अगर नेहरू जी ने लॉरेंस बिश्नोई को राष्ट्रीय गैंगस्टर बनाने का रास्ता खोल दिया होता, तो कनाडा तो कनाडा, अमरीका में गुरपतवंत सिंह पन्नू की विफल हत्या की साजिश का झगड़ा भी नहीं उठा होता।

हम तो पहले ही कहते थे कि भारत-कनाडा वाले झगड़े की भी जड़ में जरूर कहीं न कहीं जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी वगैरह, परिवारवादियों की ही गलती निकलेगी। निकल आयी। कनाडा वाले क्या आरोप लगा रहे हैं, जरा ध्यान से सुनिए। कह रहे हैं कि उनके नागरिक, खालिस्तान समर्थक निज्जर की हत्या, भारत सरकार के आदेश पर करायी गयी। दिल्ली में बैठे शीर्ष अधिकारियों के आदेश पर, कनाडा में भारतीय उच्चायोग के उच्चाधिकारियों ने जासूसी करायी। बाद में निशाने पर लिए गए लोगों की रॉ के आदेश पर भाड़े के गिरोह से हत्याएं करायी गयीं। हत्या कराने का काम किया, लॉरेंस बिश्नोई नाम के भारतीय गैंगस्टर ने। वही गैंगेस्टर जिसने एकदम हाल में मुंबई में बाबा सिद्दीकी की हत्या करायी है और फिल्मी सितारे, सलमान खान की हत्या का नोटिस दे रखा है।

वही लॉरेंस बिश्नोई जिसने करीब दो साल पहले पंजाब में लोकप्रिय गायक, सिद्धू मूसेवाला की दिन-दहाड़े हत्या कर दी थी। बंदे की हत्याओं का जाल अमरीका-कनाडा तक फैला हुआ है। बंदे में दम है, योग्यता है!

नेहरू जी, इंदिरा जी की गलती की बात यह है कि उन्होंने इस देश को उसका राष्ट्रीय झंडा दिया था। राष्ट्रीय झंडे पर राष्ट्रीय निशानी दी थी। राष्ट्रीय राजधानी दी। राष्ट्र गीत दिया। राष्ट्रीय रेडियो दिया, टीवी दिया। राष्ट्रीय पक्षी–मोर दिया। राष्ट्रीय पशु–शेर दिया। यानी सब कुछ दिया, एक  राष्ट्रीय गैंगस्टर और अयोध्या में मंदिर को छोड़कर।

राष्ट्रीय  गैंगस्टर तो देना ही भूल गए। इसी का नतीजा है कि कनाडा वाले आज यह समझकर इतनी कांय-कांय कर रहे हैं कि भारत सरकार उनकी धरती पर, एक भाड़े के गैंगस्टर से हत्याएं करा रही है। अगर पहले ही भारत ने लॉरेंस बिश्नोई को राष्ट्रीय गैंगस्टर घोषित कर दिया होता, तो कनाडा वालों की हिम्मत ही नहीं होती, निज्जर की हत्या का बखेड़ा खड़ा करने की। आखिर, राष्ट्रीय गैंगस्टर है तो, राष्ट्र के हितों की रक्षा के लिए उसी तरह से काम करेगा ही, जैसे दूतावास या हाई कमीशन के बाकी अधिकारी करते हैं। राष्ट्रीय गैंगस्टर तो जो कुछ भी करता, राष्ट्रीय होता।

कनाडा वालों की हिम्मत नहीं थी कि हमारे राष्ट्रीय गैंगस्टर के राष्ट्रीय कर्तव्यों के रास्ते में आते। बस गैंगस्टर के आगे ‘भाड़े का’ लगने से सब गुड़-गोबर हो गया। हत्याओं का प्राइवेटाइजेशन अमरीका-कनाडा वगैरह को भी मंजूर नहीं है, खासतौर पर तब जब हत्याएं वे खुद नहीं करा रहे हों बल्कि कोई और देश, उनके यहां करा रहा हो!

