बेलगावी में आवारा कुत्तों का आतंक: मासूमों पर हमले और मानसिक आघात

बेलगावी की सड़कें अब असुरक्षित हो चुकी हैं। सुबह-सवेरे कक्षाओं के लिए निकलने वाले छात्र, रात की शिफ्ट से लौटते मजदूर और गलियों में खेलते बच्चे—ये सभी आवारा कुत्तों के झुंड के निशाने पर हैं। कई बार लोग शांति से चल रहे होते हैं, तभी कुत्ते भौंकते हुए उनका पीछा करने लगते हैं। यह दृश्य डरावना होता है। लोग अक्सर घबराकर भागते हैं, कीचड़ और कंकड़ के ढेर पर चढ़ते हैं, तेज मोड़ लेते हैं, जिससे चोट लगने का खतरा बढ़ जाता है। बच्चे और बुजुर्ग तो भाग भी नहीं पाते और कुत्तों के काटने का शिकार हो जाते हैं। सुबह और रात के समय बेलगावी की सड़कें खतरनाक जोन बन चुकी हैं, जहाँ आक्रामक कुत्ते किसी भी बेखबर नागरिक पर हमला कर देते हैं।

मनोवैज्ञानिक प्रभाव
इस तरह के हमले सिर्फ शारीरिक चोट ही नहीं छोड़ते, बल्कि मानसिक आघात भी पहुँचाते हैं:
1. पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) – बार-बार होने वाले हमलों के बाद पीड़ितों को डरावने सपने, चिंता और उस जगह से गुजरने में भय लगने लगता है।

2. फोबिया और बचाव व्यवहार – कई लोगों को कुत्तों का डर (साइनोफोबिया) हो जाता है, जिससे वे अकेले चलने, रात में बाहर निकलने या कुछ रास्तों से बचने लगते हैं।

3. अत्यधिक सतर्कता और चिंता – हमले का डर लोगों को इतना परेशान कर देता है कि वे छोटी-छोटी आवाज़ों से भी डरने लगते हैं।

4. मानसिक तनाव और असहायता – खासकर बच्चों और बुजुर्गों में आत्मविश्वास की कमी आ जाती है, क्योंकि वे खुद को बचाने में असमर्थ पाते हैं।

5. सामाजिक प्रभाव और अलगाव – कुछ लोग डर के मारे घर से निकलना ही बंद कर देते हैं, जिससे उनकी जीवनशैली प्रभावित होती है।

नियंत्रण के उपायों में बाधाएँ
नसबंदी अभियानों के बावजूद आवारा कुत्तों की संख्या खतरनाक स्तर पर बनी हुई है। हाल ही में रेबीज से पीड़ित कुत्तों ने सुरक्षाकर्मियों पर हमला कर जनसुरक्षा को गंभीर खतरे में डाल दिया। कुत्तों के प्रति सहानुभूति रखने वाले लोग अक्सर इन खतरों को नज़रअंदाज कर देते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि हर व्यक्ति को कुत्तों से सहज महसूस करने की उम्मीद नहीं की जा सकती।

एक बड़ी समस्या कुत्तों को अनियंत्रित रूप से खिलाने की आदत भी है। दयालु लोगों द्वारा खुलेआम खाना डालने से कुत्तों के झुंड बढ़ते हैं और वे अपने इलाके को लेकर आक्रामक हो जाते हैं। सड़कों पर फैला कचरा भी इस समस्या को बढ़ावा देता है।

तत्काल कार्रवाई की ज़रूरत
प्रशासन को सख्त नसबंदी अभियान, खिलाने के नियम और खतरनाक कुत्तों को हटाने जैसे कदम उठाने होंगे। इसका मतलब यह नहीं कि कुत्तों को मारा जाए, बल्कि उनकी आबादी को नियंत्रित कर नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। जब तक ठोस कार्रवाई नहीं होती, बेलगावी के निवासियों को हर बार घर से निकलते समय खतरा महसूस होगा।