावा किया जा सकता था.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, मार्च 2014 में आम चुनावों के लिए आचार संहिता लागू होने से एक रात पहले ही 123 संपत्तियां वक्फ बोर्ड को सौंप दी गई थीं. इनमें से अधिकांश संपत्तियां दिल्ली के प्रमुख इलाकों में स्थित हैं, जैसे: कनॉट प्लेस, मथुरा रोड, लोधी रोड, मानसिंह रोड, पंडारा रोड, अशोक रोड, जनपथ, संसद भवन क्षेत्र, करोल बाग, सदर बाजार, दरियागंज, जंगपुरा.
2014 में एनडीए सरकार बनने के बाद, केंद्र सरकार ने इन संपत्तियों की समीक्षा के लिए एक एकल-सदस्यीय समिति बनाई. बाद में, दो सदस्यीय पैनल गठित किया गया, जिसने यह निष्कर्ष निकाला कि इन संपत्तियों पर दिल्ली वक्फ बोर्ड का कोई अधिकार नहीं है.
2023 में केंद्र सरकार ने इन 123 संपत्तियों को फिर से अपने अधिकार में ले लिया, जिसके बाद दिल्ली वक्फ बोर्ड ने इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया. यह मामला फिलहाल कोर्ट में लंबित है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी रिजिजू की बात दोहराते हुए कहा कि 2013 में यूपीए सरकार ने वक़्फ़ कानून को लोकसभा चुनावों से पहले ‘तुष्टीकरण’ के लिए बदल दिया था. अगर 2013 में यह बदलाव न किया जाता, तो आज इस विधेयक की आवश्यकता नहीं पड़ती.
शाह ने पूछा, ‘1913 से 2013 तक, वक़्फ़ बोर्ड के पास कुल 18 लाख एकड़ भूमि थी. 2013 से 2025 के बीच, जब नया कानून लागू हुआ, तो वक़्फ़ संपत्ति में 21 लाख एकड़ जमीन और जुड़ गई. पट्टे पर दी गई संपत्तियां पहले 20,000 थीं, लेकिन 2025 में यह संख्या शून्य हो गई… ये संपत्तियां कहाँ गईं? क्या उन्हें बेचा गया? किसकी अनुमति से?’
‘वे (विपक्ष) कह रहे हैं कि इस पर ध्यान मत दो… यह पैसा देश के गरीब मुसलमानों का है, न कि किसी धनी दलालों के लिए. इसे बंद करना होगा… और उनके दलाल यहां बैठे हैं, वे ऊँची आवाज़ में बात कर रहे हैं… वे (विपक्ष) सोचते हैं कि इस विधेयक का विरोध करके वे मुसलमानों की सहानुभूति प्राप्त करेंगे और अपने वोट बैंक को मजबूत करेंगे. लेकिन उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा.’ शाह ने कहा.
उन्होंने दोहराया, ‘सरकार वक़्फ़ में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती.’ भाजपा नेताओं ने विपक्ष पर अल्पसंख्यक तुष्टीकरण, संविधान के खिलाफ जाने और वक़्फ़ संपत्तियों के नाम पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का आरोप लगाया.
सरकार के दावे पर विपक्ष ने क्या कहा?
कांग्रेस की तरफ से कमान कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने संभाली. उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि वह वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 का इस्तेमाल संविधान को कमजोर करने, अल्पसंख्यक समुदायों को बदनाम करने, भारतीय समाज को विभाजित करने और अल्पसंख्यकों को उनके अधिकारों से वंचित करने के लिए कर रही है.
बहस के दौरान सबसे कड़ा विरोध एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने दर्ज कराया और संशोधनों को ‘मुसलमानों की आस्था और धार्मिक परंपराओं पर हमला’ करार दिया. उन्होंने प्रतीकात्मक रूप से विधेयक के पन्ने ‘फाड़’ दिए और अपने इस कदम की तुलना महात्मा गांधी द्वारा अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ किए गए प्रतिरोध से की.
