
इस दुर्लभ साक्षात्कार में ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति अली ख़ामेनेई ने भारतीय मुसलमानों की चिंताओं, पश्चिमी मीडिया के रवैये, ईरान की विदेश नीति, कुर्दों की मांग और फ्रांस जैसे देशों की भूमिका पर खुलकर बात की. यह बातचीत इस्लामी क्रांति की जटिलताओं को समझने का एक दुर्लभ दस्तावेज़ है.
1979 की ईरानी क्रांति के कुछ वर्षों बाद, जब इस्लामी गणराज्य ईरान दुनिया के सामने अपनी पहचान और दिशा तय कर रहा था, भारतीय लेखिका और पत्रकार नासिरा शर्मा ने ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई से एक विशेष साक्षात्कार किया. यह बातचीत न केवल भारत और ईरान के संबंधों की बारीक़ समझ प्रस्तुत करती है, बल्कि इस्लामी क्रांति, प्रेस स्वतंत्रता, कुर्द मुद्दे और पश्चिमी ताकतों की भूमिका जैसे जटिल सवालों को भी सामने लाती है.
आज जब ईरान को लेकर एक बार फिर दुनिया भर में बहस छिड़ी है, यह ऐतिहासिक इंटरव्यू नई रोशनी डालता है – एक ऐसी आवाज़ से, जो बाद में ईरान का सर्वोच्च नेता बनी.
भारत के 12 करोड़ मुसलमानों के लिए ईरानी क्रांति बहुत महत्वपूर्ण है. वे इसके बारे में जानना चाहते हैं. इस वक्त वे अनगिनत हत्याओं और युवाओं की फांसी से चिंतित हैं. वे समझ नहीं पा रहे हैं कि आज ईरान में क्या हो रहा है?
हमारी वास्तविक समस्याओं को कोई नहीं समझता. भारत के मुसलमान इस छोटी सी अवधि में हुई क्रांति के दौरान हमारी उपलब्धियों से अनजान हैं. मीडिया हर जगह अधूरी खबरें देता है, चाहे वह भारत हो या दुनिया का कोई अन्य हिस्सा. प्रेस फांसियों की संख्या को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है और सच्चाई को छुपाता है. हमारे उद्देश्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है. हाल ही में, मैं भारत गया था और वहां के लोगों से बात की. मैंने देखा कि वे हमारी क्रांति से खुश हैं. उन्हें ईरान में हो रही घटनाओं के बारे में सही जानकारी की आवश्यकता है. यदि कुछ लोग इन फांसियों की आलोचना करते हैं, तो मुझे लगता है कि उनके पास पूरी जानकारी नहीं है. जब दूसरे लोग हथियार उठा लेते हैं, तो कोई भी शांत कैसे बैठ सकता है? बाहरी ताकतों ने हमारी क्रांति के खिलाफ साजिश रची है और वे सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता में बैठे लोगों को धमकी दे रहे हैं.
उन्होंने ईरान में इस्लाम-विरोधी भावना फैला दी है. हालांकि, इस्लामिक गणराज्य ने कई लोगों को माफ किया है और उन्हें इस्लामी नैतिकता सिखाई है तथा इस्लामी आध्यात्मिकता से प्रभावित किया है. टेलीविजन कार्यक्रमों में ऐसे उदाहरण दिखाए जाते हैं, जहां लोगों ने अपने अपराधों को स्वीकार किया है. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो लोगों को मारते हैं, बसों को जलाते हैं, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं और सशस्त्र प्रदर्शन करते हैं. वे अपराधी हैं और इस्लामी कानून के तहत उन्हें फांसी दी जानी चाहिए. हाल ही में ऐसे तत्वों की संख्या बढ़ गई है. ऐसी स्थिति में देश कमजोर हो जाता है. मुझे यकीन है कि भारत और अन्य जगहों के हमारे दोस्त हमारी निंदा नहीं करेंगे, अगर उनके पास सभी तथ्य हों.
मेरी समझ से, ईरान की विदेश नीति कई अनुभवों और घटनाओं का परिणाम है. उदाहरण के लिए, (1979 में ईरानी क्रांति के बाद बने पहले राष्ट्रपति जो 1981 में फ़्रांस चले गये) अबुलहसन बनी-सद्र के पेरिस आने से पहले फ्रांस अगर दोस्त नहीं था, तो दुश्मन देश भी नहीं था. ईरान की विदेश नीति को आमतौर पर कमजोर और लगातार बदलती रहने वाली मानी जाती है.
