
खबर है कि अमरीका ने सरकार जी को अरबों रुपये (ठीक ठीक कहें तो शायद एक अरब अस्सी करोड़ रुपये) हमारे देश में वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए दिए हैं। यह वोटर टर्नआउट वह बला है जिससे सरकार जी चुनाव जीतते हैं। कयास है कि सरकार जी ने हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली के चुनाव इसी वोटर टर्नआउट की कृपा से जीते हैं। लोकसभा चुनाव में वोटर टर्नआउट अधिक नहीं बढ़ा सके थे तो चुनाव हारते हारते बचे।
वोटर टर्नआउट बढ़ाने की प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है। पहले चरण में वोटर बढ़ाये जाते हैं। आखिर वोटर बढ़ाये बिना वोटर टर्नआउट बढ़ाया भी जा कैसे सकता है। तो वोटर बढ़ाने का काम चुनावों की घोषणा से काफ़ी पहले से ही शुरू करना पड़ता है। एक एक घर से कई कई वोटर बढ़ाने पड़ते हैं। कई बार तो एक खोली से इतने वोटर बढ़ाने पड़ते हैं जितने लोग उस खोली में खड़े भी नहीं हो सकते हैं। कई बार किसी लापता पते से भी नए वोटर बनाने पड़ते हैं। और हाँ, यह ध्यान भी रखना पड़ता है कि कोई चुनाव अधिकारी शारीरिक परीक्षण मतलब फिजिकल वेरिफिकेशन न कर ले। और उसका ध्यान सरकार जी रखते हैं।
वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए जरूरी है कि कुछ वोटर घटाये भी जाएं। अपनी लकीर लम्बी करने के लिए दूसरे की लकीर मिटानी भी जरूरी है। और इस कार्य में सरकार जी माहिर हैं ही। नेहरू की लकीर मिटाते मिटाते इसकी काफी प्रैक्टिस हो गई है। तो विरोधी के वोट घटाने के लिए सरकार जी विरोधी के वोट मिटाते हैं। उन्हें वोटर लिस्ट में से हटवाते हैं।
कोई कार्यकर्त्ता वोटर लिस्ट में से किसी का नाम कटवाने के लिए अप्लाई करता है और चुनाव अधिकारी बिना किसी जाँच के उसका नाम वोटर लिस्ट से हटा देता है।
कभी कभी तो एक पार्टी कार्यकर्त्ता सैकड़ों लोगों के नाम वोटर लिस्ट में से हटाने की एप्लीकेशन देता है और चुनाव अधिकारी उसे बिना चूँ चां किये मान जाता है। मान जाते हैं क्योंकि ऐसा ऊपर से ऐसा ही आदेश है।
यह तो हुई चुनाव से पहले की बात। चुनाव से पहले वोटर टर्नआउट बढ़ाने के प्रयासों में जगह जगह पोस्टर लगाना, किसी सेलिब्रेटी से विज्ञापन करवाना आदि भी शामिल है। इसमें वास्तव में पैसा खर्च होता है। वोटर लिस्ट बढ़वाना, वोटर लिस्ट कटवाना, वोट डालने के लिए विज्ञापन देना, जनता को शिक्षित करना, ये सब वोट डलने से पहले के काम हैं। लेकिन वोटर टर्नआउट बढ़ाने का असली काम शुरू होता है वोट पड़ने के बाद। मतदान के बाद।
वोट पड़ चुके हैं। मतदान के लिए लाइन में खड़ा अंतिम व्यक्ति भी वोट डाल चुका है। फिर भी वोटर टर्नआउट बढ़ता रहता है। कई घंटों, दिनों तक बढ़ता रहता है। यह आधुनिक खोज है। हमारे सरकार जी की खोज है। विपक्षी इससे जलते हैं। उनका आरोप है कि इसके लिए हमारे सरकार जी ने अपनी पसंद के मुख्य चुनाव आयुक्त रखते हैं और इस खोज को मुकम्मल कराते हैं। इस तरह की आधुनिक खोजों के लिए अच्छे से अच्छे चुनाव आयुक्त रखे जा सकें, इसीलिए सरकार जी ने चुनाव आयुक्त के चुनाव की सारी प्रक्रिया भी अपने हाथ में ही ले ली है। इससे देश को वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए नए नए प्रयोग करने वाले चुनाव आयुक्त मिल रहे हैं।