बहस के दौरान ओवैसी ने कहा, ‘यह वक्फ संशोधन विधेयक मुसलमानों की आस्था और पूजा पद्धति पर हमला है.’ उन्होंने तर्क दिया कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के अधिकारों को कमजोर करता है.
ओवैसी ने अनुच्छेद 14 (जो सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता का अधिकार देता है) का हवाला दिया. उन्होंने कहा, ‘मुसलमानों को वक्फ संपत्ति पर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा, जबकि अतिक्रमणकारी रातोंरात मालिक बन जाएगा. इसे कोई गैर-मुस्लिम प्रशासित करेगा—यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.’
उन्होंने इस विधेयक की जरूरत पर सवाल उठाते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आश्वासनों की याद दिलाई. ‘अमित शाह ने कहा था कि वक्फ बोर्ड और काउंसिल मुसलमानों की धार्मिक परंपराओं में दखल नहीं देंगे. अगर यह सच है, तो इस कानून को लाने की जरूरत ही क्या थी?’ ओवैसी ने कहा.
हैदराबाद से सांसद ओवैसी ने आरोप लगाया कि यह विधेयक मुसलमानों को वक्फ संपत्तियों के प्रशासनिक नियंत्रण से वंचित करता है. उन्होंने तर्क दिया, ‘हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध समुदायों को उनके धार्मिक संस्थानों का प्रशासन करने का अधिकार दिया गया है. फिर मुसलमानों से यह अधिकार क्यों छीना जा रहा है? यह अनुच्छेद 26 का गंभीर उल्लंघन है.’
बहस के दौरान ओवैसी ने केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू से इस विधेयक में ‘प्रैक्टिसिंग मुस्लिम’ (धर्म का पालन करने वाला मुसलमान) की परिभाषा पर सवाल किया. ‘क्या दाढ़ी रखना इसकी शर्तों में से एक होगा, या फिर उसे आपकी तरह क्लीन-शेव होना चाहिए?’ उन्होंने व्यंग्य करते हुए पूछा.
भाजपा सरकार पर मुसलमानों को हाशिए पर धकेलने का आरोप लगाते हुए, ओवैसी ने कहा, ‘यह विधेयक मुसलमानों को द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनाने के लिए लाया गया है.’
महात्मा गांधी के अन्यायपूर्ण कानूनों के प्रतिरोध की तुलना करते हुए, उन्होंने कहा, ‘जब गांधीजी के सामने ऐसा कानून आया था जिसे वह स्वीकार नहीं कर सकते थे, तो उन्होंने कहा था, ‘मैं इस कानून को नहीं मानता और इसे फाड़ देता हूं.’ ठीक उसी तरह, मैं भी इस कानून को फाड़ रहा हूं.’
इसके बाद उन्होंने विरोध स्वरूप स्टेपल किए हुए दो पन्नों को अलग कर दिया. ओवैसी ने आरोप लगाया कि ‘यह असंवैधानिक है. भाजपा मंदिर-मस्जिद के नाम पर समाज में वैमनस्य फैलाना चाहती है.’
क्या बदल जाएगा?
इन बहसों को जानने के बाद सवाल उठता है कि दोनों सदनों में संशोधनों के पास हो जाने के बाद क्या बदल जाएगा?
भारत में वक्फ प्रणाली ऐतिहासिक रूप से धार्मिक, शैक्षिक और सामाजिक कल्याण संस्थानों को समर्थन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है. वर्तमान कानून के तहत, वक्फ एक धर्मार्थ बंदोबस्ती होती है जिसमें संपत्ति को धार्मिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिए दान किया जाता है, जिसकी स्थायी रूप से मालिकाना हक अल्लाह में निहित होता है, और इसका राजस्व मस्जिदों, मदरसों, अनाथालयों और अन्य कल्याणकारी पहलों के लिए उपयोग किया जाता है.
1995 के वक्फ अधिनियम और इसके 2013 के संशोधन ने इन संपत्तियों को संचालित करने के लिए कानूनी ढांचा तैयार किया और राज्य वक्फ बोर्डों की स्थापना की, जो उनके पर्यवेक्षण के लिए जिम्मेदार हैं. हालांकि, केंद्र सरकार का कहना है कि व्यापक कुप्रबंधन, धोखाधड़ी वाली भूमि दावे और कानूनी विवादों के कारण वक्फ कानून में संशोधन की आवश्यकता है ताकि प्रशासन में स्पष्टता और जवाबदेही लाई जा सके.