हमारी विदेश नीति निश्चित रूप से कमजोर नहीं है, हालांकि हमारी कूटनीतिक गतिविधियां जितनी होनी चाहिए, उससे कम हैं. हमारी प्राथमिकताएं स्पष्ट हैं, और हमने दुनिया को समूहों में बांटा है — भाईचारे वाले देश, मित्र देश, तटस्थ देश और दुश्मन देश. दुश्मन देश वे हैं जो हम पर हमला करते हैं और इस्लाम के विरोधी हैं. बाकी या तो भाई, मित्र या तटस्थ हैं. आपने फ्रांस का जिक्र किया. बनी-सद्र के वहां शरण लेने से पहले ही फ्रांस ने हमारे खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे. वह न तो हमारा मित्र था और न ही तटस्थ, बल्कि प्रमुख यूरोपीय देशों में से पहला था जिसने हमारे खिलाफ प्रतिबंध लगाए. हमारा फ्रांस के प्रति कोई दुर्भाव नहीं है, खासकर हमारे आदरणीय इमाम के वहां के प्रवास की सुंदर स्मृतियों के मद्देनज़र. लेकिन फ्रांस ने बार-बार अपनी क्रांति-विरोधी और ईरान-विरोधी मंशा को साबित किया है. सामान और सैन्य उपकरणों की आपूर्ति नहीं की है. इजरायल को सहयोग दिया है. इसलिए, यह देश हमारा मित्र नहीं हो सकता. फ्रांस ने हमारे देश के राजनीतिक और यहां तक कि गैर-राजनीतिक अपराधियों को भी शरण दी है. उसने हमारे दुश्मन इराक को हथियार की भी आपूर्ति की है. इन दिनों ईरानी वायु सेना फ्रांसीसी मिराज विमानों को मार गिरा रही है. क्या आपको लगता है कि दुश्मन केवल वही देश है जो हम पर सीधे हमला करता है? नहीं, हमला केवल ‘सशस्त्र हमला’ नहीं होता, बल्कि यह राजनीतिक हमला, आर्थिक आक्रमण या कुछ भी हो सकता है जो वास्तव में ईरान के हितों को नुकसान पहुंचाता है. फ्रांस हमारा दुश्मन है.
अधिकांश देश मित्रवत हैं. ईरान और भारत दो महान देश हैं जो मैत्रीपूर्ण संबंधों में विश्वास रखते हैं. भारत ने हमें कोई मदद नहीं दी है और हम मदद की उम्मीद भी नहीं करते, चाहे वह राजनीतिक हो या अन्य, फिर भी हमारी दोस्ती गहरी है.
फ्रांस ने ईरानी विरोधियों का एक केंद्र बना लिया है, यहां तक कि रॉयलिस्टों का एक संघ भी बना दिया है, लेकिन फ्रांस की समाचार एजेंसी को ईरान में पूरी सुविधा के साथ काम करने की अनुमति है, जबकि अन्य एजेंसियों के पास यह सुविधा नहीं है. यह विरोधाभासी स्थिति क्यों है?
हम मानते हैं कि समाचार एजेंसियां दुनिया भर में स्वतंत्र हैं. हमारे यहां दुनिया भर की समाचार एजेंसियां काम कर रही हैं, जिनमें एएफपी भी शामिल है. कुछ एजेंसियां खबरों को तोड़ मरोड़ देती हैं. वे अपने हितों के अनुसार खबरों को प्रस्तुत करते हैं. हम इन सभी एजेंसियों को काम करने की अनुमति देते हैं. हम उनका स्वागत करते हैं. यह हमारे देश में स्वतंत्रता को दर्शाता है. कभी-कभी हमें कुछ एजेंसियों की गतिविधियों पर सख्त रुख अपनाना पड़ता है, उदाहरण के लिए, हमने एक अमेरिकी पत्रकार को देश से निकाल दिया, यह दिखाने के लिए कि हम राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं करेंगे.
आप कुर्दिस्तान और अन्य अल्पसंख्यक क्षेत्रों की समस्या के बारे में क्या सोचते हैं? क्या उन्हें स्वायत्तता दी जाएगी?
