
कर्नाटक के तटीय क्षेत्रों में सांप्रदायिक हिंसा पर सरकार और पुलिस की कार्रवाई
दक्षिण कन्नड़ में सांप्रदायिक तनाव: कर्नाटक के तटीय क्षेत्र, विशेषकर दक्षिण कन्नड़ जिले में, किसी भी सरकार के आने के बावजूद सांप्रदायिक हिंसा पर अंकुश लगाना मुश्किल साबित हो रहा है। पिछले अप्रैल के अंत में हिंसा भड़की, जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई। इन हत्याओं के बाद हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच नफरत की आग भड़क उठी। हाल की घटनाओं का बहाना बनाकर कुछ तत्व तटीय इलाकों में सांप्रदायिक विषबीज बोने में लगे हुए हैं।
पुलिस प्रशासन की सख्त कार्रवाई: इस खतरनाक स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार ने तुरंत कार्रवाई करते हुए मंगलुरु के पुलिस आयुक्त और दक्षिण कन्नड़ व उडुपी के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का तबादला कर दिया। सरकार को यह समझते हुए कि केवल वरिष्ठ अधिकारियों के तबादले से काम नहीं चलेगा, कई सालों से जमे हुए निचले स्तर के पुलिसकर्मियों को भी हटाने की प्रक्रिया शुरू की गई है। मंगलुरु में पहले काम कर चुके आईपीएस अधिकारियों को फिर से तैनात किया गया है।
अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई: सिद्धरमैया सरकार ने कानून-व्यवस्था कायम करने के लिए सख्त कदम उठाए हैं। सांप्रदायिक हिंसा भड़काने वाले भाषण देने वालों, सोशल मीडिया पर उकसावे वाली पोस्ट डालने वालों और लगातार अपराध में शामिल लोगों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई तेज कर दी गई है। दक्षिण कन्नड़ जिले से सीधे सांप्रदायिक हिंसा में शामिल 36 लोगों को बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू की गई है। विदेशों में बैठकर सोशल मीडिया के जरिए हिंसा भड़काने वालों को पकड़ने के लिए पुलिस ने “लुकआउट नोटिस” जारी कर उन्हें देश वापस बुलाकर गिरफ्तार किया जा रहा है।
राजनीतिक हस्तक्षेप की आशंका: हालांकि, पुलिस की इस कार्रवाई से कुछ राजनीतिक नेताओं को असुविधा हो रही है। बीजेपी नेताओं ने आरोप लगाया है कि दक्षिण कन्नड़ में पुलिस द्वारा निर्दोष लोगों पर अत्याचार किया जा रहा है। केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे ने राज्य पुलिस शिकायत प्राधिकरण और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखकर पुलिस कार्रवाई पर असहमति जताई है। विधानसभा में बीजेपी नेता अरविंद बेल्लड ने भी इसी तरह के बयान दिए हैं।
संवैधानिक पदों का दुरुपयोग? बीजेपी के कुछ नेताओं का कहना है कि संघ परिवार से जुड़े संगठनों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, चाहे वे कितने भी अपराध क्यों न करें। केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे और अरविंद बेल्लड जैसे नेताओं द्वारा विवादित बयान देकर कानून प्रशासन में हस्तक्षेप करना उचित नहीं है। धर्म के नाम पर हिंसा फैलाने वालों का समर्थन करना चिंताजनक है और संविधान के प्रति अनादर दर्शाता है।
अपराधी को अपराधी की तरह देखें: पुलिस ने स्पष्ट किया है कि वह किसी एक समुदाय या संगठन को निशाना नहीं बना रही है। मंगलुरु सहित अन्य इलाकों में हिंसा भड़काने वाले चाहे किसी भी संगठन या राजनीतिक पार्टी से जुड़े हों, उनके खिलाफ कार्रवाई में कोई रोक नहीं होनी चाहिए।
अवैध गतिविधियों का नेटवर्क: तटीय क्षेत्रों में सांप्रदायिक हिंसा के पीछे अवैध रेत माफिया, नशीले पदार्थों के तस्कर और सुरक्षा एजेंसियों का नेटवर्क शामिल है। पुलिस जब ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करती है, तो सभी को बिना पक्षपात के उनका समर्थन करना चाहिए।
युवाओं का शोषण: ज्यादातर सांप्रदायिक दंगों में फंसने वाले मासूम युवा होते हैं, जो किसी के उकसावे में आकर हिंसा कर बैठते हैं। इन युवाओं को जान गंवानी पड़ती है या जेल की सजा भुगतनी पड़ती है, जबकि उनके दिमाग में जहर घोलने वाले सुरक्षित बैठे रहते हैं। पुलिस को ऐसे लोगों को पकड़कर सजा देनी चाहिए, चाहे वे किसी भी राजनीतिक दल या धार्मिक संगठन से जुड़े हों।
केंद्र सरकार का हस्तक्षेप: मंगलुरु की घटनाओं से जुड़े बजरंग दल के कार्यकर्ता सुहास शेट्टी की हत्या के मामले को केंद्र सरकार ने एनआईए को सौंप दिया है। राज्य बीजेपी नेताओं के दबाव में यह कदम उठाया गया है। अन्य हत्याओं की भी गहन जांच की मांग की जा रही है।
निष्कर्ष: कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार और पुलिस को दृढ़ता से काम करना होगा। सिद्धरमैया सरकार की ओर से इस दिशा में सख्त कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप से बचना होगा। तटीय क्षेत्रों में शांति बहाल करने के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा।