“साहब, क्लेम्स तो बहुत हैं पर परफॉरमेंस बिल्कुल नहीं है। आपने जैसे तैसे ग्यारह साल चला ली है, बस अब बेच ही डालिये। रखने का कोई फायदा नहीं”, मैकेनिक ने सलाह दी।

मेरी कार कुछ दिनों से कम एवरेज देने लगी है। पहले मैं दो हज़ार का पेट्रोल डलवाता था तो पांच सौ किलोमीटर चल जाती थी पर अब दो हज़ार का पेट्रोल डलवाते हैं तो तीन सौ किलोमीटर ही चल पाती है। परेशान हो मैं मैकेनिक के पास पहुंचा।

मैकेनिक को अपनी परेशानी बताई। उसने गाड़ी को देखा, इंजन चेक किया। पूछा, “कौन सा मॉडल है”?

“2014 का”, मैंने उत्तर दिया।

“बेच डालिये, 2014 के मॉडल में ही दिक्कत है”।

“क्यों, भाई क्या दिक्कत है। हमने तो बहुत सुना था और डीलर ने भी बहुत बढ़ाई की थी, और बहुत सारे लोग ले भी रहे थे। इसीलिए तो ली थी” मैंने जवाब दिया।

“साहब, क्लेम्स तो बहुत हैं पर परफॉरमेंस बिल्कुल नहीं है। आपने जैसे तैसे ग्यारह साल चला ली है, बस अब बेच ही डालिये। रखने का कोई फायदा नहीं”, मैकेनिक ने सलाह दी।

“लेकिन अब खरीदेगा कौन”?

“अभी भी बहुत बेवकूफ हैं। वायदे पर विश्वास करने वाले। कोई ना कोई खरीद ही लेगा”।

“हूँ”! मैंने सोचते हुए कहा।

“सोच लो साहब, पंद्रह साल से ज्यादा तो चलनी ही नहीं है। 2029 में तो बदलनी ही पड़ेगी। पेट्रोल है इसलिए पंद्रह साल चल भी जाएगी। डीज़ल की होती तो दस साल बाद ही कंडम हो जाती”, मैकेनिक ने समझाया।

“हाँ, यह तो सरकार का भी नियम है। पंद्रह साल से ज्यादा तो चल ही नहीं सकती है”, मैंने कहा। ‘देख लेना, अभी कोई अच्छा ग्राहक मिल जाये तो’।

“हाँ, हाँ, जरूर। मैं खुद कोशिश करूँगा कि आप की कार जल्दी ही बिक जाए”।

“हाँ, अभी बिकवा दोगे तो अभी बदल डालूंगा। नहीं तो 2029 में तो बदलनी ही पड़ेगी”, मैंने कहा.

Source: News Click