आज दुनिया बाबा साहेब आंबेडकर के विचारों की सराहना कर रही है। उन्‍हें ‘सिंबल ऑफ नॉलेज’ मान रही है। पर दुखद है कि हमारे देश में हम आंबेडकर का महिमामंडन तो करते हैं पर उनके विचारों पर नहीं चलते।

आंबेडकर जयंती पर हर वर्ष सरकार बाबा साहेब को याद करती है। देश के लिए उनके योगदान की सराहना करती है। आंबेडकर को पूज्‍यनीय मानती है। उनकी मूर्ति पर पुष्‍पांजलि अर्पित करती है। हाथ जोड़ती है। नमन करती है। और अपने कर्तव्‍य की इतिश्री कर लेती है।

लेकिन बात जब उनके विचारो पर चलने की आती है तो सरकार बगलें झांकने लगती है। आंबेडकर के विचारों पर चलना न बाबा न। हमारी र्ध्‍म संस्‍कृति का क्‍या होगा। हिंदू राष्‍ट्र कैसे साकार होगा।

हमारी मानसिकता कुछ ऐसी है कि हम अपने महापुरुषों के सम्‍मान की औपचाकिता तो निभाते हैं पर उनके विचारों का पालन नहीं करते। अगर हमने आंबेडकर के विचारों का पालन किया होता तो आज हमारा समाज ऐसा नहीं होता जो अभी है। न समाज में जाति का ऊंचा-नीचा क्रम होता न भेदभाव होता न दलितों पर अत्‍याचार होते। न देश मे हिंदू मुसलमान के झगड़े होते। कुल मिलाकर मानवतावादी समाज होता।

बाबा साहेब चाहते थे देश के नागरिकों में समानता, स्‍व्‍तंत्रता, न्‍याय और बंधुत्‍व की भावना यानी सामाजिक न्‍याय। सामाजिक न्‍याय की प्रमुख बातें हैं :

● समानता: सभी को कानून, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार में समान अवसर मिले।

●  अवसर की समानता: सभी वर्गों को अपने जीवन स्तर को सुधारने का समान अवसर मिले।

●  भेदभाव रहित समाज: जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव न हो।

●  कमजोर वर्गों का संरक्षण: दलित, पिछड़े, महिलाएं, विकलांग आदि को विशेष संरक्षण और सुविधा मिले ताकि वे मुख्यधारा में आ सकें।

●  अब वास्‍तविकता में देखिए कहां है सामाजिक न्‍याय? क्‍या उपरोक्‍त बातें हमारे समाज में दिखती हैं?

●  क्‍या समाज में समान अवसर मिलते हैं? क्‍या समाज भेदभाव रहित है?

●  बाबा साहेब पुरुष और महिला नागरिकों के समान अधिकार चाहते थे।

पर आज भी हमारे समाज में राजनीति में महिलाओं को बराबरी के अधिकार नहीं मिले हैं। बाबा साहेब के हिसाब से तो राजनीति में महिलाओं का बराबरी का हक होना चाहिए। पर अभी 33 प्रतिशत आरक्षण भी नहीं मिला है।

बाबा साहेब राजनीति में दलितों का प्रतिनिधित्‍व चाहते थे। इसके लिए उन्‍होंने आरक्षण का प्रावधान किया था। इसको मान्‍यवर कांशीराम ने भी आगे बढ़ाया था कि जिसकी जितनी संख्‍या भारी उसकी उतनी हिस्‍सेदारी। पर इस आधार पर क्‍यों नहीं है दलितों का प्रतिनिधित्‍व?

आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत कहते हैं कि मंदिर, शमशान और पानी में किसी प्रकार का जातिगत भेदभाव नहीं होना चाहिए। यानी आप अपनी सुविधा के लिए दलितों को कुछ राहत देना चाहते हैं ताकि दलित वर्ग हिंदू समुदाय से अलग न हो और उनके धर्म का ध्‍वजावाहक बना रहे। सनातन धर्म की जयजयकार करता रहे। पर भागवत जी उसे बराबर का हक नहीं देना चाहते। इसके लिए क्‍या वे कहेंगे कि हिंदू धर्म की कथित उच्‍च जातियां दलितों के साथ रोटी-बेटी का रिशता रखें? क्‍या वे कहेंगे कि अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्‍साहन दें ताकि जाति की दीवार ढह जाए?

