सांख्यिकी के हिसाब से तो औसतन सात साल में एक बार होली जुमे के दिन पड़नी चाहिए। लेकिन…

होली की सुबह सुबह गुप्ता जी पधार गए। अरे वही गुप्ता जी जो हमारी सोसाइटी में ही रहते हैं और कभी कभी सुबह सुबह मॉर्निंग वॉक में टकरा जाते हैं। साथ में बराबर वाले सिंह साहब भी थे। आते ही बोले, ‘होली है’ और गुलाल वगैहरा लगाने लगे।

गुप्ता जी को तो आप लोग पहले से जानते ही हैं। सरकारी नौकरी से अवकाश प्राप्त हैं और उनका बेटा अमरीका में सैटल है। अयोध्या हो आए हैं और अभी हाल में ही कुम्भ भी नहा आए हैं। कहते हैं और कोई कुम्भ नहाए या न नहाए, सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद एक बार तो कुम्भ जरूर नहा लेना चाहिए। सारे पाप धुल जाते हैं। कुम्भ न पड़ रहा हो तो भी गंगा जी में डुबकी जरूर लगा आना चाहिए। और इस बार तो महा कुम्भ ही पड़ गया। 144 साल वाला योग पड़ गया। गुप्ता जी जैसे करोड़ों के तो भाग्य ही खुल गए।

और सिंह साहब, वे तो हमारे टावर में ही रहते हैं। हमारे से तीन फ्लोर ऊपर। कभी कभी लिफ्ट में दुआ सलाम हो जाती है। किसी यूनिवर्सिटी से गणित में अवकाश प्राप्त प्रोफेसर एंड हेड हैं। अभी भी लेक्चर लेने देने जाते रहते हैं। सरकार जी के बड़े मुरीद हैं। प्राइवेट बातचीत में कहते हैं कि आंकड़ों की जितनी ऐसी-तैसी इन सरकार जी ने की है पहले किसी सरकार जी ने नहीं की।

गुलाल के आदान प्रदान के बाद चाय और गुजिया के दौर के दौरान गुप्ता जी ने मुझसे पूछा, “डॉक्टर साहब, आप तो इतना पढ़ते लिखते रहते हैं। यह तो बताइये जरा, इस बार जो होली जुमे के दिन मतलब शुक्रवार को पड़ रही है, ऐसा इससे पहले कब कब हुआ था”।

मैंने चुटकी ली, “ऐसा तो सदियों में एक बार होता है। सरकार जी के कार्यकाल में ऐसा होना ऐतिहासिक है। अब से पहले ऐसा संयोग 144 साल पहले हुआ था। यकीन न हो तो सिंह साहब से पूछ लो”।

सिंह साहब मुस्कराते हुए बोले, “क्यों गुप्ता की खिंचाई कर रहे हो डॉ. साहब। गुप्ता जी ये तुम्हें बेवकूफ बना रहे हैं। मैं तो गणित का छात्र हूँ। सांख्यिकी के हिसाब से तो औसतन सात साल में एक बार होली जुमे के दिन पड़नी चाहिए”। फिर फोन में गूगल में खोज कर बोले, “आज से पहले इन सरकार जी के कार्यकाल में ही 2015, 2018 और 2022 में होली जुमे के दिन ही पड़ी है। मतलब पिछले ग्यारह साल में ही चार बार पड़ चुकी है”।

“हैं!”, गुप्ता जी ने कहा। “इतना बेवकूफ तो इन्होंने कभी नहीं बनाया। इस बार तो हद ही कर दी है। मंत्री, विधायक और अफसर, सभी मुसलमानों को कह रहे हैं कि तिरपाल ओढ़ कर घर से निकलो। उनकी मस्जिदों को भी ढक दिया गया है। एक बात और बताओ”।

“हाँ, हाँ, पूछो। पूछोगे नहीं तो जानोगे कैसे। वत्स, जिज्ञासा को जरूर शांत करना चाहिए”। सिंह साहब ने हँस कर कहा।

“कहते हैं औरंगजेब बड़ा ख़तरनाक था। उसके तो महल के सामने ही दो दो मंदिर थे। दिगंबर जैन मंदिर और गौरी शंकर मंदिर। वह तो उनको रमजान के महीने में ढकवा ही देता होगा। कहीं नज़र ना पड़ जाये और धर्म ना भ्रष्ट हो जाये” गुप्ता जी ने गंभीरता से पूछा।

“देखो भाई, ऐसा तो कहीं पढ़ा नहीं है और ना ही सुना है। अब ये लोग अपने पापों को छुपाने के लिए यह भी कहना शुरू कर दें तो भरोसा नहीं”, सिंह साहब ने कहा।

“असलियत तो यही है कि औरंगज़ेब तो बस बहाना है, अपने को ही ‘औरंगज़ेब’ बनाना है”।

 

Source: News Click