नए संशोधनों से सबसे बड़ा बदलाव यह होगा कि अब हर कोई वक्फ को संपत्ति दान नहीं दे सकेगा. संपत्ति देने वालों के लिए सख्त पात्रता मानदंड होगा.अब तक जो कानून लागू है उसके तहत, कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, वक्फ उद्देश्यों के लिए संपत्ति दे सकता है. हालांकि, नए संशोधन इस अधिकार को केवल उन्हीं लोगों तक सीमित कर देते हैं जो कम से कम पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे हों.
संशोधित विधेयक के अनुसार, संपत्ति देने वाले व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि वह कम से कम पांच वर्षों से इस्लाम का अनुयायी रहा है. सरकार के अनुसार, यह प्रावधान मनमाने या धोखाधड़ी वाले वक्फ समर्पण को रोकने के लिए आवश्यक है. हालांकि, आलोचकों का मानना है कि यह प्रावधान एक अनावश्यक धार्मिक परीक्षा लगाता है और वक्फ में योगदान देने के इच्छुक व्यक्तियों पर अनुचित प्रतिबंध लगाता है.
इसके अलावा संशोधित विधेयक वक्फ संपत्तियों की पहचान और प्रबंधन पर सरकारी निगरानी को भी बढ़ाता है. वर्तमान में, वक्फ सर्वेक्षण वक्फ सर्वेक्षण आयुक्तों द्वारा किया जाता है, जो वक्फ भूमि का रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं. संशोधित कानून के तहत, जिला कलेक्टरों को ऐसी संपत्तियों के सर्वेक्षण करने की अनुमति दी गई है. इसके अलावा, यदि कोई वक्फ दावा सरकारी भूमि से संबंधित होता है, तो संशोधन यह प्रस्तावित करता है कि एक अधिकारी, जिसकी रैंक कलेक्टर से ऊपर हो, उस दावे की जांच करेगा और राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपेगा.
संशोधित विधेयक के सबसे विवादास्पद पहलुओं में से एक वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान है. नए विधेयक के तहत, केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्य होने चाहिए. इसके अलावा, वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के लिए भी मुस्लिम होने की अनिवार्यता को हटा दिया गया है. सरकार का कहना है कि यह कदम वक्फ प्रशासन को अधिक समावेशी और पारदर्शी बनाने के लिए उठाया गया है. हालांकि, मुस्लिम धार्मिक संगठनों ने इस प्रावधान की कड़ी आलोचना की है, उनका कहना है कि वक्फ इस्लामी कानून के तहत एक धार्मिक बंदोबस्ती है, और गैर-मुसलमानों को इसके प्रशासन में शामिल नहीं किया जाना चाहिए.
संशोधन वक्फ संपत्तियों को समर्पित करने से पहले महिलाओं के उत्तराधिकार अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक नया प्रावधान भी जोड़ता है. विधेयक स्पष्ट रूप से कहता है कि पारिवारिक वक्फ (वक्फ-अल-अलौलाद) बनाने से पहले, वक्फ करने वाले व्यक्ति को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी कानूनी उत्तराधिकारी, विशेष रूप से महिलाएं, अपनी उचित संपत्ति प्राप्त कर चुकी हैं.
इसके अलावा विधेयक अनिवार्य करता है कि सभी मुतवल्ली (वक्फ संपत्तियों के प्रबंधक) छह महीनों के भीतर संपत्ति विवरण को एक केंद्रीय सरकारी पोर्टल पर पंजीकृत करें. इसके अलावा, जिन वक्फ संस्थानों की वार्षिक आय 1 लाख रुपये से अधिक है, उन्हें अब राज्य द्वारा नियुक्त ऑडिटरों द्वारा अनिवार्य रूप से ऑडिट कराना होगा.
Source: The Wire