बाबा साहेब ने धर्म भय और लालच में नहीं बदला

आज मोहन भागवत जी कहते हैं कि भय और लालच में आकर धर्म नहीं बदलें। पर बाबा साहेब ने हिंदू धर्म भय और लालच की वजह से नहीं छोड़ा बल्कि इसमे व्‍याप्‍त सिंगतियों की वजह से छोड़ा। इसमें व्‍याप्‍त भेदभाव, ऊंच-नीच, छुआछूत की वजह से छोड़ा। उन्‍होंने साफ कहा कि ‘मैं हिंदू धर्म में जन्‍मा यह मेरे वश में नहीं था पर मैं हिंदू धर्म में मरूंगा नहीं।’ हिंदू धर्म या कहें सनातन धर्म में व्‍याप्‍त इन दुर्भावनाओं की वजह से ही बाबा साहेब ने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाया था। आज मोहन भागवत जी कहते हैं ‘हमारा धर्म, सनातन धर्म, किसी के प्रति दुर्भावना नहीं रखता।’ क्‍या सचमुच आपका धर्म दलितों और मुसलमानों के प्रति दुर्भावना नहीं रखता? फिर दलितों पर अत्‍याचार और मुसलमानों के साथ वैमनस्‍य की घटनाएं और दंगे-फसाद किस भावना का प्रतीक हैं?

आंबेडकर चाहते थे जाति का विनाश

सब जानते हैं कि बाबा साहेब जाति का विनाश चाहते थे। उन्‍होंने पुस्‍तक भी लिखी — ‘जाति का विनाश’। क्‍या भाजपा और आरएसएस वाले जाति के विनाश की बात करेंगे?

क्‍यों नही बन पाता आंबेडकर के सपनों का भारत?

अपने आप को आंबेडकर का भक्‍त कह देना, उनकी तस्‍वीर या मूर्ति के आगे मत्‍था टेक देना, उनकी भव्‍य मूर्ति लगवा देना अलग बात है और उनका अनुयायी होना अलग। देश के प्रधानमंत्री ऐसा करतेे है तो संदेश यही जाता है कि लोग आंबेडकर को भगवान की तरह देखें। उनके प्रति श्रद्धा रखें। उनके आगे मोमबत्ती जलाएं। दीप जलाएं। माल्‍यार्पण करें। और यह सब करके स्‍वयं को धन्‍य मान लें। पर उनके विचारों पर कदापि न चलें। यह उनके वोट बैंक के लिए जरूरी भी हे।

जबकि आंबेडकर खुद इन आडंबरों के खिलाफ थे। वह यह सब दिखावा नहीं चाहते थे। वह चाहते थे कि लोग उनके कारवां को आगे लेकर जाएं। समतामूलक समाज बनाएं। मानवतावाद को अपनाएं। लोगों के बीच जाति और धर्म की खाई न हो। देश के सभी नागरिक मिलजुल कर रहें। जाति या धर्म के नाम पर किसी से किसी प्रकार की शत्रुता न रखें। लोग अंधविश्‍वासी न हों। वैज्ञानिक चेतना से लैस हों। वैज्ञानिक सोच रखें। और स्‍वयं की प्रगति करते हुए देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर करें।

आज दुनिया बाबा साहेब आंबेडकर के विचारों की सराहना कर रही है। उन्‍हें ‘सिंबल ऑफ नॉलेज’ मान रही है। पर दुखद है कि हमारे देश में हम आंबेडकर का महिमामंडन तो करते हैं पर उनके विचारों पर नहीं चलते। परिणाम वही ढाक के तीन पात होता है। हम आज भी उन्‍हीं पुरानी रूढि़यों, पुरानी परंपराओं, ब्राह्मणवादी व्‍यवस्‍था में उलझे हुए हैं जो वही शुद्धता की बात करती है कि कोई दलित या शूद्र मंदिर में प्रवेश कर जाता है तो मंदिर अपवित्र हो जाता है। किसी ने अंतरजातीय या अंतरधार्मिक प्रेम विवाह कर लिया तो रक्‍त अशुद्ध हो गया, युवक युवती ने अक्षम्‍य अपराध कर दिया। अगर युवक दलित और युवती कथित सवर्ण है या युवक मुसलमान है तो जाति और लवजिहाद के नाम पर युवक की हत्‍या लगभग तय है। कभी निर्दोष युवक युवती जाति और धर्म के नाम पर मारे जाते हैं। कभी आत्‍महत्‍या के लिए विवश किए जाते हैं। इस सोच को लेकर आज इस इक्‍कीसवीं सदी में हम जी रहे हैं। जबकि बाबा साहेब का बनाया संविधान हर व्‍यस्‍क युवक युवती को अपनी पसंद से अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार देता है। अगर हम बाबा साहब की विचारधारा को मानते हैं तो जो ऐसे युवक युवती जो अंतरजातीय और अंतरधार्मिक विवाह करते हैं उन्‍हें प्रोत्‍साहित किया जाना चाहिए। पर वास्‍तव में ऐसा होेता नहीं है। और यह स्‍पष्‍ट हो जाता है कि हम बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर को आदरणीय तो मानते हैं लेकिन अनुकरणीय नहीं। काश कि हम आडंबरों को छोड़कर आंबेडकरी विचारधारा को अपनाएं।

 

Source: News Click