
एएसआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में पेश रिपोर्ट में कहा कि संभल की शाही जामा मस्जिद पूरी तरह से ‘अच्छी स्थिति’ में है, इसमें रंगरोगन की ज़रूरत नहीं है. हालांकि तस्वीरें बताती हैं कि इमारत के बाहरी हिस्से का पेंट उखड़ा हुआ है और अंदर कुछ जगहों पर मरम्मत की ज़रूरत हैं.
नई दिल्ली: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने संभल में मुगलकालीन शाही जामा मस्जिद को समग्र रूप से ‘अच्छी स्थिति’ में पाया है और निष्कर्ष निकाला है कि इसे नए रंग-रोगन की आवश्यकता नहीं है, हालांकि इमारत के बाहरी हिस्से का पेंट उखड़ गया है और कुछ जगहों पर ‘कुछ क्षति के संकेत’ भी मिलते हैं.
एएसआई ने ये टिप्पणियां इलाहाबाद हाईकोर्ट में 27 फरवरी को अदालत के आदेश पर मस्जिद का तत्काल निरीक्षण करने के बाद प्रस्तुत की गई नौ पन्नों की रिपोर्ट में कीं. हाईकोर्ट ने निरीक्षण का आदेश तब दिया था, जब केंद्रीय रूप से संरक्षित मस्जिद की प्रबंध समिति ने 2 मार्च से शुरू हुए रमज़ान के लिए मस्जिद में रखरखाव, सफाई, पुताई और रोशनी की व्यवस्था के काम करने की अनुमति देने का अनुरोध किया था.
निरीक्षण संयुक्त महानिदेशक एएसआई मदन सिंह चौहान, निदेशक (स्मारक) जुल्फिकार अली और एएसआई मेरठ सर्कल के अधीक्षण पुरातत्वविद् विनोद सिंह रावत की तीन सदस्यीय टीम द्वारा मस्जिद के मुतवल्लियों (देखरेख करने वालों) के साथ किया गया.

बाबर कालीन मस्जिद, जिसके बारे में हिंदू कार्यकर्ता दावा कर रहे हैं कि यह एक प्राचीन मंदिर का स्थल है, के रखवाले इमारत को रमज़ान के पाक महीने के लिए रंग-रोगन के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
संभल कोर्ट में सिविल मुकदमे में हिंदू वादियों ने मस्जिद समिति के मरम्मत और रखरखाव कार्य करने के अनुरोध का विरोध किया है और आरोप लगाया है कि यह संरचना को ख़राब करने का प्रयास है. मस्जिद तक पहुंच की मांग करने वाले सिविल मुकदमे में वकील और मुख्य वादी हरि शंकर जैन ने तर्क दिया कि मरम्मत और रखरखाव कार्य की आड़ में मस्जिद के रखवाले ‘हिंदू मंदिर की कलाकृतियों, चिह्नों और प्रतीकों’ को ख़राब कर देंगे.

एएसआई की त्वरित निरीक्षण रिपोर्ट को देखने के बाद जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने 28 फरवरी को मस्जिद के रखवालों को आपत्ति दर्ज करने के लिए दो दिन का समय दिया, लेकिन उन्हें इसे पुताई करने की अनुमति नहीं दी.
जस्टिस अग्रवाल ने एएसआई को निर्देश दिया कि वह इमारत के अंदर और आसपास की सफाई, धूल हटाने और घास को हटाने जैसे नियमित रखरखाव का काम तुरंत करे.
अदालत ने कहा कि मस्जिद समिति से यह उम्मीद की जाती है कि वे ‘कोई बाधा नहीं डालेंगे और एएसआई के काम में सहयोग करेंगे.’ जस्टिस अग्रवाल ने यह भी कहा कि प्रशासन का कोई भी व्यक्ति सफाई के काम में हस्तक्षेप नहीं करेगा.
मस्जिद की देखरेख करने वालों ने रमजान के दौरान मस्जिद की पुताई कराने पर जोर दिया है और तर्क दिया है कि यह एक पुरानी परंपरा का हिस्सा है और मस्जिद के रखरखाव के लिए आवश्यक है.

शाही जामा मस्जिद के अध्यक्ष जफर अली ने द वायर से बात करते हुए कहा कि एएसआई के आकलन में केवल मस्जिद के अंदरूनी हिस्से को ही शामिल किया गया था. मस्जिद का बाहरी हिस्सा खराब स्थिति में है और कुछ जगहों पर कबूतरों की बीट, काई और मिट्टी जम गई है. अली ने कहा, ‘बाहर की स्थिति खराब है. एएसआई ने केवल अंदर की चीज़ों पर ध्यान केंद्रित किया है.’
अपनी रिपोर्ट में, जिसकी एक प्रति द वायर के पास है, एएसआई ने कहा कि मस्जिद की प्रबंध समिति ने अतीत में मरम्मत और नवीनीकरण के कई कार्य किए थे, जिसके परिणामस्वरूप ऐतिहासिक संरचना में ‘जोड़ और परिवर्तन’ हुआ.
स्मारक के फर्श को पूरी तरह से टाइलों और पत्थरों से बदल दिया गया है. एएसआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि मस्जिद के अंदरूनी हिस्से को सुनहरे, लाल, हरे और पीले जैसे तीखे रंगों के इनेमल पेंट की मोटी परतों से रंगा गया है, जिससे स्मारक की मूल सतह छिप गई है. हालांकि, इसमें किसी भी तरह के तत्काल मरम्मत की आवश्यकता नहीं है.