यह कुर्द नहीं, बल्कि अमेरिका है जो स्वायत्तता की मांग कर रहा है. कुर्द केवल रोजगार, रोटी और एक अच्छा जीवन चाहते हैं. हमारे लिए कुर्द, तुर्क, बलूच और फारसी सभी समान हैं. हमारी सरकार सभी को समृद्धि और खुशी लाने के लिए प्रतिबद्ध है, चाहे उनकी जाति, धर्म या नस्ल कुछ भी हो. हम सभी के लिए रोटी, कल्याण, पूर्ण रोजगार, घर और उनके नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. वे भी हमसे यही चाहते हैं. जो लोग खुद को कुर्दों का नेता बताते थे और स्वायत्तता चाहते थे, उन्हें कुर्दों ने ही बाहर कर दिया है. आज सभी कुर्द शहर जम्हूरी इस्लामी के नियंत्रण में हैं, और कुर्द खुद ही उन राष्ट्र-विरोधी तत्वों से लड़ रहे हैं जो गुफाओं और सड़क किनारे छिपे रहते हैं और लोगों को बंधक बना लेते हैं. आप जानते होंगे कि हमारा एक उपयोगी मानव संसाधन ‘पेशमर्ग-ए-मुसलमान-ए-कुर्द’ है. वे उन लोगों से लड़ते हैं जो अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के एजेंट हैं और असली कुर्द नहीं हैं.
ईरान अलगाववादी आंदोलनों से जूझ रहा है, और खतरा यह है कि देश एकजुट नहीं रह सकता. अफवाहें हैं कि सोवियत संघ का इसमें हाथ है?
हम असली दुश्मन को जानते हैं. हमने देखा है कि इसमें पश्चिमी और अमेरिकी हाथ अधिक दिखाई देते हैं. वे कुछ हद तक इराक और अन्य लोगों के साथ सहयोग कर रहे हैं. हम सतर्क हैं और उनसे अपने राष्ट्र की रक्षा करते हैं.
प्रश्न: कहा जाता है कि क्रांति-विरोधी तत्व ईरान के बाहर बहुत सक्रिय हैं और साम्राज्यवादियों की वापसी की तैयारी कर रहे हैं. दूसरी ओर, क्रांतिकारी प्रगतिशील तत्वों को ईरान में रोजाना फांसी दी जा रही है. इस तरह देश उस शक्ति को खो रहा है जो साम्राज्यवाद के बढ़ते खतरे का सामना कर सकती है. आपका क्या आकलन है?
मैं आपसे सहमत नहीं हूं. आप क्रांति-विरोधियों को, जो खुद को क्रांतिकारी बताते हैं, क्रांतिकारी मानते हैं. पुराने सावाकी (ईरान के शाही राज्य की गुप्त पुलिस) और वे लोग जिन्होंने उनके खिलाफ लड़ाई लड़ी और अब जम्हूरी इस्लामी के खिलाफ वही कर रहे हैं, दोनों ही क्रांति-विरोधी हैं. हम उन्हें क्रांतिकारी मानते हैं जो वास्तव में क्रांतिकारी हैं और क्रांति-विरोधियों से कोई संबंध नहीं रखते. यह अजीब है कि आप उन्हें क्रांतिकारी मानते हैं जिनका कुर्दिस्तान के सामंतों से संबंध है और जो फ्रांस जैसे देशों में भाग गए हैं, जो ईरान-विरोधी है.
एक शोधकर्ता के रूप में मेरा अनुभव है कि ये रॉयलिस्ट विभिन्न रूपों में, कभी इस्लाम के नाम पर और कभी मार्क्सवाद के नाम पर, अराजकता फैलाते हैं और मुजाहिदीन और कम्युनिस्टों (गुरिल्लाओं) जैसे लोगों को बदनाम करते हैं. आपकी क्या राय है? मेरे लिए, चाहे एक पासदार मारा जाए या एक मुजाहिद, मैं इसे ईरान की हानि मानती हूं.
आप एक शोधकर्ता हैं, मुझे बताइए कि क्या मसूद राजवी एक रॉयलिस्ट है? अगर वह एक रॉयलिस्ट है, तो आपका प्रश्न सही है, और अगर वह उन क्रांतिकारी लोगों में से एक है जो कई साल जेल में रहे और आज कुर्दिस्तान के सामंतों के साथ सहयोग कर रहे हैं, सऊदी अरब से पैसे ले रहे हैं और फ्रांस जैसे देश में शरण ले रहे हैं, तो विश्वास कीजिए कि केवल रॉयलिस्ट ही क्रांति-विरोधी नहीं हैं, बल्कि सभी जो इस्लामी क्रांति के खिलाफ लड़ रहे हैं, चाहे वह आज का मसूद राजवी हो या कल का अली अमीरी, बख्तियार और ओवेसी उनके नामों और उपाधियों से मत जाइए. वे क्रांति के दुश्मन हैं.
Source: The Wire