वर्ना निज्जर वाले मामले में कनाडा वालों का तो दखल किसी भी तरह से बनता ही नहीं था। निज्जर आखिरकार था तो भारत का ही। उसके और उसके संगियों के खालिस्तान आंदोलन का अब हिंदुस्तान में कोई खास लेवा-देवा न सही, उनके आंदोलन के निशाने पर तो हिंदुस्तान ही है। निज्जर को आतंकवादी भी भारत ने ही घोषित किया था। अब कनाडा वालों की ही मानें तब भी, उसकी जासूसी करायी भारतीय उच्चायोग वालों ने। हत्या करायी, दिल्ली में सरकार में बैठने वालों ने। और तो और हत्या भी की तो, भारत वाले ने। यह तो सौ फीसद भारतीय मामला हुआ, इसमें कनाडा वाले कहां से आ गए। पर एक वही भाड़े की बंदूक! राष्ट्रीय गैंगस्टर होता, तो मामला सौ टका राष्ट्रीय हो जाता।

फिर हम भी देखते कि कैसे कनाडा वाले इस मामले में हमारे राष्ट्रीय चाणक्य, अमित शाह और राष्ट्रीय जेम्स बांड, अजीत डोवाल का नाम घसीटते। उनका तो कोई दावा ही नहीं बनता, सिवाय इसके कि जिस कार में निज्जर को गोली मारी गयी, वह कनाडा की धरती पर खड़ी थी और अमरीका में पन्नू के संभावित हत्यारों को इस हत्या का जो वीडियो दिखाया गया, उसमें जो कार थी उसमें कनाडा के नागरिक की लाश पड़ी थी।

अगर नेहरू जी ने लॉरेंस बिश्नोई को  राष्ट्रीय गैंगस्टर बनाने का रास्ता खोल दिया होता, तो कनाडा तो कनाडा, अमरीका में गुरपतवंत सिंह पन्नू की विफल हत्या की साजिश का झगड़ा भी नहीं उठा होता। विफल हत्या की साजिश,यानी खाया-पीया कुछ नहीं, गिलास तोड़ा पांच रुपया! कम से कम बिश्नोई का काम तो पक्का था। निज्जर का कंटा काटा तो काट ही दिया। अमरीका में पन्नू के मामले में वही हो सकता था। पर वहां लॉरेंस जो नहीं था। नतीजा सब गुड़ गोबर।

जासूसी कराने तक तो सब ठीक-ठाक था। लेकिन, उसके बाद अमरीकियों के हिसाब से रॉ के अधिकारी, विकास यादव ने सुपारी देने का जिम्मा जिन गुप्ता जी को सोंपा, उन्होंने हत्या की सुपारी जिसे दी, वह अमरीकी खुफिया एजेंसी का खबरी निकला। बस हो गया कबाड़ा–खाया-पीया कुछ नहीं, गिलास…। काश विकास ने किसी बाहरी आदमी को सुपारी देने के बजाए, यह काम भारत के राष्ट्रीय गैंगस्टर को रैफर कर दिया होता, तो कम से कम अमरीकियों को कनाडा वालों का यूं साथ नहीं देना पड़ रहा होता। अपने जेम्स बांड ने सुपारी की जरा सी आउटसोर्सिंग करने की कोशिश की, और नतीजा सब के सामने है।

सच पूछिए तो अमरीकियों की मेहरबानी है कि कनाडा वालों के बरखिलाफ उन्होंने न तो अमित शाह का नाम लिया है और देसी जेम्स बांड का। वो फिलहाल विकास यादव की गर्दन पाकर ही संतुष्ट नजर आते हैं, जिसकी बलि चढ़ाने के लिए भारत भी तैयार नजर आता है। आखिरकार, दोस्ती भी तो कोई चीज है। पुन: अमरीका का प्रकरण दिखाता है कि भारत जैसे महाशक्ति बनते देश के पास, अपना एक राष्ट्रीय गैंगस्टर होना कितना जरूरी है।

और यह तो कहने की कोई जरूरत ही नहीं है कि लॉरेंस बिश्नोई में राष्ट्रीय गैंगस्टर बनने की सभी जरूरी योग्यताएं हैं। न हो तो सोशल मीडिया पर देख लो। बाबा सिद्दीकी को टपकाने के बाद से, लॉरेंस बिश्नोई छाया हुआ है। क्यों न हो, आखिर साबरमती जेल से जो बंदा दुनिया भर में अपना नेटवर्क चला सकता है और सरकारी संरक्षण से लेकर मीडिया कवरेज तक, सब कुछ पेशेवराना तरीका से साध सकता है और सबसे बड़ी बात, जो गैंगस्टर होकर भी हिंदू-हिंदू कर सकता है और मौसम तथा मौका देखकर सलमान खान को बिश्नोइयों द्वारा आरक्षित काला हिरण मारने की सजा देने की धमकियां दे सकता है, उसमें कोई बात तो होगी; आला दर्जे की प्रबंधन कुशलता तो होगी। हिंदू दाऊद है भाई बल्कि हिंदू दाऊद से बढ़कर। और क्या चाहिए, राष्ट्रीय गैंगस्टर बनने के लिए?

Source: News Click