एएसआई ने कहा, ‘टीम के अवलोकन के अनुसार उक्त आधुनिक इनेमल पेंट अभी भी अच्छी स्थिति में है और इसे फिर से पेंट करने की कोई तत्काल आवश्यकता नहीं है.’ हालांकि, स्मारक के बाहरी हिस्से में पेंट के उखड़ने के कुछ निशान हैं, लेकिन इस स्थिति में फिलहाल तत्काल मरम्मत की आवश्यकता नहीं है.’
जफर अली ने बताया कि हर साल रमजान और ईद-उल-फितर के दौरान मस्जिद की पुताई की जाती है. उन्होंने कहा, ‘यह एक पुरानी परंपरा है जिसे हर साल निभाया जाता है.’ उन्होंने आगे कहा कि मस्जिद समिति ने इस बार संभल मुद्दे की संवेदनशील प्रकृति के कारण पहले अनुमति मांगी थी. उन्होंने कहा, ‘हम कोई पचड़ा नहीं चाहते हैं.’
मस्जिद का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व दिशा से है जो एक बड़े लकड़ी के दरवाजे के साथ एक चौड़े द्वार से खुलता है. एएसआई ने आगे कहा कि दरवाजे के ऊपर का बीम बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है जिसे बदलने की जरूरत है.

संस्था ने यह भी कहा कि मस्जिद के पीछे (पश्चिम) और उत्तर की ओर कई छोटे कक्षों का इस्तेमाल प्रबंध समिति द्वारा भंडारण उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है. एएसआई ने कहा कि ये कक्ष जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं, खासकर छतें, जो लकड़ी के तख्तों पर टिकी हैं और कमज़ोर हैं. एएसआई ने उल्लेख किया कि मस्जिद के प्रवेश द्वार के साथ-साथ प्रार्थना कक्ष के पीछे और उत्तरी तरफ स्थित कक्षों में ‘कुछ क्षति के संकेत’ हैं.’
एएसआई ने उच्च न्यायालय को सूचित किया कि मस्जिद की संरचना में किए गए सभी आधुनिक कामों का संरक्षण और विज्ञान विंग द्वारा गहन अध्ययन किया जाना आवश्यक होगा.
मस्जिद के मुतवल्लियों और स्टेट ऑफ इंडिया काउंसिल के सचिव के बीच 1927 में हुए एक समझौते में एएसआई द्वारा मरम्मत कार्य किए जाने का प्रावधान था. समझौते में यह शर्त रखी गई थी कि मुतवल्लियों संभल के जिला मजिस्ट्रेट (तत्कालीन मुरादाबाद कलेक्टर) की लिखित सहमति के बिना मस्जिद की कोई मरम्मत नहीं करेंगे और मुतवल्लियों मस्जिद को नष्ट, हटाना, बदलना, विरूपित या खतरे में नहीं डालेंगे, न ही वे बिना अनुमति के मस्जिद के स्थल पर या उसके आस-पास निर्माण कर सकते हैं.
एएसआई, उत्तर प्रदेश सरकार और हिंदू वादी ने इस बिंदु का उपयोग यह तर्क देने के लिए किया कि मस्जिद समिति को संरचना को रंगने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
हालांकि, मस्जिद की ओर से पेश वरिष्ठ वकील एसएफए नकवी ने अदालत में कहा कि पिछले कई दशकों से मस्जिद में पुताई और अन्य मरम्मत का काम मस्जिद की प्रबंध समिति ही कर रही है और एएसआई ने इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया है.
उन्होंने कहा कि पिछले साल मस्जिद के रखरखाव और पुताई पर करीब 4 लाख रुपये खर्च किए गए थे.
नकवी ने कहा कि मस्जिद में पुताई और आवश्यक मरम्मत कार्य की अनुमति देने के लिए 8 फरवरी को एएसआई को आवेदन भेजा गया था. उन्होंने कहा, ‘समझौते पर लगभग एक सदी पहले हस्ताक्षर किए गए थे और एएसआई ने मस्जिद की वार्षिक पुताई पर कभी आपत्ति नहीं जताई, जो कि इसके बाहरी हिस्से, दीवारों को संरक्षित करने के लिए आवश्यक है.’
नकवी ने कहा कि एएसआई के निष्कर्ष और वह निष्कर्ष जिसमें उन्होंने मस्जिद की पुताई कराने के अनुरोध को खारिज कर दिया, दोनों विरोधाभासी प्रकृति के हैं.
Source: The Wire