शिक्षा राज्यमंत्री सुकांत मजूमदार ने राज्यसभा में एक लिखित जवाब में कहा कि ‘तीन भाषा फॉर्मूले में अधिक लचीलापन होगा’ और छात्रों द्वारा सीखी जाने वाली भाषाएं ‘राज्य, क्षेत्र और निश्चित रूप से छात्र की ख़ुद की पसंद होंगी.’

 

नई दिल्ली: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के अमल होने और त्रिभाषा नीति लागू करने को लेकर केंद्र और तमिलनाडु सरकार के बीच चल रही अनबन के बीच केंद्र सरकार ने सदन को सूचित किया है कि ‘किसी भी राज्य पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी.’

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सांसद जॉन ब्रिटास के एक प्रश्न के लिखित उत्तर में शिक्षा राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार ने राज्यसभा में कहा कि ‘तीन-भाषा फॉर्मूले में अधिक लचीलापन होगा’ और छात्रों द्वारा सीखी जाने वाली भाषाएं ‘राज्य, क्षेत्र और निश्चित रूप से छात्र की खुद की पसंद होंगी.’

मजूमदार ने अपने उत्तर में कहा,‘एनईपी 2020 के पैरा 4.13 में प्रावधान है कि तीन-भाषा फॉर्मूला को संवैधानिक प्रावधानों, लोगों, क्षेत्रों और संघ की आकांक्षाओं और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए लागू किया जाना जारी रहेगा. हालांकि, तीन-भाषा फॉर्मूले में अधिक लचीलापन होगा और किसी भी राज्य पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी.’

वह कहते हैं, ‘बच्चों द्वारा सीखी जाने वाली तीन भाषाएं राज्यों, क्षेत्रों और निश्चित रूप से छात्रों की पसंद होंगी, जब तक कि तीन भाषाओं में से कम से कम दो भारत की मूल भाषाएं हों.’

मंत्री ने कहा कि यह नीति छात्रों को ‘अपनी मातृभाषा या स्थानीय भाषा में अध्ययन’ करने का विकल्प प्रदान करती है.

मजूमदार ने कहा, ‘नीति में उच्च गुणवत्ता वाली पाठ्यपुस्तकें मातृभाषा में उपलब्ध कराने और शिक्षकों को पाठन के दौरान द्विभाषी दृष्टिकोण रखने के लिए प्रोत्साहित करने का भी प्रावधान है. इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए सरकार स्कूल और उच्च शिक्षा के स्तर पर भारतीय भाषाओं में पठन सामग्री प्रदान कर रही है ताकि छात्रों के पास अपनी मातृभाषा/स्थानीय भाषा में अध्ययन करने का विकल्प हो.’

यह बयान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार के बीच एनईपी के एक हिस्से को लेकर चल रहे विवाद के बीच आया है, जिसमे त्रिभाषा नीति को लागू करना शामिल है.

एनईपी के इस हिस्से से यह आशंका पैदा हो गई है कि भाजपा इसका हिंदी को बढ़ावा देने के अपने दीर्घकालिक एजेंडे को पूरा करने में इस्तेमाल करेगी.  डीएमके ने कड़ा रुख अपनाते हुए एनईपी को लागू करने का विरोध किया है.

वहीं, केंद्र सरकार ने आरोप लगाया है कि पार्टी राजनीति के लिए भाषा का इस्तेमाल कर रही है और राज्य के छात्रों को राष्ट्रव्यापी शिक्षा मॉडल से वंचित कर रही है.

 

Source: The Wire