मतदान केंद्र में पहुंचने का अंतिम समय पांच या छह बजे होता है। पांच या छह बजे लाइन में लगे हर एक मतदाता को मत डालने का अवसर दिया जाता है। अगर लाइन लम्बी हो तो भी साढ़े छह-सात बजे तक हर मतदान केंद्र पर मतदान समाप्त हो जाता है। मतदान तो खत्म हो जाता है पर फिर भी डाले गए मतों की संख्या बढ़ती रहती है। ईवीएम सील हो जाती है पर फिर भी डाले गए मतों की संख्या मतलब मतदान का प्रतिशत बढ़ता रहता है। चार पांच प्रतिशत मत तो सील्ड ईवीएम में भी बढ़ जाते हैं। वोटिंग समाप्त होने के बाद वोट बढ़ाने की इस विधि से भी वोटर टर्नआउट बढ़ता है।
अब वोटर टर्नआउट बढ़ाने की अगली विधि यह होनी थी कि वोटों की गिनती समाप्त होने के बाद भी वोटर टर्नआउट बढ़ाया जा सके। और तब तक बढ़ाया जाये जब तक सरकार जी की पार्टी का प्रत्याशी चुनाव न जीत जाये। इस पर काम चल ही रहा था कि सरकार जी के ‘माय फ्रेंड ट्रम्प’, जिसे सरकार जी प्यार से डोलांड ट्रम्प भी कहते हैं, ने खेल बिगाड़ दिया। पोल खोल दी। कहा कि मोदी को, साफ नाम लेकर कहा। नहीं तो मेरी हिम्मत कहाँ कि मैं किसी का नाम ले सकूँ।
हाँ तो राष्ट्रपति ट्रम्प ने, अमरीका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा कि मोदी को वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए करीब एक सौ अस्सी करोड़ रुपये दिए। यूएस ऐड फंड से दिए। लोगों ने खोज की है कि इस फंड से सरकार जी का रिश्ता पुराना है। कि यह वही फंड है जिसके तहत हमारे सरकार जी, जब वे छोटे सरकार जी भी नहीं थे, तब ही अमरीका घूम आए थे। यह भी कि सरकार जी की पिछले कार्यकाल में मंत्री रहीं एक महिला अभिनेत्री, भारत में यूएस ऐड की ब्रांड एमबेसडर भी रही थीं।
साथ ही ट्रम्प जी ने और कुछ भी कहा। जो कहा उसे सुन कर हमारी तो बांछे खिल गईं। उन्होंने कहा है कि भारत एक अमीर देश है। उसके पास बहुत पैसा है। हम तो अभी तक तो अपने देश को एक गरीब देश मानते हैं। क्या करें, मानना पड़ता है। जब सरकार जी यह बताते हुए नहीं थकते हैं कि देश की एक सौ चालीस करोड़ जनता में से अस्सी करोड़ जनता जीने के लिए मुफ्त के राशन पर निर्भर है तो हमें सरकार जी की बात भी माननी पड़ती है कि देश में आज भी भयंकर गरीबी है। पर अब हम ट्रम्प जी की बात मान कर यह भी मान लेते हैं कि हमारा देश एक अमीर देश है। एक ऐसा अमीर देश जिसकी आधे से कहीं ज्यादा आबादी मुफ्त राशन न मिले तो भूखे ही मर जाये।
ट्रम्प जी की बात हमें माननी पड़ती हैं। दोस्त जो ठहरा। ट्रम्प ने कहा, “दोस्त हमारे यहाँ ये एफ 35 विमान बेकार पड़े हैं। तुम खरीद लो”। सरकार जी ने मान लिया, “बस इत्ती सी बात। खरीद लेते हैं। तुम्हारी सारी बात मान लेंगे। बस तुम भी यह ध्यान रखना, दोस्त का दोस्त भी दोस्त होता है”। तो सरकार जी एफ 35 खरीदने का वायदा कर आये। और साथ ही अमरीका में एक और दोस्त बना आए। अपने दल बल समेत, मस्क और उसकी बीवी बच्चों से मिल आए। अमरीकियों का कोई भरोसा नहीं है। क्या पता, अमरीका का अगला राष्ट्रपति शायद मस्क ही बन जाये।
अमरीका ने यूएस ऐड के तहत मिलने वाला पैसा बंद कर दिया है। मतलब वोटर टर्नआउट हमें खुद ही बढ़ाना होगा। हम बढ़ा लेंगे। चुनाव से पहले बढ़ा लेंगे, मतदान के दौरान बढ़ा लेंगे, मतदान के बाद बढ़ा लेंगे। अजी, मतगणना के बाद भी बढ़ा लेंगे। चुनाव जीतने के लिए तो हम कुछ भी कर सकते हैं।
एक प्रार्थना संपादक महोदय से भी। ये जो ट्रम्प महोदय हैं ना, अपने कहे पर कायम नहीं रहते हैं। मतलब अपना स्टेटमेंट बार बार बदलते रहते हैं। इससे पहले कि ट्रम्प जी यूएस ऐड पर अपनी बात चौथी, पाँचवी या छठी बार बदलें, सम्पादक महोदय मेरा यह व्यंग्य छाप दें। नहीं तो मेरी यह मेहनत व्यर्थ ही जाएगी।
Source: News Click